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रविवार, 18 सितंबर 2016

वाट फो : क्या अनूठा है थाई मंदिर स्थापत्य शैली में ? Wat Pho, Temple of reclining Buddha, Bangkok

बैंकाक मंदिरों का शहर है। यहाँ तकरीबन चार सौ छोटे बड़े मंदिर हैं जिन्हें यहाँ वाट भी कहा जाता है। अब सारे मंदिरों को तो आप देख भी नहीं सकते और देखना भी नहीं चाहेंगे। पर देखें तो किसे देखें?  खासकर ऐसी जगह में जहाँ एक ओर तो मशहूर फुटबाल खिलाड़ी डेविड बेकहम  के नाम पर भी मंदिर है तो दूसरी ओर ऐसे मंदिर भी जो विशाल पीपल के पेड़ में समाए हैं । वैसे अगर लोकप्रियता के हिसाब से देखें तो बैंकाक के शाही महल में स्थित वाट फ्रा काएव, शाही महल के बाहर पर उसके बिल्कुल निकट का प्राचीन मंदिर वाट फो और नदी के पार स्थित बैंकाक की पहचान के रूप में जाना जाने वाला वाट अरुण अग्रणी स्थान रखते हैं। 


वाट फ्रा काएव में चूँकि प्रवेश शुल्क करीब 1000 रुपये है इसलिए बहुत सारे यात्रा संचालक इसे अपने कार्यक्रम के बाहर रखते हैं। पर फुकेट और बाद में बैंकाक के मंदिरों को देखने के बाद ये तो समझ आ गया कि स्थापत्य की दृष्टि से इन मंदिरों के मूल तत्त्व क्या होते हैं? आज जब मैं आपको वाट फो यानि सहारे के साथ लेटे हुए बुद्ध के मंदिर (Temple of reclining Buddha) में ले चलूँगा तो थाई मंदिरों की ये विशिष्ट स्थापत्य शैली आपके सामने होगी।

Decorated roof and Chedi of Wat Pho  वाट फो की सजी धजी छतें व स्तूप
भारतीय बौद्ध मंदिरों में स्तूप की बनावट तो आपने देखी ही होगी। धौली, लेह व साँची के स्तूप आदि एक गुंबद की शक्ल में उभरते हैं  जबकि इनका आधार वृताकार है। थाईलैंड में स्तूपों का आकार शंकुनुमा  होता है। यहाँ के स्तूप आधार में चौड़े और ऊपर जाते हुए पतले होकर एक लकीर की शक़्ल इख़्तियार कर लेते हैं। दूर से ऐसा लगता है मानो आसमान से लटकती बड़ी बड़ी घंटियाँ सतह पर रख दी गई हों। स्थानीय भाषा में इन्हें 'चेदी' कहा जाता है। वाट फो की विशालता का अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है की यहाँ 91 छोटे और 4 बड़े स्तूप हैं।

Chedis of Wat Pho वाट फो की मशहूर चेदी

गुरुवार, 8 सितंबर 2016

चलिए बैंकाक की स्काईट्रेन से चाटुचाक बाजार तक A skytrain journey to Chatuchak Weekend Market, Bangkok

अगर मैं आपसे पूछूँ  कि बैंकाक पर्यटकों में इतना लोकप्रिय क्यूँ है तो आप क्या कहेंगे? इतना तो पक्का है कि आपके  जवाब एक जैसे नहीं होंगे। मौज मस्ती के लिए यहाँ आने वाले पटाया के समुद्र तट और यहाँ के मसाज पार्लर का नाम जरूर लेंगे। वहीं इतिहास और संस्कृति में रुचि रखने वाले यहाँ की बौद्ध विरासत को प्राचीन और नवीन बौद्ध मंदिरों में ढूँढेंगे। पर कुछ लोग तो ये भी कहेंगे कि बैंकाक गए और शापिंग वापिंग नहीं की तो क्या किया? घुमक्कड़ के रूप में आपकी कैसी भी प्रकृति हो पर इस बात से शायद ही आपको इंकार हो कि खरीददारी के लिए बैंकाक में आपके पास विकल्प ही विकल्प हैं। 

