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शनिवार, 26 मई 2018

मुसाफ़िर हूँ यारों ने पूरे किए अपने दस साल ! Musafir Hoon Yaaron 10th Blog Anniversary !

मुसाफ़िर हूँ यारों ने अपने जीवन के दस साल पिछले महीने पूरे कर लिए। यूँ तो ब्लागिंग करने का मेरा ये सिलसिला तेरह साल पुराना है। शुरुआत रोमन हिंदी ब्लॉग से मैंने 2005 में की क्यूँकि तब यूनिकोड की सुविधा सारे आपरेटिंग सिस्टम में आयी नहीं थी। रोमन से देवनागरी में टंकण सीखने के बाद 2006 अप्रैल में एक शाम मेरे नाम की नींव रखी गयी। ब्लागिंग के उस शुरुआती दौर में सारा कुछ एक ही थाली में परोसने की परंपरा थी। मैंने भी ब्लागिंग के अपने पहले दो सालों में गीत, ग़ज़लों, किताबों के साथ यात्रा वृत्तांत भी एक शाम मेरे नाम पर ही लिखे। 



पर वक़्त के साथ मुझे लगने लगा कि ब्लॉग विषय आधारित होने चाहिए और इसीलिए मुझे संगीत और यात्रा जैसे अपने प्रिय विषयों को दो अलग अलग वेब साइट्स पर डालने की जरूरत महसूस हुई। संगीत और साहित्य जहाँ एक शाम मेरे नाम की पहचान बना वहीं अपने यात्रा लेखन को एक जगह व्यवस्थित करने के लिए 2008 अप्रैल में मुसाफ़िर हूँ यारों अस्तित्व में आया। हिंदी में यात्रा ब्लागिंग की ये शुरुआती पहल थी जो अगले कुछ सालों में तेजी से फैलती गयी। आज हिंदी में सैकड़ों यात्रा ब्लॉग हैं जिसमें लोग अपने संस्मरणों को सजों रहे हैं। 

इस ब्लॉग की पहली पोस्ट

व्यक्तिगत रूप से सफ़र का सिलसिला जारी रहा। आपको भारत के कोने कोने से लेकर विदेशों की भी सैर कराई। इस ब्लॉग पर लगभग चार सौ आलेख व फोटो फीचर्स लिख चुका हूँ।  हिंदी में यात्रा लेखन करते हुए मेरा ये उद्देश्य रहा है कि इसे उस स्तर पर ले जा सकूँ जहाँ इसे अंग्रेजी सहित अन्य भाषाओं में हो रहे काम के समकक्ष आँका जाए।  इस सतत प्रयास से विगत कुछ वर्षों में इस ब्लॉग की जो उपलब्धियाँ रहीं है उनमें कुछ का जिक्र आप यहाँ देख सकते हैं। 

राहें जो तय हो चुकीं ,  Places covered in this blog

पिछले दस सालों के इस सफ़र में मैंने बहुत कुछ सीखा। हिंदी और अंग्रेजी में हो रहे यात्रा लेखन को नजदीक से देखने का अवसर मिला।  कई बार देश के अग्रणी यात्रा लेखकों के साथ अलग अलग मंचों पर मुलाकात और चर्चाएँ भी हुईं। आज जिस हालत में यात्रा उद्योग और उनसे जुड़ा ब्लागिंग का परिदृश्य है उसके कुछ सुखद और कुछ अफसोसनाक पहलू दोनों ही हैं।

अगर पहले धनात्मक बिंदुओं की चर्चा करूँ तो यात्रा उद्योग में अब ब्लॉग और सोशल मीडिया में लेखन के महत्त्व को समझा जाने लगा है। घूमने फिरने का शौक रखने वाले एक निष्पक्ष राय जानने के लिए ब्लॉगस और सोशल मीडिया का सहारा ले रहे हैं। यही वजह है कि देश और विदेशों में किसी स्थान को बढ़ावा देने के लिए ब्लॉगरों को आमंत्रित किया जा रहा है। निजी कंपनियाँ आपको अपने इवेंट को कवर करने के लिए आमंत्रित करने के साथ आपकी सेवाओं का मूल्य भी दे रही हैं। आम लेखन का स्तर भी पहले से बेहतर हुआ है। कैमरों की बढ़ती गुणवत्ता का असर आजकल सोशल मीडिया और ब्लॉग पर लगाए गए चित्रों में नज़र आने लगा है। यात्रा के अपने अनुभवों को लोग पुस्तकों के माध्यम से छपवा रहे हैं।

