संकेत 2 : ये चिन्ह गुरु गोविंद सिंह की प्रस्तावित धार्मिक विचारधारा का प्रतिरूप है।
संकेत 2 : इसका संबंध गौतम बुद्ध द्वारा दी गई मुख्य शिक्षाओं से है।
हिंदी का एक यात्रा चिट्ठा (An Indian Travel Blog in Hindi)
दरअसल ये जगह है मोंटीसेलो डैम (Monticello Dam) जो कि कैलीफोर्निया में स्थित है। इस रसातल को वहाँ के लोग ग्लोरी होल (Glory Hole) के नाम से बुलाते हैं। तो आखिर क्या है ये ग्लोरी होल? ग्लोरी होल कंक्रीट का बना एक विशाल छिद्र है जिसका प्रयोग मोंटीसेलो डैम का जलस्तर बढ़ने पर डैम को तेजी से खाली करने के लिए किया जाता है। चित्र पहेली में जो पानी में भयंकर भँवर बना दिखाई पड़ा था वो इस छिद्र से नीचे कंक्रीट टनल के ज़रिए जाते पानी की तसवीर है।
93 मीटर गहरे और 312 मीटर लंबे मोंटीसेलो डैम को 1953 से 1957 के बीच बनाया गया था। इस डैम के एक तरफ पानी रोकने से जिस झील का निर्माण हुआ उसका नाम बेरीयेस्सा झील (Berryessa Lake) है। ये झील कैलीफोर्निया की दूसरी सबसे बड़ी झील है। ग्लोरी होल से 1370 घन मीटर पानी मात्र एक सेकेंड में छोड़ा जा सकता है। इस कंक्रीट छिद्र के मुँह का व्यास 27 मीटर है जो नीचे जाकर और कम हो जाता है। पिछली पोस्ट पर संजय भाई इसमें झाँकने की बात कर रहे थे पर पानी खाली होते समय इस छिद्र के पास फटकने की भी मनाही है। छिद्र से सीधे नीचे जाता पानी डैम की तलहटी से कुछ यूँ निकलता है..
गर्मी के दिनों में जब झील का जलस्तर कम हो जाता है तो ये कंक्रीट टनल बाहर से कुछ इस तरह की दिखाई देती है।
(चित्र सौजन्य)
पानी नहीं तो कोई डर भी नहीं। नतीजा ये कि इस मौसम में इसके निकास के अंदर घुसकर साइकिल सवार बाइकिंग का भी मजा लेते हैं।
वैसे आप के मन में ये विचार जरूर आ रहा होगा कि गलती से अगर कोई इस छिद्र के सामने बहता हुआ आ गया तो उसका क्या हाल होगा। वास्तव में ऍसा शायद आज तक नहीं हुआ लेकिन वर्ष 2004 में लेखक Mark Travais ने एक उपन्यास लिखा था Intent to Defraud जिसकी नायिका जेनिफर की मृत्यु इसी छिद्र में डूबने से होती है। उपन्यास की शुरुआत में ही इस छिद्र के पास जाती युवती के डूबने का रोंगटे खड़ा कर देने वाला विवरण है। इसे आप यहाँ से पढ़ सकते हैं। गिरते पानी की धार को महसूस करना चाहें तो ये वीडियो देखें।
इस पहेली का सबसे पहले सही हल बताया सीमा गुप्ता जी ने। सीमा गुप्ता जी को हार्दिक बधाई। समीर लाल और अभिषेक ओझा भी सही जवाब तक पहुँचे पर थोड़ी देर से। बाकी लोगों को भी अनुमान लगाने के लिए हार्दिक आभार।
अब सोचिए तो ऍसे हसीन रास्ते में चहलकदमी का मौका मिले तो कौन कवि ना बन जाए !
तो कैसी लगी बारिश में भीगी चीड़ वन की ये सिंदूरी शाम? ज़ाहिर हुए मेरी तरह आप भी इन चित्रों से मोहित हुए बिना नहीं रह पाए होंगे। तो अब बताइए कि ये हिल स्टेशन कौन सा है जो अपने हर आंगुतक का इन खूबसूरत नज़ारों से स्वागत करता है?
