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मंगलवार, 6 जनवरी 2015

डगर थाइलैंड की : चूनापत्थर की गुफाएँ और ज़मीन को तरसते गाँव ने जब दी एक मजबूत फुटबॉल टीम ! Koh Panyee

जेम्स बांड द्वीप के बाद हमारी नौका का अगला पड़ाव था पानी से जुड़ी चूनापत्थर की गुफाएँ! वहाँ से करीब बीस मिनट की यात्रा के बाद हम एक ऐसी ही एक गुफा के सामने थे। जैसा कि मैंने पहले बताया था ये गुफाएँ पहाड़ी के तल में समुद्री लहरों के निरंतर अपरदन से बनी हैं। 

केनोए में चूनापत्थर गुफाओं की ओर जाते पर्यटक

इन गुफाओं तक पहुँचने के लिए केनोए Canoe का सहारा लेना पड़ता है। जब हम वहाँ पहुँचे तो गुफा के बाहर ऐसी कई नौकाएँ पानी की सतह पर तैर रही थीं।

इन गुफाओं की आकृतियाँ कभी अज़ीब तो कभी डरावनी भी लगती हैं।
एक केनोए पर नाविक के आलावा दो या तीन लोग बैठते हैं। नाविक आपको पहाड़ की तलहटी तक ले जाता है। कभी कभी तो भाले की तरह निकली चट्टानें इतनी नज़दीक आ जाती हैं कि उनसे बचने के लिए सर झुकाना पड़ता है। समुद्री लहरों ने पहाड़ को काट काट कर तरह तरह की आकृतियाँ बना डाली हैं जो कई बार मनुष्यों और जानवरों से मेल खा जाती हैं।

काला चश्मा मिल जाए तो शाही अंदाज़ ख़ुद बा ख़ुद आ जाता है :)
चूनापत्थर की इन गुफाओं से विदा लेने के बाद हमें जाना था थाइलैंड के एक तैरते हुए गाँव में भोजन करने के लिए। वापस लौटने के इस रास्ते में ऐसे  मनोहारी दृश्यों का आना जारी था।

जल, धरा, जंगल,पर्वत और आसमान और सब एक फ्रेम में ! है ना अद्भुत?
थोड़ी ही देर में हम इस गाँव के सामने से गुजर रहे थे। कल्पना कीजिए ऍसा गाँव जहाँ एक इंच जमीन ना हो और जहाँ रहने के लिए पानी के ऊपर लकड़ी के खंभों और पटरों को जोड़ते हुए घर बनाना पड़ता हो। Ko Panyee को अठारहवीं शताब्दी में मलय मछुआरों की घुमंतू टोली ने बसाया था। उस ज़माने में थाइलैंड में ज़मीन का स्वामी वही हो सकता था जो थाई नागरिक हो। मछुआरों को Phang-Nga खाड़ी में अपना ठिकाने बनाने के लिए यही युक्ति समझ आई कि पानी के उपर लकड़ी के लट्ठों की सहायता से आबादी बसाई जाए। आज भी Ko Panyee का अधिकांश हिस्सा इन पर ही गुजर बसर कर रहा है। पर पर्यटन से होने वाली आय से यहाँ पर कुछ स्थायी संरचना का भी निर्माण हो गया है जिसमें यहाँ की मस्जिद प्रमुख है।

पानी के ऊपर तैरता गाँव
आज  इस गाँव की जीविका पर पर्यटन हावी हो गया है। यहाँ ढेर सारे होटल और छोटे मोटे बाजार बन गए हैं। पर कुछ साल पहले तक मछली मारना ही यहाँ की आजीविका का मुख्य साधन था। अब तो बाहर के लोग भी यहाँ काम करने आ जाते हैं।

