पिछली दफ़े आपको नैनीताल कै नौकुचियाताल और उसके आस पास की प्राकृतिक सुंदरता की एक झलक दिखलाई थी। इसी कड़ी में आज बारी है भीमताल और सतताल की। वैसे तो लोग गर्मियों में भी तालों के इस शहर में जाते हैं क्यूँकि तभी बच्चों की छुट्टियाँ भी होती हैं। पर अगर नैनीताल की खूबसूरत वादियों का अकूत सौंदर्य आपको अपने कैमरे में क़ैद करना हो तो अक्टूबर के उत्तरार्ध या फिर नवंबर में यहाँ जरूर जाएँ। देवदार के जंगलों के बीच गहरा नीला आसमान आपके स्वागत के लिए हमेशा तैयार मिलेगा।
अक्टूबर के पहले हफ्ते की सुबह भी कुछ ऐसी ही सुबह थी। अपने गेस्टहाउस से बाहर चहलकदमी करने निकला तो इन चार पेड़ों को बुलंदी से सीना ताने खड़ा पाया। पेड़ों के पत्ते सूख चुके थे पर फिर भी वो ऐसे खड़े थे मानो इससे उन्हें कोई फर्क ना पड़ता हो।
सुबह जब हम नैनीताल के तालों का दर्शन करने निकले तो घड़ी की सुइयाँ साढ़े दस बजा रही थीं। मौसम का मिजाज़ सुबह की अपेक्षा बदल सा गया था। आकाश में बादल की हल्की परत नीले आकाश को मटमैला बना चुकी थी। जब तक हम नैनीताल की भीड़ भाड़ से निकल 22 किमी की दूरी पर स्थित भीमताल पहुँचे साढ़े ग्यारह बज चुके थे।
अब नाम भीमताल है तो महाबली भीम से जुड़ी कहानियाँ भी होंगी। कहते हैं पांडवों के निर्वासन के समय भीम यहाँ पधारे थे। वैसे ये झील भीमकाय तो नहीं फिर पौने दो किमी लंबी और लगभग आधा किमी चौड़ी जरूर है। झील के पास ही भीमेश्वरमहादेव का मंदिर भी है जो सत्रहवीं शताब्दी में यहाँ के कुमाऊँ राजाओं ने बनाया था। यानि भीमताल का अस्तित्व नैनीताल से भी पुराना है।