वहीं दूसरी ओर ट्रैवेल ब्लागिंग एक रुचि के स्तर पर शुरु हुई थी। पर अब इसे  फुल या पार्ट टाइम प्रोफेशन के तौर पर भी लोग अपनाने लगे हैं। पर जहाँ व्यवसायीकरण शुरु होता है अपने आप को बाजार में बेचने की प्रतिस्पर्धा शुरु हो जाती है। बाजार ने ब्लागरों की गुणवत्ता के लिए जो मापदंड निर्धारित किए हैं वो सोशल मीडिया पर आपकी सक्रियता और फॉलोवर्स की संख्या पर आधारित हैं। इसके आलावा आपके ब्लॉग की डोमेन अथारिटी भी माएने रखती है। कायदे से देखा जाए तो ये परिपाटी तार्किक लगती  है।

यात्रा के कुछ यादगार लमहों का एक झरोखा।

ये मापदंड पश्चिम से आए हैं पर दिक्कत ये है कि उन्होंने ही इसमें घालमेल करने की सारी व्यवस्थाएँ भी उपलब्ध कराई हैं। सोशल मीडिया पर फालोवर्स और लाइक्स खरीदे जा सकते हैं।  Link Building के लिए नामी इंटरनेशनल ब्लागर एक दूसरे की लिंक को अपने ब्लॉग पर लगाकर अपनी डोमेन आथारिटी को बढ़ाने की कोशिशों में तत्पर रहते हैं और ऐसा करना एक जायज तरीके के तौर पर देखा जाता है। विदेशों में ये सालों से हो रहा है और अब वही प्रवृति भारत में देखने को मिल रही है। हाँ अपवाद हर जगह हैं लेकिन अगर ऐसे ही चलता रहा तो ईमानदारी से अपना काम करने  पेशेवर यात्रा लेखकों की संख्या गिनती में रह जाएगी।

सफलता का स्वाद चखने के लिए यात्रा लेखकों द्वारा सोशल मीडिया पर झूठे दावों और हथकंडों का प्रयोग भी देखने को मिलता रहता है। पी आर एजेंसीज के पास इतना समय और योग्यता नहीं कि वो लेखकों और सोशल मीडिया पर अपना प्रभाव रखने वालों का उचित मूल्यांकन करें। इस वजह से घूमने और लिखने का जो स्वाभाविक आनंद है वो सोशल मीडिया पर हमेशा दिखते रहने के दबाव और दिखावे के इस खेल में खोता सा जा रहा है।

ये तो हुई समूचे यात्रा लेखन परिदृश्य की बात। जहाँ तक हिंदी की बात है तो अभी भी हिंदी में लिखने वालों के समक्ष बड़ी चुनौती है कि इस तरह देश के साथ विदेशों के प्रायोजकों को अपनी ओर आकर्षित कर सकें। ये जतला सकें कि हम उनकी बात को देश के तमाम हिंदी भाषी पाठकों तक पहुँचा सकते हैं जो तेजी से इंटरनेट का प्रयोग कर रहे हैं। ये तभी हो सकता है जब हम किसी जगह की प्रकृति, संस्कृति और इतिहास से घुलते मिलते हुए अपने  विषयवस्तु की रचना करें।

खैर इन सब बातों का मैंने जिक्र इसलिए किया कि पाठक जिन्हें यात्रा लेखन का एक खूबसूरत चेहरा दिखाई देता है वे उसके इस पक्ष से भी थोड़ा परिचित हो लें। बाकी मैं तो आपको यूँ ही अपनी यात्राओं के किस्से सुनाता ही रहूँगा। जैसा पिछले इन दस सालों से सुना रहा हूँ।  अगर आपको मेरे साथ सफ़र करना पसंद है तो Facebook Page Twitter handle Instagram  पर अपनी उपस्थिति दर्ज़ कराना ना भूलें।ब्लागिंग का एक उद्देश्य आपकी बातों, आपकी पसंद को सुनना समझना भी है और यह तभी संभव है जब आप यहाँ अपनी राय ज़ाहिर करें। अगर आपके मन में यात्रा लेखन से जुड़ा कोई सवाल हो तो बेहिचक प्रश्न करें। आपके सुझावों का सहर्ष स्वागत है। आशा है पिछले दशक की तरह आने वाले दशकों में भी आप इस चिट्ठे को ऐसे ही प्यार देते रहेंगे।

मंगलवार, 3 मई 2016

मुसाफ़िर हूँ यारों की आठवीं सालगिरह एक नए पते पर.. 8th Blog Anniversary !