गाँव का सोंधापन इन होटलों की चमक दमक ने मिटा दिया है
अपनी नौका से उतरकर हम जब इस गाँव में पहुँचे तो भोजन तैयार था। शाकाहारियों के लिए चावल, थाई सलाद और एक करी थी जबकि मांसाहारियों के लिए मुर्गे और मछली की व्यवस्था थी। हम सबने हल्का भोजन लिया और गाँव में चहलकदमी के लिए निकल पड़े। मुझे बाद में पता चला कि पर्यटन के आलावा थाइलैंड में ये गाँव एक और बात के लिए मशहूर है और वो है फुटबाल।

थाई भोजन
सोचने में भी अजीब लगता है ना कि जिस गाँव में ज़मीन की इतनी किल्लत हो वहाँ के लोग फुटबाल कैसे खेल सकते हैं? दरअसल 1996 के फुटबाल विश्व कप को देखकर यहाँ के बच्चों में फुटबाल खेलने का जोश जगा। खेलने के लिए उन्होंने लकड़ी के लट्ठों पर बेकार पड़ी नावों और लकड़ी से एक छोटी सी पिच बनाई और उस पर खेलना शुरु कर दिया। खेलते वक़्त पटरों पर निकली हुई कीलें इन बच्चों को चुभ जाती तो कभी तेजी से प्रहार करने पर फुटबॉल अक्सर समुद्र में चली जाती। वहीं बारिश में फिसलन एक और समस्या बन कर सामने आ जाती । 

इस यात्रा में मैनग्रोव के जंगलों से ये थी आखिरी मुलाकात
पर बच्चों ने खेलना नहीं छोड़ा और एक दिन हिम्मत जुटाकर स्कूली मुकाबले में हिस्सा लिया। Koh Panyee की टीम फाइनल में 2-3 से हार गई। फाइनल में पहुँचने ने गाँव के खिलाड़ियों में ऐसा आत्मविश्वास जगाया कि Panyee FC की टीम दक्षिण थाइलैंड की एक मजबूत और चैंपियन टीम बन कर उभरी।

गाँव के बच्चों इसी जज़्बे को वहाँ के एक बैंक ने अपने प्रचार अभियान का हिस्सा बनाया। इस छोटे से वीडियो को देखने के बाद आप शायद इस गाँव को हमेशा याद रखें।


थाइलैंड में अमूमन हर पर्यटन स्थल पर एक बड़ी मज़ेदार रिवायत है। जब आप वहाँ पहुँचते हैं तो आपको पता भी नहीं चलता और फोटोग्राफर आपकी फोटो ले लेते हैं। दिन भर की यात्रा के बाद जब आप उस जगह से निकलते हैं तो बाहर निकलने से पहले फ्रेम में आपकी फोटो मढ़ी हुई नज़र आती है। आप आश्चर्यचकित से फ्रेम में अपनी तसवीर देखते हैं और फिर उसे सौ डेढ़ सौरुपये में भी खरीदने का लोभ नहीं छोड़ पाते।
 
अलविदा Phang-Nga Bay !

Phang-Nga खाड़ी की इस यात्रा के बाद हमारे समूह ने फुकेत प्रवास का चौथा दिन मुकर्रर किया था फीफी द्वीप की यात्रा के लिए। फुकेत क्या थाइलैंड मैं बिताया वो हमारा सबसे यादगार दिन था। फीफी की खूबसूरती को महसूस करेंगे इस यात्रा की अगली कड़ी में। नव वर्ष की असीम शुभकामनाओ के साथ आज मुझे दीजिए अब इजाज़त।

थाइलैंड की इस श्रंखला में अब तक
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शनिवार, 27 दिसंबर 2014

जेम्स बांड द्वीप : क्या है इसकी खासियत ? James Bond Island : What is so peculiar about it !

