सूचना लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
सूचना लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

शुक्रवार, 30 अप्रैल 2010

मुसाफ़िर हूँ यारों... (Musafir Hoon Yaaron) ने पूरा किया दो सालों का सफ़र !

देखते ही देखते मुसाफ़िर हूँ यारों का दूसरा जन्म दिन आ गया। आज से दो साल पहले जब मैंने एक शाम मेरे नाम पर अपने यात्रा विवरणों को लिखना बंद कर हिंदी में यात्रा चिट्ठे की परिकल्पना कर नई शुरुवात की थी तो मेरे सामने सबसे बड़ी चुनौती यही थी कि क्या दो ब्लॉगों की नैया एक साथ पार लगाई जा सकेगी?



ऐसा नहीं कि दिक्कतें नहीं आयीं। खासकर वार्षिक संगीतमालाओं के दौरान मुसाफिर हूँ यारों (Musafir Hoon Yaaron) के लिए समय निकालना तो बहुत ही कठिन रहा। फिर भी इस चिट्ठे की गाड़ी पटरी पर धीरे धीरे ही सही, खिसकती रही।

समय के आलावा दूसरी चुनौती, एक यात्रा चिट्ठे पर विषयवस्तु की निरंतरता बनाए रखने की थी। दरअसल इस समस्या से हर यात्रा चिट्ठाकार चाहे वो हिंदी का हो या अंग्रेजी का जूझता रहता है। चाहे आप कितने बड़े घुमक्कड़ क्यूँ ना हों घर, परिवार और नौकरी की बंदिशों के बीच आप सारा साल तो घूमते घामते नहीं रह सकते ना ? इसलिए अगर आप अंग्रेजी चिट्ठाकारों के यात्रा चिट्ठों को पढ़ेंगे तो पाएँगे कि वो अपनी यात्राओं के संस्मरणों को एक साथ नहीं पेश कर देते बल्कि 'फिलर' के तौर पर कुछ सामग्री अपने पास संचित कर लेते हैं। अक्सर ये फिलर यात्रा में लिए गए वो चित्र होते हैं जो अपनी कुछ विशेषताओं की वजह से एक माइक्रो पोस्ट का ज़रिया बन जाते हैं।

जब 'मुसाफ़िर हूँ यारों' के लिए फिलर की समस्या आई तो मैंने चित्र पहेलियों का सहारा लिया। इस ब्रह्मांड में भगवान ने इतना कुछ सुंदर, इतना कुछ विलक्षण बनाया है कि एक जिंदगी तो क्या लाखों जिंदगियों में चाह कर भी उसे साक्षात देख नहीं सकते। पर इंटरनेट के इस ज़माने में चित्रों और लेखों के माध्यम से उन्हें जान और समझ तो सकते हैं ना। सच कहूँ तो मुझे जितना मजा आपके लिए चित्र पहेलियों को रचने में आया उससे कहीं ज्यादा उन विलक्षण जगहों या घटनाओं के बारे में अपनी जानकारी के समृद्ध होने की वज़ह से आया। उनाकोटि, त्रिपुरा के पत्थर पर नक्काशे चित्र हों या कोलकाता के अद्भुत पूजा पंडाल, कलावंतिन दुर्ग की त्रिभुजाकार चोटी हो या फिर सोकोत्रा के विलक्षण पौधे इन सब के बारे में मुझे पढ़कर कर मुझे जितना आनंद मिला उतना ही उसके बारे में चित्र पहेली के माध्यम से जानकर आपको भी आया होगा ऐसी आशा है।

पिछले साल मेरे साथ आपने उड़ीसा में भितरकनिका कै मैनग्रोव जंगलों और केरल में मुन्नार, कोच्चि, कोवलम और कोट्टायम की सैर की। पटना के हरमंदिर साहब और कोलकाता के पूजा पंडालों का भी भ्रमण आपने मेरे साथ किया। चिट्ठे के तीसरे साल की शुरुआत मेंने बनारस से की है। आगे आपको सोमनाथ, नए दीघा, चाँदीपुर उड़ीसा की कुछ ऐतिहासिक बौद्ध विरासतों और भारत के एक विशाल डैम के अपने यात्रा संस्मरण भी सुनाने हैं जहाँ का मैं पिछले छः महिनों में चक्कर लगा चुका हूँ। यानि संक्षेप में कहूँ तो इन सब यात्राओं की कहानियाँ आपको फ्लैशबैक में बताई जाएँगी। ये पढ़ते वक़्त अगर आप ये सोच रहे हों कि मुझे सफ़र करना इतना पसंद क्यूँ है तो इस प्रश्न का जवाब भी देता ही चलूँ।