अपनी यात्राओं में मैं सबसे कम समय मैं वहाँ के बाजारों में बिताना चाहता हूँ। वो भी  तब, जब करने को और कुछ नहीं हो।  बैंकाक में वैसे तो कितने सारे सुपर स्टोर हैं। सबकी अपनी अपनी खासियत है।अब हमारे मन में बाजार से कुछ लेने के लिए बनी बनाई सूची तो थी नहीं तो सोचा कि क्यूँ ना ऐसे बाजार में समय व्यतीत करें  जो स्थानीय संस्कृति के करीब हो। इसलिए बैंकाक प्रवास के आख़िरी दिन का एक बड़ा हिस्सा हमने यहाँ सप्ताहांत में लगने वाले बाजार चाटुचाक में बिताया।

BTS Skystation पर रंग बिरंगी ट्रेन

सुखमवित इलाके में होने की वज़ह से फायदा ये था कि हम बैंकाक के Mass Transit System यानि BTS के स्काईट्रेन स्टेशन के बिल्कुल करीब थे। बैंकाक की इस BTS सेवा में दो मुख्य रेल मार्ग हैं। एक मार्ग  बैंकाक के पूर्वी स्टेशन बीरिंग से चलती हुई उत्तर में मोचित तक जाता  है तो दूसरा  नेशनल स्टेडियम से चलकर बांग वा की तरफ। नेशनल स्टेडियम के पास का इलाका स्याम के नाम से जाना जाता है औेर इसके पास कॉफी शापिंग मॉल्स हैं।

बैंकाक में दिल्ली मेट्रो की तरह रोड के ऊपर ऊपर ट्रेन चलाने की क़वायद नब्बे के दशक में शुरु की गई थी। थाई अधिकारियों को अपनी इस परियोजना के लिए कनाडा के वैनकूवर शहर की मेट्रो ने बहुत प्रभावित किया था। वैनकूवर में ये ज़मीन के ऊपर चलने वाली मेट्रो स्काई ट्रेन के नाम से जानी जाती थी। जब आख़िरकार 1999 दिसंबर में ये ट्रेन चली तो BTS के साथ थाई निवासियों ने वैनकूवर की अपनी प्रेरणास्रोत स्काईट्रेन का नाम अपना लिया। बैंकाक में वैसे ज़मीन के अंदर चलने वाली मेट्रो (MRT) अलग से है जो कुछ जगहों पर स्काइट्रेन के रास्ते से मिल जाती है।
रेल मानचित्र BTS Map, Bangkok
अपने होटल से पास के स्टेशन तक पहुँचने में हमें कुछ खास परेशानी नहीं हुई। पर टिकट के लिए मशीन में जितने छुट्टे की जरूरत थी वो हमारे पास नहीं थे। थाई भाषा में टिकट का दाम लिखने से अलग ही परेशानी आ रही थी। किसी तरह वहाँ के कार्यालय से छुट्टे लिए गए। स्टेशन बिल्कुल साफ था और ट्रेनें खूब रंग बिरंगी। मतलब जापान, फ्रांस, जर्मनी व आस्ट्रिया की ट्रेनों से (जिन पर मैं सफर कर चुका हूँ) थाइलैंड की ये स्काई ट्रेन किसी मामले में कम नहीं थी।

BTS की ये ट्रेनें इन मार्गों पर हर दो तीन मिनट के अंतराल पर आती हैं. सुबह साढ़े छः बजे से लेकर रात बारह बजे तक ये आवाजाही चलती रहती है। इन ट्रेनों का कम से कम किराया पन्द्रह बहत यानि तीस रुपये के लगभग है। हमें तो इस लाइन के अंतिम स्टेशन तक जाना था। इसलिए जो तनाव था वो गाड़ी में बैठ भर जाने का था। बीच में उतरने का कोई चक्कर ही नहीं।

ठाठ हों तो ऐसे !
ट्रेन में बैठते ही ठीक सामने की सीट पर मुझे ये सज्जन मिल गए। अपनी वेशभूषा और आकार प्रकार से वे  हिंदी फिल्मों में कॉमेडियन के किरदार के लिए पूरी तरह जँच रहे थे। पाँच बालाओं के बीच चिर निद्रा में लीन चैन की बंसी बजाते से वे आधुनिक कृष्ण प्रतीत हो रहे थे।

गुलाबी रंग की टैक्सी तो पहली बार बैंकाक में ही देखी
मोचित पहुँचने में यहाँ का प्रसिद्ध विजय स्मारक यानि Victory Monument नज़र आया। और हाँ यहाँ की टैक्सियाँ एक रंग की नहीं बल्कि कई रंगों की हैं। नीली, हरी, गुलाबी , नारंगी और दोरंगी।  एक रंग वाली टैक्सियाँ किसी निजी कंपनी की होती हैं। दोरंगी टैक्सियों में सबसे प्रचलित हरी पीली टैक्सी है जिसमें चालक ही गाड़ी का मालिक भी होता है।

