पिछली पहेली में प्रश्न गहरे नीले आकाश के ठीक नीचे सूर्य के प्रकाश से दमकते इन सुनहरे पर्वतों की पहचान करने का था। बताना ये था कि ये पर्वत भारत के किस इलाके में स्थित हैं? तो आइए विस्तार से जानते हैं इस पहेली के उत्तर यानि मनाली लेह राजमार्ग के ठीक बीचों बीच स्थित सरचू (Sarchu) या स्थानीय भाषा में सर भूम चूँ के बारे में।
कुछ महिने पहले जब हिमाचल प्रदेश में स्पिति के एक गाँव के बारे में आप को बताया था तब इस मार्ग की भी बात हुई थी। दरअसल मनाली से रोहतांग जाने वाले रास्ते में ग्राम्फू (Gramphoo) के पास ये सड़क एक दोराहे से मिलती है जिसमें एक लाहौल के मुख्यालय केलांग (Keylong) होते हुए लेह की ओर चला जाता है जबकि दूसरा स्पिति के मुख्यालय काज़ा (Kaza) होते हुए किन्नौर में प्रवेश कर जाता है।
मनाली से लेह तक जाने का मार्ग करीब 479 किमी लंबा है यानि अत्याधिक ऊँचाई वाले इन पहाड़ी घुमावदार रास्तों का सफ़र एक दिन में तय करना मुश्किल है। इसIलिए यात्री अपना सफ़र दो दिनों में पूरा करते हैं। अब इस सुनसान इलाके में इंसान तक को ढूँढना मुश्किल है तो फिर रुके तो रुके कहाँ?
(इस चित्र के छायाकार हैं हालैंड के Bram Bos)
यात्रियों की इसी आवश्यकता को ध्यान में रख कर सारचू पर्वत के सामने खुले आकाश के नीचे टेंट लगाए जाते हैं जहाँ यात्री अपनी रात काटते हैं। वनस्पति विहीन ये पर्वत जाड़े में बर्फ की चादर से ढके रहते हैं। बर्फ के निरंतर नीचे खिसकने से इन पर्वतों की ढाल इस क़दर अपरदित हो गई हे कि जब खुले आकाश में तेज धूप इन पर पड़ती है तो ये सुनहरी आभा से दीप्त हो उठते हैं।
संकेत 1 : ये जगह समुद्र तल से करीब ४००० मीटर से ज्यादा ऊंची है।
4000 मीटर की ऊँचाई हिमालय पर्वत माला और में ही हो सकती है और भूरे पहाड़ लद्दाख की पहचान है, इन दोनों बातों का अंदाजा आप में से बहुतों ने लगा लिया था। अब रहा सारचू तो वो समुद्र तट से करीब 4290 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है।
संकेत 2 ये भारत के दो राज्यों की सीमा पर स्थित है।
संकेत 3 : अक्सर मुसाफ़िर इस जगह पर रात बिताने को बाध्य रहते हैं वो अलग बात है कि यहाँ रात जागती आँखों से ही बितानी पड़ती है।
एक बार ये अनुमान लग जाए कि ये लेह मनाली राजमार्ग पर खींची गई तसवीर है तो फिर उत्तर तक पहुँचने के लिए दूसरे और तीसरे संकेत काफी थे। वैसे तो लोग सारचू के आलावा केलांग और जिस्पा (Jispa) में रुकते हैं पर जैसा कि मानचित्र से स्पष्ट है, इनमें से सारचू ही एक ऍसी जगह है जो हिमाचल प्रदेश और जम्मू कश्मीर की सीमा पर स्थित है।
सारचू मनाली से 222 और लेह से 257 किमी दूर है यानि मनाली (Manali) और लेह (Leh) के लगभग बीच में स्थित है। यहाँ तक जाने का रास्ता सिर्फ जून से सितंबर तक खुला रहता है। ये पूरा मार्ग संसार के कुछ उच्चतम दर्रों से होकर गुजरता है। इनमें बरालाचा ला (Baralacha La) 4,892 m और लाचलुंग दर्रा (Lachulung La) 5,059 m ऊँचाई पर है। ये इलाका जितना देखने में अलौकिक है उतना ही दुर्गम भी। इस ऊँचाई पर हाई एल्टिट्यूड सिकनेस (High Altitude Sickness) आम है और इसी वज़ह से सारचू में रात सो कर नहीं बल्कि जाग जाग कर ही बितानी पड़ती है।
इस बार की पहेली के सही जवाब के सबसे निकट पहुँचने का श्रेय मृदुला को जाता है। मृदुला को हार्दिक बधाई। बाकी लोगों को अनुमान लगाने के लिए धन्यवाद।
मुसाफ़िर हूँ यारों के पाठकों को आने वाले नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ। जनवरी के महिने पर इस चिट्ठे पर आप सब को ले चलेंगे केरल की यात्रा पर...
