स्विट्ज़रलैंड के इंटरलाकन से हम युंगफ्राओ के लिए बढ़ चले। वैसे क्या आपको पता है कि युंगफ्राओ का शाब्दिक अर्थ क्या है? चलिए में ही बता दूँ आपको। युंगफ्राओ का मतलब है "कुमारी" यानि वर्जिन। बर्नीज ओवरलैंड में स्थित युंगफ्राओ स्विस ऐल्प्स की तीन मुख्य चोटियों में से ये एक है। हालांकि तकनीकी रूप से ये स्विट्ज़रलैंड की सबसे ऊँची चोटी नहीं है फिर भी यहाँ इसे Top of Europe कह कर प्रचारित किया जाता है। निजी संचालकों द्वारा स्विट्ज़रलैंड का कोई भी कार्यक्रम Top of Europe की इस रेल यात्रा के बिना पूरा नहीं होता। क्या वाकई इस चोटी तक की यात्रा पर संचालकों द्वारा मचाया गया हो हल्ला वाज़िब है? आप ख़ुद ही मेरे साथ चलकर महसूस कर लीजिए।

इंटरलाकेन से युंगफ्राओ तक जाने के लिए ट्रेन या सड़क मार्ग से आपको घंटे भर का ही समय लगेगा। इंटरलाकन से एक रास्ता ग्रिंडलवाल्ड होते हुए जाता है जबकि दूसरा लाउठाबोरेन होकर। इन दोनों रास्तों से अंततः आप क्वाइन्स स्काइक Kleine Scheidegg स्टेशन पहुँचते हैं। अब ये मत पूछिएगा कि जर्मन Kleine Scheidegg को क्वाइन्स स्काइक कैसे पढ़ लेते हैं? मैं तो सड़क मार्ग से क्वाइन्स स्काइक पहुँचा था पर रेल मार्ग ऐल्प्स पर्वतमाला को ज्यादा करीब से देखने का मौका देती है इसलिए इंटरलाकन में रहते हुए अगर आप युंगफ्राओ तक जाने की सोचें तो जाते समय ग्रिंडलवाल्ड और लौटते वक़्त लाउठाबोरेन होते हुए वापस आ जाएँ।
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युंगफ्राओ जाने के लिए यहाँ से पकड़ी जाती है ट्रेन |
इंटरलाकन से क्वाइन्स स्काइक तक जाना एक सपने जैसा था। पहाड़, बादल, दूर दूर तक फैले चारागाह और उसमें बसे छोटे छोटे गाँव। दूर से गाँव कितने भी आधुनिक लगें जब आप करीब से इनकी दिनचर्या देखेंगे तो इनकी खूबसूरती के पीछे आपको यहाँ के लोगों का कठोर जीवन दिखाई पड़ेगा। इन पहाड़ों में पर्यटन के आलावा जीविकोपार्जन का ज़रिया पशुपालन है। स्विट्ज़रलैंड की चीज़ Cheese का विश्व भर में बड़ा नाम है। गर्मी के मौसम में ये हरे भरे चारागाह गायों के आहार का प्रमुख हिस्सा बनते हैं। हर गाँव अपनी बनाई हुई चीज़ पर फक्र महसूस करता है। इसे बनाने के तरीकों का यहाँ अभी भी मशीनीकरण नहीं हुआ है और गाँव के लोग विरासत में मिले परंपरागत विधियों को अपनाए हुए हैं।
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बर्नीज़ ओवरलैंड की खूबसूरत घाटियाँ |
गर्मी का मौसम खत्म होते ही ये चारागाह बर्फ से ढक जाते हैं। चारे के लिए गड़ेरिए को और नीचे उतरना पड़ता है। बर्फीले तूफान लकड़ी के घरों में रहने वाले नागरिकों के लिए आफत का बुलावा ले के आते हैं। फिर भी यहाँ के लोग घाटी में बसे शहरों का रुख नहीं करते। पर ये गौर करने की बात है कि चीज़ और चॉकलेट जैसे दुग्ध उत्पादों में अग्रणी होने के बावज़ूद ये देश अपनी बैकिंग सेवाओं, घड़ी और भारी उद्योगों के ज़रिए कमाता है। खेती किसानी महज यहाँ की दो प्रतिशत आबादी को रोज़गार देती है और काफी सब्सिडी भी पाती है।
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क्वाइन्स स्काइक रेलवे स्टेशन |
