रविवार, 31 मई 2020

चांडिल : पहाड़ों और जंगलों से घिरा एक खूबसूरत बाँध Chandil Dam, Jharkhand

राँची से सौ किमी की दूरी पर चांडिल का एक छोटा सा कस्बा है जो सुवर्णरेखा नदी पर बने बाँध के लिए मशहूर है। राँची जमशेदपुर मार्ग पर जमशेदपुर पहुँचने से लगभग तीस किमी पहले ही एक सड़क बाँयी ओर कटती है जो इस बाँध तक आपको ले आएगी। यहाँ एक रेलवे स्टेशन भी है जो कि टाटानगर मुंबई रेल मार्ग पर आता है। पहले मैं सोचता था कि ऐसा नाम चंडी या काली देवी के नाम से निकला होगा क्यूँकि झारखंड में काली की पूजा आम रही है। राँची से सटे रामगढ़ के पास स्थित रजरप्पा के काली मंदिर की प्रसिद्धि का ये आलम है कि वहाँ प्रतिदिन आस पास के राज्यों से भी श्रद्धालु आते रहे हैं। पर चांडिल के नामकरण के बारे में मेरा ये अनुमान गलत निकला।

एक शाम चांडिल बाँध के नाम

कुछ दिनों पहले पढ़ा कि यहाँ के इतिहासकारों का मानना है कि ये नाम चाँदीडीह का अपभ्रंश है। जिस तरह हिंदी भाषी प्रदेशों में किसी नगर के नाम के अंत में 'पुर' लगा रहता है वैसे ही झारखंड से गुजरते वक्त आपको कई ऐसे स्टेशन दिख जाएँगे जिसमें प्रत्यय के तौर पर 'डीह' लगा हुआ है। यानी 'डीह' को आप किसी कस्बे या टोले का समानार्थक शब्द मान सकते हैं। नाम के बारे में इस सोच को इस बात से भी बल मिलता है कि टाटा से राउरकेला के लिए निकलने पर आपको काँटाडीह, नीमडीह और बिरामडीह जैसे स्टेशन मिलते हैं। 

पर्वतों से आज मैं टकरा गया चांडिल ने दी आवाज़ लो मैं आ गया  :)

गर्मियों के मौसम में स्कूल की परीक्षाएँ खत्म होने पर घर में सबकी इच्छा हुई कि कहीं बाहर निकला जाए। सही कहूँ तो ऐसे मौसम में राँची से बेहतर कोई जगह नहीं और जमशेदपुर तो बिल्कुल नहीं है जो गर्मी के मौसम में लगातार तपता रहता है। ऐसे में योजना बनी कि दोपहर बाद चांडिल की ओर निकलते हैं। शाम तक वहाँ पहुँचेगे और रात उधर ही बिताकर अगले दिन वापस आ जाएँगे।  राँची टाटा रोड के जन्म जन्मांतर से बनते रहने के बाद भी ये रास्ता बड़े आराम से दो ढाई घंटे में निकल जाता है। पर उस दिन सड़कें खाली रहने की वज़ह से हम चिलचिलाती धूप में साढ़े तीन बजे तक वहाँ हाजिर थे। हमारे जैसे दर्जन भर घुमक्कड़ वहाँ पहले से मौज़ूद थे। कुछ परिवार के साथ और कुछ अकेले बाँध के आसपास के मनोहारी इलाकों का आनंद उठा रहे थे।

खूबसूरती चांडिल जलाशय की

चांडिल का बाँध ( Chandil Dam) सुवर्णरेखा नदी घाटी परियोजना का एक हिस्सा था। अस्सी के दशक में 56 मीटर ऊँचे इस बाँध का निर्माण हुआ था। बिजली के उत्पादन के साथ साथ आस पास के तीन राज्यों ओड़ीसा, बंगाल और वर्तमान झारखंड में सिंचाई, इस योजना का उद्देश्य था। जैसा कि भारत में अमूमन हर नदी घाटी परियोजना के साथ होता रहा है, ये परियोजना भी प्रभावित गाँवों के लोगों के पुनर्वास, मुआवज़े के आबंटन आदि मुद्दों में फँसती चली गयी और आंशिक रूप से ही पूर्ण हुई।