अब एक नज़र संकेतों की तरफ
चीड़ वृक्षों की सूख कर गिरी हुई इन सिंदूरी पत्तियों से आपका स्वागत करता ये हिल स्टेशन कौसानी ही है। कौसानी उत्तरांचल के प्रसिद्ध पर्यटन स्थल अल्मोड़ा से मात्र ५३ किमी उत्तरपश्चिम में समुद्रतल से ६२०१ फीट ऊँचाई पर स्थित है। एक ओर सोमेश्वर तो दूसरी ओर गरुड़, बैजनाथ कत्यूरी घाटियों के बीच बसे इस रमणीक कस्बे से आप हिमालय पर्वतमाला की नंदा देवी, माउंट त्रिशूल, नंदाकोट, नीलकंठ आदि चोटियों का विहंगम दृश्य देख सकते हैं।
संकेत 2 : यह भारत के एक प्रसिद्ध कवि का जन्मस्थान है।
जी हाँ, कौसानी हिंदी के प्रसिद्ध कवि सुमित्रानंदन पंत का जन्म स्थान है।
जिस छोटी सी बुद्ध की प्रतिमा का मैंने प्रविष्टि का ज़िक्र किया था उसका बड़ा रूप मृदुला के कैमरे से ये रहा ! ये बुद्ध मंदिर लांग्ज़ा लाँग करीब ६०० वर्ष पुराना है ऍसा यहाँ के लोगों का मानना है।
इस गाँव की एक और खासियत है और वो है यहाँ समुद्री जीवाश्मों यानि फॉसिल्स का पाया जाना। आप के मन में ये प्रश्न सहज ही उठा होगा आखिर इस दूर दराज़ इलाके में जीवाश्म कहाँ से आ गए। भू वैज्ञानिकों का मानना है कि स्पिति घाटी का निर्माण लाखों वर्षों पहले यूरेशियन और भारतीय प्लेटों के टकराने से हुआ था। जिसकी वजह से टेथस का समुद्र खत्म हो गया। ये जीवाश्म उस काल के समुद्री जीवों के बताए जाते हैं।
संकेत 2 : इस इलाके तक पहुँचना इतना सरल नहीं। अव्वल तो यहाँ पहुँचने के सिर्फ दो रास्ते हैं और वो भी ऍसे कि साल में आधा समय बंद रहते हैं। इसलिए इस इलाके की जनसंख्या बेहद कम है। कम पर कितनी कम ? अब चौंकिएगा नहीं प्रति वर्ग किमी. पाँच से भी कम!
स्पिति तक पहुँचने के दो रास्ते हैं एक शिमला से होकर रामपुर होते हुए किन्नौर जिले से होते हुए स्पिति घाटी में प्रवेश करता है और करीब ४१२ किमी लंबा है। ये रास्ता आम तौर पर सालों भर खुला रहता है। पर मनाली होकर स्पिति जाने वाला रास्ता जून से अक्टूबर तक ही खुला रहता है। अत्याधिक ऊँचाई और ठंड वाले इस इलाके की जनसंख्या प्रति वर्ग किमी मात्र दो है।
संकेत 3 :दूसरे चित्र में दिख रहे बौद्ध मंदिर का निर्माण सातवीं और नौवीं शताब्दी के बीच हुआ। सत्रहवीं शताब्दी में ये जगह पूरे इलाके की राजधानी बन गई।छायाकार : नेविल झावेरी
ये जगह है धनखर (Dhankhar) पहले इसे (धक + खर : धकखर) के नाम से बुलाया जाता था जिसका अर्थ था चोटी पर स्थित किला। आज इस किले की अवस्था जर्जर हो गई है। इसके नीचे धनखर का बौद्ध मंदिर है जिसका शुमार इस इलाके के प्राचीनतम बौद्ध मंदिर में होता है। ऊपर चित्र में सबसे बाँयी तरफ की इमारत बौद्ध मंदिर का है जबकि सबसे ऊपर किला नज़र आ रहा है। धनखर में ४५१७ मीटर की ऊँचाई पर एक झील भी है।
(इस चित्र के छायाकार हैं इजरायल के युवल नामन ।)
चित्र देख लिया आपने तो अब ये बताइए कि ये शिल्प हमारे किस अराध्य देव का है और जहाँ ये शिल्प अवस्थित है वो जगह कौन सी है?
सही उत्तर था : ये भगवान शिव हैं और इस जगह का नाम उनाकोटि (Unakoti) है। वैसे उनाकोटि का शाब्दिक अर्थ है एक करोड़ से एक कम। अब आएँ संकेतों की तरफ जो इस प्रश्न के उत्तर तक पहुँचने के लिए दिए गए थे...
