जब पहले पहल मैंने मेघालय जाने का कार्यक्रम बनाया था तो मावलीनांग के बारे में मैं जानता भी नहीं था। कोलकाता में अपने एक रिश्तेदार के यहाँ जब मेघालय जाने की चर्चा चली तो वहाँ इस गाँव और इसकी विशेषता के बारे में पता चला। जिस देश में स्वच्छता अभियान चलाने के लिए सरकार रोज़ अपने नागरिकों से अनुनय विनय करती दिखती है वहीं के एक गाँव को एक दशक से ज्यादा पहले एशिया के सबसे साफ सुथरे गाँव के खिताब से नवाज़ा गया हो ये निश्चय ही मेरे लिए कौतूहल का विषय था।
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On Way to Mawlynnong... मावलीनांग के रास्ते में.. |
शिलांग यात्रा को अंतिम रूप देने के पहले मैंने मावलीनांग के लिए भी एक दिन मुकर्रर कर दिया। बड़ी उत्सुकता थी ये जानने की कि उत्तर पूर्व के ग्रामीण इलाके का जीवन कैसा होगा ? वैसे भी अब तो अपने गाँव जाना कहाँ हो पाता है और ये तो एक पुरस्कृत गाँव था।
सुबह नाश्ते के बाद हमारा काफ़िला मावलीनांग की राह पर था। अक्टूबर महीने का पहला हफ्ता था और धूप भी खिली हुई थी। शिलांग से चेरापूंजी मार्ग की तरह ये सड़क भी हरी भरी पहाड़ियों से हो कर गुजर रही थी। पहाड़ियों के सघन जंगल के बीच बीच से झरनों की सफेद लकीरें यदा कदा उभर ही आती थीं।
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घाटी, झरने, हरियाली.. मेघालय की रुत मतवाली |
रास्ते में सोहरा घाटी के ऊपर बना एक व्यू प्वाइंट मिला। क्या नज़ारा था! दूर दूर तक हरीतिमा की चादर बिछी दिखाई देती थी। इन चादरों को बेधने का काम भूरी लाल मिट्टी की ठसक के साथ सर्पीली पगडंडियाँ कर रही थीं। दूर दराज़ में छोटे मोटे गाँव भी दिख रहे थे। खपरैल की जगह तिकोनी आकार वाली टीन की छतें यहाँ के घरों की पहचान थीं । पर व्यू प्वाइंट से जितना सुंदर दृश्य दिख रहा था उतने ही सुंदर और विशालकाय मच्छर हमारे ताजे ख़ून के प्यासे हो रहे थे। जो भी कोई वहाँ खड़ा होता, दो तीन तसवीरें खींचने के बाद ताली मारता दिखाई पड़ता था। मच्छरों को हाँकते हुए कुछ देर हमने अपने पास के अलौकिक दृश्यों का आनंद उठाया और फिर अपने गन्तव्य की ओर बढ़ चले।
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Sohra Valley सोहरा घाटी : गोरी तेरा गाँव बड़ा प्यारा, मैं तो गया मारा, आ के यहाँ रे |