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शुक्रवार, 15 नवंबर 2013

चित्र पहेली 22 : ये चित्र किन धार्मिक प्रतीकों के प्राकृतिक निरूपण हैं? (Identify the religious symbols hidden in these shapes)

बचपन से इतिहास पढ़ते हुए हमने देखा है कि किस तरह प्रकृति के विविध रूपों की आदि काल से आराधना की गई। अग्नि, वायु, वर्षा, धरती जैसे प्रकृति के अंगों को मानवजाति ने देवता के रूप में पूजना शुरु कर दिया। कहने का मतलब ये कि धर्म और प्रकृति का संबंध आदि काल से अटूट रहा है। इस संबंध को फिर से उजागर कर रही है आज की चित्र पहेली। फर्क सिर्फ इतना है कि जिन प्राकृतिक रूपों से धर्म के प्रतीक चिन्हों का निरूपण करने की कोशिश की गई है वे मानव निर्मित हैं। आपको बस इतना बताना है कि ये रूप विभिन्न धर्मों के किस प्रतीक को दर्शा रहे हैं?

 चित्र ‍1

संकेत 1 : जैसा कि अंतर सोहिल ने अपने जवाब में लिखा है ये प्रतीक सिख धर्म से जुड़ा हुआ है।
संकेत 2 : ये चिन्ह गुरु गोविंद सिंह की प्रस्तावित धार्मिक विचारधारा का प्रतिरूप है।
संकेत 3 : चित्र का संबंध सिखों द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले शस्त्रों से है।  
चित्र ‍2

संकेत 1 : ये आकृति बौद्ध धर्म से जुड़ी हुई है।
संकेत 2 : इसका संबंध गौतम बुद्ध द्वारा दी गई मुख्य शिक्षाओं से है।
संकेत 3 : बुद्ध का कहना था कि चत्र में निरूपित विचारधारा के पालन से जीवन में दुखों का अंत होता है और आत्मज्ञान की प्राप्ति होती है।
संकेत तो आपको मिल गए। अब इन संकेतों के मद्देनज़र इन चित्रों को फिर से देखिए। शायद वे आपको सही उत्तर तक पहुँचाने के लिए काफी हों। 
इस पहेली का उत्तर सोमवार को इस ब्लॉग की अगली प्रविष्टि में दिया जाएगा।

मंगलवार, 27 नवंबर 2012

चित्र पहेली 21 : क्या आप हिमालय प्रेमी हैं? तो फिर पहचानिए इस चोटी को !

हिल स्टेशन तो हम सभी कभी ना कभी जाते ही रहते हैं। किसी भी पर्वतीय स्थल में जाइए वहाँ आपको देखने की जगहों की सूची में भांति भांति के View Points जरूर मिल जाते हैं। कम ऊँचाई वाली जगहों में अक्सर इन विशेष बिंदुओं से उस जगह का सूर्योदय (Sunrise Point) या सूर्यास्त (Sunset Point) देखा जा सकता है। 

पर ज्यादा ऊँचाई वाले पर्वतीय स्थलों में हमारी रुचि सूर्योदय या सूर्यास्त देखने के आलावा हिमआच्छादित पर्वतीय शिखरों को देखने की भी होती है। और अगर आपकी जानकारी इतनी हो कि आप बर्फ से ढकी इन चोटियों को देख कर ही पहचान लें तो बात ही क्या ! वैसे हिमालय पर्वत श्रृंखला से सबसे करीबी सामना तो उत्तरी सिक्किम की ओर जाते वक़्त हुआ था। पर पर्वतीय चोटियों को पहचानने का चस्का पिछले साल कौसानी जाने पर हुआ। इसलिए पिछले महिने जब Blogger's Conference के सिलसिले में   मसूरी के निकट कानाताल गया तो इस बार भी ये कोशिश जारी रही। कानाताल (Kanatal) और फिर टिहरी ( Tihri) जाते वक़्त चोटियाँ तो खूब दिखीं पर उनके नाम जानने में ज्यादा सफलता हाथ नहीं लगी। कई बार तो स्थानीय लोगों ने एक ही चोटी के अलग अलग नाम बता कर और संशय में डाल दिया।

ख़ैर मैंने चित्र खूब खींचे और वापस लौटकर नेट पर छानबीन की तो एक एक कर सारे खींचे चित्रों में दिख रहे पर्वत शिखरों के नाम के पीछे से पर्दा उठता गया। 

गढ़वाल हिमालय की इन खूबसूरत चोटियों के बारे में तो अगली पोस्ट में आप सबको विस्तार से बताऊँगा पर यदि आप अपने आप को हिमालय प्रेमी मानते हों तो ज़रा ये तो बताइए कि नीचे दिख रहे तीखी ढाल और घुमावदार आकार वाले शिखर का नाम क्या है ? विस्तार से उत्तर जानने के लिए यहाँ क्लिक करें।


मुसाफिर हूँ यारों हिंदी का एक यात्रा ब्लॉग

गुरुवार, 22 मार्च 2012

चित्र पहेली 20 : क्या आप इस झील में डुबकी लगाना चाहेंगे ?

चलिए आज राजस्थान की सैर से थोड़ा विराम लेते हैं और दिखाते हैं आपको ऐसा नज़ारा जिसे देखकर आप एकबारगी ठिठक जरूर जाएँगे ? दरअसल संसार में ईश्वर की दी हुई ये प्रकृति इतने विविध रूप रंगों में मौजूद है कि जितना भी इसे खँगाला जाए ये हमें उतना ही विस्मित करती चलती है।

झीलें तो आपने कई देखी होंगी और बहुतों में नौका विहार का भी आनंद उठाया होगा। पर इस झील में नौकाएँ नहीं चलती। और इसके आस पास की हरियाली देखकर कहीं मन इसमें डुबकी लगाने का कर गया तब तो भगवान ही मालिक है आपका। इस झील का ठीक ठीक तो पता नहीं पर ये और इसके पास की ऍसी झीलों की गहराई दो सौ मीटर से एक किमी तक है जनाब।
 
(चित्र के छायाकार का नाम उत्तर के साथ बताया जाएगा )

चित्र तो देख लिया आपने क्या आप अनुमान लगा सकते हैं कि ये नज़ारा किस देश का है और इस तरह की झील बनी कैसे होगी ? प्रश्न को थोड़ा आसान बनाने के लिए एक संकेत हाज़िर है। वो ये कि ये देश अपने एक तानाशाह की वज़ह से वर्षों तक सुर्खियों में रहा था।

तो देखें किसका तीर सबसे पहले निशाने पर लगता है। हमेशा की तरह आपके जवाब माडरेशन में रखें जाएँगे।

सोमवार, 29 अगस्त 2011

चित्र पहेली 19 : ये किस जीव के अंडे हैं ?

चित्र पहेलियों की कड़ियों में बहुत पहले समुद्र तट के किनारे रात के समय होती कछुओं की दौड़ दिखाई थी और पूछा था आप सब से कि ये दौड़ आखिर किस खुशी में है? बाद में आपको बताया था कि भारत के पूर्वी तटों पर ये दौड़ कछुओं के प्रजनन काल में अक्सर देखने को मिलती है। पर आज की पहेली के चित्र में माज़रा कुछ उल्टा है। चित्र में एक समुद्र तट दिख रहा है और उसके साथ दिख रही हैं कुछ अंडाकार आकृतियाँ!



ये आकृतियाँ आगर वास्तव में किसी बड़े जीव के अंडे हैं तो फिर ये समझ नहीं आता कि इस निर्जन से दिखते तट पर उन्हें बिना छुपाए यूँ तट पर क्यूँ छोड़ दिया गया है? आखिर कौन सा जीव ऐसा कर सकता है ? कम से कम कछुए तो ऐसा नहीं करते। हो सकता है कि आप इन्हें अंडे मानने से इनकार दें। फिर भी सवाल तो वही रह जाता है ना कि आखिर ये हैं क्या ? तो दिमागी घोड़े दौड़ाइए या फिर अगर फिर भी जवाब ना समझ आए तो कीजिए अगली पोस्ट का इंतज़ार। तब तक आपके जवाब हमेशा की तरह माडरेशन में रखे जाएँगे।

सोमवार, 4 जुलाई 2011

चित्र पहेली 18 : क्या आपने कभी लगाए हैं सड़क पर 180 डिग्री के इतने चक्कर?

