उदयपुर से दूसरे दिन हम जब चित्तौड़ की ओर निकले तो सुबह खुशनुमा थी। आकाश में हल्के हल्ले बादल जरूर थे पर बारिश नहीं हो रही थी। राष्ट्रीय राजमार्ग 76 के शानदार रास्ते पर चित्तौड़गढ़ की करीब 115 किमी की दूरी डेढ़ घंटे में कैसे कट गई पता ही नहीं चला।
करीब डेढ़ दो सौ मीटर ऊँची पहाड़ी पर बने इस तीन मील लंबे और पाँच सौ फीट ऊँचे किले पर जब हम चढ़ रहे थे तो दिन के बारह बज चुके थे। किले तक पहुँचने के लिए इसके सात गेटों (पदन ,भैरों, हनुमान, गणेश, जोदला लक्ष्मण और राम) को पार करना पड़ता है। गेटों की नुकीली मेहराबें ऐसी कि ना हाथी को आसानी से घुसने दें और ना ही तोप के गोलों को ही अंदर जाने दें।
करीब डेढ़ दो सौ मीटर ऊँची पहाड़ी पर बने इस तीन मील लंबे और पाँच सौ फीट ऊँचे किले पर जब हम चढ़ रहे थे तो दिन के बारह बज चुके थे। किले तक पहुँचने के लिए इसके सात गेटों (पदन ,भैरों, हनुमान, गणेश, जोदला लक्ष्मण और राम) को पार करना पड़ता है। गेटों की नुकीली मेहराबें ऐसी कि ना हाथी को आसानी से घुसने दें और ना ही तोप के गोलों को ही अंदर जाने दें।