झारखंड की इस मानसूनी यात्रा का आख़िरी पड़ाव पारसनाथ तो नियत था पर जैसे जैसे हमारी यात्रा का दिन पास आता गया हमारे बीच के गंतव्य बदलते गए। पहले हमारा इरादा नवादा के ककोलत जलप्रपात तक जाने का था, पर जब हमने वहाँ तक जाने के रास्ते को गौर से देखा तो उसे आबादी बहुल पाया। हमें तो एक ऐसा रास्ता चाहिए था जो हमारी आँखों को मानसूनी हरियाली से तृप्त कर दे। इसलिए ककोलत की बजाए हमने पतरातू से हजारीबाग वन्य प्राणी आश्रयणी की राह पकड़ना उचित समझा।
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हजारीबाग वन्य प्राणीआश्रयणी का मुख्य द्वार |
हमारा ये निर्णय बिल्कुल सही साबित हुआ क्यूँकि हमें जितनी उम्मीद थी उससे कही शांत और ज्यादा हरी भरी राह हमें देखने को मिली। पतरातू से हम लोग बरकाकाना होते हुए रामगढ़ पहुँचे और वहाँ से आगे वापस राँची पटना राजमार्ग को पकड़ लिया। वैसे रेलवे के स्टेशन की वजह से बड़काकाना से तो कई बार गुजरना हुआ है पर इस बार मुझे पहली बार पता चला कि बड़काकाना की तरह एक छोटकाकाना नाम की भी जगह है। रामगध के बाद मांडू होते हुए ग्यारह बजते बजते हम हजारीबाग पहुँच चुके थे। जिस तरह अच्छे मौसम के लिए राँची का नाम लिया जाता है। वैसा ही मौसम हजारीबाग का भी है। झारखंड का नामी विनोबा भावे विश्वविद्यालय भी यहीं स्थित है।
हजारीबाग वन्य प्राणी आश्रयणी हजारीबाग शहर से करीब 18 किमी दूर स्थित है। राँची पटना राजमार्ग पर हजारीबाग से बरही के रास्ते में इसका एक द्वार सड़क के बाँयी ओर दिखता है। वैसे इस आश्रयणी का एक हिस्सा सड़क के दाहिने भी पड़ता है पर वो अपेक्षाकृत विरल और छोटा है।
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साल के घने जंगल |
हजारीबाग के इस अभ्यारण्य के दो द्वार हैं। जिस रास्ते से हम इसके अंदर घुसे उसे सालफरनी गेट कहा जाता है। इस द्वार से करीब तीस किमी की दूरी बहिमर गेट आता है। पूरा अभ्यारण्य दो सौ वर्ग किमी से थोड़े कम में फैला हुआ है। छोटानागपुर के पठार पर फैले इस वन में मुख्यतः साल और सखुआ के वृक्ष हैं। एक ज़माने में शायद यहाँ बाघ भी पाए जाते थे। पर अब इसके अंदर जीव जंतुओं की संख्या काफी कम हो गयी है।
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रामगढ़ के राजा द्वारा बनाया गया टाइगर ट्रैप |
कम नहीं हुई है तो यहाँ की हरियाली। करीब एक किमी अंदर बढ़ने पर रामगढ़ के राजा द्वारा बनवाया गया टाइगर ट्रैप दिखा। बारिश की वजह से ट्रैप की ओर जाने वाले रास्ते में जगह जगह काई जम गयी थी। ट्रैप के रूप में वहाँ एक गहरा कुँआ दिखा जिसमें बाघ के उतरने के लिए सीढ़ियाँ बनी हुई हैं। पानी पीने के लिए जब वहाँ बाघ आता होगा तो शायद जाल बिछा के उसे पकड़ लिया जाता हो। पर अब तो यहाँ बाघ बिल्कुल भी नहीं रहे। यदा कदा तेंदुए के होने की संभावना भले ही व्यक्त की जाती हो।