हिंदी का एक यात्रा चिट्ठा (An Indian Travel Blog in Hindi)
मंगलवार, 29 दिसंबर 2009
मंगलवार, 22 दिसंबर 2009
चित्र पहेली 11 : जब गहरा नीला आसमान भी फीका पड़ जाए पर्वत की इस सुनहरी आभा से !
जब रास्ता सुनसान हो। दूर दूर तक दरख्तों का नामोनिशान ना हो। गहरे नीले आसमान की खूबसूरती के साथ हो ठिठुरा देनी वाली अत्यंत सर्द हवा! ऍसे में अगर आप के सामने एक सुनहरा पहाड़ आकर खड़ा हो जाए तो। बस प्रकृति की इस लीला को देख कर आप निःशब्द ही तो रह जाएँगे। तो आज की चित्र पहेली में आपको ऍसे ही एक पर्वत की झांकी दिखाई जा रही हैं। जो ऐसी ही एक डगर पर चलते चलते अचानक से सामने आ जाता है।
आपको ये बताना है कि ये कौन सी जगह है और भारत के किस इलाके में स्थित है ? सही उत्तर तक पहुँचने के लिए सदा की तरह तीन संकेत हाजिर हैं आपके सामने..
संकेत 1 : ये जगह समुद्र तल से करीब ४००० मीटर से ज्यादा ऊंची है।
संकेत 2 ये भारत के दो राज्यों की सीमा पर स्थित है।
संकेत 3 : अक्सर मुसाफ़िर इस जगह पर रात बिताने को बाध्य रहते हैं वो अलग बात है कि यहाँ रात जागती आँखों से ही बितानी पड़ती है।
पहेली का जवाब इसी चिट्ठे पर कुछ दिनों बाद आपको मिल जाएगा । तब तक आपके कमेंट माडरेशन में रहेंगे।
सोमवार, 14 दिसंबर 2009
कोलकाता की दुर्गा पूजाः आइए देखें माता दुर्गा के ये देशज और विदेशज रूप
पिछली पोस्ट में आप से वायदा किया था कि पंडालों की सैर कराने के बाद आपको दिखाऊँगा देवी दुर्गा की प्रतिमाओं के देशज और विदेशज रूप..। कोलकाता के कारीगर पंडालों की प्रारूप चुनने में तो मशक्कत करते ही हैं पर साथ ही देवी दुर्गा को भिन्न रूपों में सजाने पर भी पूरा ध्यान देते हैं। वैसे तो मैं बिहार, झारखंड और उड़ीसा मे दुर्गा पूजा के दौरान घूम चुका हूँ पर बंगाल में देवी की प्रतिमा में सबसे भिन्न उनकी आँखों का स्वरूप होता है जिससे आप शीघ्र ही समझ जाते हैं कि ये किसी बंगाली मूर्तिकार का काम है। तो आज इस मूर्ति परिक्रमा की शुरुआत ऍसी ही एक छवि से...
माता ने यहाँ वेशभूषा धरी है एक आदिवासी महिला की..
तो कोलकाता की दुर्गा पूजा के पंडालों और प्रतिमाओं की कलात्मकता को आप तक पहुँचाने की कोशिश के रूप में ये थी तीन कड़ियों की श्रृंखला की आखिरी कड़ी। आशा है आपको ये प्रयास पसंद आया होगा।
और यहाँ माता हैं अपने क्रुद्ध अवतार में..
और जब भगवान शिव और माँ दुर्गा एक साथ आ जाएँ फिर महिसासुर तो क्या किसी भी तामसिक शक्तियों का नाश तो निश्चित ही है।
यहाँ माँ दुर्गे बंगाल की धरती छोड़ कर जा पहुँची है एक तमिल मंदिर में। लिहाज़ा आप देख रहे हैं उन्हें एक अलग रूप में..
माता ने यहाँ वेशभूषा धरी है एक आदिवासी महिला की..