मुसाफ़िर हूँ यारों का आठवीं सालगिरह पिछले हफ्ते पूरी हुई। नवें साल की शुरुआत में नया बस ये कि अब ये ब्लॉग अपने ख़ुद के डोमेन यानि www.travelwithmanish.blogspot.com से हटकर www.travelwithmanish.com पर चला आया है। हालांकि अभी आप इसके पुराने पते को क्लिक करेंगे तो भी आपको वो नए पते पर ख़ुद ही ले आएगा।


यात्रा जगत में ये बात धड़ल्ले से कही जाती है कि अगर आपके पास खुद का डोमेन हो तो लोग मानते हैं कि आप ब्लॉगिंग को गंभीरता से लेते हैं। ये बात कुछ लोगों के लिए सही हो सकती है पर कितने ही हिंदी या अंग्रेजी में लिखने वाले ब्लॉगर जो वर्डप्रेस या ब्लॉगस्पाट पर हैं, डोमेन वालों से भी बेहतर लिखते हैं।फिर भी अपेक्षाकृत छोटा पता दिखने में एक लंबे पते से बेहतर तो लगता है।

ख़ैर मैंने तो शुरु से इस विधा को गंभीरता से लिया है और तभी तो आठ सालों से यहाँ से हिलने का नाम नहीं लिया। हिंदी में जब मैंने यात्रा आधारित ब्लॉगिंग शुरु की थी तब इस विषय को केंद्र में रखकर ब्लॉग बनाना हिंदी में एक नयी नवेली अवधारणा थी।  मुसाफ़िर हूँ यारों की लोकप्रियता बढ़ी तो इसी नाम से या फिर इससे मिलते जुलते कई कुछ और ब्लॉग रचे गए और उनमें से कुछ ने अपना अलग मुकाम हासिल किया है। विगत तीन चार साल में हिंदी ट्रैवेल ब्लॉगिंग में महिलाओं की सहभागिता बढ़ी है और उन्होंने पूरे मन और मेहनत से इस विधा को अपनाया  है। नए ब्लॉगरों को तो मैं यही सलाह देना चाहूँगा कि यहाँ आप तभी सफल होंगे जब आप लेखन की अपनी विशिष्ट शैली विकसित करें जो आपकी पहचान बन जाए।

हिंदी में यात्रा ब्लागिंग में चुनौतियाँ वही हैं जो चार साल पहले ऐसी ही एक पोस्ट में मैंने कहने की कोशिश की थी। आज फिर वहीं दोहरा रहा हूँ क्यूँकि आज भी वो उतनी ही  सामयिक हैं..

"..सवाल है कि यात्रा लेखन हिंदी में क्यूँ किया जाए? सीधे सीधे आकलन किया जाए तो एक ब्लॉगर के लिए अंग्रेजी में यात्रा लेखन करना ज्यादा फ़ायदेमंद है। अगर आप अंग्रेजी में स्तरीय यात्रा लेखन करते हैं तो ना केवल देश बल्कि विदेशों के पाठक भी आप के ब्लॉग तक पहुँचते हैं। दूसरी महत्त्वपूर्ण बात ये है कि अंग्रेजी आभिजात्य वर्ग की भाषा है। इस भाषा को जानने वाले पाठकों की क्रय शक्ति हिंदी के आम पाठकों की तुलना में ज्यादा है। लाज़िमी है कि यात्रा से जुड़ी सेवाएँ प्रदान करने वाली कंपनियाँ ऐसे ब्लॉगों के साथ व्यावसायिक रूप से जुड़ने में ज्यादा रुचि दिखाएँगी।

हिंदी ब्लागों में एडसेंस का समावेश पिछले साल से ही हुआ है। पर उससे होने वाली आमदनी आपके नेट पर किए गए खर्चे को पूरा कर दे तो गनीमत है। इसीलिए अगर आपका यात्रा ब्लॉग लिखने का उद्देश्य विशुद्ध रूप से व्यावसायिक है तो हिंदी लेखन से वो उद्देश्य निकट भविष्य में पूरा होने से रहा। पर क्या हम सब यहाँ पैसों ले लिए अपना समय ख़पा रहे हैं? नहीं, कम से कम मेरा तो ये प्राथमिक उद्देश्य कभी नहीं रहा। आज भी इस देश में हिंदी पढ़ने और बोलने वालों की तादाद अंग्रेजी की तुलना में कहीं अधिक है। जैसे जैसे समाज के आम वर्ग तक इंटरनेट की पहुँच बढ़ रही है हिंदी में सामग्री ढूँढने वालों की संख्या भी बढ़ेगी। क्या हमारा दायित्व ये नहीं कि ऐसे लोगों को हिंदी में स्तरीय जानकारी उपलब्ध कराएँ जैसी कि अंग्रेजी में आसानी से सुलभ है।.."