क्वाइन्स स्काइक के समीप हम अपनी बस से नीचे उतरे और चारों ओर फैली अलौकिक सुंदरता में खो से गए। बर्नीज ओवरलैंड की हरी भरी पहाड़ियों के साथ आइगर, मांक और युंगफ्राओ के विशालकाय पर्वत हमें घेरे खड़े थे। पर्वतों की बर्फ रेखा जहाँ खत्म हो रही थी वही देवदार सदृश गहरे हरे पेड़ों के जंगल शुरु हो जाते थे। गाहे बगाहे जब धूप मंद पड़ती तो बर्फ की विशाल सफेद चादर के बीच वे काले बौनों से नज़र आते। इन पेड़ों के नीचे जहाँ तक नज़र जाती वहाँ तक घास के मखमली चारागाहों का विस्तार नज़र आता। सड़क की दूसरी तरफ खिलखिलाती नदी का गुंजन आँखों के साथ कानों को तृप्त किए दे रहा था।
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माउंट आइगर |
स्टेशन के ठीक पीछे अपनी खड़ी ढाल के साथ आइगर का पहाड़ हमें टकटकी लगाए देख
रहा था। अगर यहाँ की लोक कथाओं को मानें तो आइगर की इन्हीं निगाहों से
बचाने के लिए मान्क यानि संत को भगवान ने कुमारी जुंगफ्राओ के सामने खड़ा
किया था।
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देखिए कितने ऊपर आ गए हम ! |
हमें हरे पीले वाले डिब्बों वाली ट्रेन मिली। मेरे और सहयात्रियों के
बैठते ही ट्रेन चल दी। अगले नौ किमी का सफ़र धरती के इस स्वर्ग की प्रवेश
यात्रा सरीखा था। धीरे धीरे रैक और पिनियन पर विद्युत इंजन से खिसकती रेल
पहले आइगर पर्वत की ओर चलती है। हरी हरी दूब कुछ ही दिर में बर्फ से धीरे
धीरे ढकने लगती है और फिर ट्रेन की खिड़की के दोनों ओर बर्फ की चादर के
आलावा कुछ और नजर नहीं आता।
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पहाड़ के अंदर से जाती सुरंग |
लोग बता रहे हैं कि कुछ ही देर में हम पहाड़ के अंदर बनी सात किमी लंबी सुरंग में घुसेंगे। खिड़की के बाहर देखते हुए मैं सोचता हूँ कि इतने दुर्गम रास्ते में सुरंग बनाने का ख्याल किसे आया होगा। बाद में युंगफ्राओ में पता चला कि ये विचार 1894 में Adolf Guyer-Zeller को आया जो कि इस इलाके के उद्योगपति थे। दो साल बाद इस परियोजना पर कार्य आरंभ हो गया। इसे पूरा होने में करीब पच्चीस साल लग गए। ये दुर्भाग्य ही रहा कि इस योजना को अमली जामा पहनाने वाले Zeller इसे जीते जी इसे पूरा होते नहीं देख पाए।
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रेल की पटरियों के बीच कुछ अलग सा दिखा आपको? |
लगभग सौ साल पहले बनी ये रेलवे इंजीनियरिंग की मिसाल है। इसे शुरुआत से
मीटर गेज़ और बिजली के इंजन से चलाया गया। इतनी खड़ी ढाल पर चलने के लिए दो
रेलों के बीच एक रैक का निर्माण किया गया। गाड़ी के चक्कों के बीच में एक
पिनियन गियर बनाया गया जो इस रैक के दातों से अपने आपको जोड़ता घूमता है।
सेफ्टी गियर का प्रयोग करते ही पिनियन रैक के साथ जुड़कर गाड़ी ढलान पर पीछे जाने से
रोकने में सहायक होता है। इतना ही नहीं यहाँ इंजन में रिजेनेरेटिव मोटर
लगी हैं जो चढ़ाई में तो विद्युत उर्जा की खपत करती हैं पर ढलान आने से
उर्जा उत्पन्न करती हैं जो फिर ऊपर लगी ग्रिड में चली जाती है। सुरंग के
अंदर दो और खुले में एक स्टेशन हैं जहाँ से एक दूसरी ट्रेन हमें आगे ले चलती है।
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पहाड़ को करीब से देखने के लिए बना स्टेशन |
छोटे स्टेशन पर घुसते ही ट्रेन रुक जाती है और घोषणा होती है कि यात्री
स्टेशन पर लगे झरोखों से बर्फीले पर्वतों को बेहद करीब से देखने जा सकते
हैं। यात्री झरोखों की ओर दौड़ते हैं। सुरंग के अंदर की ठंडक ठिठुराने वाली
है पर खिड़की से आँख गड़ा कर जब तक आइगर और उसे सटी पर्वतमाला को निहार ना
लें तो आगे बढ़ें कैसे?