तो कोलकाता की दुर्गा पूजा के पंडालों और प्रतिमाओं की कलात्मकता को आप तक पहुँचाने की कोशिश के रूप में ये थी तीन कड़ियों की श्रृंखला की आखिरी कड़ी। आशा है आपको ये प्रयास पसंद आया होगा।
शनिवार, 5 दिसंबर 2009
कोलकाता पूजा पंडालों की सैर : बिष्णुपुर की टेराकोटा कला और फिल्म निर्देशक गौतम घोष का कमाल...
पिछली पोस्ट में आपने देखा लत्तरों से बना इगलू वो भी एक पूजा पंडाल के रूप में। पर अगर दुर्गा माँ बर्फीले प्रदेशों के इगलू में विराजमान हो सकती हैं तो कुछ ऊँचाई पर लटकते बया के घोसले में क्यूँ नहीं! विश्वास नहीं हो रहा तो बादामतला (Badamtala) की इन तसवीरों पर नज़र डालिए।
इस पंडाल की साज सज्जा के पीछे हाथ है कला फिल्मों के जाने माने निर्देशक गौतम घोष का। अगर नीचे के चित्र को आप बड़ा कर के देखेंगे तो पाएँगे कि गौतम ने माँ दुर्गा को एक आदिवासी महिला का रूप दिया है जिसने बया के घोसले को अपना घर बनाया है और जिनके हर हाथ में हथियारों की जगह तरह तरह की चिड़िया हैं जो शांति का संदेश देती हैं।। पर ये घोसला जमीन पर इसलिए आ गिरा है क्यूँकि महिसासुर रूपी टिंबर माफिया ने वनों की अंधंधुंध कटाई जारी रखी है। गौतम घोष का कहना था कि ये पंडाल जंगलों के निरंतर काटे जाने से धरती के बढ़ते तापमान पर उनकी चिंता की अभिव्यक्ति है।
अगर बादामतला का ये पंडाल जलवायु परिवर्तन के कुप्रभावों की ओर ध्यान आकर्षित कर रहा था तो जादवपुर की पल्लीमंगल समिति का पंडाल बंगाल की ऍतिहासिक टेराकोटा ईंट कला का प्रदर्शन कर रहा था। कोलकाता से १३१ किमी दूर बिष्णुपुर में सोलहवीं और अठारहवीं शताब्दी में मल्लभूमि वंश के राजाओं के शासन काल में ये कला खूब फली फूली। आज भी बिष्णुपुर में ये खूबसूरत मंदिर मौज़ूद हैं जो बंगाल की ऍतिहासिक विरासत का अभिन्न अंग हैं।
इस पंडाल की साज सज्जा के पीछे हाथ है कला फिल्मों के जाने माने निर्देशक गौतम घोष का। अगर नीचे के चित्र को आप बड़ा कर के देखेंगे तो पाएँगे कि गौतम ने माँ दुर्गा को एक आदिवासी महिला का रूप दिया है जिसने बया के घोसले को अपना घर बनाया है और जिनके हर हाथ में हथियारों की जगह तरह तरह की चिड़िया हैं जो शांति का संदेश देती हैं।। पर ये घोसला जमीन पर इसलिए आ गिरा है क्यूँकि महिसासुर रूपी टिंबर माफिया ने वनों की अंधंधुंध कटाई जारी रखी है। गौतम घोष का कहना था कि ये पंडाल जंगलों के निरंतर काटे जाने से धरती के बढ़ते तापमान पर उनकी चिंता की अभिव्यक्ति है।
अगर बादामतला का ये पंडाल जलवायु परिवर्तन के कुप्रभावों की ओर ध्यान आकर्षित कर रहा था तो जादवपुर की पल्लीमंगल समिति का पंडाल बंगाल की ऍतिहासिक टेराकोटा ईंट कला का प्रदर्शन कर रहा था। कोलकाता से १३१ किमी दूर बिष्णुपुर में सोलहवीं और अठारहवीं शताब्दी में मल्लभूमि वंश के राजाओं के शासन काल में ये कला खूब फली फूली। आज भी बिष्णुपुर में ये खूबसूरत मंदिर मौज़ूद हैं जो बंगाल की ऍतिहासिक विरासत का अभिन्न अंग हैं।
इन पंडालों की खासियत ये है कि बांकुरा के इस मृणमई माँ के मंदिर के पूरे अहाते का माहौल देने के लिए चारों तरफ छोटे छोटे अन्य मंदिर भी बनाए गए हैं।
और चलते चलते कुछ और प्रारूपों की झलक भी देख ली जाए
और चलते चलते कुछ और प्रारूपों की झलक भी देख ली जाए
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