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शनिवार, 31 जनवरी 2015

अलविदा फुकेट ! : चलते चलते देखिए फुकेट के कुछ आकाशीय नजारे Aerial View of Phuket

तो फुकेट फैंटा सी से शुरु हुआ हमारा सफ़र फुकेट के प्रसिद्ध बौद्ध मंदिर वाट चलौंग और जेम्स बांड द्वीप से होता हुआ फी फी द्वीप पर समाप्त हुआ। फी फी और जेम्स बांड द्वीप की सुंदरता तो अपनी जगह थी पर फीफी और फान्ग नगा खाड़ी के रास्तों ने भी अपने अद्भुत प्राकृतिक सौंदर्य से मन मोह लिया।

इस दौरान जहाँ हमें थाई पूजा पद्धति को भी करीब से देखने का मौका मिला वहीं फुकेट की रात की चकाचौंध ने हमें असमंजस में डाल दिया कि क्या ये वही शहर है। बहरहाल चार दिन फुकेट रहने के बाद जब हम वापस बैंकाक की ओर चले तो फुकेट के ऊपर से उड़ते हुए कुछ शानदार नज़ारे देखने को मिले। 

हरे भरे घने जंगल और साथ बहती जलराशि फुकेट का एक तरह से ट्रेडमार्क हैं।

ऊपर से दिखते घने जंगल के बीच की ये झीलें अंग्रेजी के आठ की संख्या बनाती नज़र आती हैं

अगर ऍसे किसी द्वीप पर आपको अकेला छोड़ दिया जाए तो ? :)

समुद्र के पार्श्वजल के साथ उड़ता एयर एशिया का हमारा विमान

सागर के इस किनारे और पहाड़ी के इस मिलन का गवाह था ये बादल का छोटा सा टुकड़ा

उत्तर की ओर बढ़्ते बढ़्ते समन्दर दूर जाता गया और ये हरी भरी पहाड़ियाँ पास आती गयीं।

हरियाली के इस मंज़र को बादलों का सफ़ेद टीका..... आंखें तृप्त हो गयीं थी इस दृश्य को देख कर

ये नदी अपनी इन शिराओं के साथ ऐसी लग रही थी जैसे कोई आक्टोपस हरे भरे मैदान में अपनी टाँगे पसारे बैठा हो
आशा है फुकेट पर की गई ये लंबी श्रंखला आपको पसंद आई होगी। फुकेट के बाद के अगले तीन दिन हमने बैंकाक में बिताए थे। पर फिलहाल अपनी थाइलैंड की यात्रा को यही विराम देते हुए आपको ले चलेंगे पश्चिमी भारत की कुछ जानी अनजानी जगहों पर..

थाइलैंड की इस श्रंखला में अब तक
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शनिवार, 24 जनवरी 2015

अहा कितना सुंदर है फी फी का ये समुद्र तट ! The beauty that is Phi Phi

फुकेट से चलकर हम लोग फी फी द्वीप पर दोपहर बारह बजे के आस पास पहुँच चुके थे। अगले चार घंटे हमें इस द्वीप में ही गुजारने थे़। फी फी समूह के द्वीपों में दो द्वीप प्रमुख हैं। जिस द्वीप पर हम पहुँचे उसका नाम है फी फी डॉन (Phi Phi Don)  जो कि यहाँ का सबसे बड़ा द्वीप है। इसी से सटे एक छोटा सा द्वीप और है जिसे फी फी ले कहा जाता है। दोनों द्वीपों के समुद्र तट बेहद सुंदर हैं और साथ ही कुछ जगहों पर Snorkelling भी करवाई जाती है। पर हमारे समूह ने पहले से ही ठान लिया था कि फी फी में अपना सारा समय इधर उधर ना जा कर समुद्र स्नान में बिताना है। 

इसी जहाज पर सफ़र कर हम आए थे फी फी
फी फी की स्वच्छ एवम् सुंदर जेटी जिसने अपनी पहली झलक दिखला कर ही मन मोह लिया।


वैसे फी फी का ये द्वीप प्रशासकीय तौर पर फुकेट का नहीं बल्कि क्राबी, थाइलैंड का हिस्सा है

फी फी डॉन का अगर कोई ऊपर से लिया चित्र आप देखेंगे तो आपको  दो चंद्राकार तटों के बीच पतली सी ज़मीन की पट्टी दिखाई देगी। जिस तरफ नावों और जहाज के ठहरने के लिए जेटी है उस हिस्से की तरफ से हम वहाँ पहुँचे थे। उसके ठीक दूसरी तरफ़ समुद्री तट का वो हिस्सा है जो अपेक्षाकृत छिछला है और समुद्र स्नान के लिए सर्वथा उपयुक्त है।

कतार में लगी नावें, नारियल के वृक्ष और पहाड़ियाँ.......