गर्मी की छुट्टियों में पहाड़ों पर जाने की चाहत किसे नहीं होती?  शहर की चिल्ल पों से दूर पहाड़ों का शांत स्निग्ध हरा भरा वातावरण किसी भी प्रकृतिप्रेमी को अपनी ओर हमेशा से खींचता रहा है। पर पहाड़ों पर जाने से कुछ लोग हिचकिचाते भी हैं, खासकर वो जिन्हें घुमावदार रास्तों में सिर दर्द और वमन की शिकायत हो। पर अगर पहाड़ों का आनंद लेना है तो इसे बर्दाश्त करने के अलावा कोई चारा भी नहीं है। वैसे कई पर्वतीय स्थलों पर घुमावदार रास्तों से ज्यादा तकलीफ़ नहीं होती क्यूँकि वहाँ घुमावों का का टर्निंग रेडियस ज्यादा होता है। पर कभी कभी जब सड़क एक सौ अस्सी डिग्री का घुमाव लेती हो तो चलाने वालों और सफ़र करने वालों के लिए मुश्किलें बढ़ जाती है।

मुझे याद आता है देहरादून से मसूरी जाते वक़्त दो तीन जगह ऐसे ही घुमाव मिलते थे ।पर ज़रा सोचिए अगर एकदम से ऊँचाई प्राप्त करने के लिए आपको एक सौ अस्सी डिग्री के इतने सारे चक्कर लगाने पड़े तो क्या आपकी एवोमीन काम करेगी?। आज की चित्र पहेली आपको ऐसी ही एक सड़क का चित्र दिखा रही है जो पाँच सौ मीटर की ऊँचाई पाप्त करने के लिए कई बार घूमती है। आज की इस चित्र पहेली नें आपको बताना है कि ये जगह किस नाम से मशहूर है और नीचे बहती नदी का क्या नाम है ?

(इस चित्र के छायाकार का नाम उत्तर के साथ बताया जाएगा।)
जिन्होंने इस रास्ते से सफ़र किया होगा वो तो सहजता से ये बता पाएँगे। आपके जवाब माडरेशन में रखे जाएँगे। अगली पोस्ट में आपके उत्तर के साथ ऍसी ही कुछ दिलचस्प सड़कों की बात करेंगे। तब तक आपको छोड़ते हैं इस चित्र पहेली के चक्करों में...

पुनःश्च  : सही जवाब दिया गजेन्द्र सिंह जी ने। सबसे पहले और प्रश्न के दोनों भागों का एकदम सही उत्तर बताने के लिए आपको हार्दिक बधाई़ !

सोमवार, 11 अप्रैल 2011

चित्र पहेली 17 : बताइए यहाँ इस शब्द का मतलब क्या है ?

आज की चित्र पहेली का हल ढूँढने के लिए सिर्फ आपको एक शब्द पर ध्यान देने की जरूरत है क्यूँकि उत्तर भाषायी उलटफेर में छुपा है।




रत्नागिरि से ललितगिरी की ओर जाते समय रास्ते में एक तख्ती दिखाई दी। तख्ती पर हिंदी में लिखा था 'धावा' और संकेत आगे की तरफ़ का था। अब हम तो सफ़र पर जा रहे थे ना कि किसी पर आक्रमण करने :)। पर तुरंत ही उस शब्द के अंग्रेजी रूपांतरण पर नज़र गई तो सारा माज़रा समझ में आ गया। पर क्या आपकी समझ में आया कि ये शब्द किस बात की ओर इंगित कर रहा है?

 पुनःश्च : आप में से कुछ लोग जो अपनी टिप्पणियाँ नहीं देख पा रहे हैं चिंतित मत हों। अगर आप की टिप्पणी नहीं दिख रही तो इसका मतलब है कि आप सही जवाब के पास हैं या आपने सही उत्तर दे दिया है। चित्र पहेली का हल तेरह अप्रैल की शाम को बताया जाएगा।

बुधवार, 29 सितंबर 2010

चित्र पहेली 16 : जब भारतीय राजा ने बनाया एक यूरोपीय शैली का महल !

अच्छा आज जिस इमारत के बारे में आपसे पूछने जा रहा हूँ उसे देखकर सिर्फ इतना बताइएगा कि क्या वो भारत के किसी कोने में बनी लगती है? अब मैंने ऐसा सवाल कर दिया है तो आप जरूर मान लेंगे कि ये हमारे देश में ही कहीं होगी। वैसे भी जिस भवन के अहाते में एम्बेसडर और मारुति ओमनी जैसी कारें खड़ी दिख जाएँ तो वो जगह भारत के आलावा और कहाँ हो सकती है? पर अनायास देखने में ये कोई यूरोपीय इमारत नहीं लगती आपको ?


आपको आज ये बताना है कि इस इमारत को किसने बनाया और ये कहाँ स्थित है? उत्तर तक पहुँचने के लिए संकेत हाज़िर हैं...


संकेत 1 :जिस राजा ने इस महल का निर्माण कार्य कराया उसके पुत्र ने भारतीय उपमहाद्वीप के इतिहास पर अमिट छाप छोड़ी है।

संकेत 2 : ये भवन जिस नदी के किनारे बसा है उसके उफनते पानी ने इस साल भारी तबाही मचाई है।


संकेत 3 : ये स्थान दिल्ली से लगभग छः सौ किमी की दूरी पर है।।

गुरुवार, 22 जुलाई 2010

चित्र पहेली 15 : क्या आपने पहले कभी देखा है इतना ख़तरनाक रेलवे स्टेशन ?

अपना शहर या कस्बा किसे अच्छा नहीं लगता। पर कभी यूँ भी होता है कि आप किसी ऐसी जगह से आते हैं जिसका नाम अटपटा सा हो। अक्सर ऐसे कस्बे से आने वाले लोग अपने कस्बों का नाम लेने से झिझकते हैं।

अब उदहारण के लिए अपने यहाँ काम करने वाली से एक बार जब मैंने ये पूछा कि तुम्हारे गाँव का नाम क्या है तो कई दिनों तक उसने ये प्रश्न टाल दिया। बाद में मुझे पता चला कि असल में उसके गाँव का नाम 'कुरकुरा' है इसलिए वो मुझे बताने में शर्मा रही है। वैसे एक बात ये भी है कि भारत में नामों की इतनी विविधता है कि एक प्रदेश वालों को अक्सर दूसरे प्रदेशों में जाने पर अधिकांश नाम अटपटे लगते हैं।

पर जनाब क्या आप जानते हैं कि भारत में एक स्टेशन ऐसा भी है जो अपने बाशिंदों को यूँ ही 'गुंडा' बना देता है। चौंक गए, जाड़े की उस सुबह को मैं भी चौंक गया था जब बाहर की हवा खाने डिब्बे के दरवाजे तक पहुँचा था और सामने स्टेशन के नाम की जगह ये लिखा दिखाई दे गया था। अब आप ही बताइए क्या यहाँ के बाशिंदे कभी अपने कस्बे का नाम बताने की ज़ुर्रत कर सकेंगे ?

(चित्र को बड़ा करने के लिए उसके ऊपर क्लिक करें।)

तो आज की चित्र पहेली में आपको बताना ये है कि ये स्टेशन भारत के किस रेलमार्ग पर स्थित है या सिर्फ इतना ही बता दीजिए कि इसके आस पास का शहर कौन सा है?

मुझे भी आज तक इस नाम के पीछे के रहस्य का पता नहीं चल सका है। तो जब तक आप इस प्रश्न का जवाब तालाशें मैं आपको इसी मार्ग से अपने अगले यात्रा वृत्तांत के गन्तव्य तक ले चलने की तैयारी करता हूँ। हमेशा की तरह आपके जवाब माडरेशन में रहेंगे।

अपडेट 31.7.10
इस चित्र पहेली के जवाब के सबसे पहले नज़दीक जाने का श्रेय जाता है शाह नवाज़ जी को। पर ये स्टेशन किस रेलवेलाइन और किस स्टेशन के पास है ये बताने में सफ़ल रहे इस पहेली के विजेता नीरज जाट। नीरज को बहुत बहुत बधाई। बहुत लोगों ने डुमराँव के पास की जिस जगह का उल्लेख किया है उसका नाम है गुंडा चौक और वो जगह सड़क मार्ग में पड़ती है। आप सभी का अनुमान लगाने के लिए आभार !

