इंटरलाकन से मध्य स्विट्ज़रलैंड के शहर लूसर्न की दूरी महज 70 किमी है। जिस तरह युंगफ्राओ तक कूच करने के लिए लोग इंटरलाकन आते हैं उसी तरह माउंट टिटलिस की चोटी तक पहुँचने के लिए उसके पास बसे शहर लूसर्न को आधार बनाया जा सकता है। इंटरलाकन की तरह लूसर्न कोई छोटा सा शहर नहीं है। आबादी के लिहाज से ये स्विटज़रलैंड के सातवें सबसे बड़े शहर में शुमार होता है।
स्विट्ज़रलैंड के प्रतीक चिन्ह के साथ लूसर्न के बाजार में लगी गाय की एक प्रतिमा जो कि वहाँ के हर शहर का एक चिरपरिचित मंज़र है। |
लूसर्न शहर का नाम यहाँ स्थित इसी नाम की झील की वज़ह से पड़ा है। इसी झील
से ही रोस नदी निकलती है जो कि शहर के बड़े इलाके से होकर गुजरती है। झील के
ही पास हमारे समूह को बस उतार कर चली गयी. सुबह के दस बजने वाले थे पर
मुख्य चौराहों को छोड़ दें तो सड़कों पर भीड़ ज्यादा नहीं थी । पाँच दस मिनट की
पैदल यात्रा में हम यहाँ के सुप्रसिद्ध लॉयन मानूमेंट के पास पहुँच गए।
लूसर्न झील |
शेर को मूर्तियों में आपने गरजते हुए ही देखा होगा। पर पर यहाँ तो शेर के शरीर में शमशीर बिंधी है। लूसर्न का ये शेर निढाल होकर अपनी मृत्यु शैया पर पड़ा है। आख़िर डेनमार्क के शिल्पकार Bertel Thorvaldsen ने शेर का ऐसा निरूपण क्यूँ किया? ये जानने के लिए आपको इतिहास के पन्ने उलटने पड़ेंगे। पेरिस की यात्रा के दौरान मैंने आपको 1789 में हुई फ्रांस की क्रांति के बारे में बताया था। उस ज़माने में फ्रांस की गद्दी पर लुइस XVI का शासन था।
सत्रहवीं शताब्दी के आरंभ से ही फ्रांस के सम्राट की सुरक्षा का दायित्व एक स्विस रेजिमेंट सँभालती थी। क्रांतिकारियों ने जब राजा के महल पर हमला किया तो उनका सामना इसी स्विस रेजीमेंट से हुआ। रेजीमेंट के पास तब पर्याप्त गोला बारूद नहीं था और क्रांतिकारियों की तादाद भी ज्यादा थी सो वो ज्यादा देर मुकाबला नहीं कर सके। आधे घंटे की लड़ाई के बाद राजा का उन्हें अपने बैरक में लौट जाने का संकेत मिला पर तब तक वो शत्रुओं से घिर गए थे। युद्ध में तो स्विस जवान हताहत हुए ही, कई आत्मसमर्पण करने वाले बंदियों की भी हत्या कर दी गयी। करीब 600 स्विस गार्ड्स को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा।
इसी रेजीमेंट के एक साहब ने जो उस दौरान छुट्टी पर था, एक यादगार बनाने के
लिए धन इकठ्ठा करना शुरु किया। और उसका सपना 1821 में जाकर साकार हुआ।
स्पष्ट है कि शिल्पकार ने स्विस रेजिमेंट के जवानों के लिए घायल शेर के
प्रतीक का चुनाव किया। अगर आप शिल्प को पास से देखेंगे तो पाएँगे कि शेर की
बगल में एक ढाल है जिसमें स्विट्ज़रलैंड का प्रतीक चिन्ह है और उसके पंजे
के नीचे एक और ढाल है जिस पर फ्रांस की राजशाही का प्रतीक चिन्ह मौजूद है।
प्रसिद्ध लेखक मार्क ट्वेन ने अपनी किताब A tramp abroad में इस शिल्प का
जिक्र करते हुए लिखा है
"इसके चारों ओर हरे भरे पेड़ और घास है। ये जगह शहर के भीड़ भड़क्के से दूर बनी एक आश्रयस्थली सी नज़र आती है और ये सही भी है। शेर वास्तव में ऐसी ही जगहों में प्राण त्यागते हैं ना कि किसी चौराहे पर बने ग्रेनाइट चबूतरे और उसको घेरती सुंदर रेलिंग के बीच। ये शेर कही भी शानदार लगेगा पर उससे ज्यादा शानदार नहीं जिस जगह पर आज वो लगता है।"
लॉयन मानूमेंट |
लॉयन मानूमेंट के साथ लूसर्न शहर को सबसे अधिक जाना जाता है यहाँ के चैपल ब्रिज के लिए। चौदहवीं शताब्दी में बनाया लकड़ी का ये पुल दौ सौ से ज्यादा मीटर लंबा है। उस समय इसे रोस नदी के ऊपर शहर के पुराने हिस्से को नए हिस्से से मिलाने के लिए बनाया गया था।