मोचित स्टेशन से उतरते ही करीब सौ मीटर के फासले पर चाटुचक बाजार शुरु हो जाता है। 27 एकड़ में फैले बैंकाक के इस बाजार को विश्व के सबसे बड़े सप्ताहांत बाजारों में एक माना गया है। पूरा बाजार 27 हिस्सों में बँटा है। क्या नहीं है इस बाजार में कपड़े, हश्तशिल्प, फर्नीचर, किताबें, घर की सजावट से जुड़ी वस्तुएँ, इलेक्ट्रानिक्स, रसोई और यहाँ तक की पालतू जानवर ! बाजार के बाहरी हिस्सों को आगर आप पार कर पाए तो इसके मध्य में आपको एक घंटाघर दिखेगा। हम चार घंटों में मुश्किल से सताइस में से दस हिस्से ही देख पाए।

थाई रुमाल पर गजराज

हाथी मेरे साथी फिल्म तो ये भारत की है पर थाइलैंड के लिए बिलकुल फिट बैठती है। आदि काल से ये देश हाथियों को पूजता रहा है। थाइलैंड के इतिहास के पन्ने उलटें तो पाएँगे कि घने जंगलों के बीच युद्ध करने वाले राजाओं की सवारी हाथी ही होता है। लकड़ियों और भारी सामान की ढुलाई भी इन्हीं से की जाती थी। लिहाजा मंदिरों से लेकर रुमाल तक में इनकी छवी आपको सहजता से दिख जाएगी। चाटुचाक मार्केट में रुमालों के बीच गजराज को मैंने जब घूमता पाया तो उनकी तस्वीर निकाल ली... 

चित्र में तोम यम सेट बाँयी ओर व लेमन ग्रास दाहिने दिख रही है
मसालों के बाजार में बाकी चीजें तो वहीं थी सिवाए इस तोम यम सेट के। पैकेट के अंदर तरह तरह की पत्तियाँ दिख रही थीं। पता चला कि इस सेट में तरह तरह की जड़ी बूटियाँ हैं जिन्हें इस्तेमाल करने के लिए पीसकर एक घोल तैयार कर लिया जाता है जो इसी नाम के थाई सूप  में इस्तेमाल होता है। इस पेस्ट के साथ इस नान वेजसूप में लेमन ग्रास भी डाली जाती है।

इसे क्या कहते होंगे थाइ कुल्हड़ :)
इस बाजार की विशालता को छोड़ दें तो इनमें अक़्स आपको अपने देश के बाजारों का ही दिखेगा। कई  दुकानें एक दाम रखती हैं। बाकी में मोल भाव जम कर होता है। मतलब इस गिल्ट के लिए तैयार रहें कि दुकानदार आपके कहे मूल्य पर तैयार हो जाए तो दिल से आवाज़ निकले कि हाय मैंने और कम बोला होता। :)

यात्रा से पहले हम ऐसी ही चप्पलें भारत से खरीद कर ले गए थे। हमें क्या पता था कि वो यहाँ बनती हैं।

यहाँ अगर आपने कोई सामान पसंद कर लिया और ये सोचकर आगे बढ़ गए कि थोड़ा और देख लें तो यकीन मानिए आप शायद ही उस दुकान को वापस लौट कर खोज सकें। मेर इरादा तो पूरे बाजार का ज्यादा से ज्यादा चक्कर लगा लूँ पर बढ़ती गर्मी और रुक रुक कर होती खरीददारी की वज़ह से ऐसा हो नहीं पाया।

सितारे ज़मी पर
सुबह नौ से एक बजे तक चलते चलते भूख प्यास ने जब एक साथ धावा बोला तो हम वापस अपने होटल की ओर रुखसत हो गए।



अगर आपको मेरे साथ सफ़र करना पसंद है तो फेसबुक पर मुसाफ़िर हूँ यारों के ब्लॉग पेज पर अपनी उपस्थिति दर्ज़ कराना ना भूलें। मेरे यात्रा वृत्तांतों से जुड़े स्थानों से संबंधित जानकारी या सवाल आप वहाँ रख सकते हैं।

रविवार, 31 जनवरी 2016

सफॉरी वर्ल्ड, बैंकाक : खिलाइए जिराफ़ को भोजन और देखिए हाथियों का नाच ! Safari World, Bangkok Part-II

सफारी वर्ल्ड के इस सफर की पिछली कड़ी में आपने पंक्षियों के संसार की एक झलक पाई। आज बात उन जंगली जानवरों की जिनसे हम अपनी इस यात्रा में कुछ फुट की दूरी तक पहुँच गए। जिराफ़ के तो इतने करीब कि वो आपनी लंबी जीभ तक आपके हाथों मे छुला दे। 


 तो आइए देखें बैंकॉक के सफारी पार्क का ये रूप आज की इस झांकी में..