रविवार, 30 मई 2010

चित्र पहेली 14 : क्या आपने देखी है हरे - हरे गोलाकार घेरों से भरी ऐसी झील ?

जब मैंने आपके सामने केरल यात्रा का विवरण पेश किया था तो थेक्कड़ी के बारे में लिखते हुए पेरियार झील का भी उल्लेख किया था। पेरियार झील में नौका विहार करते हुए सबसे अचंभित करते हैं, झील के बीचों बीच निकले पेड़ों के निर्जीव तने जो पेरियार को उसकी पहचान देते हैं। ऐसा ही कुछ दृश्य अरुणाचल की माधुरी झील में भी दिखता है। पर जहाँ पेरियार में बाँध बनने से हुए जलमग्न जंगलों की वजह से ऐसा दृश्य उपस्थित हुआ वहीं माधुरी झील में यह स्थिति कालांतर में हुए भूकंप व भू स्खलन की वज़ह से हुई। पर आज की चित्र पहेली जिस झील के बारे में है उसका स्वरूप इन दोनों झीलों से सर्वथा भिन्न है।

अब आप इस चित्र को गौर से देखिए। पार्श्व की पहाड़ी के चारों ओर फैली झील में हरे रंग के इन गोलाकार घेरों को देख कर आप जरूर विस्मित हुए होंगे। मैं भी हुआ था और इसी वजह से इस झील को मैंने आज की चित्र पहेली के लिए चुना।


आपको बताना है कि इस झील का नाम क्या है और इन गोल घेरों का रहस्य क्या है?

अगली पोस्ट में आपके जवाबों के साथ आपको बताऊँगा इस झील के बारे में। तब तक हमेशा की तरह आपके जवाब माडरेशन में रखे जाएँगे...

शनिवार, 10 अप्रैल 2010

चित्र पहेली 13 : हैं ना ये अज़ीबोगरीब पेड़ पौधे ?

भगवन की बनाई ये प्रकृति भी निराली है। ऐसे ऐसे मंज़र दिखाती है कि देख कर दाँतो तले अंगुली दबा लेनी पड़ती है। धन्य हैं इस विशाल पृथ्वी की विचित्रताएँ ! इस बार की चित्र पहेली में मैं ऐसे ही कुछ अलग सी तसवीरें लेकर आया हूँ। हैं तो ये तसवीरें एक पेड़ और एक पौधे की पर यक़ीन मानिए इनकी छवि आपको हैरत में जरूर डाल देगी। आपको आज की इस चित्र पहेली में बस इतना बताना है कि इन्हें किस नाम से पुकारा जाता है?

ये पहली तसवीर देख रहे हैं आप ! इस अजीबोगरीब पेड़ को देख कर कहीं आपको कुकुरमुत्ते यानी Mushroom की याद तो नहीं आ रही? अगर आसमान से देखें तो पेड़ों का ये झुंड विशाल कुकुरमुत्तों के जैसा ही तो लगेगा, बस फर्क सिर्फ रंग का रहेगा यानि सफेद की जगह हरा। वहीं पेड़ों के इस झुंड को नीचे से देखने से ऐसा मालूम होता है जैसे गर्मी से बचने के लिए भगवन ने अपने लिए ये छतरियाँ बना ली हों।

चित्र छायाकार : जेन वानड्रॉप
पर जहाँ ऐसे पेड़ पाए जाते हों वहाँ के पौधे क्या अनूठे नहीं होंगे। अब जरा इन लम्बोदर को देखिए। ढंग से मिट्टी तक नसीब नहीं पर इन चट्टानों के बीच तपती गर्मी में किस तरह अपना उदर यानि पेट फुलाकर बैठे हैं। पर ये मत सोचिएगा कि इस बेढंगे रूप वाले तने की शाखाओं से निकलते पुष्प भी वैसे ही होंगे। इस पौधे से निकलने वाले हल्के और गहरे गुलाबी रंग के फूल निहायत खूबसूरत होते हैं।

चित्र छायाकार : जेन वानड्रॉप

तो एक बार फिर से प्रश्न दुहरा दूँ। आपको आज की पहेली में बताना ये है कि इन विचित्र पेड़ पौधों के नाम क्या हैं। बाकी इनकी अन्य खासियतों के बारे में विस्तार से चर्चा करेंगे अगली पोस्ट में आपके जवाबों के साथ। आपके जवाब तब तक माडरेशन में रखे जाएँगे।

और हाँ चलते चलते एक बार फिर संवाद डॉट काम के प्रति आभार व्यक्त करूँगा कि इस चिट्ठे को यात्रा वृत्तांत श्रेणी के लिए निर्णायकों ने सर्वश्रेष्ठ चिट्ठे के रूप में चुना। मेरी आगे भी कोशिश रहेगी कि जहाँ तक हो सके अपने यात्रा संस्मरणों को रोचक ढंग से आप तक पहुँचाने का सिलसिला जारी रखूँ।

शनिवार, 27 मार्च 2010

चित्र पहेली 12 का उत्तर : आइए जानें इस रसातल की सच्चाई..

पिछली चित्र पहेली के उत्तर में तरह-तरह की प्रतिक्रियाएँ आयीं। कुछ लोगों को लगा की ये चित्र कंप्यूटर की कलाकारी है, कुछ ने देखते ही हथियार डाल दिए पर तीन लोगों के जवाब एकदम सही निकले। तो आइए पहले जानते हैं इस रसातल के पीछे छुपे रहस्य के बारे में।

चित्र सौजन्य


दरअसल ये जगह है मोंटीसेलो डैम (Monticello Dam) जो कि कैलीफोर्निया में स्थित है। इस रसातल को वहाँ के लोग ग्लोरी होल (Glory Hole) के नाम से बुलाते हैं। तो आखिर क्या है ये ग्लोरी होल? ग्लोरी होल कंक्रीट का बना एक विशाल छिद्र है जिसका प्रयोग मोंटीसेलो डैम का जलस्तर बढ़ने पर डैम को तेजी से खाली करने के लिए किया जाता है। चित्र पहेली में जो पानी में भयंकर भँवर बना दिखाई पड़ा था वो इस छिद्र से नीचे कंक्रीट टनल के ज़रिए जाते पानी की तसवीर है।

93 मीटर गहरे और 312 मीटर लंबे मोंटीसेलो डैम को 1953 से 1957 के बीच बनाया गया था। इस डैम के एक तरफ पानी रोकने से जिस झील का निर्माण हुआ उसका नाम बेरीयेस्सा झील (Berryessa Lake) है। ये झील कैलीफोर्निया की दूसरी सबसे बड़ी झील है। ग्लोरी होल से 1370 घन मीटर पानी मात्र एक सेकेंड में छोड़ा जा सकता है। इस कंक्रीट छिद्र के मुँह का व्यास 27 मीटर है जो नीचे जाकर और कम हो जाता है। पिछली पोस्ट पर संजय भाई इसमें झाँकने की बात कर रहे थे पर पानी खाली होते समय इस छिद्र के पास फटकने की भी मनाही है। छिद्र से सीधे नीचे जाता पानी डैम की तलहटी से कुछ यूँ निकलता है..