.........फी फी डॉन आपका इसी दृश्य से स्वागत करता है
इन दोनों हिस्सों के बीच की पट्टी पर दुकानों की कतारें हैं और कुछ होटल भी। सात साल पहले आई सुनामी में ये द्वीप भी तबाह हुआ था। पर अब ये पूरी तरह से बस चुका है। सरकार ने होटलों और दुकानों की संक्या को सीमित रखा है और यही वज़ह है कि इस इलाके की अकूत नैसर्गिक सुंदरता पर पर्यटन का कोई बुरा प्रभाव नहीं पड़ा है।

जेटी से समुद्र तट के बीच का रंग बिरंगा बाजार

लो आ गए हम इस नयनाभिराम समुद्र तट पर !
फी फी का समुद्र तट एक बेहद सुंदर समुद्र तट है। अगर भारत की बात करें तो अंडमान का राधानगर का समुद्र तट इसके आस पास ठहर सकता है। तट के पास का पानी हरे रंग का दिखता है पर थोड़ी दूर पर ये रंग बदलते बदलते गहरा नीला हो जाता है। छोटी छोटी पहाड़ियों से घिरा होने के कारण यहाँ ऊँची ऊँची लहरें भी नहीं उठती पर जैसे जैसे आप समुद्र में आगे बढ़ते हैं पानी छाती और फिर गर्दन तक पहुँच जाता है।

नीले में गर घोला जाए हरा बेहिसाब फिर नशा जो हो तैयार...........

................... वो फी फी डॉन है :)
मज़े की बात ये थी कि इतने सारे जहाजों के वहाँ होने के बाद भी समुद्र तट पर कोई भीड़ भाड़ नहीं थी। ज्यादातर विदेशी समुद्र में नहाने के बजाए सूर्य स्नान में व्यस्त थे। नीला आसमान, चमकदार धूप, हरी भरी पहाड़ियाँ और समुद्र तट से लगे नारियल के वृक्ष और फिर हरा नीला रंग लिए समुद्र का मनमोहक पारदर्शक जल.. अब इन सबके  सामने रहते कौन डुबकी लगाने में ज़रा सी भी देर करेगा। सो हम लोगों ने भी घंटे दो घंटे समुद्र में जमकर मस्ती की।

पानी में छप छपा छई..

वैसे आप क्या पसंद करेंगे सूर्य स्नान या समुद्र स्नान :)
रोमांच को और बढ़ाना हो तो तट पर पैरा सेलिंग (Para sailing) की भी व्यवस्था थी। पैरा सेलिंग में पैराशूट का एक सिरा मोटरबोट से बँधा होता है । मोटरबोट  पूरी गति से आगे बढ़ती है और दुसरे सिरे पर पैराशूट पर चढ़ा व्यक्ति आसमान से बातें करता दिखाई पड़ता है।

 ऊपर जाने की इतनी जल्दी मुझे तो नहीं थी :)
देर तक समुद्र में नहाने के बाद सब थोड़ी थकान महसूस कर रहे थे। जेटी के पास के एक होटल में भोजन की व्यवस्था थी। भोजन उसी तरह का था जैसा हमें Koh Panyee में मिला था। भोजन करने के बाद भी फी फी से वापस फुकेट की यात्रा शुरु करनी थी। सच कहूँ तो इतने रमणीक स्थान से विदा लेने का ज़रा सा भी मन नहीं कर रहा था।

अलविदा फी फी ! कैसे भूल पाएँगे तुम्हें ?
अगली सुबह हमें फुकेट से बैंकाक को कूच करना था। अगली पोस्ट में आपको दिखाऊँगा आसमान से लिए हुए फुकेट के कुछ यादगार नज़ारे...