फान्ग नगा खाड़ी से जेम्स बांड द्वीप तक पहुँचते पहुँचते आसमान अपनी रंगत कई बार बदल चुका था। पहले गहरे बादल, हल्के बादलों में तब्दील हुए। फिर कुछ देर बाद वे भी इधर उधर छिटक कर आसमानी आभा का दर्शन करा गए। बादलों के इन फाँकों से निकलती सूर्य किरणों ने मैनग्रोव के इन जंगलों को जब अपना सुनहरा स्पर्श दिया, वे खिल उठे। जब हम जेम्स बांड द्वीप पहुँचे तो धूप छाँव का ये खेल जारी था।


जेटी पर उतरते ही दो आकृतियाँ आपका सहज ही ध्यान खींचती हैं। चूनापत्थर की चट्टानों के अपरदन से बनी ये गुफाएँ देखते ही एक रहस्यमय सा माहौल खड़ा कर देती हैं। इन गुफाओं में टूटते हुए पत्थरों के बीच जगह जगह छोटे बड़े पौधे उग आए हैं जो इन रूखी चट्टानों को कुछ रंगत बख्शते हैं। हमारे आने से पहले ही विदेशी पर्यटकों की बटालियन वहाँ पहुँची हुई थी। गुफा का ये रूप उन्हें भी आकर्षित कर रहा था। इन गुफाओं में ज्वार के समय पानी भर जाता है  पर अक्टूबर के महीने में जब हम यहाँ पहुँचे तब पानी का स्तर उतना नहीं था।


इस द्वीप का प्रचलित नाम तो 1974 में प्रदर्शित जेम्स बांड की फिल्म The man with the Golden Gun की शूटिंग यहाँ होने के बाद जेम्स बांड आइलैंड पड़ा। पर उसके पहले ये द्वीप Khao Phing Kan के नाम से जाना जाता था। थाई भाषा में इस शब्द का मतलब है एक दूसरे पर झुकी हुई पहाड़ियाँ और सच ही द्वीप के बीचो बीच के इस दृश्य को देख इस नाम का मर्म समझ आ जाता है।



द्वीप के पश्चिमी भाग की चौड़ाई 130 मीटर है जबकि पूर्व की तरफ़ ये दो सौ मीटर से भी ज्यादा चौड़ा हो जाता है। दो भागों में बँटे इस द्वीप के ठीक बीच में छोटा सा समुद्र तट है जहाँ बाहर से आने वाली नौकाएँ पड़ाव लेती हैं।


पर जेम्स बांड द्वीप की सबसे प्रचारित छवि  है को टापू (Ko Tapu) की। एक ज़माना था जब इस विचित्र से दिखने वाली चट्टान के एकदम पास नौका से पहुँचा जा सकता था। पर 1998 में फान्ग नगा नेशनल मैरीन पार्क बनने के बाद ये आवाजाही बंद कर दी गई।  बहुत लोग Ko Tapu को ही James Bond Island समझते हैं जो कि एक गलत धारणा है। दरअसल को टापू इस द्वीप से नजदीक स्थित एक बेहद छोटा सा द्वीप (Islet) है जो एक बीस मीटर ऊँची चट्टान द्वारा निर्मित है।


थोड़ी चढ़ाई चढ़ने के बाद जब इसके करीब और पहुँचे तो कैमरे के जूम से इसकी ये शक्ल उभर कर आई। पानी के तल पर समुद्री लहरों के लगातार अपरदन से इसका व्यास घटकर मात्र चार मीटर रह गया है जबकि इसका ऊपरी सिरा आठ मीटर चौड़ा है।

वैसे जब भी कोई अजूबी चीज दिखे और उसके पीछे स्थानीय किवदंतियाँ ना हों ऐसा कैसे हो सकता है। को टापू की भी ऐसी कहानी है। कहते हैं कि एक मछुआरा इस इलाके से हमेशा मछली पकड़ता था। पर एक दिन उसकी तमाम कोशिशों के बावज़ूद उसे कोई भी मछली नहीं मिली। हाँ जाल के साथ एक काँटी जरूर निकल कर आई। मछुआरे ने वो काँटी वापस समुद्र में फेंक दी। पर अगली बार जाल के साथ फिर वो काँटी निकल कर आई। जब ऐसा कई बार हुआ तो तंग आकर मछुआरे ने अपनी तलवार निकाल ली और पूरी ताकत से काँटी पर प्रहार किया जिससे उसके दो टुकड़े हो गए। काँटी का जो हिस्सा समु्द्र में गिरा वो उसे चीरते हुए 'का टापू' की शक्ल में बाहर निकल गया।