(चित्र सौजन्य: विकीपीडिया)

गर्मी के दिनों में जब झील का जलस्तर कम हो जाता है तो ये कंक्रीट टनल बाहर से कुछ इस तरह की दिखाई देती है।


(चित्र सौजन्य)

पानी नहीं तो कोई डर भी नहीं। नतीजा ये कि इस मौसम में इसके निकास के अंदर घुसकर साइकिल सवार बाइकिंग का भी मजा लेते हैं।

वैसे आप के मन में ये विचार जरूर आ रहा होगा कि गलती से अगर कोई इस छिद्र के सामने बहता हुआ आ गया तो उसका क्या हाल होगा। वास्तव में ऍसा शायद आज तक नहीं हुआ लेकिन वर्ष 2004 में लेखक Mark Travais ने एक उपन्यास लिखा था Intent to Defraud जिसकी नायिका जेनिफर की मृत्यु इसी छिद्र में डूबने से होती है। उपन्यास की शुरुआत में ही इस छिद्र के पास जाती युवती के डूबने का रोंगटे खड़ा कर देने वाला विवरण है। इसे आप यहाँ से पढ़ सकते हैं। गिरते पानी की धार को महसूस करना चाहें तो ये वीडियो देखें।





इस पहेली का सबसे पहले सही हल बताया सीमा गुप्ता जी ने। सीमा गुप्ता जी को हार्दिक बधाई। समीर लाल और अभिषेक ओझा भी सही जवाब तक पहुँचे पर थोड़ी देर से। बाकी लोगों को भी अनुमान लगाने के लिए हार्दिक आभार।

बुधवार, 24 मार्च 2010

चित्र पहेली 12 : कभी देखा है आपने ऐसा रसातल ?

गली मोहल्ले के झगड़े तो आप ने बहुत सुने और देखे होगें और कइयों में खुद भाग भी लिया होगा :)। अक्सर गुस्से में हम लोग कहते हैं...... "ज्यादा चूँ चपड़ की तो रसातल में पहुँचा दूँगा"। पर ऐसा कोई रसातल देखा है आपने ? चलिए आज की चित्र पहेली में मिलाते हैं आपको ऐसे ही एक रसातल से। और अगर मैं ये कहूँ कि ये रसातल जमीन की गहराइयों की बजाए आपको पानी की गहराइयों में ले जाता है तो अचरज होगा ना।

चित्र छायाकार पी सी वार्ड
तो आइए देखिए इस चित्र को और पहचानिए कि ये दृश्य कहाँ का है और इस रसातल का नाम क्या है?

आपके जवाब फिलहाल माडरेशन में रखे जाएँगे। वैसे जब तक आप इस जवाब की तलाश करें मैं लौटता हूँ इस रसातल से जुड़ी कुछ रोचक जानकारियों के साथ।

(पुनःश्च : सही जवाब और सही हल बताने वालों का नाम 27.3.10 को दिन में तीन बजे नई पोस्ट में बताया जाएगा।)

मंगलवार, 29 दिसंबर 2009

चित्र पहेली 11 का उत्तर : वो सुनहरा पर्वत था सरचू का !

पिछली पहेली में प्रश्न ‌गहरे नीले आकाश के ठीक नीचे सूर्य के प्रकाश से दमकते इन सुनहरे पर्वतों की पहचान करने का था। बताना ये था कि ये पर्वत भारत के किस इलाके में स्थित हैं? तो आइए विस्तार से जानते हैं इस पहेली के उत्तर यानि मनाली लेह राजमार्ग के ठीक बीचों बीच स्थित सरचू (Sarchu) या स्थानीय भाषा में सर भूम चूँ के बारे में।

कुछ महिने पहले जब हिमाचल प्रदेश में स्पिति के एक गाँव के बारे में आप को बताया था तब इस मार्ग की भी बात हुई थी। दरअसल मनाली से रोहतांग जाने वाले रास्ते में ग्राम्फू (Gramphoo) के पास ये सड़क एक दोराहे से मिलती है जिसमें एक लाहौल के मुख्यालय केलांग (Keylong) होते हुए लेह की ओर चला जाता है जबकि दूसरा स्पिति के मुख्यालय काज़ा (Kaza) होते हुए किन्नौर में प्रवेश कर जाता है।

मनाली से लेह तक जाने का मार्ग करीब 479 किमी लंबा है यानि अत्याधिक ऊँचाई वाले इन पहाड़ी घुमावदार रास्तों का सफ़र एक दिन में तय करना मुश्किल है। इसIलिए यात्री अपना सफ़र दो दिनों में पूरा करते हैं। अब इस सुनसान इलाके में इंसान तक को ढूँढना मुश्किल है तो फिर रुके तो रुके कहाँ?




(इस चित्र के छायाकार हैं हालैंड के Bram Bos)

यात्रियों की इसी आवश्यकता को ध्यान में रख कर सारचू पर्वत के सामने खुले आकाश के नीचे टेंट लगाए जाते हैं जहाँ यात्री अपनी रात काटते हैं। वनस्पति विहीन ये पर्वत जाड़े में बर्फ की चादर से ढके रहते हैं। बर्फ के निरंतर नीचे खिसकने से इन पर्वतों की ढाल इस क़दर अपरदित हो गई हे कि जब खुले आकाश में तेज धूप इन पर पड़ती है तो ये सुनहरी आभा से दीप्त हो उठते हैं।







संकेत 1 : ये जगह समुद्र तल से करीब ४००० मीटर से ज्यादा ऊंची है।
4000 मीटर की ऊँचाई हिमालय पर्वत माला और में ही हो सकती है और भूरे पहाड़ लद्दाख की पहचान है, इन दोनों बातों का अंदाजा आप में से बहुतों ने लगा लिया था। अब रहा सारचू तो वो समुद्र तट से करीब 4290 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है।

संकेत 2 ये भारत के दो राज्यों की सीमा पर स्थित है।
संकेत 3 : अक्सर मुसाफ़िर इस जगह पर रात बिताने को बाध्य रहते हैं वो अलग बात है कि यहाँ रात जागती आँखों से ही बितानी पड़ती है।

एक बार ये अनुमान लग जाए कि ये लेह मनाली राजमार्ग पर खींची गई तसवीर है तो फिर उत्तर तक पहुँचने के लिए दूसरे और तीसरे संकेत काफी थे। वैसे तो लोग सारचू के आलावा केलांग और जिस्पा (Jispa) में रुकते हैं पर जैसा कि मानचित्र से स्पष्ट है, इनमें से सारचू ही एक ऍसी जगह है जो हिमाचल प्रदेश और जम्मू कश्मीर की सीमा पर स्थित है।
सारचू मनाली से 222 और लेह से 257 किमी दूर है यानि मनाली (Manali) और लेह (Leh) के लगभग बीच में स्थित है। यहाँ तक जाने का रास्ता सिर्फ जून से सितंबर तक खुला रहता है। ये पूरा मार्ग संसार के कुछ उच्चतम दर्रों से होकर गुजरता है। इनमें बरालाचा ला (Baralacha La) 4,892 m और लाचलुंग दर्रा (Lachulung La) 5,059 m ऊँचाई पर है। ये इलाका जितना देखने में अलौकिक है उतना ही दुर्गम भी। इस ऊँचाई पर हाई एल्टिट्यूड सिकनेस (High Altitude Sickness) आम है और इसी वज़ह से सारचू में रात सो कर नहीं बल्कि जाग जाग कर ही बितानी पड़ती है।



इस बार की पहेली के सही जवाब के सबसे निकट पहुँचने का श्रेय मृदुला को जाता है। मृदुला को हार्दिक बधाई। बाकी लोगों को अनुमान लगाने के लिए धन्यवाद।
मुसाफ़िर हूँ यारों के पाठकों को आने वाले नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ। जनवरी के महिने पर इस चिट्ठे पर आप सब को ले चलेंगे केरल की यात्रा पर...

मंगलवार, 22 दिसंबर 2009

चित्र पहेली 11 : जब गहरा नीला आसमान भी फीका पड़ जाए पर्वत की इस सुनहरी आभा से !

जब रास्ता सुनसान हो। दूर दूर तक दरख्तों का नामोनिशान ना हो। गहरे नीले आसमान की खूबसूरती के साथ हो ठिठुरा देनी वाली अत्यंत सर्द हवा! ऍसे में अगर आप के सामने एक सुनहरा पहाड़ आकर खड़ा हो जाए तो। बस प्रकृति की इस लीला को देख कर आप निःशब्द ही तो रह जाएँगे। तो आज की चित्र पहेली में आपको ऍसे ही एक पर्वत की झांकी दिखाई जा रही हैं। जो ऐसी ही एक डगर पर चलते चलते अचानक से सामने आ जाता है।



आपको ये बताना है कि ये कौन सी जगह है और भारत के किस इलाके में स्थित है ? सही उत्तर तक पहुँचने के लिए सदा की तरह तीन संकेत हाजिर हैं आपके सामने..