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रविवार, 18 जनवरी 2015

डगर थाइलैंड कीः देखिए फी फी के सफ़र पर दिखे ये 10 खूबसूरत नज़ारे Ten enchanting views on way to Phi Phi Island !

फुकेट प्रवास का आख़िरी दिन था फी फी या स्थानीय भाषा में उच्चारित करें तो पी पी द्वीप की यात्रा का। सच बताऊँ तो हमारा समूह फुकेट में सबसे ज्यादा उत्साहित इसी द्वीप को देखने के लिए था। हम ऊपरवाले से यही दुआ कर रहे थे कि भगवन फी फी जाते वक़्त बादलों के साथ आँख मिचौली मत खिलवाना। क्यूँकि फी फी की असली खूबसूरती निखरती धूप में ही प्रकट होती है। दस अक्टूबर की उस सुबह को जब हम उठे तो बाहर का दृश्य देख हमारी खुशी  का ठिकाना नहीं रहा। परवरदिगार ने हमारी सुन ली थी। गहरा नीला आकाश जगमगाती धूप के साथ हमारा स्वागत कर रहा था। 

फी फी द्वीपसमूह फुकेट से करीब 45 किमी की दूरी पर है। फांग नगा की खाड़ी जहाँ फुकेट के उत्तर पूर्व में हैं वहीं फी फी जाने के लिए आपको जेटी से दक्षिण पूर्व दिशा में जाना पड़ता है। सुबह के दस बजे जब हम जेटी पर पहुँचे तो देशी विदेशी पर्यटकों की भीड़ पहले से ही जहाज में मौज़ूद थी। फी फी द्वीप में जाने के लिए यूँ तो स्पीड बोट भी मिलती है पर मँहगी होने के कारण ज्यादातर लोग इस दुमंजिले जहाज में ही सफ़र करते हैं। इस जहाज से फी फी द्वीप तक पहुँचने में करीब दो घंटों का समय लगता है।


जहाज के निचले हिस्से में वातानुकूल कक्ष होते हैं जबकि डेक के आलावा इसकी खुली छत पर भी आप धूप सेंकने का काम कर सकते हैं। भारतीय तो नहीं पर कई विदेशी पर्यटक ऐसा ही करते नज़र आए। सबसे ज्यादा चहल पहल बीच वाले डेक पर ही दिखती है। जलपान के लिए फ्रूट सलाद मिलता है। वहाँ खाए अनानास का स्वाद तो मुझे आज तक याद है।

फांग नगा खाड़ी की तरह ही फीफी तक के सफर की खूबसूरती इसमें उग आई हरी भरी चूनापत्थर की पहाड़ियों से है। हर बार एक अलग शक्ल और रूप में सामने आकर ये आपको ना केवल चोंका देती है पर साथ ही आप उनके इन अद्भुत रूपों को निहार कर तृप्त हो जाते हैं। आइए आज के इस फोटो फीचर में रूबरू होते हैं फी फी द्वीप के इस सफ़र के दस खूबसूरत नज़ारों से.. 

सफ़र की शुरुआत में तट से लगे समुद्र में पानी का रंग हरा होता है...

जो कुछ ही समय बाद गहरे नीले रंग में बदल जाता है

फिर दिखने लगते हैं सागर की अथाह जलराशि के बीच ये सिकुड़े सिमटे द्वीप

एक ओर तो लहरों की चोट से घायल तो दूसरी ओर...

दूसरी ओर इतने हरे भरे कि मन करे कि इनके छोटे से शिखर पर ही अपना भी कोई नीड़ हो..
याद है ना फिल्म कहो ना प्यार है जिसमें अमीषा पटेल और ॠतिक रोशन एक नजाने से द्वीप में खो गए थे। फिल्म में वो दृश्य माया बे के इसी तट पर शूट किया गया है। वैसे इससे पहले यहाँ अंग्रेजी फिल्म The Beach की भी शूटिंग हुई है। पर इस तट तक पहुँचने के लिए आपको बड़े जहाज से उतर कर छोटी नौका या स्पीड बोट का सहारा लेना पड़ता है।

कहो ना प्यार है... कहा ना प्यार है :)

अद्भुत आकारों में खड़ी छोटी छोटी पहाड़ियाँ

पहाड़ों के बीच पतले रास्तों से छोटी नौकाओं में इन इलाकों को करीब से महसूस करने का अलग ही आनंद है।

क्या आपको नहीं लगता कि आसमान की चादर पर किसी ने त्रिशूल खड़ा कर दिया है ?

