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गुफा की दीवारों पर जानवरों, युद्ध से जुड़े शिल्प हैं जो संभवतः जैन शासक खारवेल के समय रहे परिवेश को दर्शाते हैं पर इनमें से अधिकांश बहुत हद तक टूट गए हैं। गुफा के प्रवेश द्वार को हाथी, साँप जैसे जानवरों की शक्ल दी गई है। इसी आधार पर इनका नामाकरण हाथी गुफा, पैरट केव्स या अनंत गुफा आदि पड़ा है। देखिए ऍसी ही एक गुफा के प्रवेश द्वार की ये तसवीर...
उदयगिरी के ठीक सामने और उससे थोड़ी ऊँची खंडगिरि की पहाड़ियाँ हैं। इसकी ऊँचाई करीब ४० मीटर है और इसके शीर्ष से भुवनेश्वर शहर को देखना एक सुखद अनुभव है। शीर्ष पर जैन भगवान आदिश्वर (Adishwar) का मंदिर भी है। ये भी कहा जाता है कि एक समय भगवान महावीर यहाँ अपने भक्तों को संबोधित करने आए थे।
अगली सुबह हम चल पड़े यहाँ के प्रमुख मंदिरों के दर्शन को। हिंदुओं के लिए सबसे पवित्र यहाँ का लिंगराज मंदिर है और लोग कहते हैं कि जगन्नाथ पुरी जाने के पहले यहाँ पूजा अवश्य की जानी चाहिए । इसे ११ वीं शताब्दी में बनाया गया था। ये मंदिर उड़ीसा की स्थापत्य कला का अनूठा नमूना है। पूरा मंदिर चार प्रमुख इमारतों भोगमंडप (भोजन के लिए बना आहाता, Dining Hall) , नटमंडप (Dancing Hall) , जगमोहन (Audience Hall, सभागार) और देउला जहाँ भगवान शिव की अराधना की जाती है, में बँटा हुआ है। यहाँ का आठ फीट व्यास का चमकदार शिवलिंग ग्रेनाइट का बना हुआ है और पानी और दूध से उसका रोज़ स्नान होता है।
मंदिर में श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है और शिव दर्शन के लिए धक्का मुक्की भी करनी पड़ती है। इसलिए मेरा सुझाव ये है कि अगर आप शांति से पूजा अर्चना में विश्वास रखते हों तो फिर मुक्तेश्वर के शिव मंदिर का रुख कीजिए। धौली से करीब दो तीन किमी दूरी पर ये मंदिर अपनी सु्दरता और आस पास फैली हुई शांति से आपको सहज ही आकर्षित कर लेगा। दसवीं शताब्दी में बने इस मंदिर को स्थापत्य की दृष्टि से, हिंदू जैन और बौद्ध स्थापत्य कलाओं का संगम माना जाता है।
वैसे तो भुबनेश्वर के कई अन्य मंदिर भी विख्यात हैं पर हमें शाम के पहले तक नंदन कानन (Nandan Kanan) पहुँचना था। इसलिए लिंगराज और मुक्तेश्वर की यात्रा के बाद हम कुछ देर विश्राम कर नंदन कानन की ओर चल पड़े। क्या हम नंदन कानन के सफेद बाघ को देख पाए ये विवरण इस सफ़र के अगले भाग में....
(लिंगराज मंदिर की तसवीर सौजन्य विकीपीडिया ,बाकी चित्र मेरे कैमरे से)