बिहार के साथ आधुनिक शब्द का इस्तेमाल थोड़ा अजीब लगा होगा आपको। भारत के पूर्वी राज्यों बिहार, झारखंड और ओड़ीसा का नाम अक्सर यहाँ के आर्थिक पिछड़ेपन के लिए लिया जाता रहा है पर बिहार के पटना स्थित इस नव निर्मित संग्रहालय को आप देखेंगे तो निष्पक्ष भाव से ये कहना नहीं भूलेंगे कि ना केवल ये बिहार की ऐतिहासिक एवम सांस्कृतिक धरोहर को सँजोने वाला अनुपम संग्रह केंद्र है बल्कि इसकी रूपरेखा इसे वैश्विक स्तर के संग्रहालय कहलाने का हक़ दिलाती है।
बिहार के गौरवशाली ऍतिहासिक अतीत से तो मेरा नाता स्कूल के दिनों से ही जुड़ गया था जो बाद में नालंदा, राजगीर, वैशाली और पावापुरी जैसी जगहों पर जाने के बाद प्रगाढ़ हुआ पर पिछले महीने की अपनी पटना यात्रा मैं मैं जब इस संग्रहालय में गया तो बिहार की कुछ अनजानी सांस्कृतिक विरासत से भी रूबरू होने का मौका मिला।
संग्रहालय परिसर में लगा सुबोध गुप्ता का शिल्प "यंत्र" |
पाँच सौ करोड़ की लागत से पटना के बेली रोड पर बने इस संग्रहालय की नींव अक्टूबर 2013 में रखी गयी और चार साल में एक जापानी कंपनी की देख रेख में इसका निर्माण हुआ। दरअसल इस विश्व स्तरीय संग्रहालय का निर्माण बिहार के वर्तमान मुख्य सचिव अंजनी कुमार सिंह का सपना था। अंजनी जी ख़ुद एक संग्रहकर्ता हैं और आप जब संग्रहालय के विभिन्न कक्षों से गुजरते हैं तो लगता है कि किसी ने दिल लगाकर ही इस जगह को बनवाया होगा।
संग्रहालय का मानचित्र |
संग्रहालय में प्रवेश के साथ ओरियेंटेशन गैलरी मिलती है जो संक्षेप में ये परिभाषित करती है कि संग्रहालय के विभिन्न हिस्सों में क्या है? साथ ही ये भी समझाने की कोशिश की गयी है कि एक इतिहासकार के पास इतिहास को जानने के लिए क्या क्या मानक प्रक्रियाएँ उपलब्ध हैं? अगर आपके पास समय हो तो यहाँ पर आप एक फिल्म के ज़रिए बिहार में हो रहे ऐतिहासिक अनुसंधान के बारे में भी जान सकते हैं।
बिहार बौद्ध और जैन धर्म का उद्गम और इनके धर्मगुरुओं की कर्मभूमि रही है। इसलिए आप यहाँ अलग अलग जगहों पर खुदाई में निकली भगवान बुद्ध ,महावीर और तारा की मूर्तियों को देख पाएँगे। इनमें कुछ की कलात्मकता देखते ही बनती है। आडियो गाइड की सुविधा के साथ साथ यहाँ काफी जानकारी आलेखों में भी प्रदर्शित की गयी है।
संग्रहालय इतिहास की तारीखों के आधार पर तीन अलग अलग दीर्घाओं में बाँटा गया है। |
ऐतिहासिक वस्तुओं को प्रदर्शित करते यूँ तो देश में कई नामी संग्रहालय हैं, फिर बिहार संग्रहालय में अलग क्या है? अलग है शिल्पों को दिखाने का तरीका। प्रकाश की अद्भुत व्यवस्था जो कलाकृतियों के रूप लावण्य को उभार देती हैं और इस बात की समझ की एक शिल्प भी अपने चारों ओर एक खाली स्थान चाहता है ताकि जो उसपे नज़रे गड़ाए उसकी कलात्मकता में बिना ध्यान भटके डूब सके ।
बिहार तो बुद्ध की भूमि रही है। ये संग्रहालय उनकी कई ऐतिहासिक मूर्तियों को सँजोए हुए है। |