और इन त्रिभुजाकार चोटियों का तो कहना ही क्या !

तो ये थे फी फी द्वीप तक पहुँचने के रास्ते में मेरे कैमरे में क़ैद नज़ारे। दो घंटों की इस यात्रा में मुझे जो खुशी मिली थी उसका अंदाजा आप मेरी इस छवि से सहज ही लगा सकते हैं।


 फी फी पहुँचने के बाद वहाँ कैसे बिताया वो दिन वो जानियेगा फुकेट से जुड़ी इस श्रंखला की अगली कड़ी में..

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शनिवार, 27 दिसंबर 2014

जेम्स बांड द्वीप : क्या है इसकी खासियत ? James Bond Island : What is so peculiar about it !

फान्ग नगा खाड़ी से जेम्स बांड द्वीप तक पहुँचते पहुँचते आसमान अपनी रंगत कई बार बदल चुका था। पहले गहरे बादल, हल्के बादलों में तब्दील हुए। फिर कुछ देर बाद वे भी इधर उधर छिटक कर आसमानी आभा का दर्शन करा गए। बादलों के इन फाँकों से निकलती सूर्य किरणों ने मैनग्रोव के इन जंगलों को जब अपना सुनहरा स्पर्श दिया, वे खिल उठे। जब हम जेम्स बांड द्वीप पहुँचे तो धूप छाँव का ये खेल जारी था।


जेटी पर उतरते ही दो आकृतियाँ आपका सहज ही ध्यान खींचती हैं। चूनापत्थर की चट्टानों के अपरदन से बनी ये गुफाएँ देखते ही एक रहस्यमय सा माहौल खड़ा कर देती हैं। इन गुफाओं में टूटते हुए पत्थरों के बीच जगह जगह छोटे बड़े पौधे उग आए हैं जो इन रूखी चट्टानों को कुछ रंगत बख्शते हैं। हमारे आने से पहले ही विदेशी पर्यटकों की बटालियन वहाँ पहुँची हुई थी। गुफा का ये रूप उन्हें भी आकर्षित कर रहा था। इन गुफाओं में ज्वार के समय पानी भर जाता है  पर अक्टूबर के महीने में जब हम यहाँ पहुँचे तब पानी का स्तर उतना नहीं था।


इस द्वीप का प्रचलित नाम तो 1974 में प्रदर्शित जेम्स बांड की फिल्म The man with the Golden Gun की शूटिंग यहाँ होने के बाद जेम्स बांड आइलैंड पड़ा। पर उसके पहले ये द्वीप Khao Phing Kan के नाम से जाना जाता था। थाई भाषा में इस शब्द का मतलब है एक दूसरे पर झुकी हुई पहाड़ियाँ और सच ही द्वीप के बीचो बीच के इस दृश्य को देख इस नाम का मर्म समझ आ जाता है।



द्वीप के पश्चिमी भाग की चौड़ाई 130 मीटर है जबकि पूर्व की तरफ़ ये दो सौ मीटर से भी ज्यादा चौड़ा हो जाता है। दो भागों में बँटे इस द्वीप के ठीक बीच में छोटा सा समुद्र तट है जहाँ बाहर से आने वाली नौकाएँ पड़ाव लेती हैं।


पर जेम्स बांड द्वीप की सबसे प्रचारित छवि  है को टापू (Ko Tapu) की। एक ज़माना था जब इस विचित्र से दिखने वाली चट्टान के एकदम पास नौका से पहुँचा जा सकता था। पर 1998 में फान्ग नगा नेशनल मैरीन पार्क बनने के बाद ये आवाजाही बंद कर दी गई।  बहुत लोग Ko Tapu को ही James Bond Island समझते हैं जो कि एक गलत धारणा है। दरअसल को टापू इस द्वीप से नजदीक स्थित एक बेहद छोटा सा द्वीप (Islet) है जो एक बीस मीटर ऊँची चट्टान द्वारा निर्मित है।


