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शनिवार, 27 अगस्त 2016

रानी सती मंदिर, बिरमित्रपुर, राउरकेला Rani Sati Temple, Birmitrapur, Odisha

राजस्थान के उत्तर पश्चिम में एक जिला है झुँझुनू और जिसका  मुख्यालय भी इसी नाम से है। झुँझुनू दो वज़हों से जाना जाता रहा है। एक तो अपनी मंदिर और हवेलियों की वज़ह से और दूसरे पानी की किल्लत की वज़ह से भी। मारवाड़ियों में झुँझुनू का सबसे श्रद्धेय मंदिर है रानी सती जी का मंदिर। हालांकि सती प्रथा को तो कबका ये देश अलविदा कह गया पर लगभग तीन दशक पहले एक दाग तो लग ही गया था भारतीय समाज के दामन पर। ख़ैर छोड़िए उस बात पर कुछ देर बाद आते हैं। अभी तो बस ये जान लीजिए कि जिस रानी सती मंदिर के दर्शन आज आपको कराने जा रहा हूँ वो राजस्थान में ना होकर ओड़िशा में है।

मंदिर का मुख्य द्वार

कार्यालय के काम के सिलसिले में मेरा अक्सर राउरकेला जाना होता रहता है। ऍसी ही एक यात्रा में वापस लौटते हुए पता चला कि जिस ट्रेन से हमें जाना है वो चार घंटे विलंब से आने वाली है। थोड़ी देर सोचने के बाद आनन फानन में योजना बनी कि समय का सदुपयोग करने के लिए क्यूँ ना राउरकेला से पैंतीस किमी दूर स्थित वीरमित्रपुर कस्बे के प्रसिद्ध रानी सती मंदिर में चला जाए। झटपट ओला मँगवाई गयी और कुछ ही क्षणों में अपने सामान सहित हम वीरमित्रपुर के रास्ते में थे।
NH 143 राजमार्ग से दिखती मंदिर की भव्य इमारत
वीरमित्ररपुर का कस्बा, उत्तरी ओड़िशा को झारखंड से जोड़ने वाले राष्ट्रीय राजमार्ग 143 पर है। इससे आगे बढ़ने पर कुछ ही देर में झारखंड की सीमा शुरु हो जाती है। इसी रास्ते से राउरकेला का वेद व्यास मंदिर भी पड़ता है। झारखंड, ओड़िशा व छत्तीसगढ़ से पास होने के कारण यहाँ हिंदी व ओड़िया दोनों धड़ल्ले से बोली जाती है। मारवाड़ियों की भी यहाँ अच्छी खासी संख्या है। राजस्थान से ठीक उलट देश के पूर्वी किनारे पर होने की वजह से अपनी इष्ट देवी की याद में यहाँ रहने वाले मारवाड़ियों ने साठ के दशक में ये मंदिर बनवाया। नब्बे के दशक में दो एकड़ में फैले इस मंदिर का सौंदर्यीकरण भी हुआ।

प्रार्थना कक्ष

झुँझुनू  के मुख्य मंदिर की याद में इस मंदिर को झुँझुनू धाम (Jhunjhunu  Dham ) के नाम से भी जाना जाता है। स्थापत्य भी बाहर से एक जैसा है और राजस्थान के मुख्य मंदिर की तरह ही भगवान की मूर्तियाँ अंदर के कक्ष में नहीं लगी हैं। रानी सती जी को  प्यार  से श्रद्धालु दादी मैया के नाम से भी पूजते हैं। मंदिर का सबसे खूबसूरत हिस्सा इसका मुख्य हॉल है जहाँ लोग पूजा के लिए बैठते हैं। यहाँ छत पर लगे रंगीन टाइल के डिजाइन देखते  ही बनते हैं।

रंग बिरंगी ज्यामितीय आकृतियों से सुसज्जित छत

गुरुवार, 5 सितंबर 2013

वेद व्यास मंदिर राउरकेला (Ved Vyas Temple Rourkela) : क्या व्यास मुनि ने महाभारत की रचना यहाँ की?

पिछली पोस्ट में आपको मैंने तोक्यो के शिंजुकू के पूर्वी हिस्से में ले जाने का वादा किया था। पर पिछले हफ्ते कार्यालय की एक परियोजना के सिलसिले में उड़ीसा के औद्योगिक नगर राउरकेला (Rourkela) में दस दिनों का प्रवास करना पड़ा और काम भी ऐसा कि सुबह नौ से रात के दस बजे तक दम मारने की फुर्सत नहीं मिली। तोक्यो की कहानी आगे बढ़ाता तो कब?

वैसे तो कार्यालय के काम से राउरकेला बीसों बार जा चुका हूँ पर हनुमान वाटिका के आलावा राउरकेला शहर से जुड़े आस पास के दर्शनीय स्थलों को कभी नहीं देख पाया था। अक्सर वहाँ के लोगों से सुना करता था कि शहर की सीमा से सट कर बहने वाली ब्राहम्णी नदी पर महर्षि वेद व्यास का मंदिर है पर वहाँ जाने का मौका मन में इच्छा रहते हुए भी नहीं बन पाया था। बहरहाल दस दिनों के अंतराल में एक रविवार की छुट्टी मिली तो घुमक्कड़ मन कुलाँचे मारने लगा। फिर क्या था सहकर्मियों को राजी किया और रविवार सुबह दस बजे हमारा पाँच लोगों का समूह राउरकेला के नए शहरी इलाके से पानपोश होता हुआ नदी के तट पर स्थित इस मंदिर परिसर में जा पहुँचा। 


महाकाव्य महाभारत के रचयिता महर्षि वेद व्यास के नाम से शायद ही कोई भारतीय अपरिचित होगा। जैसा कि उनके नाम से स्पष्ट है वेदों को चार भाग में बाँटने का श्रेय भी उन्हें ही दिया जाता है। पर वेद व्यास जी ने महाभारत की रचना भारत के किस हिस्से में की, इस बारे में मतैक्य नहीं है। महाभारत में इस बात का जिक्र आता है कि वेद व्यास जी ने इस महाग्रंथ की रचना हिमालय की तलहटी में स्थित किसी पवित्र गुफा में की । संभवतः ये गुफा आज के नेपाल में हो। पर इसके आलावा आँध्र प्रदेश में गोदावरी नदी के तट पर भी ऐसी ही एक जगह होने की बात कही जाती है। यही सवाल अगर आप राउरकेला में करें तो आपको उत्तर में इसी मंदिर का पता बताया जाएगा। वैसे कुछ इतिहासकारों की मान्यता ये भी है कि वेद व्यास कोई एक ॠषि नहीं बल्कि अठारह ॠषियों का एक समूह था जिन्होंने सारे भारत में एक ही विचारधारा का महाभारत के माध्यम से प्रतिपादन किया। हो सकता है  कि ये व्यास मंदिर ॠषियों के समूह में से किसी एक की कर्मभूमि रही हो।


वेद व्यास मंदिर के ठीक पहले एक वैदिक गुरुकुल और आश्रम है। पूरे मंदिर परिसर का मुख्य आकर्षण चट्टानों की आड़ में बना हुआ वो स्थल है जहाँ स्थानीय मान्यताओं के अनुसार महर्षि वेद व्यास ने महाभारत की रचना की थी।