संकेत 1 : ये जगह समुद्र तल से करीब ४००० मीटर से ज्यादा ऊंची है।
संकेत 2 ये भारत के दो राज्यों की सीमा पर स्थित है।
संकेत 3 : अक्सर मुसाफ़िर इस जगह पर रात बिताने को बाध्य रहते हैं वो अलग बात है कि यहाँ रात जागती आँखों से ही बितानी पड़ती है।



पहेली का जवाब इसी चिट्ठे पर कुछ दिनों बाद आपको मिल जाएगा । तब तक आपके कमेंट माडरेशन में रहेंगे।

शनिवार, 21 नवंबर 2009

नए संकेतों के साथ चित्र पहेली 10 : बताइए क्या खास है शहर की इन इमारतों में ?

हर शहर का अपना एक चेहरा होता है। वैसे ये कहना ज्यादा सही होगा कि हर शहर अपने चेहरों में कई चेहरों को समाए रहता है। उसके किसी हिस्से में हमारा आधुनिक परिवेश से सामना होता है तो कहीं एकदम से उसका पुराना रूप सामने आ जाता है।

इन नए पुराने रूपों को सामने लाने में शहर की इमारतों का ख़ासा योगदान होता है। आज की ये चित्र पहेली ऍसी ही कुछ इमारतों से जुड़ी है। नीचे के चित्रों को देखिए। पहले चित्र में आपको एक जर्जर होती हवेली दिखाई पड़ेगी जबकि दूसरे में अंग्रेजों के ज़माने में बना कोई कार्यालय या जमींदार का मकान ! आप सोच रहे होंगे कि इन इमारतों में ऍसा खास क्या है? ऍसी इमारतें या इनसे मिलती जुलती खंडहर होती हवेलियाँ तो आपने पहले भी देखी होंगी।

तो बस यही तो दिमागी घोड़े आपको दौड़ाने हैं जनाब ! ये दोनों चित्र एक बात में बिल्कुल एक जैसे हैं यानि इनकी एक विशेषता इन्हें एक ही कोटि में ला खड़ा करती है। तो बताइए क्या है वो विशेषता ?




(ऊपर के दोनों चित्रों के छायाकार हैं मेरे सहकर्मी प्रताप कुमार गुहा)

पहेली का जवाब इसी चिट्ठे पर आपको मिल जाएगा। तब तक आपके कमेंट माडरेशन में रहेंगे।
पुनःश्च (20.11.09, 11.30 PM IST): आप सब में से बहुतों ने पहेली के हल तक पहुँचने के लिए संकेतों की माँग की थी। चलिए आपका काम कुछ आसान करने के लिए संकेत हाज़िर हैं

संकेत १ : ये दोनों चित्र पश्चिम बंगाल के एक शहर के हैं।

संकेत २ : चित्र में दिखाई देने वाली हवेलियाँ छायाकार को एक ही इलाके में दिखी थीं और उस इलाके में एक का नाम राजस्थान के एक ऐतिहासिक नगर के नाम पर है।

संकेत ३: खिड़कियों का तो आप सब ने बड़ी सूक्ष्मता से अध्ययन किया। पता नहीं आपके मन में ये खटका क्यूँ नहीं हुआ कि पहले चित्र में इतनी जर्जर हो चुकी हवेली के पहले तल्ले से झाड़फानूस की रौशनी कैसे आ रही है? है ना ये विडंबना।

वैसे उत्तर के साथ मैं आपको ले चलूँगा इन हवेलियों के अंदर :) ! तब तक चलिए थोड़ा विचार कर देखिए।
Update 21.11.09, 8.42 PM
संकेत ४: दूसरी इमारत की छत की रेलिंग कुछ अलग सी नहीं है क्या? इसके आलावा भी दूसरे चित्र को ध्यान से देखने पर आपको एक संकेत और दिखाई देगा।
पहेली का जवाब 24 November को 10.40 AM पर बताया जाएगा।

सोमवार, 2 नवंबर 2009

चित्र पहेली 9 : आइए जानते हैं कछुओं की दौड़ का रहस्य और कथा 'Doomed Eggs' की.!.




पिछली चित्र पहेली में प्रश्न था कि ये दौड़ क्यूँ और कहाँ हो रही है?




आपमें से अधिकतर लोगों के जवाब सही थे। पर आप में से एक ने ही बताया सही स्थान का नाम। दरअसल भितरकनिका से जुड़े इस हिस्से की बात मैंने इस पहेली की वज़ह से आप सबको अपने यात्रा वृत्तांत में नहीं बताई थी।

तो पहेली का सही हल देखने के साथ समुद्र तट पर कछुओं द्वारा अंडे देने से लेकर नन्हे बच्चों के वापस समुद्र में जाने की झाँकी देखिए यहाँ पर...

गुरुवार, 29 अक्टूबर 2009

चित्र पहेली 9: क्या कभी देखी है आपने कछुओं की दौड़ ?

इस भागमभाग भरी जिंदगी में ऊपर निकलने की रैट रेस (Rat Race) से तो आप भली भांति परिचित हैं। इंसानों की इस दौड़ को छोड़ दें तो घोड़ों,बैलों,ऊँटों और यहाँ तक की हाथियों की दौड़ भी शायद आपने देखी या सुनी होगी । पर कछुओं की रेस के बारे में आपका क्या ख्याल है? क्या कहा कछुए भी कभी दौड़ सकते हैं? हाँ भाई हम सब का बचपन तो खरगोश और कछुए की कहानी सैकड़ों बार सुनते बीता जिसे कछुआ जीतता तो है पर रेस कर के नहीं वरन अपनी धीमी पर निर्बाध चाल की बदौलत।

पर आजकल ज़माना बदल गया है। कम से कम इस चित्र से तो यही लगता है जिसमें कछुए आपस में एक दूसरे से आगे बढ़ने के लिए दौड़ लगा रहे हैं।


आज की इस चित्र पहेली में आपको बताना बस इतना है कि ये माज़रा क्या है और ये दृश्य भारत के किस समुद्री तट पर देखा जा सकता है? हमेशा की तरह आपके कमेंट मॉडरेशन में रखे जाएँगे। सही जवाब नहीं आने की सूरत में इसी पोस्ट पर संकेत दिए जाएँगे।


तो आइए विस्तार से समझा जाए इस दौड़ के पीछे की कहानी को
भितरकनिका के अपने यात्रा विवरण के आखिरी भाग में मैंने जिक्र किया था इकाकुला (Ekakula) के समुद्र तट का और ये भी कहा था कि सुबह सुबह अगर आप इकाकुला के तट से चहलक़दमी करना शुरु करें तो करीब एक सवा घंटा के बाद वैसे ही एक सुंदर समुद्री तट तक पहुँच जाएँगे। ये समुद्र तट कोई और नहीं गाहिरमाथा का समुद्र तट है जो कि विलुप्तप्राय ओलाइव रिडले प्रजाति के कछुओं द्वारा अंडा देने की एक प्रमुख जगह है। कहते हैं कि इस प्रजाति के कछुए यहाँ हजारों वर्षों से अंडे देते आ रहे हैं पर कुछ दशकों पहले ही इसके संरक्षण में लगे लोगों की इस पर नज़र पड़ी। १९९७ में गाहिरमाथा के इस इलाके को मेरीन शरण स्थल का नाम दिया गया।

अचरज की बात ये है कि ये कछुए श्रीलंका के तटीय इलाकों से लगभग हजार किमी की दूरी उत्तर दिशा में तय कर, अपने पूरे समूह के साथ गाहिरमाथा पहुँचते हैं। इनके गाहिरमाथा में आगमन नवंबर से शुरु हो जाता है और तीन चार महिने चलता है। गाहिरमाथा समुद्री तट तक पहुँचने के कुछ पूर्व ही सहवास की प्रक्रिया आरंभ हो जाती है। तट पर पहुँचते ही मादा कछुओं द्वारा अंडे देने की इच्छा इतनी तीव्र होती है कि हजारों की संख्या में तट पर सही स्थान ढूँढने के लिए समु्द्र से निकलकर तेजी से बढ़ती हैं। अक्सर ये समय रात्रि का होता है जैसा कि आप इस पहेली में पूछे गए चित्र में देख सकते हैं..