Main Gate of Safari Park ये है सफारी पार्क का मुख्य द्वार
आप  थाइलैंड के किसी भी पार्क में जाइए हाथी के बिना उनकी कोई साज सज्जा पूरी नहीं होती। पार्क के मुख्य परिसर में टिकट लेने के बाद देश विदेश के अन्य यात्रियों के साथ आपको एक मिनी वैन मैं बैठा दिया जाता है। पार्क के टेढ़े मेरे रास्तों से गुजरने के बाद आप उस हिस्से  में पहुँचते हैं जहाँ वनराज का वास है।


पार्क के इस हिस्से को बाकी के खुले हिस्से से अलग  रखा गया है। इस हिस्से में घुसने के लिए एक यंत्रचालित गेट हैं जो ये सुनिश्चित करता है कि परिसर के अंदर गाड़ियों की संख्या एक सीमा से ज्यादा ना हो जाए। हमारी वैन के बाहर कोई जाली नहीं है। बस एक शीशे  की दीवार है। मन में सुरक्षा को लेकर थोड़ी शंका है पर वो अगले कुछ पलों में ही निर्मूल साबित होती है। हमें बताया जाता है कि कुछ ही देर बाद महाराजाधिराज की झलक मिलने ही वाली है।

The Lion King वनराज सिंह
हमें शेर अपने परिवार के साथ दिखाई पड़ता है। हमारी गाड़ी उससे करीब दस मीटर के फासले पर रुकती है पर उसका ध्यान शेरनी पर ही केंद्रित है। आपस में दौड़ भाग में व्यस्त उसका ध्यान हमारे समूह पर नहीं जाता। भाग दौड़ के बाद वो वापस आ कर सुस्ताने लगता है हमें फोटो खींचने का मौका देता हुआ।

Tiger in all its glory ..बाघ की सुंदरता की बात ही क्या !

कुछ किमी आगे बाघों का इलाका शुरु होता है। एक मचान पर दो बाघ दिन की धूप से अपने आपको बचाते उँघते दिखाई पड़ते हैं। उनका एक साथी पानी के पास धूनी रमाए बैठा है। उसकी नज़रें हमारे समूह से टकराती हैं। पर वो ये अच्छी तरह जानता है ये तो रोज़ के मुसाफ़िर हैं जिससे उसकी ज़िंदगी में कोई फर्क नहीं पड़ने वाला। इसलिए वो तुरंत ही मुंह फेर लेता है ।


रविवार, 24 जनवरी 2016

सफॉरी वर्ल्ड, बैंकाक : आइए ले चलें आपको पक्षियों के रंग बिरंगे संसार में Safari World, Bangkok Part-I

बैंकाक की यात्रा में मैं आपको पिछली दफ़े ले गया था शहर के मध्य से बहने वाली नदी चाओ फराया के नाइट क्रूज पर। अगर आप परिवार के साथ बैंकाक की यात्रा पर हों तो यहाँ के सफारी वर्ल्ड की यात्रा करना ना भूलें। यहाँ बिताया हर एक पल आप अपनी स्मृतियों में बरसों सँजोयें रहेंगे। आप भी सोच रहे होंगे कि आख़िर  ऐसा क्या है ऐसा इस सफारी पार्क में ?

दुनिया का सबसे रंग बिरंगा पक्षी मकाव  Macaw

दरअसल बैंकाक से चालीस किमी दूर स्थित इस पार्क को एक खुले चिड़ियाघर की तरह बनाया गया है जिसके अंदर आप भी  जानवरों व पक्षियों के संग होते हैं। यानि यहाँ आप होंगे अपनी कार में  और शेर,जेब्रा, जिराफ़ से लेकर तरह तरह के पक्षी  एकदम आपके बगल से यूँ गुजर जाएँगे कि आप हक्के बक्के ही रह जाएँ।