वैसे वैज्ञानिक इस इलाके में विभीन्न रूपों में उभरी चट्टानों को धरती की अंदरुनी परतों के टकराने और फिर उनके बाहर की ओर फूटने को इसका कारण मानते हैं। को टापू के इस रूप को अपनी छवि के पार्श्व में रखकर हमारे समूह ने भांति भांति मुद्राओं में तसवीरें खिंचाई। सामने ही पहाड़ी पर चढ़ने का रास्ता था जो द्वीप के दूसरे समुद्र तट तक ले जाता था।


समुद्र तट छोटा सा था। पर ऐसा छायादार तट मेंने पहली बार देखा था। ऐसा प्रतीत होता था मानो अपरदित चट्टानों ने तट के एक हिस्से पर छतरी सी तान रखी हो। दोनों ओर पहाड़ियों से घिरा होने की वज़ह से लहरें तो नहीं आ रही थीं पर पानी एकदम स्वच्छ था। मन तो कर रहा था कि पानी में थोड़ी छपाछप की जाए पर पैंतालीस मिनट के अंदर वापस लौटने की समय सीमा वापस जाने को मजबूर कर रही थी। फिर भी पानी में हम सब चहलकदमी कर ही आए।


यहाँ पर रहने वाले लोग मूलतः मलय हैं और मुस्लिम समुदाय से ताल्लुक रखते हैं। पर्यटकों की भीड़ की वज़ह से यहाँ छोटी छोटी ढेर सारी दुकानें खड़ी हो गई हैं जो शंख, मोती, सीपी और प्लास्टिक से बने सामान बेचती हैं।।


हमार थाई गाइड दूर से हमें आते देख चालो चालो ( चलो चलो) की आवाज़ लगा रहा था इसलिए इन दुकानों के आगे रुकना नामुमकिन था। कुल मिलाकर हमें लगा कि अगर हमें यहाँ एक घंटे का समय और मिला होता तो हम पानी में थोड़ी बहुत मस्ती कर सकते थे। पर फुकेत से आने जाने के समय के व्यर्थ जाने की वज़ह से टूर परिचालकों के लिए ऐसा करना संभव नहीं होता। वैसे चलते चलते आप क्या फिल्म का वो दृश्य नहीं देखना चाहेंगे जिसके चलते इस द्वीप का ये नाम पड़ा


फॉग नगा खाड़ी के हमारे अगले पड़ाव क्या थे जानिएगा इस श्रंखला की अगली कड़ी में...

थाइलैंड की इस श्रंखला में अब तक
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रविवार, 21 दिसंबर 2014

फांग नगा खाड़ी, थाइलैंड : समुद्र में उभरती अजीबोगरीब चट्टानीय आकृतियाँ ! Phang Nga Bay, Thailand

आप फुकेत जाएँ और फांग नगा खाड़ी के चक्कर ना लगाएँ ऐसा शायद ही होता है। थाइलैंड जाने के लिए जितने भी टूर पैकेज होते हैं उनमें से आधिकांश में इसकी यात्रा शामिल रहती है। दरअसल इस खाड़ी के रास्ते ही आप पर्यटकों में लोकप्रिय जेम्स बांड द्वीप तक  पहुँच सकते हैं। थाइलैंड टूर का प्रचार करने वाली कंपनियाँ अक़्सर इसी द्वीप के चित्र दिखाकर आपको फुकेत आने का न्योता देती हैं। पर मैं ये कहूँ कि जेम्स बांड आइलैंड से कहीं ज्यादा वहाँ तक जाने का रास्ता आपको आकर्षित करता है तो आप चौंक मत जाइएगा। तो आइए आज की इस पोस्ट में ले चलते हैं आपको इसी खाड़ी की यात्रा पर जहाँ हम गुफ़ा के अंदर के बौद्ध मंदिर Wat Suwankhuha को देखने के बाद पहुँचे थे। 

