
दरअसल इस झील में घनी जलीय घास के बड़े बड़े हिस्से तैरते रहते हैं जिन्हें फुमडी के नाम से जाना जाता है। ये तैरती वनस्पति ही तैरती झील के नामाकरण के लिए जिम्मेदार है। ये हिस्से इतने बड़े होते हैं कि इस झील में बसने वाले मछुआरे उसमें अपनी झोपड़ी बना कर रहते हैं। इन फुमडियों को बीच से काट कर मछुआरों द्वारा गोल घेरे बनाए जाते हैं ताकि मछलियाँ इन गोल घेरों के बीच में फँस सकें। तो ये था इन गोल घेरों का रहस्य !

वैसे अगर मणिपुरी भाषा के आधार पर लोकटक की व्याख्या की जाए तो लोक शब्द का मतलब होता है बहती धारा और टक का मतलब अंतिम सिरा। पर इस बहती धारा तक आप पहुँचेगे कैसे? इस झील तक पहुँचने के लिए सबसे अच्छा रास्ता है, पहले हवाई जहाज से मणिपुर की राजधानी इंफाल पहुँचना और फिर वहाँ से तीस चालिस किमी तक का सड़क मार्ग तय कर लोकटक झील तक पहुँचना। वहीं यहाँ का निकटतम रेलवे स्टेशन दीमापुर है, जो इस जगह से करीब 230 किमी दूर है। यहाँ पर्यटकों के लिए एक द्वीप बनाया गया है जिसे सेंड्रा द्वीप के नाम से जाना जाता है। पर अगर मणिपुर की जीवनधारा मानी जाने वाली लोकटक झील के सौंदर्य को आप सही अर्थों में महसूस करना चाहते हैं तो आपको मछुआरों की छोटी नौका में बैठ कर इस झील का सफ़र करना पड़ेगा। मछुआरे इन झीलों के बीचो बीच अपना घर बनाकर रहते हैं ।

इंफाल से ५३ किमी दूर और इस झील के किनारों पर स्थित कीबुल लामजाउ राष्ट्रीय उद्यान है। झील के ऊपर तैरता ये राष्ट्रीय उद्यान संगाई हिरण के लिए बेहद मशहूर है। संगाई को मणिपुर का नाचने वाला हिरण भी कहा जाता है। यहाँ के लोग कहते हैं कि ये हिरण दौड़ते दौड़ते रुककर फिर फर्राटा मारने के क्रम में एक नज़र मुड़ कर देखता अवश्य है इसलिए इसे संगाई यानि 'इंतज़ार करने वाला पशु' कहा जाता है। संगाई को एक समय लुप्त मान लिया गया था पर 1953 में ये मणिपुर में पुनः दिखाई पड़ा। पर इस लुप्तप्राय हिरण की संख्या में फिर से कमी होने की आशंका जताई जा रही है। पर्यावरण संतुलन में ह्रास से लोकटक झील में आजकल तैरती फुमडी की मात्रा इतनी बढ़ती जा रही है कि उसने झील के अस्तित्व पर ही प्रश्न चिन्ह लगा दिया है।

वैसे संगाई का फुमडी के विकास और विघटन की प्रक्रिया से कितना गहरा रिश्ता है ये जानना आपके लिए दिलचस्प होगा। गर्मी के दिनों में जब झील में पानी का स्तर कम हो जाता है तो फुमडी नीचे की ओर बैठ जाती है और ज़मीन से अपने विकास के लिए पोषक तत्त्वों को प्राप्त करती है। परिणामस्वरुप इन फुमडियों में तरह तरह की घासों और पौधों का जन्म होता हे जो हिरणों का प्रिय आहार होती हैं। बारिश के दिनों में जलस्तर ऊँचा होते ही ये फुमडी तैरने लगती हैं। पर जंगलों की कटाई, प्रदूषण, झील का तला ऊँचा होने की वज़ह से ये देखा जा रहा है कि फुमडी नीचे की और बैठने के बजाए सालों साल तैर रही हैं। नतीजा ये कि हिरणों को भोजन की कमी और बढ़ते जल स्तर के खतरे से एकसाथ जूझना पड़ रहा है। फिलहाल लोकटक विकास प्राधिकार ने इस झील के पुनरुद्धार की मुहिम शुरु की है जिसमें झील के तले की ड्रेजिंग और तैरती फुमडियों को हटाने पर फिलहाल कार्य चल रहा है।
पिछले साल NDTV ने अपने कार्यक्रम भारत के सात आश्चर्यों में लोकटक झील को भी शामिल किया था। तो आइए इस झील की सैर करते हें इस वीडिओ के साथ।
और अब आती है जवाबों की बारी। वैसे आप में से तीन लोगों ने इस झील के बारे में बिल्कुल सही बताया व फुमडी वनस्पति को भी पहचान लिया पर किसी ने गोल घेरों के रहस्य को नहीं समझाया। फिर भी इस जटिल प्रश्न के उत्तर के मुख्य अंश तक बिना किसी संकेत के सबसे पहले पहुँचने के लिए अल्पना वर्मा जी को हार्दिक बधाई। सीमा गुप्ता और अंतर सोहिल भी सही जवाब तक पहुँचे पर थोड़ी देर में। बाकी लोगों को दिमागी घोड़े दौड़ाने के लिए आभार।