पहली बार अंडमान जाते वक़्त हवाई जहाज़ पर चढ़ना हुआ था। वैसे उस जैसी रोचक हवाई यात्रा फिर नहीं हुई। अब प्रथम क्रश कह लीजिए या आसमान में उड़ान, पहली बार का रोमांच कुछ अलग होता है। विगत कुछ वर्षों में हवाई यात्राओं में दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, बैंगलोर, भुवनेश्वर और हैदराबाद जाना होता रहा है पर अंतरराष्ट्रीय उड़ान पर तो चढ़ने का मौका अब तक नहीं मिला था। छोटे थे तो पिताजी एक बार पटना के हवाई अड्डे पर ले गए थे। दस रुपये के टिकट में तब सीढ़ी चढ़ कर इमारत की छत से विमान को उड़ता और लैंड करते हुए देखा जा सकता था। तब पटना से काठमांडू के लिए रॉयल नेपाल एयरलाइंस (Royal Nepal Airlines) के विमान चला करते थे। उनका वृहत आकार और बाहरी साज सज्जा तब बाल मन को बहुत भाए थे। ख़ैर उस ज़माने में हम बच्चों के लिए हवाई जहाज़ बस देखने की चीज हुआ करता था। इसीलिए तीन दशकों बाद जब एक लंबी अंतरराष्ट्रीय हवाई यात्रा का अवसर मिला तो मुझे बेहद उत्साहित होना चाहिए था। पर क्या ऐसा हो सका था ?
यात्रा के दो दिन पहले तक मनःस्थिति वैसी नहीं थी। होती भी कैसे वीसा एप्लीकेशन से ले कर बाकी की काग़ज़ी कार्यवाही से जुड़ी भागदौड़ ने हमारे पसीने छुड़ा दिये थे। ऊपर से दिल्ली का उमस भरा मौसम भी कोई राहत नहीं पहुँचा रहा था। काग़ज़ी काम तो जाने के एक दिन पहले खत्म हो गया था पर चिंताएँ अभी थमी नहीं थी। सबसे बड़ी चिंता पापी पेट की थी। चालिस दिनों का सफ़र और वो भी ऐसे शाकाहारी के लिए जिसने आमलेट के आलावा किसी सामिष भोजन को कभी हाथ ना लगाया हो, निश्चित ही चुनौतीपूर्ण था :)। जापान जा चुके अपने जिन सहकर्मियों से वहाँ के भोजन के बारे में बात होती पहला सवाल यही दागा जाता क्या आप शाकाहारी हैं? हमारी हाँ सुनकर सामने वाले के चेहरे पर तुरंत चिंता की लकीरें उभर आती और फिर ठहरकर जवाब मिलता Then you are going to have problem.
उनकी बातों की सत्यता परखने के लिए गूगल का सहारा लिया । पता चला जापानियों के लिए शाकाहार को समझ पाना ही बड़ा मुश्किल है,प्रचलन की बात तो दूर की है। जिस देश में खेती के लिए ज़मीन ना के बराबर हो और जो चारों ओर समुद्र से घिरा हो वहाँ के लोग शाकाहारी रह भी कैसे सकते हैं?
अब समस्या हो तो अपने देश में समाधान बताने वालों की कमी तो होती नहीं है। सो चावल, दाल, सत्तू , ओट्स से लेकर प्री कुक्ड फूड ले जाने के मशवरे मिले। अपने ट्रेनिंग कार्यक्रम के लिए जहाँ हमें जाना था वहाँ सख़्त हिदायत थी कि कमरे में ख़ुद खाना बनाना मना है। सो पहला सुझाव तो रद्द कर दिया। रही सत्तू की बात तो सत्तू की लिट्टी और पराठे तो खूब खाए थे पर लोगों ने कहा भाई सत्तू घोर कर भी पी लोगे तो भूखे नहीं मरोगे। दिल्ली पहुँचे तो वहाँ कुछ और सलाह दी गई। नतीजन अपने बड़े से बैग को मैंने सत्तू, भांति भांति प्रकार के मिक्सचर / बिस्किट्स, मैगी और प्री कुक्ड फूड के ढेर सारे पैकेट, घर में बने पकवानों से इतना भर लिया कि उसका वज़न पच्चीस के आस पास जा पहुँचा। ख़ैर भला हो जापान एयर लाइंस (Japan Air Lines) वालों का कि वे विदेश यात्रा में 23 kg के दो बैग ले जाने की इजाज़त देते हैं सो चेक इन में दिक्कत नहीं हुई।
अब समस्या हो तो अपने देश में समाधान बताने वालों की कमी तो होती नहीं है। सो चावल, दाल, सत्तू , ओट्स से लेकर प्री कुक्ड फूड ले जाने के मशवरे मिले। अपने ट्रेनिंग कार्यक्रम के लिए जहाँ हमें जाना था वहाँ सख़्त हिदायत थी कि कमरे में ख़ुद खाना बनाना मना है। सो पहला सुझाव तो रद्द कर दिया। रही सत्तू की बात तो सत्तू की लिट्टी और पराठे तो खूब खाए थे पर लोगों ने कहा भाई सत्तू घोर कर भी पी लोगे तो भूखे नहीं मरोगे। दिल्ली पहुँचे तो वहाँ कुछ और सलाह दी गई। नतीजन अपने बड़े से बैग को मैंने सत्तू, भांति भांति प्रकार के मिक्सचर / बिस्किट्स, मैगी और प्री कुक्ड फूड के ढेर सारे पैकेट, घर में बने पकवानों से इतना भर लिया कि उसका वज़न पच्चीस के आस पास जा पहुँचा। ख़ैर भला हो जापान एयर लाइंस (Japan Air Lines) वालों का कि वे विदेश यात्रा में 23 kg के दो बैग ले जाने की इजाज़त देते हैं सो चेक इन में दिक्कत नहीं हुई।