ट्रेन की खिड़की निरंतर बदलते दृश्य पेश कर रही है। बादलों का झुंड इस चोटी को पूरी तरह घेर चला है। ऐसा लग रहा है मानो चोटी गर्दन उचका कर कह रही हो अब तो रास्ता छोड़ों तुम सब नहीं तो क्या पता आज सूरज बिना मिले ही वापस चला जाए।
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बादलों के बाहुपाश में जकड़ा एक पर्वत |
हम अपने गन्तव्य पर एक घंटे से कम समय में पहुँच गए हैं। यकीन नहीं हो रहा है कि इंजीनियरिंग की इस मिसाल की बदौलत हम युंगफ्राओ की चोटी पर विचरण कर पा रहे हैं। युंगफ्राओ पर मौसम बड़ी तेजी से बदलता है। गनीमत है कि धूप बड़ी तेज है और एक जैकेट में ठंड का ज़रा भी आभास नहीं हो रहा है।
स्टेशन पर ही कैफेटेरिया है। पर अभी खाने पीने की किसको पड़ी है। हम सभी इस दृश्य को आँखों में हमेशा हमेशा के लिए क़ैद कर लेना चाहते हैं। युंगफ्राओ की चोटी से हटकर मेरी नज़र अब Aletsch Glacier पर पड़ती है। इसकी न्यूनतम और अधिकतम चौड़ाई एक से दो किमी तक है। ग्लेशियर के ठीक ऊपर एक वेधशाला है। वेधशाला के नीचे की बॉलकोनी पर विश्व के कोने कोने से आए लोग इस यादगार मौके को कैमरे में बंद कर लेना चाह रहे हैं। एक जापानी टूरिस्ट तो अपनी शर्ट खोल कर सेल्फी ले रहा है। मैं उसके इस दुस्साहस को देख मुस्कुराए बिना नहीं रह पाता।
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इटली की ओर जाता करीब बीस किमी लंबा Aletsch Glacier ग्लेशियर |
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युंगफ्राओ की चोटी |
एक ओर जुंगफ्राओ तो दूसरी तरफ मांक की चोटियाँ नज़र आ रही हैं। गहरे नीले आकाश के नीचे ढलान पर जमी बर्फ के चेहरे पर एक शिकन तक नहीं है।
बर्फ का ये समतल सपाट रूप उसकी खूबसूरती में चार चाँद लगा रहा है।
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हिमखंडो को देखते हुए हम बर्फ के संग्रहालय में जा पहुँचते हैं। संग्रहालय के अंदर पहुँचते ही ठिठुरा देने वाली ठंड का सामना होता है। चूँकि रास्ता बर्फीला है इसलिए हर क़दम बड़ी सतर्कता से लेना पड़ रहा है। जरा सी चूक हुई और आप बर्फ में औ्धे मुँह पड़े होंगे। बर्फ की कलाकृतियाँ मैं अपनी ज़िंदगी में पहली बार देख रहा हूँ। मुझे पेंग्विन और ध्रुवीय भालू की ये मूर्तियाँ सबसे ज्यादा आकर्षित करती हैं। संग्रहालय के आस पास चॉकलेट की दुकानें और एल्पाइन पेनोरामा के दो सेक्शन हैं। पर उसे छोड़कर हम आइसपार्क की ओर बढ़ चलते हैं क्यूँकि अंदर ठंड काफी है।
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बर्फ से बनी कलाकृतियों का संग्रहालय |
आइस पार्क बर्फ के विशाल मैदान सा नज़र आ रहा है। ऐसे मैदानों पर स्कीइंग करने का आनंद ही कुछ और है। पर हमारे समूह में स्कीइंग किसी को आती नहीं सो आपस में बर्फ से खेलने का क्रम शुरु हो जाता है। दिन की पेट पूजा करने हम वापस कैफेटेरिया पहुँचते हैं जहाँ पहले से ही भारतीय और चीनी मूल के लोगों की भारी भीड़ है। वापसी की यात्रा में टिकट संग्राहक टिकट की जाँच करते हुए एक स्विस चाकलेट भी हाथ में पकड़ा देती है और मैं इसी मिठास को लिए युंगफ्राओ से विदा लेता हूँ।
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आइस पार्क |
स्विटरज़रलैंड के इस सफ़र के अगले पड़ाव में आपको ले चलेंगे मध्य स्विटरज़रलैंड के शहर Lucerne में।
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