समुद्री तटों पर जाने का हमारा पहला उद्देश्य तो सागर की लहरों से अठखेलियाँ करना ही होता है। पर अपनी विशाल जलराशि में गोते लगाने के लिए आमंत्रण देता समुद्र साथ ही प्रकृति की दो मनोरम झाँकियों को करीब से देखने और अंदर तक महसूस करने का अवसर भी देता है। ये बेलाएँ होती हैं सूर्योदय और सूर्यास्त की। भारत के पूर्वी तटों पर सूर्योदय का मंज़र देखने लायक होता है पर शर्त ये कि बादल उस समय आँख मिचौली का खेल ना खेलें।
गोपालपुर में समुद्र की कोख से निकलते सूर्य को तो हम बादलों की वज़ह से नहीं देख सके पर उसके बाद दिवाकर की जिस छटा का मैंने अनुभव किया वो गोपालपुर की यात्रा को यादगार बना गई। तो चलिए आज की इस प्रविष्टि में दक्षिणी ओडीसा के समुद्र तट गोपालपुर के सूर्योदय के साथ समुद्र तट पर हो रही हलचलों से उस वक़्त खींची गई तसवीरों के माध्यम से आपको मैं वाकिफ़ कराता हूँ।
गोपालपुर में समुद्र की कोख से निकलते सूर्य को तो हम बादलों की वज़ह से नहीं देख सके पर उसके बाद दिवाकर की जिस छटा का मैंने अनुभव किया वो गोपालपुर की यात्रा को यादगार बना गई। तो चलिए आज की इस प्रविष्टि में दक्षिणी ओडीसा के समुद्र तट गोपालपुर के सूर्योदय के साथ समुद्र तट पर हो रही हलचलों से उस वक़्त खींची गई तसवीरों के माध्यम से आपको मैं वाकिफ़ कराता हूँ।
जैसा की पिछले आलेख में आपको बताया था कि पंथ निवास से गोपालपुर के समुद्र तट की दूरी सौ मीटर से भी कम है। सुबह छः बजे जब मैं उठा तो बाहर अँधेरा ही था। पन्द्रह बीस मिनट में तैयार होकर अपने मित्र के साथ समुद्र तट की ओर निकला। तट पर काफी चहल पहल थी। मछुआरों का समूह अपनी अपनी नावों के किनारे जाल को व्यवस्थित करने में जुटा हुआ था। कुछ नावें पहले ही बीच समुद्र में जा चुकी थीं और किनारे से काले कागज की नाव सरीखी दिख रही थीं।
पौने सात से दो मिनट पहले सूर्य की लाली बादलों की ओट से बाहर आना लगी। फिर तो दो मिनट के अंदर सूरज अपनी पूरी लालिमा के साथ बाहर निकल कर आ गया। सूर्य के बदलते रुपों को क़ैद करने के लिए कैमरे का सटर क्षण क्षण दबता रहा। जब सूरज की लाली पीलेपन में बदल गई तो फिर उसे अपनी मुट्ठी में क़ैद करने का ख्याल आया।
सूर्य किरणों की बढ़ती तीव्रता के साथ सागर तट का नज़ारा देखने लायक था...