दरअसल यात्राएँ नई नई जगहें देखने का माध्यम तो हैं ही पर मुझे लगता है कि मेरे लिए ये अपनी रोजमर्रा की जिंदगी से निकल कर एक अलग तरह के अनुभवों को सहेज लेने का सबसे बड़ा मौका देती हैंदूसरे यात्राएँ आपकी सोच को एक नए वातावरण में पलने का मौका देती हैं। अपने शहर का सूर्योदय भी मनोरम होता है पर उसे देखकर वो ख्याल नहीं उभरते जो आपको कहीं घूमते हुए उसी दृश्य को देखकर उठते हैं। क्यूँ होता है ऐसा? कारण ये है कि आप जब घर से निकलते हैं तो रोजमर्रा की समस्याओं को संदूक में बंद कर खुले मन से बाहर निकलते हैं। कम से कम मैं तो ऐसा ही करता हूँ और शायद इसी वज़ह से अपने हर नए सफ़र में एक नई उर्जा को अपने मन में पाता हूँ । अगर आप अपनी चिंताओं को अपने सफ़र में साथ लिए चलते हों तो यकीन मानिए आप अपनी यात्रा का कभी उन्मुक्त हृदय से आनंद नहीं ले पाएँगे।

आशा है इस नए साल में भी इस चिट्ठे के प्रति आपका स्नेह बना रहेगा और आपके आशीर्वाद से आपका ये मुसाफ़िर कुछ नए मुकामों तक पहुँचने की कोशिश करेगा । आखिर मुसाफ़िर की यात्रा का कोई अंत कहाँ... हरिवंश राय 'बच्चन' साहब ने यूँ ही तो नहीं कहा
साँस चलती है तुझे
चलना पड़ेगा ही मुसाफ़िर

सूर्य ने हँसना भुलाया
चंद्रमा ने मुस्कुराना
और भूली यामिनी भी
तारिकाओं को जगाना
एक झोंके ने बुझाया
हाथ का भी दीप लेकिन
मत बना इसको पथिक तू
बैठ जाने का बहाना
एक कोने में हृदय के
आग तेरी जग रही है
देखने को मग तुझे
जलना पड़ेगा ही मुसाफ़िर
साँस चलती है तुझे
चलना पड़ेगा ही मुसाफ़िर...

सोमवार, 4 मई 2009

मेरे यात्रा चिट्ठे मुसाफ़िर हूँ यारों (Musafir Hoon Yaaron..) ने पूरा किया अपना पहला साल

".....जिंदगी एक यात्रा है और हम सभी इसके मुसाफ़िर हैं। पर कभी-कभी इस रोजमर्रा की राह से अलग हटने को जी चाहता है। भटकने को जी चाहता है और हम निकल पड़ते हैं एक अलग से सफ़र पर अलग सी दुनिया में। जब जब मैं किसी नई जगह के लिए निकलता हूँ मुझमें अंदर तक एक नई उर्जा समा जाती है। मुझे आज तक कुल मिलाकर अपना हर सफ़र, हर जगह कुछ विशिष्ट सी लगी है। इसी विशिष्टता को मैं अपने यात्रा वृत्तांतों में शामिल करने की कोशिश करता हूँ।..."

आज से करीब एक साल पहले इन्हीं पंक्तियों के साथ ये सफ़र शुरु किया था और एक शाम मेरे नाम की अपनी प्रतिबद्धताओं के बावज़ूद पिछले साल 42 पोस्टस आपके सामने ला सका।

हिंदी में एक विशुद्ध ट्रैवेल ब्लॉग की संकल्पना के साथ किया गया ये सालाना सफ़र अपने उद्देश्य में कितना सफल रहा है ये तो आप ही बता पाएँगे। पर जैसा कि मैंने पहले भी कहा है कि यात्रा करना मुझे व्यक्तिगत तौर पर बेहद आनंदित करता है और अपने लेखन के माध्यम से इस आनंद को आप तक पहुँचाने की कोशिश करता हूँ।

