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सोमवार, 21 दिसंबर 2015

आइए चलें बीहड़ों के बीच चंबल नदी में नौका विहार पर An evening in River Chambal !

चंबल के इलाके का नाम सुनकर आपमें से ज्यादातर के मन में दस्यु सरदारों और खनन माफ़िया का चेहरा ही उभर कर आता होगा। अब इसमें आपकी गलती भी क्या सालों साल प्रिंट मीडिया में इस इलाके की ख़बरों में मलखान सिंह व फूलन देवी सुर्खियाँ बटोरते रहे और आज भी ये इलाका बालू व पत्थर के अवैध खनन करने वाले व्यापारियों से त्रस्त है।

Nandgaon Ghat, Chambal

इन सब के बीच चुपचाप ही बहती रही है चंबल नदी। ये चंबल की विशेषता ही है कि मानव के इस अनाचार की छाया उसने अपने निर्मल जल पर पड़ने नहीं दी है और इसी वज़ह से इस नदी को प्रदूषण मुक्त नदियों में अग्रणी माना जाता है। पर अचानक ही मुझे इस नदी की याद क्यूँ आई? दरअसल इस नदी से मेरी पहली मुलाकात अक्टूबर के महीने में तब हुई जब मैं यात्रा लेखकों के समूह के साथ आगरा से फतेहाबाद व इटावा के रास्ते में चलते हुए चंबल नदी के नंदगाँव घाट पहुँचा।

Map showing trajectory of River Chambal near UP-MP border

वैसे नौ सौ अस्सी किमी लंबी चंबल नदी खुद भी एक घुमक्कड़ नदी है। इंदौर जिले के दक्षिण पूर्व में स्थित विंध्याचल की पहाड़ियों  से निकल कर पहले तो उत्तर दिशा में मध्यप्रदेश की ओर बहती है और फिर उत्तर पूर्व में घूमकर राजस्थान में प्रवेश कर जाती है। राजस्थान व मध्य प्रदेश की सीमाओं के पास से बहती चंबल का उत्तर पूर्व दिशा में बहना तब तक ज़ारी रहता है जब तक ये उत्तर प्रदेश तक नहीं पहुँचती। यमुना को छूने का उतावलापन इसकी धार को यूपी में उत्तर पूर्व से दक्षिण पूर्व की ओर मोड़ देता है।

Chambal's Ravine

अक्टूबर के पहले हफ्ते में दिन के करीब साढ़े ग्यारह बजे हम आगरा शहर से निकले। एक तो आगरा शहर के अंदर का ट्राफिक जॉम और दूसरे आगरा फतेहाबाद मार्ग की बुरी हालत की वज़ह से सत्तर किमी का सफ़र तय करने में हमे करीब ढाई घंटे लग गए। आगरा से सत्तर किमी दूरी पर चंबल सफॉरी लॉज में हमारी ठहरने की व्यवस्था हुई थी। हरे भरे वातावरण के बीच यहाँ के जमींदारों की प्राचीन मेला कोठी का जीर्णोद्वार कर बनाया गए इस लॉज को सुरुचिपूर्ण ढंग से सजाया गया है। दिन का भोजन कर थोड़ा सुस्ताने के बाद हम चंबल नदी के तट पर नौका विहार का लुत्फ़ उठाने के लिए चल पड़े।

मुख्य सड़क से नंदगाँव घाट जाने वाली सड़क कुछ दूर तो पक्की थी फिर बिल्कुल कच्ची। अब तक चंबल के बीहड़ों को फिल्मों में देखा भर था। पर अब तो सड़क के दोनों ओर मिट्टी के ऊँचे नीचे टीले दिख रहे थे। वनस्पति के नाम पर इन टीलों पर झाड़ियाँ ही उगी हुई थीं। बीहड़ का ये स्वरूप बाढ़ और सालों साल हुए भूमि अपरदन की वज़ह से बना है।

The dusty track to River Chambal