शुक्रवार, 20 नवंबर 2020

कोरोना काल में हवाई / रेल यात्रा के दुख और हरी भरी प्रकृति को देख पाने का सुख

ये यात्रा करने का समय नहीं है पर पारिवारिक कारणों से पिछले हफ्ते पहले राँची से दिल्ली और फिर दिल्ली से पटना होते हुए राँची की यात्रा करनी पड़ी। देश किस क़दर कोरोना से ऊब कर निडर या कहिए ढीठ सा होता जा रहा है इसका प्रत्यक्ष अनुभव मुझे अपनी इस यात्रा में मिला। चूँकि इस साल की शुरुआत के बाद ये मेरी पहली यात्रा थी इसलिए कुछ नए खट्टे मीठे अनुभव भी हुए। इन्हीं अनुभवों को आपके सम्मुख लाने की कोशिश है मेरी ये पोस्ट ताकि आप अपने आप को मानसिक तौर पर तैयार कर सकें जब भी इस दौर में यात्रा पर निकलें।

कोरोना काल में हवाई यात्रा करना अपेक्षाकृत खर्चीला भी है (हालांकि दूसरी ओर इस समय रहने और घूमने के खर्चों में काफी कमी आई है।) और अनिश्चित भी। कब आपकी फ्लाइट कैंसिल हो जाए कुछ कह नहीं सकते और  बिना आपकी गलती के अपनी यात्रा को फिर से पटरी पर लाने का जिम्मा भी आपका ही है। दस पन्द्रह दिन पहले राँची से दिल्ली और दिल्ली से पटना का टिकट बुक करा कर निश्चिंत बैठा था कि अचानक कार्यालय में फोन की घंटी घनघनाने लगी। कॉल रिसीव करते हुए ये सूचना दी गई कि मेरी राँची से दिल्ली की फ्लाइट कैंसिल हो गयी है। एक मेल भी आ गया कि बारह महीने तक आपका रिजर्वेशन सुरक्षित है और आप अपनी यात्रा में बदलाव के लिए हमारे टॉल फ्री नंबर पर संपर्क करें। 

ये विमान कंपनियाँ फोन पर बार बार रिकार्डेड मेसज भेज सकती हैं। SMS और मेल कर सकती हैं पर  रद्द की हुई फ्लाइट से यात्रियों को हुई असुविधा का ख्याल रखते हुए ख़ुद फोन कर यात्री को अपनी यात्रा में बदलाव करने की सहूलियत नहीं दे सकतीं। आप सोचेंगे कि अरे इसमें कौन सी बड़ी बात है कि उन्होंने फोन नहीं किया तो आप कर लीजिए। फोन करने में कौन से पैसे लगते हैं?

पर यहीं तो सारी समस्या शुरु होती है। अव्वल तो फोन लगेगा नहीं और अगर लग भी गया तो कोरोना का हवाला देकर ये संदेश सुनाया जाएगा कि अभी स्टाफ की संख्या कम है अपनी बारी की प्रतीक्षा कीजिए। पाँच मिनट, दस मिनट यहाँ तक कि आधे घंटे वो बारी कभी नहीं आएगी। पूरी यात्रा के गड़बड़ होने का तनाव अपनी जगह और उसके ऊपर ये बिना मतलब के समय की बर्बादी। अब चूँकि पैसे फँसे हुए हैं और आपको जाना अभी है इसलिए आपको निरंतर प्रयास तो करते ही रहना पड़ेगा। शायद इन एयरलाइंस की ऐसी कार्यशैली के लिए वो कहावत रची गयी है

करत करत अभ्यास के जड़मति होत सुजान 
रसरी आवत जात ते सिल पर परत निशान

तो मेरे लगातार दो दिन प्रयास करने के बाद देर रात संपर्क बना और काम पाँच मिनट में हो गया यानी मुझे दूसरी फ्लाइट में जाने की व्यवस्था कर दी गयी पर यही काम अगर गो एयरलाइंस वाले पहले करते तो मुझे ये प्रण ना करना पड़ता कि अगली बार पैसे ज्यादा भी लगें तो दूसरी एयरलाइंस को प्राथमिकता देनी है। हालांकि उनका हाल भी बहुत अच्छा होगा इस मामले में इसकी ज्यादा उम्मीद नहीं है।