जेम्स बांड द्वीप के बाद हमारी नौका का अगला पड़ाव था पानी से जुड़ी चूनापत्थर की गुफाएँ! वहाँ से करीब बीस मिनट की यात्रा के बाद हम एक ऐसी ही एक गुफा के सामने थे। जैसा कि मैंने पहले बताया था ये गुफाएँ पहाड़ी के तल में समुद्री लहरों के निरंतर अपरदन से बनी हैं।
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केनोए में चूनापत्थर गुफाओं की ओर जाते पर्यटक |
इन गुफाओं तक पहुँचने के लिए केनोए Canoe का सहारा लेना पड़ता है। जब हम वहाँ पहुँचे तो गुफा के बाहर ऐसी कई नौकाएँ पानी की सतह पर तैर रही थीं।
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इन गुफाओं की आकृतियाँ कभी अज़ीब तो कभी डरावनी भी लगती हैं। |
एक केनोए पर नाविक के आलावा दो या तीन लोग बैठते हैं। नाविक आपको पहाड़ की तलहटी तक ले जाता है। कभी कभी तो भाले की तरह निकली चट्टानें इतनी नज़दीक आ जाती हैं कि उनसे बचने के लिए सर झुकाना पड़ता है। समुद्री लहरों ने पहाड़ को काट काट कर तरह तरह की आकृतियाँ बना डाली हैं जो कई बार मनुष्यों और जानवरों से मेल खा जाती हैं।
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काला चश्मा मिल जाए तो शाही अंदाज़ ख़ुद बा ख़ुद आ जाता है :) |
चूनापत्थर की इन गुफाओं से विदा लेने के बाद हमें जाना था थाइलैंड के एक तैरते हुए गाँव में भोजन करने के लिए। वापस लौटने के इस रास्ते में ऐसे मनोहारी दृश्यों का आना जारी था।
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जल, धरा, जंगल,पर्वत और आसमान और सब एक फ्रेम में ! है ना अद्भुत? |
थोड़ी ही देर में हम इस गाँव के सामने से गुजर रहे थे। कल्पना कीजिए ऍसा गाँव जहाँ एक इंच जमीन ना हो और जहाँ रहने के लिए पानी के ऊपर लकड़ी के खंभों और पटरों को जोड़ते हुए घर बनाना पड़ता हो। Ko Panyee को अठारहवीं शताब्दी में मलय मछुआरों की घुमंतू टोली ने बसाया था। उस ज़माने में थाइलैंड में ज़मीन का स्वामी वही हो सकता था जो थाई नागरिक हो। मछुआरों को Phang-Nga खाड़ी में अपना ठिकाने बनाने के लिए यही युक्ति समझ आई कि पानी के उपर लकड़ी के लट्ठों की सहायता से आबादी बसाई जाए। आज भी Ko Panyee का अधिकांश हिस्सा इन पर ही गुजर बसर कर रहा है। पर पर्यटन से होने वाली आय से यहाँ पर कुछ स्थायी संरचना का भी निर्माण हो गया है जिसमें यहाँ की मस्जिद प्रमुख है।
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पानी के ऊपर तैरता गाँव |
आज इस गाँव की जीविका पर पर्यटन हावी हो गया है। यहाँ ढेर सारे होटल और छोटे मोटे बाजार बन गए हैं। पर कुछ साल पहले तक मछली मारना ही यहाँ की आजीविका का मुख्य साधन था। अब तो बाहर के लोग भी यहाँ काम करने आ जाते हैं।
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गाँव का सोंधापन इन होटलों की चमक दमक ने मिटा दिया है |
अपनी नौका से उतरकर हम जब इस गाँव में पहुँचे तो भोजन तैयार था। शाकाहारियों के लिए चावल, थाई सलाद और एक करी थी जबकि मांसाहारियों के लिए मुर्गे और मछली की व्यवस्था थी। हम सबने हल्का भोजन लिया और गाँव में चहलकदमी के लिए निकल पड़े। मुझे बाद में पता चला कि पर्यटन के आलावा थाइलैंड में ये गाँव एक और बात के लिए मशहूर है और वो है फुटबाल।
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थाई भोजन |
सोचने में भी अजीब लगता है ना कि जिस गाँव में ज़मीन की इतनी किल्लत हो
वहाँ के लोग फुटबाल कैसे खेल सकते हैं? दरअसल 1996 के फुटबाल विश्व कप को
देखकर यहाँ के बच्चों में फुटबाल खेलने का जोश जगा। खेलने के लिए उन्होंने
लकड़ी के लट्ठों पर बेकार पड़ी नावों और लकड़ी से एक छोटी सी पिच
बनाई और उस पर खेलना शुरु कर दिया। खेलते वक़्त पटरों पर निकली हुई कीलें
इन बच्चों को चुभ जाती तो कभी तेजी से प्रहार करने पर फुटबॉल अक्सर समुद्र
में चली जाती। वहीं बारिश में फिसलन एक और समस्या बन कर सामने आ जाती ।
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इस यात्रा में मैनग्रोव के जंगलों से ये थी आखिरी मुलाकात |
पर
बच्चों ने खेलना नहीं छोड़ा और एक दिन हिम्मत जुटाकर स्कूली मुकाबले में
हिस्सा लिया। Koh Panyee की टीम फाइनल में 2-3 से हार गई। फाइनल में पहुँचने ने गाँव के खिलाड़ियों में ऐसा आत्मविश्वास जगाया कि Panyee FC की टीम दक्षिण थाइलैंड की एक
मजबूत और चैंपियन टीम बन कर उभरी।
गाँव के बच्चों इसी जज़्बे को वहाँ के एक बैंक ने अपने प्रचार अभियान का हिस्सा बनाया। इस छोटे से वीडियो को देखने के बाद आप शायद इस गाँव को हमेशा याद रखें।
थाइलैंड में अमूमन हर पर्यटन स्थल पर एक बड़ी मज़ेदार रिवायत है। जब आप वहाँ पहुँचते हैं तो आपको पता भी नहीं चलता और फोटोग्राफर आपकी फोटो ले लेते
हैं। दिन भर की यात्रा के बाद जब आप उस जगह से निकलते हैं तो बाहर निकलने
से पहले फ्रेम में आपकी फोटो मढ़ी हुई नज़र आती है। आप आश्चर्यचकित से फ्रेम
में अपनी तसवीर देखते हैं और फिर उसे सौ डेढ़ सौरुपये में भी खरीदने का लोभ नहीं
छोड़ पाते।
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अलविदा Phang-Nga Bay ! |
Phang-Nga खाड़ी की इस यात्रा के बाद हमारे समूह ने फुकेत प्रवास का चौथा दिन मुकर्रर किया था फीफी द्वीप की यात्रा के लिए। फुकेत क्या थाइलैंड मैं बिताया वो हमारा सबसे यादगार दिन था। फीफी की खूबसूरती को महसूस करेंगे इस यात्रा की अगली कड़ी में। नव वर्ष की असीम शुभकामनाओ के साथ आज मुझे दीजिए अब इजाज़त।
थाइलैंड की इस श्रंखला में अब तक
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