On route to Phang Nga Bay Jetty

हमारी मेटाडोर ने हमें खाड़ी के मुहाने पर उतार दिया था। नाव पर चढ़ने के पहले सभी याात्रियों को सुरक्षा जैकेट पहनना अनिवार्य था। हाल ही में चिल्का झील पर ऐसे ही नौका विहार में सुरक्षा जैकेट रहते हुए भी चालक ने उसे पहनने पर जोर नहीं दिया था और ना ही हम ख़ुद पहनने को उत्सुक थे। पर यहाँ उसे पहने बगैर नौका पर बैठने का सवाल ही नहीं था।

सामने एक सीढ़ी थी जो जेटी की तरफ़ ले जा रही थी। जेटी तक पहुँचने के लिए जो राह थी उसके दोनों ओर मैनग्रोव के जंगल थे। इस तरह के जंगल इससे पहले मैंने अंडमान और उड़ीसा के भितरकनिका में देखे थे। भितरकनिका नेशनल पार्क के यात्रा विवरण में आपको मैंने बताया था कि किस तरह दलदली व खारे पानी से भरी जगहों में ज़मीन के नीचे जाने के बजाए ऊपर हुई इन जड़ों के माध्यम से  ये पेड़ अपने अस्तित्व को बरक़रार रख पाते हैं।

Mangrove Forests at the entrance of Jetty
जेटी पर ढेर सारी मोटरबोट खड़ी थीं।   हमारे सहयात्रियों में कुछ दक्षिण भारतीय और बाकी विदेशी थे। भारत से फर्क बस इतना  कि नावों का अच्छे से रंग रोगन किया गया था और किनारे और ऊपर में बरसाती भी लगाई गई थी। हमने सोचा हो सकता है ऐसा बारिश के अचानक आ जाने के लिए किया गया हो। पर हमें शीघ्र ही उसका महत्त्व समझ आ गया जब बोट ने पूरी गति पकड़ ली।

Colourful Boats at Phang Nga Bay Jetty
जैसे ही हमारी नाव अपनी दिशा बदलती, पानी के छींटे किनारे बैठने वालों के मुखड़े तक को भिंगो डालते। ऐसे समय बगल में लगी बरसाती काम आती। शुरुआत में हमें खाड़ी के इस पतले सिरे के दोनों किनारों पर मैनग्रोव के घने जंगल दिखाई दिए। दरअसल चार सौ वर्ग किमी में फैले खाड़ी के इस इलाके की जैविक विविधता के संरक्षण के लिए इसे अस्सी के दशक में नेशनल पार्क घोषित कर दिया गया था। 42 छोटे बड़े द्वीपों को समेटे इस खाड़ी में मैनग्रोव की 28 प्रजातियाँ मौज़ूद हैं।

Our boat ...

जैसे जैसे हम आगे बढ़ते गए खाड़ी का पाट चौड़ा होता गया और मैनग्रोव के जंगल हमसे दूर चले गए। दूसरी ओर मटमैला रंग का पानी भी अपना रंग बदलकर माणिक पन्ने के रंग जैसा हो गया। हम इन बदलते दृश्यों को देखने में मग्न थे कि बीच समुद्र में चट्टानी आकृतियाँ अवतरित होनी शुरु हुई। फान्ग नगा खाड़ी की सबसे बड़ी विशेषता ये है कि ये अपनी गोद में चूनापत्थर की चट्टानों से बनी अजीबोगरीब आकृतियों को समाए हुए है।

A unique combination : Mangrove Forests with Hill !