फ्लेमिंगों का एक झुंड Flamingos in all their glory

सफारी वर्ल्ड दो हिस्सों में बँटा हुआ है । एक तो सफारी पार्क जिसमें करीब पाँच सौ एकड़ भूमि जानवरों को खुले में विचरने के लिए छोड़ दी  गयी है जबकि बाकी के 180 एकड़ भूमि पर जलचरों का कब्जा है। दूसरे हिस्से में मेरीन पार्क है जहाँ जाने वालों के मनोरंजन के लिए तमाम शो की व्यवस्था है। बैंकांक शहर से सफारी वर्ल्ड की चालीस किमी की दूरी तय करने में करीब एक घंटा लगता है। सफारी पार्क के अंदर आप अपनी आरक्षित कार या फिर पार्क की मिनी बस से प्रवेश कर सकते हैं। इस खुले चिड़ियाघर के चारों ओर फैली सड़कों पर धीरे धीरे चलती आपकी गाड़ी कुल पौन घंटों का समय लेती है। तो चलिए आज की इस कड़ी में आपको मिलवाते हैं दुनिया के विभिन्न हिस्सों से यहाँ बसाए कुछ पक्षियों से.

सफारी पार्क की सबसे बड़ी विशेषता ये है कि यहाँ आप उन पक्षियों को भी देख पाते हैं जो इस इलाके के सामान्यतः बांशिदे नहीं है। हमारा सफर शुरू ही हुआ था कि ठुम्मक ठम्मक की चाल से चलते इन मुकुटधारी क्रेन की जोड़ी दिखी तो ड्राइवर से कह कर इन्हें करीब से देखने के लिए गाड़ी रुकवा ली गई।

मुकुटधारी स्याह क्रेन, Gray crowned crane

केन्या, कांगो और यूगांडा में पाए जाने वाले इस सुन्दर व दुर्लभ पक्षी को वहाँ देख कर हम निहाल हो गए। इन पक्षियों की खूबी ये है कि प्रणय निवेदन करते समय नर और मादा दोनों ही नृत्य करते हैं। और तो और बेगानी शादी में अबदुल्ला दीवाना की तर्ज पर जब प्रेमी युगल ये नृत्य कर रहे होते हैं तो बाकी युवा क्रेन भी इस नाच में शामिल हो जाते हैं। वैसे एक खास बात और है इनकी। ये पक्षी एक देश के राष्ट्रीय ध्वज का भी हिस्सा हैं। बताइए तो कौन सा देश है वो?

शुक्रवार, 20 नवंबर 2015

चलिए बैंकाक की चाओ फराया नदी में रात के सफ़र पर. Night cruise in Chao Pharaya River, Bangkok

नदियाँ शहर की सुंदरता को तब और बढ़ा देती हैं जब वो शहर के बीचो बीच से गुजरती हों। हाल फिलहाल में लंदन में टेम्स और पेरिस में सीन के अगल बगल बिखरी सुंदरता तो देख चुका हूँ। पर आज ऐसे ही एक नदी के किनारे बसे शहर की बात करूँगा जो भारत से ज्यादा दूर भी नहीं है और जहाँ की एक शाम मैंने उसी नदी के साथ गुजारी थी। वो शहर था बैंकाक और वो नदी थी चाओ फराया

चाओ फराया थाइलैंड की एक प्रमुख नदी है जो इसके केंद्रीय मैदानी भाग से दक्षिण की ओर बहती हुई थाइलैंड की खाड़ी में जा मिलती है। इस नदी के किनारे थाइलैंड के कई नए पुराने शहर बसे हुए हैं जिनकी समृद्धता की वज़ह नदी मार्ग से होने वाले व्यापार की सहूलियत थी। जब थाइलैंड स्याम के नाम से जाना जाता था तब भी यही नदी इसकी प्राचीन राजधानी अयुथ्या से समुद्र तक के व्यापार मार्ग का साधन थी। 

River City Shopping Complex, Bangkok

आज चाओ फराया बैंकाक शहर  को पूर्वी और पश्चिमी हिस्से में बाँटती है। नदी के  पूर्वी हिस्से  की ओर आज का आधुनिक बैंकाक फैला हुआ है। शहर के सभी प्रमुख शॉपिंग मॉल व् मेट्रो सेवा इसी इलाक़े में पड़ते हैं जबकि इसका पश्चिमी पुराना इलाका चाइना टाउन, फूलों के बाजार और वाट अरुण के लिए जाना जाता है।

