रविवार, 27 जुलाई 2014

क्या अलग होता है एक जापानी उद्यान में ? Concept of a Japanese Garden

शिंटो और बौद्ध धर्म की भिन्नताओं और हिंदू व शिंटो जीवन शैली की समानताओं के बारे में तो आपने जान लिया। आज विषय थोड़ा पलटते हैं और ले चलते हैं आपको जापान की विशेष खासियत यहाँ के जापानी गार्डन में। सहज प्रश्न उठता है कि एक आम बागीचे से जापानी गार्डन या उद्यान किन अर्थों में भिन्न है? जापानी उद्यान,  उस सांस्कृतिक परंपरा के वाहक हैं जो Edo काल से चीन से प्रेरित हो कर जापान तक पहुँची। जापान की प्रकृति यहाँ के ज्वालामुखीय पर्वतों, छोटे छोटे झरनों, चट्टानों से सटे समुद्र तटों, सदाबहार वनों और विविध प्रकार के फूलों जो यहाँ के चार मुख्य मौसमों में अपना रंग बदलते हैं, से अटी पड़ी है। एक अलग तरह के उद्यान की परिकल्पना करते समय जापानियों ने इन प्राकृतिक तत्त्वों का इस्तेमाल इस तरह से किया कि चारों ओर फैली प्रकृति  एक छोटे रूप में एक उद्यान में समाहित हो जाए।

अपनी जापान यात्रा में हमें सिर्फ दो बार इन उद्यानों को करीब से देखने का मौका मिला एक तो क्योटो के हीयान शिंटो पूजा स्थल को देखते समय तो दूसरी बार कोकुरा के विख्यात महल की यात्रा पर। इन जापानी उद्यानों का स्वरूप भले सामान हो पर ये मुख्यतः दो कार्यों के लिए काम में लाए जाते रहे। बौद्ध मंदिरों के साथ बने उद्यान चिंतन मनन के लिए प्रयुक्त होते रहे वहीं महलों के समीप बने उद्यान राजाओं और उनके परिवारों के आरामगाह की भूमिका निभाते रहे।

तो आइए सबसे पहले चलें हीयान पूजा स्थल से सटे जापानी उद्यान में। इस उद्यान की रूपरेखा Ogawa Jeihi ने तैयार की थी। उद्यान में घुसने पर एक छोटा सा तालाब आता है जिसे पार कर मुख्य झील तक पहुंचा जा सकता है जिसके केंद्र में उद्यान बनाया गया है। मजेदार बात ये है कि इस तालाब को हरे दैत्य के तालाब के नाम से जाना जाता है।

Pond of the Green Dragon..Soryu-Ike हरे दैत्य वाला बाग
इस उद्यान की खास बात है कि सालों भर ये अपनी उस मौसम की विशिष्ट रंगत लिए होता है। वसंत में चेरी के पेड़ फूलों से लद जाते हैं, गर्मी और बरसात में वाटर लिली की चादर तालाब के ऊपर बिछ जाती है, पतझड़ में मेपल वृक्ष अपनी लाल नारंगी आभा से पूरा मंज़र बदल देते हैं तो जाड़े में तालाब के आस पास की इमारते सफेद बर्फ की चादर से ढक जाती हैं।
Dragon stepping stones or Garyu Kyo leading to Seiho lake
इन चीनी जापानियों को अपने दैत्य यानि Dragon से बड़ा लगाव है जहाँ तहाँ की मिल्कियत बस उसे थमा देते हैं। अब आदमी बागीचे की फिज़ाओं का आनंद ले के लिए घुसे वो भी हरे दैत्य के तालाब में पड़े पत्थरों पर चढ़कर :)
आइए हुज़ूर स्वागत है आपका मेरे इस हरे भरे इलाके में A lone bird welcoming us in the lake.

सोमवार, 21 जुलाई 2014

यादें क्योटो की : क्या फर्क है एक बौद्ध मंदिर औेर शिंतो पूजास्थल में ? Heian Shrine Kyoto : The difference between a Shinto and Buddhist Temple in Japan.

