शनिवार, 30 मार्च 2013

रंगीलो राजस्थान मारवाड़ शासकों की पुरानी राजधानी : मण्डोर

मेहरानगढ़ व जसवंत थड़ा देखने व और उमैद भवन पैलेस से बेरंग लौटने के बाद कुछ आराम लाज़िमी था। सो कुछ घंटे निद्रा देवी की शरण में बिताए। चार बजे जब धूप मलिन होती दिखाई पड़ी तो हमारा समूह चल पड़ा जोधपुर से नौ किमी दूर स्थित मारवाड़ शासकों की पुरानी राजधानी मण्डोर (Mandore) की तरफ़। पर मण्डोर का इतिहास राठौड़् शासनकाल से कहीं अधिक प्राचीन है। पाँचवी से बारहवीं शताब्दी के बीच ये गुर्जर प्रतिहारों के विशाल साम्राज्य का हिस्सा था। कुछ समय बाद  नाडोल के चौहानों ने इस पर अपना आधिपत्य जमाया। इस दौरान दिल्ली से गुलाम वंश और तुगलक शासकों के हमले मण्डोर पर होते रहे। चौहानों से होता हुआ ये इन्द्रा पीड़िहारों और फिर उनसे दहेज में ये राठौड़ नरेश राव चूण्डा के स्वामित्व में आ गया। तबसे लेकर राव जोधा के मेहरानगढ़ को बनाने तक ये राठौड़ राजाओं की राजधानी रहा।

पर मेहरानगढ़ के बनने के बाद राठौड़ शासकों ने मण्डोर को पूरी तरह छोड़ दिया ऐसा भी नहीं है। राठौड़ शासकों के मरने पर उनकी स्मृति में छतरियाँ मण्डोर में ही बनाई जाती रहीं। आज की तारीख़ में मण्डोर में सबसे बड़ी छाप महाराणा अजित सिंह की दिखाई देती है। मण्डोर के खंडहर हो चुके किले तक पहुँचने के लिए सबसे पहले जो द्वार दिखाई देता है वो राणा का बनाया अजित पोल ही है।



जोधपुर पर सत्रह साल (1707-1724) के अपने शासनकाल में महाराणा ने मण्डोर में एक जनाना महल का निर्माण किया। राठौड़ शासनकाल में लाल बलुआ पत्थर से बनाए जाने वाले खूबसूरत झरोखों का दीदार आप इस महल में कर सकते हैं। कहा जाता है कि राजघराने की महिलाओं को गर्मी से निज़ात देने के लिए इस महल का निर्माण किया गया।

आज ये महल राजकीय संग्रहालय बन चुका है। तेज कदमों से चलते हुए जब हम शाम करीब चार पच्चीस पर इसके मुख्य द्वार पर पहुँचे, इसके कर्मचारियों द्वारा इसे बंद करनी की क़वायद पूरी हो चुकी थी। चूँकि ये संग्रहालय मुख्य द्वार से दस पन्द्रह मिनटों के पैदल रास्ते की दूरी पर है, इसलिए इसे देखने के लिए मण्डोर साढ़े तीन बजे तक पहुँचना जरूरी है। वैसे ये संग्रहालय दस से साढ़ चार तक खुला रहता है।



रविवार, 17 मार्च 2013

रंगीलो राजस्थान : राठौड़ राजाओं का समाधि स्थल जसवंत थड़ा (Jaswant Thada)

मेहरानगढ़ किले से निकलने के बाद हमारा अगला पड़ाव था जसवंत थड़ा (Jaswant Thada) यानि राजा जसवंत सिंह का समाधि स्थल। पर इससे पहले कि हम किले से बाहर निकलते, किले के प्रांगण में एक महिला कठपुतलियों को गढ़ती नज़र आई। चटक रंग के परिधानों से सजी इन कठपुतलियों को अगर ध्यान से देखेंगे तो पाएँगे कि स्त्रियों की बड़ी बड़ी आँखों और पुरुषों की लहरीदार मूँछों से सुसज्जित इन कठपुतलियों के पैर नहीं होते। राजस्थामी संस्कृति में कठपुतलियों का इतिहास हजार वर्ष पुराना बताया जाता है। कठपुतलियों के इस खेल को आरंभ करने का श्रेय राजस्थानी भट्ट समुदाय को दिया जाता है। राजपूत राजाओं ने भी इस कला को संरक्षण दिया। इसी वज़ह से लोक कथाओं , किवदंतियों के साथ साथ राजपूत राजाओं के पराक्रम की कहानियाँ भी इस खेल का हिस्सा बन गयीं। 

 

मेहरानगढ़ से निकल कर थोड़ी दूर बायीं दिशा में चलने पर ही जसवंत थड़ा का मुख्य द्वार आ जाता है।  पर यहाँ से समाधि स्थल हरे भरे पेड़ों की सघनता की वज़ह से दिखाई नहीं देता। मुख्य इमारत तक पहुँचने के पहले फिर राजस्थानी लोकगायक अतिथियों का मनोरंजन करते दिखे।  राजस्थानी संगीत का आनंद लेने के बाद जब मैं राजा सरदार सिंह द्वारा अपने पिता की स्मृति में बनाए गए इस समाधि स्थल के सामने पहुँचा तो दोपहर की धूप में नहाई  संगमरमर की इस इमारत को देख कर मन प्रसन्न हो गया। सफेद संगमरमर की चमक बारह बजे की धूप और पार्श्व के गहरे नीले आसमान के परिदृश्य में बेहद भव्य प्रतीत हो रही थी।
  