शनिवार, 31 जनवरी 2015

अलविदा फुकेट ! : चलते चलते देखिए फुकेट के कुछ आकाशीय नजारे Aerial View of Phuket

तो फुकेट फैंटा सी से शुरु हुआ हमारा सफ़र फुकेट के प्रसिद्ध बौद्ध मंदिर वाट चलौंग और जेम्स बांड द्वीप से होता हुआ फी फी द्वीप पर समाप्त हुआ। फी फी और जेम्स बांड द्वीप की सुंदरता तो अपनी जगह थी पर फीफी और फान्ग नगा खाड़ी के रास्तों ने भी अपने अद्भुत प्राकृतिक सौंदर्य से मन मोह लिया।

इस दौरान जहाँ हमें थाई पूजा पद्धति को भी करीब से देखने का मौका मिला वहीं फुकेट की रात की चकाचौंध ने हमें असमंजस में डाल दिया कि क्या ये वही शहर है। बहरहाल चार दिन फुकेट रहने के बाद जब हम वापस बैंकाक की ओर चले तो फुकेट के ऊपर से उड़ते हुए कुछ शानदार नज़ारे देखने को मिले। 

हरे भरे घने जंगल और साथ बहती जलराशि फुकेट का एक तरह से ट्रेडमार्क हैं।

ऊपर से दिखते घने जंगल के बीच की ये झीलें अंग्रेजी के आठ की संख्या बनाती नज़र आती हैं

अगर ऍसे किसी द्वीप पर आपको अकेला छोड़ दिया जाए तो ? :)

समुद्र के पार्श्वजल के साथ उड़ता एयर एशिया का हमारा विमान

सागर के इस किनारे और पहाड़ी के इस मिलन का गवाह था ये बादल का छोटा सा टुकड़ा

उत्तर की ओर बढ़्ते बढ़्ते समन्दर दूर जाता गया और ये हरी भरी पहाड़ियाँ पास आती गयीं।

हरियाली के इस मंज़र को बादलों का सफ़ेद टीका..... आंखें तृप्त हो गयीं थी इस दृश्य को देख कर

ये नदी अपनी इन शिराओं के साथ ऐसी लग रही थी जैसे कोई आक्टोपस हरे भरे मैदान में अपनी टाँगे पसारे बैठा हो
आशा है फुकेट पर की गई ये लंबी श्रंखला आपको पसंद आई होगी। फुकेट के बाद के अगले तीन दिन हमने बैंकाक में बिताए थे। पर फिलहाल अपनी थाइलैंड की यात्रा को यही विराम देते हुए आपको ले चलेंगे पश्चिमी भारत की कुछ जानी अनजानी जगहों पर..

थाइलैंड की इस श्रंखला में अब तक
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शनिवार, 24 जनवरी 2015

अहा कितना सुंदर है फी फी का ये समुद्र तट ! The beauty that is Phi Phi

फुकेट से चलकर हम लोग फी फी द्वीप पर दोपहर बारह बजे के आस पास पहुँच चुके थे। अगले चार घंटे हमें इस द्वीप में ही गुजारने थे़। फी फी समूह के द्वीपों में दो द्वीप प्रमुख हैं। जिस द्वीप पर हम पहुँचे उसका नाम है फी फी डॉन (Phi Phi Don)  जो कि यहाँ का सबसे बड़ा द्वीप है। इसी से सटे एक छोटा सा द्वीप और है जिसे फी फी ले कहा जाता है। दोनों द्वीपों के समुद्र तट बेहद सुंदर हैं और साथ ही कुछ जगहों पर Snorkelling भी करवाई जाती है। पर हमारे समूह ने पहले से ही ठान लिया था कि फी फी में अपना सारा समय इधर उधर ना जा कर समुद्र स्नान में बिताना है। 

इसी जहाज पर सफ़र कर हम आए थे फी फी
फी फी की स्वच्छ एवम् सुंदर जेटी जिसने अपनी पहली झलक दिखला कर ही मन मोह लिया।


वैसे फी फी का ये द्वीप प्रशासकीय तौर पर फुकेट का नहीं बल्कि क्राबी, थाइलैंड का हिस्सा है

फी फी डॉन का अगर कोई ऊपर से लिया चित्र आप देखेंगे तो आपको  दो चंद्राकार तटों के बीच पतली सी ज़मीन की पट्टी दिखाई देगी। जिस तरफ नावों और जहाज के ठहरने के लिए जेटी है उस हिस्से की तरफ से हम वहाँ पहुँचे थे। उसके ठीक दूसरी तरफ़ समुद्री तट का वो हिस्सा है जो अपेक्षाकृत छिछला है और समुद्र स्नान के लिए सर्वथा उपयुक्त है।

कतार में लगी नावें, नारियल के वृक्ष और पहाड़ियाँ.......