चैपल ब्रिज और वाटर टावर |
पैदल पार होने वाले इस पुल की दो खासियत हैं. पहली तो ये कि ऊपर एसे ढका हुआ
सेतु है और दूसरी ये कि इसके ढलावदार छत और खंभों के तिकोन के बीच सत्रहवी
शताब्दी में बनी चित्रकला सजी है। दुर्भाग्यवश 1993 में लगी आग की वज़ह से
इनमें से अधिकांश चित्र नष्ट हो गए पर उनमें से कुछ का पुनर्उद्धार किया
जा सका है। इन चित्रों में लूसर्न के इतिहास से जुड़ी घटनाओं का रूपांकन है।
चैपल ब्रिज पर बनी सत्रहवीं शताब्दी की चित्रकला |
इस पुल के ठीक सटे लगभग तीस मीटर ऊँचा एक स्तंभ है जिसे पानी पर बना होने
की वजह से वाटर टॉवर नाम दिया गया है। ये टॉवर पुल से भी तीस वर्ष पुराना
है। फिलहाल तो इस टॉवर में प्रवेश निषेध है पर एक ज़माने में इसका प्रयोग
बतौर जेल और प्रताड़ना केंद्र भी किया जाता था। आज ये लूसर्न ही नहीं वरन
पूरे स्विटज़रलैंड के प्रतीक के रूप में विख्यात है। स्विट्ज़रलैंड में बने
चाकलेट्स के कवर पर आप इस टॉवर को देख सकते हैं।
इस पुल पर चहलकदमी करते हुए हम रोस नदी की दूसरी तरफ आ गए। पुल के दोनों ओर थोड़े थोड़े अंतराल पर बड़े बड़े आयताकार गमले लगे हैं जिनमें खिले रंग बिरंगे फूल पुल की खूबसूरती में चार चाँद लगाते हैं।
चैपल ब्रिज |
लूसर्न की आबादी में बहुसंख्यक कैथलिक समुदाय है और उनका मुख्य चर्च है Saint Leodegar का। आठवीं शताब्दी में बने इस चर्च को सोलहवीं शताब्दी में लगी आग की वजह से काफी क्षति उठानी पड़ी। आप झील के किसी ओर भी चहलकदमी करें, आसमान में दूर से दिखती इसकी नुकीली छतों को नज़रअंदाज नहीं कर पाएँगे।
Saint Leodegar church |
यूरोप के अन्य शहरों की तरह यहाँ भी ट्राम का बोलबाला है। वैसे चैपल ब्रिज से कुछ ही दूर पर यहाँ का रेलवे स्टेशन भी है जहाँ से आपको स्विट्ज़रलैंड के अन्य शहरों के लिए आसानी से ट्रेन मिल जाएँगी।
लूसर्न रेलवे स्टेशन |
स्टेशन के बगल से जाती सड़क पर चहलकदमी करते हुए हम झील के दूसरे सिरे पर पहुँचे। झील के पार्श्व में लूसर्न शहर पर दूर से नज़र रखती हुई एल्प्स की Pilatus चोटी बादलों की ओट से झाँक रही थी । आपको आश्चर्य होगा कि दो हजार से ज्यादा ऊँची इस चोटी पर पर्यटक रेल से चढ़कर जा सकते हैं। चोटी से ना केवल लूसर्न शहर बल्कि पूरी झील का नज़ारा मिलता है।
झील का चक्कर लगाने के बाद पास के बाजारों में हम थोड़ी बहुत खरीदारी को निकले। बेल्जियम के चॉकलेट्स की तरह ही स्विस चॉकलेट्स अपने बेहतरीन स्वाद के लिए बेहद मशहूर हैं इसलिए यहाँ आने वाले कुछ ना कुछ चॉकलेट्स जरूर खरीद कर जाते हैं। इनके आलावा इस देश से बतौर सोगात लोग गाय के गले में बाँधी जाने वाली घंटी, रंगीन गायों की मूर्तियाँ और दीवार और कलाई घड़ियाँ ले जाना पसंद करते हैं। वैसे ये बताना जरूरी होगा कि अन्य यूरोपीय देशों की तुलना में स्विटज़रलैंड एक मँहगा देश है। यहाँ से वही खरीदें जिसकी आपको वास्तव में जरूरत हो ।
गर गायें सचमुच इतनी रंग बिरंगी होतीं ! |
गाय के गले में घंटी कौन बाँधे ? :) |
घड़ी की टिक टिक आपको स्विट्ज़रलैंड के हर बाजार से सुनाई देगी। |
स्विट्ज़रलैंड के इस सफ़र के अगले पड़ाव में आपको ले चलेंगे माउंट टिटलिस की चोटी पर। अगर आपको मेरे साथ सफ़र करना पसंद है तो फेसबुक पर मुसाफ़िर हूँ यारों के ब्लॉग पेज पर अपनी उपस्थिति दर्ज़ कराना ना भूलें। मेरे यात्रा वृत्तांतों से जुड़े स्थानों से संबंधित जानकारी या सवाल आप वहाँ रख सकते हैं।