एक बार में एक मादा कछुआ 100 से 180 अंडे तक देती हैं। समु्द्र तट के बालू में करीब 45 cm का गढ़्ढा बनाने और अंडा दे कर वापस समुद्र में जाने में ये एक घंटे से भी कम का समय लेती हैं। कभी कभी जगह के लिए इतनी मारामारी होती है की खुदाई में दूसरी मादा के अंडे बाहर निकल जाते हैं और बिना निषेचित हुए ही रह जाते हैं। अंग्रेजी में इन्हें Doomed Eggs कहा जाता है।


सूर्य की गर्मी से तपते इन अंडों को निषेचित होने में करीब दो महिनों का समय लगता है। अंडों के कवच से निकलते बच्चे तेजी से समुद्र की धाराओं की और रुख करते हैं। समुद्र की ओर जाने की तेजी का ये दृश्य भी भगदड़ वाला ही होता है। और तो और समुद्र में रहने वाले इनके शिकारी घात लगाकर इनका इंतजार करते हैं। नतीजन मात्र हजार बच्चों में एक ही बच्चा नई जिंदगी का सफ़र शुरु कर पाता है।



गाहिरमाथा के पास ही धामरा में उड़ीसा को दूसरा बंदरगाह बनाया जा रहा है। इन सभी चित्रों को आप तक मैं ला पाया हूँ धामरा पोर्ट कंपनी लिमिटेड (DPCL) के सौजन्य से। इनके जालपृष्ठ पर आप ओलाइव रिडले (Olive Ridley) कछुओं की गाहिरमाथा समुद्रतट पर खींची गई अन्य तसवीरें भी देख सकते हैं।


किसने दिया सही जवाब ?
इस बार की पहेली का सबसे पहले सही जवाब दिया संजय व्यास ने। पर जगह का सही नाम बताने में सिर्फ अरविंद मिश्रा जी ही सफल रहे। संजय और अरविंद मिश्रा जी को हार्दिक बधाइयाँ । बाकी लोगों का अनुमान लगाने और अपनी प्रतिक्रियाएँ देने के लिए हार्दिक आभार।

रविवार, 4 अक्टूबर 2009

चित्र पहेली 8 का जवाब : जी हाँ ये थी कौसानी की सिंदूरी शाम

जी हाँ, इस प्रविष्टि के शीर्षक की तरह ही जब आप बारिश की एक अलसायी शाम में इस हिल स्टेशन के करीब पहुँचते हैं तो सड़क के दोनों ओर चीड़ के पेड़ आपका बाहें फैलाए स्वागत करते हैं। आप पूछेंगे पेड़ों की बात तो ठीक है पर शाम कैसे सिंदूरी हो जाएगी यहाँ आकर? इस प्रश्न का जवाब आपको मैं नहीं बल्कि ये नयनाभिराम चित्र देंगे।


अब सोचिए तो ऍसे हसीन रास्ते में चहलकदमी का मौका मिले तो कौन कवि ना बन जाए !

तो कैसी लगी बारिश में भीगी चीड़ वन की ये सिंदूरी शाम? ज़ाहिर हुए मेरी तरह आप भी इन चित्रों से मोहित हुए बिना नहीं रह पाए होंगे। तो अब बताइए कि ये हिल स्टेशन कौन सा है जो अपने हर आंगुतक का इन खूबसूरत नज़ारों से स्वागत करता है?
अब एक नज़र संकेतों की तरफ



संकेत 1 : इस हिल स्टेशन की ऊँचाई समुदतल से 2000 मीटर से थोड़ी कम है।

चीड़ वृक्षों की सूख कर गिरी हुई इन सिंदूरी पत्तियों से आपका स्वागत करता ये हिल स्टेशन कौसानी ही है। कौसानी उत्तरांचल के प्रसिद्ध पर्यटन स्थल अल्मोड़ा से मात्र ५३ किमी उत्तरपश्चिम में समुद्रतल से ६२०१ फीट ऊँचाई पर स्थित है। एक ओर सोमेश्वर तो दूसरी ओर गरुड़, बैजनाथ कत्यूरी घाटियों के बीच बसे इस रमणीक कस्बे से आप हिमालय पर्वतमाला की नंदा देवी, माउंट त्रिशूल, नंदाकोट, नीलकंठ आदि चोटियों का विहंगम दृश्य देख सकते हैं।

संकेत 2 : यह भारत के एक प्रसिद्ध कवि का जन्मस्थान है।

जी हाँ, कौसानी हिंदी के प्रसिद्ध कवि सुमित्रानंदन पंत का जन्म स्थान है।
संकेत 3: भगवत गीता के अनुवाद पर आधारित कर्मयोग से जुड़ी एक किताब का लेखन यहीं किया गया।

१९२९ में महात्मा गाँधी कौसानी के अनासक्ति आश्रम में आए और यहीं रह कर उन्होंने गीता के श्लोकों का सरल अनुवाद करके ‘अनासक्ति योग’ का नाम दिया। बाद में उनके विचारों का संकलन पुस्तक के रूप में प्रकाशित हुआ।



किसने दिया सही जवाब ?
इस बार की पहेली का सबसे पहले सही जवाब दिया अल्पना जी ने। अल्पना जी को हार्दिक बधाई। वैसे प्रेमलता पांडे जी और अभिषेक ओझा थोड़ा देर से आए पर सही जवान के साथ आए। बाकी लोगों का अनुमान लगाने और अपनी प्रतिक्रियाएँ देने के लिए हार्दिक आभार।

सोमवार, 24 अगस्त 2009

चित्र पहेली 7 का उत्तर : गोरी तेरा गाँव बड़ा प्यारा..जानिए हिमाचल के इस खूबसूरत टुकड़े को !

याद है ना आपको 1976 में आई फिल्म चितचोर का वो बेहद लोकप्रिय गीत गोरी तेरा गाँव बड़ा प्यारा मैं तो गया मारा आ के यहाँ रे..। अरे अरे आप ये ना सोच लीजिएगा कि मेरे गीत संगीत वाले ब्लॉग एक शाम मेरे नाम की पोस्ट गलती से यहाँ छप गई है। दरअसल इस गीत का जिक्र आज की चित्र पहेली से आया है। आज की तसवीरें हैं भारत के एक ही इलाके में अवस्थित दो गाँवों की इनकी प्राकृतिक सुंदरता देख कर तो मन तो चितचोर फिल्म का यही गीत गाने को कर उठता है।

सफेद रंग के छोटे बड़े घरों से मिल कर बने इस गाँव में अगर सुबह सुबह कोई खिड़की से झांके तो सामने मैदान में फैली हरी दूब दिखती है और अगर पिछवाड़े से निकल आए तो विधाता की खूबसूरत नीली छतरी के नीचे बर्फ से आच्छादित पर्वतों की सुनहरी चोटियाँ ‌। पर एक और खासियत है इस प्यारे से गाँव में। पर उसे देखने के लिए चित्र को ज़रा गौर से बड़ा कर (यानि चित्र पर क्लिक कर) देखना होगा। देखा आपने खुद भगवान बुद्ध अपनी बनाई इस छटा को एक पहाड़ी के शिखर से कैसे अपलक निहार रहे हैं..