थोड़ी चढ़ाई चढ़ने के बाद जब इसके करीब और पहुँचे तो कैमरे के जूम से इसकी ये शक्ल उभर कर आई। पानी के तल पर समुद्री लहरों के लगातार अपरदन से इसका व्यास घटकर मात्र चार मीटर रह गया है जबकि इसका ऊपरी सिरा आठ मीटर चौड़ा है।

वैसे जब भी कोई अजूबी चीज दिखे और उसके पीछे स्थानीय किवदंतियाँ ना हों ऐसा कैसे हो सकता है। को टापू की भी ऐसी कहानी है। कहते हैं कि एक मछुआरा इस इलाके से हमेशा मछली पकड़ता था। पर एक दिन उसकी तमाम कोशिशों के बावज़ूद उसे कोई भी मछली नहीं मिली। हाँ जाल के साथ एक काँटी जरूर निकल कर आई। मछुआरे ने वो काँटी वापस समुद्र में फेंक दी। पर अगली बार जाल के साथ फिर वो काँटी निकल कर आई। जब ऐसा कई बार हुआ तो तंग आकर मछुआरे ने अपनी तलवार निकाल ली और पूरी ताकत से काँटी पर प्रहार किया जिससे उसके दो टुकड़े हो गए। काँटी का जो हिस्सा समु्द्र में गिरा वो उसे चीरते हुए 'का टापू' की शक्ल में बाहर निकल गया।


वैसे वैज्ञानिक इस इलाके में विभीन्न रूपों में उभरी चट्टानों को धरती की अंदरुनी परतों के टकराने और फिर उनके बाहर की ओर फूटने को इसका कारण मानते हैं। को टापू के इस रूप को अपनी छवि के पार्श्व में रखकर हमारे समूह ने भांति भांति मुद्राओं में तसवीरें खिंचाई। सामने ही पहाड़ी पर चढ़ने का रास्ता था जो द्वीप के दूसरे समुद्र तट तक ले जाता था।


समुद्र तट छोटा सा था। पर ऐसा छायादार तट मेंने पहली बार देखा था। ऐसा प्रतीत होता था मानो अपरदित चट्टानों ने तट के एक हिस्से पर छतरी सी तान रखी हो। दोनों ओर पहाड़ियों से घिरा होने की वज़ह से लहरें तो नहीं आ रही थीं पर पानी एकदम स्वच्छ था। मन तो कर रहा था कि पानी में थोड़ी छपाछप की जाए पर पैंतालीस मिनट के अंदर वापस लौटने की समय सीमा वापस जाने को मजबूर कर रही थी। फिर भी पानी में हम सब चहलकदमी कर ही आए।


यहाँ पर रहने वाले लोग मूलतः मलय हैं और मुस्लिम समुदाय से ताल्लुक रखते हैं। पर्यटकों की भीड़ की वज़ह से यहाँ छोटी छोटी ढेर सारी दुकानें खड़ी हो गई हैं जो शंख, मोती, सीपी और प्लास्टिक से बने सामान बेचती हैं।।


हमार थाई गाइड दूर से हमें आते देख चालो चालो ( चलो चलो) की आवाज़ लगा रहा था इसलिए इन दुकानों के आगे रुकना नामुमकिन था। कुल मिलाकर हमें लगा कि अगर हमें यहाँ एक घंटे का समय और मिला होता तो हम पानी में थोड़ी बहुत मस्ती कर सकते थे। पर फुकेत से आने जाने के समय के व्यर्थ जाने की वज़ह से टूर परिचालकों के लिए ऐसा करना संभव नहीं होता। वैसे चलते चलते आप क्या फिल्म का वो दृश्य नहीं देखना चाहेंगे जिसके चलते इस द्वीप का ये नाम पड़ा


फॉग नगा खाड़ी के हमारे अगले पड़ाव क्या थे जानिएगा इस श्रंखला की अगली कड़ी में...

