चीन , अमेरिका, ब्राजील और भारत की तुलना में जापान एक छोटा सा देश है। एक ऐसा देश जहाँ की शहरी आबादी भारत के महानगरों को भी टक्कर दे सके। पर जापान के टोक्यो (Tokyo) और ओसाका (Osaka) जैसे महानगरों में दूर दूर तक दिखते कंक्रीट के जंगलों के परे भी एक दुनिया है जो दिखती तब है जब आप इन शहरों से इतर जापान के अंदरुनी भागों का सफ़र करते है। अब आप ही बताइए जिस देश का अस्सी फीसदी इलाका छोटे बड़े पहाड़ों से घिरा हो वो भला प्रकृति की अनमोल छटा से कैसे विलग हो सकता है? हाँ ये जरूर है कि चार हजार द्वीपों के इस देश में विकास और नगरीकरण ने यहाँ की नैसर्गिक सुंदरता को चोट जरूर पहुँचाई है। पर पहाड़ों के रहने की वज़ह से अभी भी जापान के बहुत सारे इलाके इस प्रभाव से मुक्त रह पाए हैं।
पहाड़ों से सटी इन हरी भरी वादियों के बगल से जब भी हम गुजरे एक दृश्य हमें अपने मुल्क की याद बार बार दिलाता रहा । ये दृश्य था धान के लहलहाते खेतों का। दरअसल जून का महिना जापान में बारिश का होता है। ये बारिश मध्य जुलाई तक चलती है और इसी समय में धान की फसल भी बोई जाती है।
दक्षिण और पूर्वी भारत की तरह ही जापान में चावल भोजन का अभिन्न अंग माना जाता है। चावल का शाब्दिक जापानी अनुवाद कोमे है। वैसे जापानी इसे ओ कोमे (o kome) और पकाने के बाद गो हान (go han) भी कहते हैं। वेसे 'ओ' और 'गो' उपसर्ग सम्मानसूचक हैं जिससे ये पता चलता है कि जापानी संस्कृति में शुरु से चावल को कितना महत्त्व दिया जाता रहा है।
हवाई जहाज से जापान की इस हरियाली को देखने का अपना ही आनंद है। तोक्यो से जापान के दक्षिणी प्रदेश फुकोका की ओर जब हमारे विमान ने उड़ान भरी तो कंक्रीट के जंगलों की जगह जो दृश्य सबसे पहले दिखा था वो था हरे भरे जंगलों और धान के इन खूबसूरत खेतों का। तो चलिए ना आखिर इस हरियाली का आनंद उठाने से आप क्यूँ वंचित रहेंगे?
बादल के पुलिंदे , बलखाती नदी , नदी के किनारे छोटे छोटे मकान और उनके पीछे हरे भरे खेतों का काफ़िला... दिल नहीं करता आपका पंछी की तरह इन बादलों की संगत में मँडराने का...