भारत में अगर मंदिरों के शहर की बात की जाए तो सबसे पहले वाराणसी यानि बनारस का ध्यान आता है। बनारस के हर दूसरे गली कूचे पर छोटे बड़े मंदिर आपको मिलते रहेंगे। पर बनारस से पाँच हजार से भी ज्यादा किमी की दूरी पर स्थित जापान का क्योटो शहर एक ऐसा शहर है जहाँ हजारों की संख्या में बौद्ध मंदिर और शिंतो पूजा स्थल है। जापान की कोई भी यात्रा बिना इसके धार्मिक शहर क्योटो में जाए अधूरी है। आज से ठीक दो साल पहले इसी जुलाई के महिने में मैंने आपने साथियों के साथ क्योटो की यात्रा की थी। पर इससे पहले कि आपको क्योटो के इन मंदिरों की सैर कराऊँ जापानियों की धार्मिक आस्था से आपका परिचय कराना आवश्यक रहेगा। 

अगर एक भारतीय से जापान के मुख्य धर्म के बारे में पूछा जाए तो अधिकांश का जवाब बौद्ध धर्म ही होगा। बहुत कम लोगों को पता है कि ज्यादातर जापानी बौद्ध और शिंतो जीवन पद्धति दोनों पर आस्था रखते हैं। बौद्ध धर्म तो चीन और कोरिया के रास्ते जापान आया पर शिंतो तो जापान के अंदर ही धीरे धीरे पनपा और पहली बार लिखित रूप में ईसा पूर्व छठी (660 BC) शताब्दी में आया। शिंतो धर्म की सबसे दिलचस्प बात है कि कई बातों में ये हिंदू धर्म दर्शन से मिलता जुलता है। हम अक्सर कहते हैं कि हिंदुत्व जीवन जीने की एक शैली है। वैसे ही शिंतो भी एक ऐसी जीवन पद्धति है जो आज के जापानियों को उनके पूर्वजों के तौर तरीकों से भिन्न भिन्न रीति रिवाज़ों के माध्यम से जोड़ती है। शिंतो धर्म जापान के अलग अलग अंचलों के निवासियों की धारणाओं का एक संकलित रूप है। हर इलाके में अलग अलग भगवान यानि कामी हो सकते हैं। हर कामी किसी न किसी प्राकृतिक शक्ति का प्रतिनिधित्व करता है। इतना ही नहीं हिंदू धर्म दर्शन की तरह ये कामी व्यक्ति के आलावा ब्रह्मांड में ईश्वर द्वारा निर्मित किसी भी सजीव या निर्जीव वस्तु जैसे पेड़, पहाड़ , नदी व जानवर में विद्यमान रह सकते हैं।



जब हमारा समूह टोक्यो से शिनकानशेन यानि वहाँ की बुलेट ट्रेन से क्योटो पहुँचा तो दिन के ग्यारह बज रहे थे। क्योटो के मंदिरों को देखने के लिए हमारे पास सिर्फ आधे दिन का वक़्त था। हल्का फुल्का जलपान कर हम वहाँ आए अन्य देशों के पर्यटकों के साथ क्योटो के तीन बड़े मंदिरों की सैर पर निकल पड़े। हमारा गाइड बेहद हँसमुख स्वाभाव का था। उसने मुझसे पूछा कि आप के यहाँ अभिवादन कैसे करते हैं? मैंने कहा हाथ जोड़ के। वो मुस्कुराते हुए बोला कि कम से कम जापान में आप ऐसा ना करें तो अच्छा है। जापान में भी सम्मान में हाथ जोड़ने का प्रावधान है पर वैसे लोगों के लिए जो गुज़र चुके हों। क्योटो शहर का हमारा पहला पड़ाव था Heian Shrine जो कि एक शिंतो पूजास्थल है। शिंतो पवित्र स्थलों और बौद्ध मंदिरों के बीच में सबसे बड़ा फर्क ये है कि शिंतो पूजास्थल के सामने ऊपर के चित्र के आकार का ब्राह्य दरवाज़ा होता है जिसे तोरी (Torii) कहा जाता है। 


इसके विपरीत बौद्ध मंदिरों में बहुमंजिला शंकु का आकार लेती इमारत यानी पैगोडा को देखा जा सकता है। नाम के उच्चारण से भी आप ये पता कर सकते हैं कि कौन सा मंदिर बौद्ध है और कौन शिंतो ? सारे बौद्ध मंदिरों के अंत में 'जी' प्रत्यय लगता है जैसे सेंसो जी, तोदा जी आदि । जैसा कि आप जानते हैं कि बौद्ध मंदिरों में प्रार्थना पूरी शांति से की जाती है। पर Heian Shrine में जाकर हमें  शिंतो पवित्र स्थल में पूजा की दिलचस्प पद्धति का पता चला। भारत की तरह मंदिरों में चप्पल पहनने की इज़ाजत नहीं है। जब आप पूजा स्थल के मुख्य कक्ष के सामने जाते हैं तो दो बार हाथों को एक दूसरे के समानांतर ले जाकर ताली बजानी पड़ती है। जापानी मान्यता के अनुसार ऐसा इसलिए किया जाता है कि पूर्वजों की आत्मा जान जाएँ कि आप उन्हें अपने श्रद्धासुमन अर्पित करने आए हैं। एक बार भगवन जाग गए तो आप हाथ जोड़ उनका नमन कर सकते हैं :)।


