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शुक्रवार, 6 अप्रैल 2018

नगीन पर नौका विहार Nageen Lake, Srinagar

श्रीनगर में डल झील का विस्तार कुछ इस तरह से है कि इसका एक सिरा  पतली जलधारा  के साथ बहते हुए नगीन झील से जा कर मिलता है। यही वज़ह है कि नगीन झील को कई लोग एक अलग ही झील मानते हैं। डल झील तो पर्यटन में हो रहे इस्तेमाल की वजह से गाद से भरती जा रही है पर नगीन झील ना केवल अपेक्षाकृत गहरी है पर इसमें आप डुबकी भी लगा सकते हैं। अगर चहल पहल से दूर आप झील के किनारे शांति के पल बिताना चाहते हैं तो नगीन के किनारे रहना डल की अपेक्षा कहीं बेहतर विकल्प है।

नगीन (स्थानीय भाषा में निगीन) झील : सूर्यास्त के बाद की लाली
श्रीनगर प्रवास के पहले दिन हजरतबल से लौटते हुए हम नगीन झील तक पहुँचे। कुछ देर यूँ ही सूरज को झील के किनारे लगे पेड़ों के पीछे डूबता जाते देखते रहे। जिस नौका में हमें जाना था वो समय रहते आई नहीं पर ये समय आती जाती कश्तियों को निहारने और बीच बीच में नाव से ही दुकानदारी चलाने वाले नाविकों से  बात करने में बीता।
 ये थी नगीन झील के किनारे लगी हमारी हाउस बोट शहंशाह जिसने एक रात का बादशाह होने का मूझे भी अवसर दिया।
अपनी नाव में सवार होकर जब अपने शहंशाह से हमने विदा ली तो सूरज दूर क्षितिज में खो चुका था। इक्का दुक्का खाली शिकारे भी पर्यटकों को घुमा कर अपने घर लौट रहे थे़। दिख रही थीं तो बस दोनों किनारे लगी हाउसबोट की कतार और उनके पीछे घेरा डाले पोपलर और विलो के पेड़। दरअसल इन पेड़ों के घेरे के बीच में ये झील अँगूठी में जुड़े नगीने की तरह फैली  हुई  है। इसीलिए इसका नाम नगीन झील पड़ा।

झील में नौका विहार का आनंद
स्थानीय भाषा में नगीने को निगीन कहा जाता है। नगीन इसी निगीन का अपभ्रंश है। भला हो हिंदी पट्टी से आने वाले पर्यटकों का जिन्होंने इस नगीन को नागिन में 😆तब्दील कर दिया है। अब फिल्मों के पीछे पागल जनता से आप और क्या उम्मीद रख सकते हैं?
जबरवान की पहाड़ियों पर उतरती शाम
जब हम हाउसबोट से चले थे तो आकाश साफ था। पर अँधेरा घिरने के साथ बादलों ने आपने साम्राज्य का विस्तार करना आरंभ कर दिया था। जबरवान की पहाड़ियों के सामने के पेड़ों की लड़ी अब हरे के बजाय  स्याह रंग में बदलती जा रही थी। बस दूर झील के किनारे बने छोटे बड़े घर ही झील में फैलती इस कालिमा के बीच रौनक बन कर उभर रहे थे। 


कारे कारे बदरा
कुछ ही देर में गहरे काले बादलों का एक और हुजूम उनकी बढ़ती सेना में शामिल हो गया था। जबरवान की पहाड़ियों के पास जब बादलों की इस खेप ने हमला किया तो पर्वतों के पीछे का आसमान कड़कती बिजलियों के प्रकाश से नहा गया।

पसरता अँधेरा और कड़कती बिजलियाँ