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रविवार, 21 दिसंबर 2014

फांग नगा खाड़ी, थाइलैंड : समुद्र में उभरती अजीबोगरीब चट्टानीय आकृतियाँ ! Phang Nga Bay, Thailand

आप फुकेत जाएँ और फांग नगा खाड़ी के चक्कर ना लगाएँ ऐसा शायद ही होता है। थाइलैंड जाने के लिए जितने भी टूर पैकेज होते हैं उनमें से आधिकांश में इसकी यात्रा शामिल रहती है। दरअसल इस खाड़ी के रास्ते ही आप पर्यटकों में लोकप्रिय जेम्स बांड द्वीप तक  पहुँच सकते हैं। थाइलैंड टूर का प्रचार करने वाली कंपनियाँ अक़्सर इसी द्वीप के चित्र दिखाकर आपको फुकेत आने का न्योता देती हैं। पर मैं ये कहूँ कि जेम्स बांड आइलैंड से कहीं ज्यादा वहाँ तक जाने का रास्ता आपको आकर्षित करता है तो आप चौंक मत जाइएगा। तो आइए आज की इस पोस्ट में ले चलते हैं आपको इसी खाड़ी की यात्रा पर जहाँ हम गुफ़ा के अंदर के बौद्ध मंदिर Wat Suwankhuha को देखने के बाद पहुँचे थे। 

On route to Phang Nga Bay Jetty

हमारी मेटाडोर ने हमें खाड़ी के मुहाने पर उतार दिया था। नाव पर चढ़ने के पहले सभी याात्रियों को सुरक्षा जैकेट पहनना अनिवार्य था। हाल ही में चिल्का झील पर ऐसे ही नौका विहार में सुरक्षा जैकेट रहते हुए भी चालक ने उसे पहनने पर जोर नहीं दिया था और ना ही हम ख़ुद पहनने को उत्सुक थे। पर यहाँ उसे पहने बगैर नौका पर बैठने का सवाल ही नहीं था।

सामने एक सीढ़ी थी जो जेटी की तरफ़ ले जा रही थी। जेटी तक पहुँचने के लिए जो राह थी उसके दोनों ओर मैनग्रोव के जंगल थे। इस तरह के जंगल इससे पहले मैंने अंडमान और उड़ीसा के भितरकनिका में देखे थे। भितरकनिका नेशनल पार्क के यात्रा विवरण में आपको मैंने बताया था कि किस तरह दलदली व खारे पानी से भरी जगहों में ज़मीन के नीचे जाने के बजाए ऊपर हुई इन जड़ों के माध्यम से  ये पेड़ अपने अस्तित्व को बरक़रार रख पाते हैं।

Mangrove Forests at the entrance of Jetty
जेटी पर ढेर सारी मोटरबोट खड़ी थीं।   हमारे सहयात्रियों में कुछ दक्षिण भारतीय और बाकी विदेशी थे। भारत से फर्क बस इतना  कि नावों का अच्छे से रंग रोगन किया गया था और किनारे और ऊपर में बरसाती भी लगाई गई थी। हमने सोचा हो सकता है ऐसा बारिश के अचानक आ जाने के लिए किया गया हो। पर हमें शीघ्र ही उसका महत्त्व समझ आ गया जब बोट ने पूरी गति पकड़ ली।

Colourful Boats at Phang Nga Bay Jetty
जैसे ही हमारी नाव अपनी दिशा बदलती, पानी के छींटे किनारे बैठने वालों के मुखड़े तक को भिंगो डालते। ऐसे समय बगल में लगी बरसाती काम आती। शुरुआत में हमें खाड़ी के इस पतले सिरे के दोनों किनारों पर मैनग्रोव के घने जंगल दिखाई दिए। दरअसल चार सौ वर्ग किमी में फैले खाड़ी के इस इलाके की जैविक विविधता के संरक्षण के लिए इसे अस्सी के दशक में नेशनल पार्क घोषित कर दिया गया था। 42 छोटे बड़े द्वीपों को समेटे इस खाड़ी में मैनग्रोव की 28 प्रजातियाँ मौज़ूद हैं।

Our boat ...

जैसे जैसे हम आगे बढ़ते गए खाड़ी का पाट चौड़ा होता गया और मैनग्रोव के जंगल हमसे दूर चले गए। दूसरी ओर मटमैला रंग का पानी भी अपना रंग बदलकर माणिक पन्ने के रंग जैसा हो गया। हम इन बदलते दृश्यों को देखने में मग्न थे कि बीच समुद्र में चट्टानी आकृतियाँ अवतरित होनी शुरु हुई। फान्ग नगा खाड़ी की सबसे बड़ी विशेषता ये है कि ये अपनी गोद में चूनापत्थर की चट्टानों से बनी अजीबोगरीब आकृतियों को समाए हुए है।

A unique combination : Mangrove Forests with Hill !