Heian Shrine  में मुख्य दरवाजे से घुसने के बाद ही जापानी महल का हिस्सा दायीं ओर दिखता है। दरअसल ये पवित्र स्थल हीयान शासन काल में बनाए गए महल के स्वरूप में उसके मूल आकार से 5/8 भाग छोटा कर बनाया गया है। इतिहासकार मानते हैं कि जापान सम्राट Kammu  ने बौद्ध पुजारियों के राजकाज में बढ़ते दखल से परेशान होकर 794 ई में जापान की राजधानी नारा से बदल कर हीयान (Heian) कर दी। हीयान आज के क्योटो का प्राचीन नाम है। क्योटो शहर के ग्यारह सौ साल पूरे होने पर इसके प्रथम सम्राट Kammu  और आख़िरी सम्राट Komei की स्मृति में इस पूजा स्थल का निर्माण किया गया था। बाद में मेज़ी शासनकाल में ये राजधानी टोक्यो में तब्दील हो गई। हालांकि ऐसा करते समय सम्राट द्वारा कोई राजकीय फ़रमान नहीं जारी किया गया। इसीलिए आज भी कुछ लोग क्योटो को सैंद्धांतिक रूप से जापान की राजधानी मानते हैं।

रविवार, 13 जुलाई 2014

ये बादल भी कैसे गिरगिट सा रंग बदलते हैं ना.. Skywatch Ranchi

इधर कई हफ्तों से शाम को छत पर जाना नहीं हो पा रहा था। कई दफ़े कार्यालय से लौटते वक्त अँधेरा हो जाता है तो कभी गहरे काले मेघ पहले से ही अंधकार ला देते हैं। कल की बारिश के बाद आज आसमान साफ था और बाहर ठंडी हवा भी चल रही थी। फिर कैसे ये मन रुकता चल दिए छत पर आसमान की ठोह लेने। और सच आधे घंटे में ही ढलते सूरज के साथ आसमान और बादलों ने मिलकर जो रंगत बिखेरी कि मन प्रफुल्लित हो गया। आप भी देखिए ..





क्या आपको नहीं लगता कि कभी कभी हम सभी घर पर टीवी, पीसी और मोबाइल के सामने बँधे रहकर प्रकृति द्वारा खेले जा रहे इस खेल का आनंद लेने से वंचित रह जाते हैं ? अगर आपको मेरे साथ सफ़र करना पसंद है तो फेसबुक पर मुसाफ़िर हूँ यारों के ब्लॉग पेज पर अपनी उपस्थिति दर्ज़ कराना ना भूलें। मेरे यात्रा वृत्तांतों से जुड़े स्थानों से संबंधित जानकारी या सवाल आप वहाँ रख सकते हैं।

सोमवार, 7 जुलाई 2014

एक सुबह और एक रात शहर-ए-नैनीताल की Nainital : Morning and night scenery

कौसानी और फिर बिनसर जाने के पहले मैं नैनीताल में दो दिन रुका था। नैनीताल में भी ज्यादा समय हमने शहर से दूर स्थित तालों को देखने में बिताया। फिर भी जो वक़्त हमें सुबह और शाम को वापस लौटने पर मिलता था उसका सदुपयोग हमने शहर ए नैनीताल देखने के लिए जरूर किया। हमारा गेस्ट हाउस नैनीताल के नामी होटल मन्नू महारानी के पास मल्लीताल इलाके में था। वैसे जो लोग नैनीताल ना गए हों उन्हें बता दूँ कि मल्लीताल और तल्लीताल नैनी झील के उत्तरी और दक्षिणी सिरे पर स्थित नैनीताल के दो प्रमुख इलाके हैं। नैनीताल की पहली सुबह तो हम सैर को नहीं निकल पाए क्यूंकि दिल्ली से नैनीताल के सफ़र की थकान ने हमें सात बजे के पहले उठने ही नहीं दिया।


पर दूसरे दिन सुबह की सैर के लिए हम हाइकोर्ट जाने वाली सड़क पर निकल पड़े। वैसे अंग्रेजों ने ये शानदार इमारत 1900 में बनाई थी। दूर से देखने से आप इसके यूरोपीय स्थापत्य को आसानी से पहचान सकते हैं। हाइकोर्ट के सामने स्थित बाग इसकी खूबसूरती को और बढ़ा देता है। हाइकोर्ट के पीछे नैना का पर्वत शिखर है जो कि नैनीताल का सबसे ऊँचा शिखर है।