बुद्ध के अनुयायिओं की इस भूमि से बस तीस चालिस किमी दूर और बढ़ते हैं तो इस गाँव के दर्शन होते हैं। दूर से पहाड़् यहाँ इस तरह दिखते हैं जैसे दीमक की विशाल बांबियों के ऊपर किसी ने एक बस्ती बना दी हो। पर इसे कोई ऐसी वैसी बस्ती समझने की जुर्रत ना कर लीजिएगा जनाब। भुरभुराते से पहाड़ की चोटी पर जो इमारत आप देख रहे हैं वो किसी ज़माने में इस इलाके के राजा का किला हुआ करती थी उस किले के नीचे चित्र में एकदम बायीं तरफ यहाँ का नामी बौद्ध मंदिर यानि मॉनेस्ट्री है। इन कमाल के चित्रों के छायाकार हैं सीमान्त सक्सेना। सीमान्त सक्सेना के खींचे गए चित्रों को आप यहाँ देख सकते हैं।
चित्र तो आपने देख लिए। अब ये बताएँ कि ये गाँव भारत के किस जिले का अंग हैं और दूसरे चित्र में दिख रहे बौद्ध मंदिर का नाम क्या है? अब एक नज़र संकेतों की तरफ

संकेत 1 : ये पूरा इलाका मध्य और ऊपरी हिमालय का अभिन्न अंग है यानि यहाँ के गाँवों की औसत ऊँचाई ३५०० से ४५०० मीटर के बीच है। यानि भारत के भौगोलिक मानचित्र पर नज़र डालें तो जम्मू कश्मीर, हिमाचल, उत्तरांचल, सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश में से किसी एक राज्य में ये इलाका पड़ता है।

आप में से बहुतों ने इस जगह को लेह, लद्दाख या सिक्किम का बताया पर ये जगह दरअसल हिमाचल प्रदेश के जिले लाहौल स्पिति में हैं। देखा जाए तो लाहौल स्पिति भौगोलिक दृष्टि से दो अलग अलग इलाके हैं। जैसा कि आप नीचे के मानचित्र में देख सकते हैं रोहतांग दर्रे के उत्तर पश्चिम का इलाका लाहौल घाटी का है जबकि उत्तर पूर्व का इलाका स्पिति घाटी का है।
इस पहेली में प्रस्तुत दोनों चित्र स्पिति घाटी के है। पहला चित्र लांग्जा गाँव (Langza Village) का है जो समुद्र तल से ४४०० मीटर ऊँचा है। पीछे दिख रही चोटी का नाम है चोचो खांग निल्दा (Chocho Khang Nilda) । स्थानीय भाषा में चोचो :राजकुमारी, खाँग :पर्वत निल्दा :सूर्योन्मुखी यानि सूर्य की किरणों से निखरती पर्वतीय राजकुमारी । ये पर्वत स्पिति की तीसरी सबसे ऊँची चोटी है। स्पिति के मुख्यालय काज़ा से टैक्सी में करीब एक घंटे लगते हैं। लांग्ज़ा को खूबसूरत बनाने में जितना इस पर्वतीय राजकुमारी का हाथ है उतना ही यहाँ उगने वाली जंगली घास थामा का भी जो इस गाँव को नीली सफेद और हरे रंग की मिश्रित आभा देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करती है।


जिस छोटी सी बुद्ध की प्रतिमा का मैंने प्रविष्टि का ज़िक्र किया था उसका बड़ा रूप मृदुला के कैमरे से ये रहा ! ये बुद्ध मंदिर लांग्ज़ा लाँग करीब ६०० वर्ष पुराना है ऍसा यहाँ के लोगों का मानना है।
इस गाँव की एक और खासियत है और वो है यहाँ समुद्री जीवाश्मों यानि फॉसिल्स का पाया जाना। आप के मन में ये प्रश्न सहज ही उठा होगा आखिर इस दूर दराज़ इलाके में जीवाश्म कहाँ से आ गए। भू वैज्ञानिकों का मानना है कि स्पिति घाटी का निर्माण लाखों वर्षों पहले यूरेशियन और भारतीय प्लेटों के टकराने से हुआ था। जिसकी वजह से टेथस का समुद्र खत्म हो गया। ये जीवाश्म उस काल के समुद्री जीवों के बताए जाते हैं।

भगवान बुद्ध, लंग्जा गाँव और इन जीवाश्मों की छायाकार हैं मृदुला। इनके स्पिति यात्रा के अन्य चित्रों को आप यहाँ देख सकते हैं।

संकेत 2 : इस इलाके तक पहुँचना इतना सरल नहीं। अव्वल तो यहाँ पहुँचने के सिर्फ दो रास्ते हैं और वो भी ऍसे कि साल में आधा समय बंद रहते हैं। इसलिए इस इलाके की जनसंख्या बेहद कम है। कम पर कितनी कम ? अब चौंकिएगा नहीं प्रति वर्ग किमी. पाँच से भी कम!
स्पिति तक पहुँचने के दो रास्ते हैं एक शिमला से होकर रामपुर होते हुए किन्नौर जिले से होते हुए स्पिति घाटी में प्रवेश करता है और करीब ४१२ किमी लंबा है। ये रास्ता आम तौर पर सालों भर खुला रहता है। पर मनाली होकर स्पिति जाने वाला रास्ता जून से अक्टूबर तक ही खुला रहता है। अत्याधिक ऊँचाई और ठंड वाले इस इलाके की जनसंख्या प्रति वर्ग किमी मात्र दो है।

संकेत 3 :दूसरे चित्र में दिख रहे बौद्ध मंदिर का निर्माण सातवीं और नौवीं शताब्दी के बीच हुआ। सत्रहवीं शताब्दी में ये जगह पूरे इलाके की राजधानी बन गई।
छायाकार : नेविल झावेरी
ये जगह है धनखर (Dhankhar) पहले इसे (धक + खर : धकखर) के नाम से बुलाया जाता था जिसका अर्थ था चोटी पर स्थित किला। आज इस किले की अवस्था जर्जर हो गई है। इसके नीचे धनखर का बौद्ध मंदिर है जिसका शुमार इस इलाके के प्राचीनतम बौद्ध मंदिर में होता है। ऊपर चित्र में सबसे बाँयी तरफ की इमारत बौद्ध मंदिर का है जबकि सबसे ऊपर किला नज़र आ रहा है। धनखर में ४५१७ मीटर की ऊँचाई पर एक झील भी है।


तो दिमागी घोड़े दौड़ाइए और पहेली के उत्तर का अनुमान लगाइए। आपके उत्तर हमेशा की तरह माडरेशन में रखे जाएँगे। सही जवाब इसी पोस्ट में गुरुवार को बताया जाएगा।


किसने दिया सही जवाब ?
इस बार की पहेली का सही जवाब आने में ज़रा भी देर नहीं हुई। क्यूँकि साथी चिट्ठाकार मृदुला इस इलाके में दो साल पहले भ्रमण कर के आ चुकी थीं। ऊपर के चित्रों और लिंकों के माध्यम से आप समझ गए होंगे कि मृदुला एक घुमक्कड़ होने के साथ साथ अच्छी छायाकार भी हैं. मृदुला जी सही जवाब तक पहुँचने के लिए आपको हार्दिक बधाई। पर मृदुला जी के आलावा दोहरे सवाल के पहले हिस्से का सही जवाब दिया पंडित डी के शर्मा वत्स और संजय व्यास जी ने। बाकी लोगों का अनुमान लगाने और अपनी प्रतिक्रियाएँ देने के लिए हार्दिक आभार।

गुरुवार, 6 अगस्त 2009

चित्र पहेली 6 का जवाब : उनाकोटि, त्रिपुरा जहाँ है भगवान शिव का जंगलों के बीच बना ये खूबसूरत घर

मुसाफ़िर हूँ यारों की चित्र पहेलियों में अभी तक आपने भारत की पावन भूमि पर अवस्थित प्रकृति की विविध रचनाओं पर्वत, झील, समुद्र तट आदि के बारे में अनुमान लगाए पर आज का प्रश्न प्रकृति के इन अंगों के बारे में ना होकर इन्हें बनाने वाले 'भगवन' के बारे में है।

नीचे जो चित्र आप देख रहे हैं वो चित्र है हमारे एक अराध्य देव का। इसे चट्टानों को काट कर बनाया गया है। जंगलों के बीच इस स्थान तक पहुँचने के लिए सूर्य देव की कृपा होनी अतिआवश्यक है। यानि अगर आप सुबह दस बजे के पहले यहाँ पहुँचे तो घने अंधकार के बीच इन शिल्पों को देख पाना काफी कठिन है।

(इस चित्र के छायाकार हैं इजरायल के युवल नामन )

चित्र देख लिया आपने तो अब ये बताइए कि ये शिल्प हमारे किस अराध्य देव का है और जहाँ ये शिल्प अवस्थित है वो जगह कौन सी है?

