इस श्रृंखला की पिछली पोस्ट में आपने पढ़ा कि किस तरह इठलाती बालाओं और विमान के टूटते डैने के संकट से उबर कर अंडमान पहुँचा और सेल्युलर जेल में ध्वनि और प्रकाश का सम्मिलित कार्यक्रम वहाँ के गौरवमयी इतिहास से मुझे रूबरू करा गया। अगले दिन रॉस द्वीप की सुंदरता देख मन मोहित हो गया अब आगे पढ़ें....
तीसरे दिन के लिए हमारा कार्यक्रम संक्षिप्त सा था यानि दोपहर तक का समय नार्थ-बे (North Bay) में और शाम का चिड़िया टापू (Chidiya Tapoo)में । नार्थ बे के लिए जाने का रास्ता रॉस होकर ही है। खिली धूप के बीच हमारी मोटरबोट पहले रॉस के बगल से निकलती हुई पहले सीधे और फिर हल्का हल्का दाहिना घुमाव लेते हुए आगे बढ़ने लगी । 15-20 मिनटों की यात्रा के बाद नार्थ-बे का पहचान चिन्ह दिखने लगा । दरअसल इस बे की पहचान यहाँ की लाल सफेद धारियों वाला लाइट हाउस है जो काफी दूर से ही द्वीप के बीचों बीच अपना सीना ताने खड़ा दिखता है ।


नार्थ-बे दो तरफ से जमीं से घिरा हुआ है । नतीजा ये कि यहाँ का समुद्र बेहद शांत है और इसकी यही शांति नहाने का आनंद बढ़ा देती है। पर नहाने के पहले हमारे समूह ने इस टापू के जंगलों में कुछ देर विचरने का निश्चय किया । जगह जगह नारियल के सूखे छिलकों का अंबार दिखाई पड़ा । प्राकृतिक सुंदरता के लिहाज से इस छोटे से द्वीप का अंदरुनी इलाका रॉस के सामने कहीं नहीं ठहरता । और इसी कारण आधे घंटे में ही हम सब वापस समुद्र की और लौट आए । एक बार यहाँ के हल्के नीले रंग के जल में गोता लगा लेने के बाद तो पानी से बाहर निकलने का मन ही नहीं करता । हमारे समूह के कुशल तैराक तो काफी दूर तक चले गए , बाकी हमारे जैसे नौसिखिए किनारे ही फ्लोटिंग का लुत्फ उठाते रहे ।

कोरल को और करीब से देखने के लिए यहाँ गोताखोरी की भी व्यवस्था है । अब तो और आधुनिक उपकरण आ गए हैं पर उस समय नीचे का दृश्य देखने के लिए चश्मे के साथ एक रबर मॉस्क पहना देते थे और उससे जुड़ी एक नली पानी की सतह से ऊपर रहती थी। मुँह के जरिए नली के रास्ते हवा खींचनी और छोड़नी होती थी और साथ-साथ समुद्र के अंदर का दृश्य पर ध्यान केंद्रित किए रहना पड़ता था। गर आपको तैरना नहीं आता तो साथ में एक गोताखोर भी रहता है। कोरल देखते- देखते बीच- बीच में स्टार फिश और सी -हार्स जैसे छोटे जीव भी आपको कौतुक से ताकते दिख जाएँगे। दो बजे तक भोजन कर लेने के बाद हम वापस पोर्ट ब्लेयर की ओर चल पड़े।
साढ़े तीन बजे हम सब चिड़िया टापू के रास्ते पर थे। चिड़िया टापू पोर्ट ब्लेयर के दक्षिणी सिरे पर स्थित है । मुख्य शहर से ये करीब 30 कि.मी. दूर है। पूरी यात्रा हमें अंडमान की वानस्पतिक विविधता से परिचित कराती है। पहले 10 कि.मी. निकल जाने के बाद रास्ते के दोनों ओर विभिन्न प्रजातियों के हरे-भरे पेड़-पौधे और वृक्ष दिखाई पड़ते हैं। इनमें सबसे ज्यादा ध्यान खींचता है खुजूर के पेड़ों का झुंड ।