फिलहाल तो मैं आपको मेघालय की यात्रा करा ही रहा हूँ। अपनी यूरोप यात्रा के सिलसिले को शुरु करना तो अभी बाकी है और जब तक उस सफ़र के बारे में लिख पाऊँगा कुछ और राहें तय हो चुकी होंगी। 


जिन लोगों को तसवीरों से मोहब्बत लिखे शब्दों से ज्यादा रही है उनको ये बता दूँ कि आप मेरी पसंदीदा चित्रों से इंस्टाग्राम (जो कि मोबाइल से तुरत फुरत फोटो साझा करने का माध्यम है) से यहाँ मिल सकते हैं



वक़्त के साथ स्मार्ट फोन्स ना केवल हमारी जरूरत बन गए हैं बल्कि नेट देखने के लिए भी खासे इस्तेमाल किए जाते रहे हैं। हिंदी में आजकल ऐसे एप आ रहे हैं जो ख़बरों के साथ सिनेमा, यात्रा, खान पान के बारे में लिखे जा रहे अच्छे लेखों को इकठ्ठा कर आप तक पहुँचाते हैं। मुसाफ़िर हूँ यारों न्यूज हंट से जुड़ने वाला पहला हिंदी यात्रा ब्लॉग था। नवें साल में आप मुसाफ़िर हूँ यारों को ऐसी कई और एप्लिकेशन से जुड़ता देख सकते हैं।

चलते चलते इस ब्लॉग का वर्षों साथ निभाने वाले पाठकों का हार्दिक आभार ! जो लोग इसे ई मेल, नेटवर्क ब्लॉग, फेसबुक पेज व ट्विटर के ज़रिये पढ़ते रहे हैं उनसे मेरा यही अनुरोध है कि अपने विचारों को यहाँ, जवाबी ई मेल या फेसबुक पेज पर रखें ताकि आप की भावनाओं से मैं अवगत हो सकूँ। ये आपकी मोहब्बत का नतीजा है कि मैं उसी उत्साह से आपके सामने अपनी यात्राओं के अनुभवों को आपसे बाँटता रहा हूँ। आशा है ये प्रेम आप यूँ ही बनाए रखेंगे।

सोमवार, 29 अप्रैल 2013

मुसाफ़िर हूँ यारों (Musafir Hoon Yaaron) ने पूरे किए अपने पाँच साल !

28 अप्रैल 2008 को मैंने यात्रा लेखन को विषय बनाकर एक अलग ब्लॉग की शुरुआत की थी। कल  मुसाफ़िर हूँ यारों (Musafir Hoon Yaaron) ने इंटरनेट पर अपने  इस सफ़र के पाँच साल पूरे कर लिए।  विगत कुछ वर्षों में यात्रा ब्लॉगिंग के स्वरूप में विस्तार हुआ है। पिछले साल ब्लॉग की चौथी वर्षगाँठ पूरी होने पर मैंने हिंदी में यात्रा ब्लॉगिंग के औचित्य को ले कर चर्चा की थी। उन बातों को मैं आज फिर दोहराना नहीं चाहता पर वे आज भी उतनी ही माएने रखती हैं जितनी की पिछले साल थीं। इसलिए आज बात करना चाहूँगा कि पिछला साल बतौर यात्रा लेखक मेरे लिए कैसा रहा?


यात्रा ब्लॉगिंग में मेरे लिए पिछला साल अनेक नए अवसरों को सामने ले कर आया। पहली बार एक लंबी विदेश यात्रा पर चालिस दिनों के लिए जापान जाने का अवसर मिला । जापान की अनुशासनप्रियता ने जहाँ मुझे अचंभित किया वहीं उनके धर्म और संस्कृति में मुझे भारत से मिलती जुलती कई साम्यताएँ भी दिखीं। फिलहाल अपने लेखों के ज़रिए उस यात्रा के अनुभवों को आपसे बाँट भी रहा हूँ।