मुसाफिर हूँ यारों पर इस साल भी मेरी कोशिश यही रहेगी कि कम से कम हफ्ते में एक बार इस चिट्ठे पर आपके सामने कुछ नया ला सकूँ। भारत की खूबसूरती को चित्रों के द्वारा आप तक पहुंचाने के लिए एक नया स्तंभ भी शुरु करने का इरादा है। पिछले साल अंग्रेजी के सामूहिक चिट्ठों पर हिंदी में लिखने का आमंत्रण भी मिला था। कुछ ही दिन पहले घुमक्कड़ पर इसकी शुरुवात की थी जिसे इस साल भी वक़्त मिलने पर जारी रखूँगा।

आशा है आप सब के सहयोग से ये सफ़र यूँ ही चलता रहेगा तो चलते चलते सुनिए मेरी आवाज़ में फिल्म परिचय का ये गीत जो मुझे हमेशा से बहुत प्यारा लगा है और जिसकी वज़ह से मुझे मैंने अपने चिट्ठे का ये नाम दिया है।



Get this widget Track details eSnips Social DNA

सोमवार, 28 अप्रैल 2008

मुसाफ़िर हूँ यारों : मेरा नया यात्रा चिट्ठा !

जिंदगी एक यात्रा है और हम सभी इसके मुसाफ़िर हैं। पर कभी-कभी इस रोजमर्रा की राह से अलग हटने को जी चाहता है। भटकने को जी चाहता है और हम निकल पड़ते हैं एक अलग से सफ़र पर अलग सी दुनिया में। जब जब मैं किसी नई जगह के लिए निकलता हूँ मुझमें अंदर तक एक नई उर्जा समा जाती है। मुझे आज तक कुल मिलाकर अपना हर सफ़र, हर जगह कुछ विशिष्ट सी लगी है। इसी विशिष्टता को मैं अपने यात्रा वृत्तांतों में शामिल करने की कोशिश करता हूँ।

खैर सवाल है कि ये नया चिट्ठा क्यूँ ? अपनी यायावरी के किस्से एक शाम मेरे नाम पर संगीत और साहित्य के साथ परोसता ही आया हूँ।

एक चिट्ठे को सँभालने के लिए ही फुर्सत नहीं मिलती तो ये दूसरा क्या खाक सँभलेगा ?
पहले प्रश्न का जवाब तो ये है कि पत्रकारों द्वारा चिट्ठाकारिता पर लिखे शुरुआती लेखों पर ये शिकायत भी पढ़ी कि हिंदी में कोई प्रतिबद्ध यात्रा चिट्ठा यानि Travel Blog नहीं है। हालांकि तब तक मैंने ये देखा था कि हमारे साथी चिट्ठाकार नियमित रूप से तो नहीं पर बीच-बीच में अपनी यात्राओं के विवरण देते ही रहे हैं। इधर मेरी नज़र में कुछ चिट्ठे आए हैं जिन्होंने यात्रा को अपने चिट्ठे की मुख्य थीम बनाया है। हालांकि वे अब तक किसी एग्रगेटर से नहीं जुड़े हैं। इस चिट्ठे के माध्यम से मेरी कोशिश रहेगी कि हिंदी में यात्रा विवरण लिखने वालों को नियमित चर्चा यहाँ पर हो। जो लोग चिट्ठाकार नहीं हैं पर अपनी यात्राओं के बारे में रोचक तरीके से हिंदी में लिख सकते हैं उनके लेख भी मुझे इस चिट्ठे पर शामिल करने में खुशी होगी।

साथ ही साथ ही अपने यात्रा वृत्तातों को संकलित रूप में मैं इस चिट्ठे पर डालूँगा जिनसे उन लोगों की शिकायत दूर होगी जो हिस्सों में पढ़ने के बजाए एक बार ही में पूरा आलेख पढ़ना चाहते हैं।

रही सँभालने की बात तो विषय आधारित चिट्ठों की प्रकृति ऍसी है कि वो आम चिट्ठों जैसे सक्रिय नहीं रह सकते। फिर भी ये प्रयास रहेगा कि बीच बीच में यात्रा से जुड़ी उपयोगी और दिलचस्प जानकारियाँ आप तक पहुँचाता रहूँ। आपके सुझाव और शुभकामनाएँ अपेक्षित हैं।