चांडिल बाँध के बंद दरवाजे, मानसून में इनके खुलने से पानी प्रचंड वेग से निकलता हुआ अपना शक्ति प्रदर्शन करता है।

चांडिल बाँध का इलाका छोटी छोटी पहाड़ियों और साल के जंगलों से अटा पड़ा है। दक्षिण में इसका जुड़ाव डालमा वन्य अभ्यारण्य तक हो जाता है। शाम के वक्त यहाँ के साल के हरे भरे जंगलों का विस्तार, दूर तक फैला अथाह शांत जल और अपनी लालिमा को आस पास की पहाड़ियों पर बिखरते अस्ताचलगामी सूर्य की मिश्रित छटा मन मोह लेती है। 

साल के जंगलों में....

यहाँ पहुँचते ही तीखी धूप से बचने के लिए मैंने साल के जंगलों के बीच शरण ली। ऐसे ये जंगल बाहर से बेहद घने नज़र आते है पर जंगल के अंदर इन सीधे खड़े पेड़ों के बीच आप बड़े आराम से चल फिर सकते हैं। अगर बचने की जरूरत है तो पेड़ों पर निवास करने वाली बड़ी बड़ी लाल चीटियों के अड्डों और विषैली मकड़ियों से क्यूंकि इन जंगली पगडंडियों पर इनका ही सिक्का चलता है। 

जंगलों में घंटे भर का वक़्त बिताने के बाद हम यहाँ चलने वाली मोटरबोट पर थे। वैसे मेरा बस चलता तो चांडिल के जलाशय का भीतरी सफ़र चप्पू वाली नाव पर करता क्यूँकि मोटरबोट का रोमांचक सफ़र दस मिनटों में यूँ खत्म हो जाता है कि लगता है कि अरे काश पानी के बीच इन वादियों में कुछ और वक़्त बिताने का मौका मिलता।

ऐसे शुरु हुई हमारी नौका यात्रा


जलाशय के बीचों बीच

मोटरबोट ने गति पकड़ी और कुछ ही मिनटों में किनारा छोड़ हम जलाशय के बीचों बीच आ गए। खुले आसमान के नीचे हवा निर्बाध गति से बह रही थी। हमारे बाल हवा में उड़े जा रहे थे। सामने तेजी से बदलते उन परिदृश्यों को हम बस आँखों से पी जाना चाहते थे। उन चंद लमहों में प्रकृति की उस सुंदरता को देखकर ही तपती दुपहरी का वो कष्ट काफूर हो गया था और मुझे अपनी यात्रा सार्थक प्रतीत हो रही थी।

कितना हसीं था वो नज़ारा


ढलता सूरज आती शाम

अब वक्त था बाँध के किनारे बैठकर चुपचाप ढलते सूरज की पर्वतों के साथ की जाने वाली अठखेलियों और आसमान के बदलते रंगों को निहारने का ... पर्वतों की हाथ बढ़ाती परछाइयों से मिलने का...। सूर्यास्त के उन खूबसूरत लम्हों में से कुछ को अपने कैमरे में क़ैद कर पाए और कुछ को अपनी स्मृतियों में हमेशा के लिए समा लिया। 

चांडिल बाँध पर सूर्यास्त की बेला

सूर्यास्त और आसमान की रंगीनियाँ

शाम को ये जगह वीरान सी हो जाती है। वैसे तो सिंचाई विभाग का एक विश्रामस्थल यहाँ है और हम वहीं रुकना भी चाहते थे ताकि सुबह जंगलों की खाक छानते हुए सूरज देव से एक बार फिर मिल लें पर स्थानीयों ने सुरक्षा दृष्टि से जमशेदपुर में  रुकने की सलाह दी तो हमें वहाँ से निकलना पड़ा। 

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