.........फी फी डॉन आपका इसी दृश्य से स्वागत करता है
इन दोनों हिस्सों के बीच की पट्टी पर दुकानों की कतारें हैं और कुछ होटल भी। सात साल पहले आई सुनामी में ये द्वीप भी तबाह हुआ था। पर अब ये पूरी तरह से बस चुका है। सरकार ने होटलों और दुकानों की संक्या को सीमित रखा है और यही वज़ह है कि इस इलाके की अकूत नैसर्गिक सुंदरता पर पर्यटन का कोई बुरा प्रभाव नहीं पड़ा है।

जेटी से समुद्र तट के बीच का रंग बिरंगा बाजार

लो आ गए हम इस नयनाभिराम समुद्र तट पर !
फी फी का समुद्र तट एक बेहद सुंदर समुद्र तट है। अगर भारत की बात करें तो अंडमान का राधानगर का समुद्र तट इसके आस पास ठहर सकता है। तट के पास का पानी हरे रंग का दिखता है पर थोड़ी दूर पर ये रंग बदलते बदलते गहरा नीला हो जाता है। छोटी छोटी पहाड़ियों से घिरा होने के कारण यहाँ ऊँची ऊँची लहरें भी नहीं उठती पर जैसे जैसे आप समुद्र में आगे बढ़ते हैं पानी छाती और फिर गर्दन तक पहुँच जाता है।

नीले में गर घोला जाए हरा बेहिसाब फिर नशा जो हो तैयार...........

................... वो फी फी डॉन है :)
मज़े की बात ये थी कि इतने सारे जहाजों के वहाँ होने के बाद भी समुद्र तट पर कोई भीड़ भाड़ नहीं थी। ज्यादातर विदेशी समुद्र में नहाने के बजाए सूर्य स्नान में व्यस्त थे। नीला आसमान, चमकदार धूप, हरी भरी पहाड़ियाँ और समुद्र तट से लगे नारियल के वृक्ष और फिर हरा नीला रंग लिए समुद्र का मनमोहक पारदर्शक जल.. अब इन सबके  सामने रहते कौन डुबकी लगाने में ज़रा सी भी देर करेगा। सो हम लोगों ने भी घंटे दो घंटे समुद्र में जमकर मस्ती की।

पानी में छप छपा छई..

वैसे आप क्या पसंद करेंगे सूर्य स्नान या समुद्र स्नान :)
रोमांच को और बढ़ाना हो तो तट पर पैरा सेलिंग (Para sailing) की भी व्यवस्था थी। पैरा सेलिंग में पैराशूट का एक सिरा मोटरबोट से बँधा होता है । मोटरबोट  पूरी गति से आगे बढ़ती है और दुसरे सिरे पर पैराशूट पर चढ़ा व्यक्ति आसमान से बातें करता दिखाई पड़ता है।

 ऊपर जाने की इतनी जल्दी मुझे तो नहीं थी :)
देर तक समुद्र में नहाने के बाद सब थोड़ी थकान महसूस कर रहे थे। जेटी के पास के एक होटल में भोजन की व्यवस्था थी। भोजन उसी तरह का था जैसा हमें Koh Panyee में मिला था। भोजन करने के बाद भी फी फी से वापस फुकेट की यात्रा शुरु करनी थी। सच कहूँ तो इतने रमणीक स्थान से विदा लेने का ज़रा सा भी मन नहीं कर रहा था।

अलविदा फी फी ! कैसे भूल पाएँगे तुम्हें ?
अगली सुबह हमें फुकेट से बैंकाक को कूच करना था। अगली पोस्ट में आपको दिखाऊँगा आसमान से लिए हुए फुकेट के कुछ यादगार नज़ारे...

थाइलैंड की इस श्रंखला में अब तक
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रविवार, 18 जनवरी 2015

डगर थाइलैंड कीः देखिए फी फी के सफ़र पर दिखे ये 10 खूबसूरत नज़ारे Ten enchanting views on way to Phi Phi Island !