संकेत 1 : कुछ इतिहासकार लगभग १० मीटर ऊँचे इस शिल्प को सातवीं से नवीं शताब्दी के आस पास का बताते हैं जबकि कुछ का मत है कि इस इलाके में पाए जाने वाले कुछ शिल्प बारहवीं शताब्दी के बाद बनें।
उनाकोटी (Unakoti) में दो तरह की मूर्तियाँ हैं। एक जो चट्टानों को काटकर उकेरी गई हैं और दूसरे पत्थर की मूर्तियाँ। यहाँ चट्टानों पर उकेरी गई छवियों में सबसे सुंदर शिव की ये छवि है जिसे उनाकोटि काल भैरव (Unakoti Kaal Bhairav) के नाम से जाना चाता है। करीब ३० फीट ऊँचे इस शिल्प के ऊपर १० फीट का एक मुकुट है जो चित्र में दिखाई नहीं दे रहा। उन दोनों की बगल में शेर पर सवार देवी दुर्गा और दूसरी और दूसरी तरफ संभवतः देवी गंगा की छवियाँ हैं। शिल्प के निचले सिरे पर नंदी बैल का जमीन में आधा धँसा हुआ शिल्प भी है। इसके आलावा यहाँ गणेश, हनुमान और भगवान सूर्य के भी खूबसूरत शिल्प हैं। इतिहासकार मानते हैं कि भिन्न भिन्न मूर्तियों से भरा पूरा ये इलाका करीब ९ से १२ वीं शताब्दी (9th-12th Century) के बीच पाल राजाओं के शासनकाल में बना। यहाँ के शिल्प में शैव कला के आलावा तंत्रिक, शक्ति और हठ योगियों की कला से भी प्रभावित माना गया है।
संकेत 2 : जिस पहाड़ी पर ये शिल्प बनाया गया है वो भारत की अंतर्राष्ट्रीय सीमा से बेहद करीब है। (चलिए आपकी मुश्किल थोड़ी कम कर देते हैं । आपको पूर्वी भारत का रुख करना होगा़। यानि नेपाल, भूटान, चीन, बर्मा और बाँगला देश में से किसी एक के करीब।)
उनाकोटी बाँगलादेश की सीमा से महज कुछ किमी दूरी पर है। उनाकोटी पहुँचने के लिए आपको कोलकाता से त्रिपुरा की राजधानी अगरत्तला (Agartala) जाना होगा। वहाँ से उत्तरी त्रिपुरा (North Tripura) का रुख करना होगा। अगरत्तला से कैलाश ह्वार (Kailsahwar) मात्र १८० किमी दूर है और बस या कार से यहाँ पहुँचा जा सकता है। उनाकोटी का अंतिम आठ किमी का रास्ता घने जंगलों के बीच से होकर जाता है।
इन शिल्पों को किस कलाकार ने बनाया और क्यों बनाया ये अभी तक इतिहासकारों के लिए गूढ़ प्रश्न बना हुआ है। पर इस स्थान के बारे में अनेकों किवदंतियाँ हैं। यहाँ की जनजातियों में प्रचलित कथा को माने तो इन शिल्पों की रचना कल्लू कहार (Kallu Kahaar) ने की थी जो शिव और पार्वती का परम भक्त था और उनके साथ ही कैलाश पर्वत जाना चाहता था। देवी पार्वती कल्लू की भक्ति से प्रसन्न थीं और उसे साथ ले जाने के लिए उन्होंने शिव जी से अनुरोध किया। शिव जी ने कल्लू से पीछा छुड़ाने की गरज से शर्त रखी कि तुम्हें मेरे साथ चलने के लिए एक रात में एक करोड़ प्रतिमाएँ बनानी होंगी। कहते हैं कल्लू ने इस कार्य में पूरी जान लगा दी पर एक करोड़ से एक मूर्ति कम बना पाया और शिव भगवान उसे छोड़कर चलते बने। इसीलिए इस जगह का नाम उनाकोटि (एक करोड़ से एक कम) पड़ा।
संकेत 4 : चलिए आज एक बात और बताते हैं इस जगह के बारे में। अक्सर हम अपने बच्चों को सुबह उठने की सलाह देते है। अगर प्राचीन कथाओं की मानें तो ये जगह अपने अस्तित्व में ही नहीं आई होती अगर हमारे देवी देवता इस सलाह को मान उस दिन सुबह उठ गए होते :)
उनाकोटी के बनने के बारे में सबसे प्रचलित कथा और भी मज़ेदार है। शिव जी के साथ एक करोड़ देवी देवताओं का काफ़िला काशी की तरफ़ जा रहा था। यहाँ से गुजरते वक़्त रात हो आई तो भगवान शिव ने सारे अन्य देवी देवताओं को यहीं रात्रि विश्राम करने को कहा और साथ में एक सख्त हिदायत भी दी कि सुबह पौ फटने के पहले ही हम सब यह जगह छोड़ देंगे। सुबह जब भगवन तैयार हुए तो देखा कि सारे देवता गण सोए पड़े हैं। अब भगवन का मिज़ाज़ तो सर्वविदित है ..हो गए वो आगबबूला और सारे देवों को पत्थर का बना कर काशी की ओर बढ़ चले और फलस्वरूप यहाँ एक करोड़ से एक कम मूर्तियाँ रह गईं।