सही उत्तर था : ये भगवान शिव हैं और इस जगह का नाम उनाकोटि (Unakoti) है। वैसे उनाकोटि का शाब्दिक अर्थ है एक करोड़ से एक कम। अब आएँ संकेतों की तरफ जो इस प्रश्न के उत्तर तक पहुँचने के लिए दिए गए थे...



संकेत 1 : कुछ इतिहासकार लगभग १० मीटर ऊँचे इस शिल्प को सातवीं से नवीं शताब्दी के आस पास का बताते हैं जबकि कुछ का मत है कि इस इलाके में पाए जाने वाले कुछ शिल्प बारहवीं शताब्दी के बाद बनें।

उनाकोटी (Unakoti) में दो तरह की मूर्तियाँ हैं। एक जो चट्टानों को काटकर उकेरी गई हैं और दूसरे पत्थर की मूर्तियाँ। यहाँ चट्टानों पर उकेरी गई छवियों में सबसे सुंदर शिव की ये छवि है जिसे उनाकोटि काल भैरव (Unakoti Kaal Bhairav) के नाम से जाना चाता है। करीब ३० फीट ऊँचे इस शिल्प के ऊपर १० फीट का एक मुकुट है जो चित्र में दिखाई नहीं दे रहा। उन दोनों की बगल में शेर पर सवार देवी दुर्गा और दूसरी और दूसरी तरफ संभवतः देवी गंगा की छवियाँ हैं। शिल्प के निचले सिरे पर नंदी बैल का जमीन में आधा धँसा हुआ शिल्प भी है। इसके आलावा यहाँ गणेश, हनुमान और भगवान सूर्य के भी खूबसूरत शिल्प हैं। इतिहासकार मानते हैं कि भिन्न भिन्न मूर्तियों से भरा पूरा ये इलाका करीब ९ से १२ वीं शताब्दी (9th-12th Century) के बीच पाल राजाओं के शासनकाल में बना। यहाँ के शिल्प में शैव कला के आलावा तंत्रिक, शक्ति और हठ योगियों की कला से भी प्रभावित माना गया है।

संकेत 2 : जिस पहाड़ी पर ये शिल्प बनाया गया है वो भारत की अंतर्राष्ट्रीय सीमा से बेहद करीब है। (चलिए आपकी मुश्किल थोड़ी कम कर देते हैं । आपको पूर्वी भारत का रुख करना होगा़। यानि नेपाल, भूटान, चीन, बर्मा और बाँगला देश में से किसी एक के करीब।)

उनाकोटी बाँगलादेश की सीमा से महज कुछ किमी दूरी पर है। उनाकोटी पहुँचने के लिए आपको कोलकाता से त्रिपुरा की राजधानी अगरत्तला (Agartala) जाना होगा। वहाँ से उत्तरी त्रिपुरा (North Tripura) का रुख करना होगा। अगरत्तला से कैलाश ह्वार (Kailsahwar) मात्र १८० किमी दूर है और बस या कार से यहाँ पहुँचा जा सकता है। उनाकोटी का अंतिम आठ किमी का रास्ता घने जंगलों के बीच से होकर जाता है।


संकेत 3: हमारी लोक कथाओं, मुहावरों में कुछ नाम बेहद मशहूर रहे हैं । लोक कथाओं में अक्सर इन नामों के साथ पेशा भी जोड़ दिया जाता था। जैसे कहाँ राजा भोज और कहाँ गंगू तेली ! इसी तर्ज पर आज बिल्लू बॉर्बर बनाया गया तो वो आज की स्थिति के हिसाब से सही नहीं समझा गया। इन सब बातों का जिक्र मैं इस लिए कर रहा हूँ कि किवदंती के हिसाब से इस शिल्प को जिस कारीगर ने बनाया था वो नाम भी कुछ इसी तरह का है और हिंदी के ''अक्षर से शुरु होता है। :)

इन शिल्पों को किस कलाकार ने बनाया और क्यों बनाया ये अभी तक इतिहासकारों के लिए गूढ़ प्रश्न बना हुआ है। पर इस स्थान के बारे में अनेकों किवदंतियाँ हैं। यहाँ की जनजातियों में प्रचलित कथा को माने तो इन शिल्पों की रचना कल्लू कहार (Kallu Kahaar) ने की थी जो शिव और पार्वती का परम भक्त था और उनके साथ ही कैलाश पर्वत जाना चाहता था। देवी पार्वती कल्लू की भक्ति से प्रसन्न थीं और उसे साथ ले जाने के लिए उन्होंने शिव जी से अनुरोध किया। शिव जी ने कल्लू से पीछा छुड़ाने की गरज से शर्त रखी कि तुम्हें मेरे साथ चलने के लिए एक रात में एक करोड़ प्रतिमाएँ बनानी होंगी। कहते हैं कल्लू ने इस कार्य में पूरी जान लगा दी पर एक करोड़ से एक मूर्ति कम बना पाया और शिव भगवान उसे छोड़कर चलते बने। इसीलिए इस जगह का नाम उनाकोटि (एक करोड़ से एक कम) पड़ा।

संकेत 4 : चलिए आज एक बात और बताते हैं इस जगह के बारे में। अक्सर हम अपने बच्चों को सुबह उठने की सलाह देते है। अगर प्राचीन कथाओं की मानें तो ये जगह अपने अस्तित्व में ही नहीं आई होती अगर हमारे देवी देवता इस सलाह को मान उस दिन सुबह उठ गए होते :)

उनाकोटी के बनने के बारे में सबसे प्रचलित कथा और भी मज़ेदार है। शिव जी के साथ एक करोड़ देवी देवताओं का काफ़िला काशी की तरफ़ जा रहा था। यहाँ से गुजरते वक़्त रात हो आई तो भगवान शिव ने सारे अन्य देवी देवताओं को यहीं रात्रि विश्राम करने को कहा और साथ में एक सख्त हिदायत भी दी कि सुबह पौ फटने के पहले ही हम सब यह जगह छोड़ देंगे। सुबह जब भगवन तैयार हुए तो देखा कि सारे देवता गण सोए पड़े हैं। अब भगवन का मिज़ाज़ तो सर्वविदित है ..हो गए वो आगबबूला और सारे देवों को पत्थर का बना कर काशी की ओर बढ़ चले और फलस्वरूप यहाँ एक करोड़ से एक कम मूर्तियाँ रह गईं।



किसने दिया सही जवाब ?

मेरे ख्याल से इन संकेतों की सहायता से उत्तर तक शीघ्र ही पहुँच जाएँगे तो देर किस बात की जल्दी लिखिए अपना जवाब। सही जवाब, इस खूबसूरत जगह के बारे में कुछ और रोचक जानकारियों के साथ 6th अगस्त की शाम इसी पोस्ट में बताए जाएँगे।

मेरा ख्याल गलत निकला । मुझे लगा था कि ये विषय सुब्रमनियन जी की रुचि का है इसलिए वो तो जरूर बता पाएँगे। पर ये पहेली आप सभी के लिए कठिन साबित हुई। यहाँ तक की अब तक के सबसे ज्यादा सही उत्तर देने वाले अभिषेक ओझा ने भी हथियार डाल दिये। पर एकमात्र सही हल बताया समीर लाल जी ने हालाँकि उन्होंने जगह के साथ भगवन का नाम नहीं बताया। शायद पूरा प्रश्न उन्होंने नहीं देखा। तो समीर जी को हार्दिक बधाई और बाकी लोगों को अनुमान लगाने के लिए धन्यवाद।

तो चलते चलते उनाकोटि की सैर नहीं करना चाहेंगे आप? लीजिए आपकी ये ख्वाहिश भी पूरी किए देते हैं NDTV पर प्रसारित इस वीडिओ के ज़रिए। आशा है इस जगह को जानना आपके लिए आनंददायक रहा होगा।