रविवार, 10 मार्च 2013

आइए डूबें झारखंड के दहकते पलाश के सौंदर्य में ! ( Palash : The flame of the forests of Jharkhand ! )

वसंत का पदार्पण वैसे तो पूरे देश में ही हो गया है पर झारखंड यानि जंगलों के इस भूखंड में इस मौसम का आगमन एक रंग विशेष से जुड़ा है और ये रंग है सिंदूरी। सच मानिए आज कल पूरा झारखंड उस फिल्मी गीत की पंक्तियों को चरितार्थ करता प्रतीत हो रहा है जिसके बोल थे..आ के तेरी बाहों में हर शाम लगे सिंदूरी। अगर जंगल की इस दहकती लाली को देखना हो तो यही वक़्त है झारखंड आने का। यकीन नहीं आता तो चलिए मेरे साथ धनबाद से राँची तक के सफ़र पर और देखिए कि कैसे झारखंड का राजकीय पुष्प अपनी लाल सिंदूरी आभा से पूरे जंगल का दृश्य अलौकिक कर दे रहा है।

कल यानि शनिवार को कार्यालय के काम से दुर्गापुर से लौट रहा था। जैसे ही बराकर से ट्रेन ने झारखंड के धनबाद में  प्रवेश किया पलाश के पेड़ों के झुंड लगातार अलग अलग रूपों में आकर मन को सम्मोहित करते रहे। पलाश के ये जंगल धनबाद, चंद्रपुरा, बोकारो, मूरी और टाटीसिलवे तक लुभाते रहे। तो आइए आपको दिखाते हैं पूरी यात्रा में अपने मोबाइल कैमरे में क़ैद किए गए कुछ मनमोहक नज़ारे..
 
गंगाघाट, झारखंड (Near Gangaghat, Jharkhand)

झारखंड में पलाश और सेमल के पेड़ों में फूल फरवरी महिने से ही आने लगते हैं। ये प्रक्रिया अप्रैल महिने तक चलती रहती है। पलाश के फूलों की विशेषता ये है कि ये सारे पत्तों के झड़ने के बाद फूलना शुरु होते हैं लिहाज़ा जब ये पूरी तरह खिलते हैं तो ऍसा लगता है कि पूरा जंगल सुर्ख लाल सिंदूरी रंग से दहक रहा है।

धनबाद, झारखंड (Near Dhanbad, Jharkhand)

रविवार, 3 मार्च 2013

रंगीलो राजस्थान : मेहरानगढ़ के महलों की दुनिया (The Palaces of Mehrangarh)

मेहरानगढ़ के किले (Mehrangarh Fort)  और उसके दौलतखाने (Daulatkhana) को देखने के बाद आइए आपको लिए चलते हैं उसके महलों की सैर पर।  तो शुरुआत करते हैं मेहरानगढ़ के शीश महल से। वैसे शीश महलों के निर्माण में सबसे आगे मुगल सम्राट रहे। सत्रहवीं शताब्दी में शाहजहाँ ने लाहौर और आगरे के किले में शीश महल बनाए। राजपूत शासक जब मुगलों के सम्पर्क में आए तो उन्होंने भी शीश महल बनवाने शुरु कर दिए। दशकों पूर्व जयपुर के अम्बर किले में मैंने पहली बार ऐसा ही एक शीश महल देखा था जिसमें हमारे गाइड ने सारे दरवाजे बंद कर के माचिस की तीली जलाकर छत की ओर देखने को कहा था। सच वो मंज़र आज तक नहीं भूलता कि जैसे एक साथ सैकड़ों तारे उस अँधेरे कमरे में टिमटिमा रहे हों। 

पर अब तो शीश महलों में अंदर घुसने पर पाबंदी है सो बाहर भीड़ के बीच से ही इसकी झलक लेनी होती है। जब मैं मेहरानगढ़ के शीश महल (Mirror Palace) के सामने पहुँचा तो वहाँ भी यही आलम था। मेहरानगढ़ का शीश महल इस अर्थ में मुगलई शीश महलों से अलहदा है कि यहाँ छत और दीवालों पर शीशे के काम के साथ चटक रंगों में बनी राजस्थानी चित्रकला का सुंदर सामंजस्य बैठाया गया है।


शीश महल के बाद हम जा पहुँचे झाँकी महल (Palace of Glimpses)  में जहाँ से राजपूर रानियाँ व उनकी दासियाँ आँगन में हो रही गतिविधियों का जायज़ा लिया करती थीं। शीश महल से उलट झाँकी महल की दीवारें सादी सफेद रंग की हैं। जैसा कि पिछली पोस्ट में आपको बताया था कि आज की तारीख़ में झांकी महल तरह तरह के पालनों का संग्रह है। इन पालनों में बनी परी की तसवीरें और शीशे का काम आपका सहज ही ध्यान आकर्षित करेगा ।