फुकेट प्रवास का आख़िरी दिन था फी फी या स्थानीय भाषा में उच्चारित करें तो पी पी द्वीप की यात्रा का। सच बताऊँ तो हमारा समूह फुकेट में सबसे ज्यादा उत्साहित इसी द्वीप को देखने के लिए था। हम ऊपरवाले से यही दुआ कर रहे थे कि भगवन फी फी जाते वक़्त बादलों के साथ आँख मिचौली मत खिलवाना। क्यूँकि फी फी की असली खूबसूरती निखरती धूप में ही प्रकट होती है। दस अक्टूबर की उस सुबह को जब हम उठे तो बाहर का दृश्य देख हमारी खुशी  का ठिकाना नहीं रहा। परवरदिगार ने हमारी सुन ली थी। गहरा नीला आकाश जगमगाती धूप के साथ हमारा स्वागत कर रहा था। 

फी फी द्वीपसमूह फुकेट से करीब 45 किमी की दूरी पर है। फांग नगा की खाड़ी जहाँ फुकेट के उत्तर पूर्व में हैं वहीं फी फी जाने के लिए आपको जेटी से दक्षिण पूर्व दिशा में जाना पड़ता है। सुबह के दस बजे जब हम जेटी पर पहुँचे तो देशी विदेशी पर्यटकों की भीड़ पहले से ही जहाज में मौज़ूद थी। फी फी द्वीप में जाने के लिए यूँ तो स्पीड बोट भी मिलती है पर मँहगी होने के कारण ज्यादातर लोग इस दुमंजिले जहाज में ही सफ़र करते हैं। इस जहाज से फी फी द्वीप तक पहुँचने में करीब दो घंटों का समय लगता है।


जहाज के निचले हिस्से में वातानुकूल कक्ष होते हैं जबकि डेक के आलावा इसकी खुली छत पर भी आप धूप सेंकने का काम कर सकते हैं। भारतीय तो नहीं पर कई विदेशी पर्यटक ऐसा ही करते नज़र आए। सबसे ज्यादा चहल पहल बीच वाले डेक पर ही दिखती है। जलपान के लिए फ्रूट सलाद मिलता है। वहाँ खाए अनानास का स्वाद तो मुझे आज तक याद है।

फांग नगा खाड़ी की तरह ही फीफी तक के सफर की खूबसूरती इसमें उग आई हरी भरी चूनापत्थर की पहाड़ियों से है। हर बार एक अलग शक्ल और रूप में सामने आकर ये आपको ना केवल चोंका देती है पर साथ ही आप उनके इन अद्भुत रूपों को निहार कर तृप्त हो जाते हैं। आइए आज के इस फोटो फीचर में रूबरू होते हैं फी फी द्वीप के इस सफ़र के दस खूबसूरत नज़ारों से.. 

सफ़र की शुरुआत में तट से लगे समुद्र में पानी का रंग हरा होता है...

जो कुछ ही समय बाद गहरे नीले रंग में बदल जाता है

फिर दिखने लगते हैं सागर की अथाह जलराशि के बीच ये सिकुड़े सिमटे द्वीप

एक ओर तो लहरों की चोट से घायल तो दूसरी ओर...

दूसरी ओर इतने हरे भरे कि मन करे कि इनके छोटे से शिखर पर ही अपना भी कोई नीड़ हो..
याद है ना फिल्म कहो ना प्यार है जिसमें अमीषा पटेल और ॠतिक रोशन एक नजाने से द्वीप में खो गए थे। फिल्म में वो दृश्य माया बे के इसी तट पर शूट किया गया है। वैसे इससे पहले यहाँ अंग्रेजी फिल्म The Beach की भी शूटिंग हुई है। पर इस तट तक पहुँचने के लिए आपको बड़े जहाज से उतर कर छोटी नौका या स्पीड बोट का सहारा लेना पड़ता है।

कहो ना प्यार है... कहा ना प्यार है :)

अद्भुत आकारों में खड़ी छोटी छोटी पहाड़ियाँ

पहाड़ों के बीच पतले रास्तों से छोटी नौकाओं में इन इलाकों को करीब से महसूस करने का अलग ही आनंद है।

क्या आपको नहीं लगता कि आसमान की चादर पर किसी ने त्रिशूल खड़ा कर दिया है ?

और इन त्रिभुजाकार चोटियों का तो कहना ही क्या !

तो ये थे फी फी द्वीप तक पहुँचने के रास्ते में मेरे कैमरे में क़ैद नज़ारे। दो घंटों की इस यात्रा में मुझे जो खुशी मिली थी उसका अंदाजा आप मेरी इस छवि से सहज ही लगा सकते हैं।


 फी फी पहुँचने के बाद वहाँ कैसे बिताया वो दिन वो जानियेगा फुकेट से जुड़ी इस श्रंखला की अगली कड़ी में..

थाइलैंड की इस श्रंखला में अब तक
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