गुरुवार, 11 दिसंबर 2014

डगर थाइलैंड की भाग 8 : आइए देखें प्राकृतिक गुफा में बने इस बौद्ध मंदिर को : Wat Suwankhuha - A cave temple !

फुकेट प्रवास के तीसरे दिन हमारा कार्यक्रम था फांग नगा खाड़ी के आस पास के इलाकों को देखने का। हम लोग फुकेट ( फुकेत ) के दक्षिण पश्चिम इलाके में थे और ये खाड़ी फुकेत के उत्तर पूर्वी सिरे पर स्थित है यानि करीब पचास किमी सड़क और पन्द्रह किमी समुद्र यात्रा तक हमें अपने गन्तव्य तक पहुँचना था। इस यात्रा के तीन मुख्य पड़ाव थे। बौद्ध गुफा मंदिर, फिर फांग नगा खाड़ी होते हुए मशहूर जेम्स बांड द्वीप और फिर वहाँ से खाड़ी के बीच बनी एक बस्ती में।

फुकेत शहर के बाहरी इलाकों में सबसे खूबसूरत दृश्य तब उभरता है जब आप पंक्तिबद्ध लगाए गए रबड़ के बागानों के बगल से गुजरते हैं। करीब एक घंटे की यात्रा के बाद हमारी गाड़ी एक पहाड़ी के सामने रुकी। पता चला कि इसी के अंदर वो मंदिर है जिसमें बुद्ध की सिर उठाकर लेटी मुद्रा में बनी सुनहरी मूर्ति है। 

Reclining Buddha Statue at Wat Suwankhuha

भारतीय मंदिरों की तरह ही इस मंदिर में बंदरों की पूरी फौज़ मौजूद थी और यहाँ भी लोग बंदर को खिलाने के लिए वहाँ खास तौर पर इसी उद्देश्य से बिक रहे पैकेट खरीद रहे थे।


लेटे हुए सुनहरे बुद्ध की प्रतिमा दूर से बेहद भव्य लगती है। प्रतिमा के सामने बौद्ध पुजारियों की छोटी छोटी मूर्ति बनाई गई है। मुख्य प्रतिमा केी बगल की सीढ़ियाँ एक अन्य छोटे मंदिर को जाती हैं जहाँ नियमित पूजा अर्चना होती है।


करीब बीस मीटर लंबी और पन्द्रह मीटर चौड़ी मुख्य गुफा से एक रास्ता ऊपर की ओर जाता है।


गुफा के विभिन्न हिस्सों में बुद्ध की छोटी बड़ी अन्य प्रतिमाएँ भी हैं।

 
सीढ़ी से ऊपर पहुँचते ही बौद्ध संत की इस छवि से सामना हो जाता है।


गुफा के इस हिस्से में एक छोटा सी स्तूपनुमा आकृति दिखती है।


मंदिर का हिस्सा यही खत्म हो जाता है। चूँकि इस इलाके की ज्यादातर चट्टानें चूनापत्थर की हैं यहाँ पर अंडमान की गुफाओं की तरह ही stalactite and stalagmite की संरचना देखने को मिलती है


पानी की उपस्थिति में ऊपर से नीचे और नीचे से ऊपर बढ़ती ये चट्टानें तरह तरह के अद्भुत रूपों में यहाँ दिखाई पड़ती हैं। गुफा के इन हिस्सों में चमगादड़ों का भी डेरा है। साथ ही रिसते पानी की वजह से हल्की सी सीलन भी रहती है।

 
वैसे गुफा में रोशनी की पुख्ता व्यवस्था है। बुद्ध भगवान से इस मुलाकात के कुछ ही देर बाद जा पहुँचे फांग नगा खाड़ी के मुहाने तक। यहाँ से आगे हमें जेम्स बांड आइलैंड तक एक नौका में जाना था। कैसी रहा हमारा अनुभव जानिएगा इस श्रंखला की अगली कड़ी में..


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