अंतिम 15 कि.मी. का रास्ता अपेक्षाकृत संकरा और घुमावदार है । जंगल घने होते जाते हैं और मन करता है कि गाड़ी से उतरकर पैदल ही इनके घने साये में चल पड़ें । फॉरेस्ट चेक प्वाइंट के ठीक पहले चाय की दुकान पर हमारी गाड़ी रुकती है । चाय का स्वाद सबको इतना पसंद आता है कि सब दो दो कप पीने के बाद भी और पीने की इच्छा को मन में दबाए आगे बढ़ते हैं।
चिड़िया टापू पास आ रहा है पर ये पेड़ों के नीचे ये कैसी जटाएँ दिख रहीं हैं?
अरे ! यही तो मैनग्रोव जाति के वृक्ष हैं जो दलदली भूमि में अपनी पकड़ बनाने के लिए अपनी भुजाओं को फैलाने के लिए तत्पर हैं। मैनग्रोव की ये पहली झलक आखिरी नहीं है। पूरे अंडमान में इन वृक्षों की भारी तादाद है जो पर्यावरण की सुरक्षा के लिए चिंतित रहने वालों के लिए खुशी की बात है।
दस मिनटों में ही चिड़िया टापू हमारे सामने है। एक ओर पानी की एक पतली परत दूर-दूर तक फैली है । तो दूसरी ओर मैनग्रोव के जंगल और आसमान छूते वृक्ष अर्धवृताकार फैलाव लिए हैं। दोनों के मध्य बीच बचाव करती रेत की परिधि हैं। छिछले समुद्र की बायीं ओर की पहाड़ी सूर्य को अपने आगोश में लेने को तत्पर है। वहाँ के लोग बताते हैं कि अक्सर नवम्बर के महिने में सूर्य इन पहाड़ियों की ओट में ही अपना डेरा जमाता है। बाकी महिने सूर्य, डूबने का अपना ठिकाना बदलते रहता है । और जब सूर्यास्त पहाड़ी से हटकर समुद्र की तरफ होता है तो बगल के चित्र की तरह का अतिमनोरम दृश्य दिखता है ।
अपनी पादुकाओं को परे छोड़ हम धीरे धीरे पानी में पैर भिंगोने चल पड़े । पानी के किनारे-किनारे मिट्टीनुमा चट्टानें यत्र-तत्र फैली हुईं थीं। हमारे समूह में कुछ सदस्य तरह-तरह के शंख और सीप इकठ्ठा करते चल रहे थे। सूरज की कम होती रोशनी मैनग्रोव वृक्षों को एक अलग तरह की ही छटा प्रदान कर रहीं थीं । ढलती शाम के साथ ही हमने चिड़िया टापू से विदा ली ।
इन पहले तीन दिनों में धूप ने हमारा साथ नहीं छोड़ा था ।हर दिन सुबह सुबह ये धूप हमें नहाने धोने के बाद बड़ी भली लगती पर दिन तक इसकी प्रचंडता हमारे उत्साह को फीका करने के लिए पर्याप्त होती थी । अगली दुपहरी हमें MVS Jollybuoy पर बितानी थी जो हमें ले जाने वाला था अंडमान के सबसे खूबसूरत द्वीप पर ! क्या नाम था इस द्वीप का ? क्या MVS Jollybuoy का AC कक्ष गर्मी से हमें मुक्ति दिला सका, ये जानते हैं इस वृत्तांत के अगले हिस्से में ।
चिड़िया टापू पास आ रहा है पर ये पेड़ों के नीचे ये कैसी जटाएँ दिख रहीं हैं?
अरे ! यही तो मैनग्रोव जाति के वृक्ष हैं जो दलदली भूमि में अपनी पकड़ बनाने के लिए अपनी भुजाओं को फैलाने के लिए तत्पर हैं। मैनग्रोव की ये पहली झलक आखिरी नहीं है। पूरे अंडमान में इन वृक्षों की भारी तादाद है जो पर्यावरण की सुरक्षा के लिए चिंतित रहने वालों के लिए खुशी की बात है।

अपनी पादुकाओं को परे छोड़ हम धीरे धीरे पानी में पैर भिंगोने चल पड़े । पानी के किनारे-किनारे मिट्टीनुमा चट्टानें यत्र-तत्र फैली हुईं थीं। हमारे समूह में कुछ सदस्य तरह-तरह के शंख और सीप इकठ्ठा करते चल रहे थे। सूरज की कम होती रोशनी मैनग्रोव वृक्षों को एक अलग तरह की ही छटा प्रदान कर रहीं थीं । ढलती शाम के साथ ही हमने चिड़िया टापू से विदा ली ।
इन पहले तीन दिनों में धूप ने हमारा साथ नहीं छोड़ा था ।हर दिन सुबह सुबह ये धूप हमें नहाने धोने के बाद बड़ी भली लगती पर दिन तक इसकी प्रचंडता हमारे उत्साह को फीका करने के लिए पर्याप्त होती थी । अगली दुपहरी हमें MVS Jollybuoy पर बितानी थी जो हमें ले जाने वाला था अंडमान के सबसे खूबसूरत द्वीप पर ! क्या नाम था इस द्वीप का ? क्या MVS Jollybuoy का AC कक्ष गर्मी से हमें मुक्ति दिला सका, ये जानते हैं इस वृत्तांत के अगले हिस्से में ।