रविवार, 26 फ़रवरी 2012

रंगीलो राजस्थान : मेवाड़ राजाओं की शरणस्थली कुंभलगढ़ !

राजस्थान जाने के पहले ही कुंभलगढ़ के बारे में पढ़ा था कि यही वो किला है जिसकी एक ओर मारवाड़ और दूसरी ओर मेवाड़ की सीमाएँ लगती थीं। राजस्थान के अन्य किलों की अपेक्षा कुंभलगढ़ का आबादी से अलग थलग दुर्गम घाटियों के बीच बसा होना मुझमें इसके प्रति ज्यादा उत्सुकता पैदा कर गया था। यही वज़ह थी कि अपने कार्यक्रम में नाथद्वारा और हल्दीघाटी को ना रख मैंने उदयपुर प्रवास के तीसरे दिन कुंभलगढ़ किले और पास बने रनकपुर के मंदिरों को देखने का कार्यक्रम बनाया था।

हम लोग सुबह के साढ़े नौ बजे सड़क के किनारे ठेलों पर बनते गरमा गरम आलू के पराठों का भोग लगाकर कुंभलगढ़ की ओर चल पड़े । यूँ तो कुंभलगढ़, उदयपुर से करीब अस्सी किमी की दूरी पर है पर अंतिम के एक तिहाई घुमाबदार पहाड़ी रास्तों की वज़ह से यहाँ पहुँचने में दो ढाई घंटे लग ही जाते हैं। उदयपुर से निकलते ही अरावली की पहाड़ियाँ शुरु हो जाती हैं। रास्ते में दिखती हरियाली, कलकल बहती पहाड़ी नदी पश्चिमी राजस्थान की शुष्क जलवायु के ठीक विपरीत छटा बिखेर रही थी।