
अपनी लद्दाख यात्रा से जुड़ी पिछली कड़ी में मैंने आपको बताया था कि कैसे खारदोंग ला व श्योक और नुब्रा नदियों का संगम देखते हुए नुब्रा के मुख्यालय दिस्कित में प्रवेश किया। यूँ तो दिस्कित का नाम नुब्रा घाटी के साथ लिया जाता है पर वास्तविकता ये है कि ये गाँव नुब्रा नहीं बल्कि श्योक नदी के किनारे बसा है। पनामिक और सुमूर जैसे गाँव के बगल से बहती हुई नुब्रा नदी दिस्कित के पहले ही श्योक नदी में मिल जाती है।
आज के समय में दिस्कित का सबसे बड़ा पहचान चिन्ह यहाँ स्थित 32 मीटर ऊँची मैत्रेय बुद्ध की प्रतिमा है जो 2010 में बनकर तैयार हुई थी। लेह से हुंडर जाती सड़क पर कई किलोमीटर पहले से ही आपको भगवान बुद्ध की इस ओजमयी प्रतिमा के दर्शन होने लगते हैं। टेढी मेढ़ी राह कभी तो उनकी छवि को आपसे छुपा लेती है तो कभी अचानक ही सामने ले आती है। लुकाछिपी के इस खेल को खेलते हुए आप जब अनायास ही इसके सामने आ पहुँचते हैं तो इसकी भव्यता को देख मन ठगा सा रह जाता है ।
दिस्कित के मैत्रेयी बुद्ध |
कई बार लोगों को भ्रम हो जाता है कि बुद्ध की ये प्रतिमा बौद्ध मठ के परिसर में स्थित है। लोग इसे देख के ही आगे हुंडर या तुर्तुक के लिए कूच कर जाते हैं जबकि हक़ीकत ये है कि यहाँ का चौदहवीं शताब्दी में बना प्राचीन बौद्ध मठ इस प्रतिमा की बगल में सटी पहाड़ी के ऊपर बना हुआ है।