आज नवरात्र का पर्व दशहरे के साथ समाप्त हो रहा है और मैं आपके सम्मुख हूँ कोलकाता के पूजा पंडाल परिक्रमा की इस आख़िरी कड़ी को लेकर। आज आपको ले चलूँगा दक्षिणी कोलकाता के उन दो पूजा पंडालों में जो हर साल अपनी अद्भुत थीम के चुनाव और निरूपण के लिए सुर्खियाँ बटोरते रहते हैं। ये पंडाल हैं न्यू अलीपुर में स्थित सुरुचि संघ और रासबिहारी गुरुद्वारे के करीब का 66 पल्ली।
सुरुचि संघ इससे पहले 2003, 2009 व 2011 में कोलकाता के सर्वश्रेष्ठ पूजा पंडाल का ख़िताब जीत चुका है। पिछले साल इस पंडाल की थीम का केंद्र था छत्तीसगढ़। वहाँ की नक्सल समस्या को ध्यान में रखते हुए पंडाल के ठीक सामने एक काल्पनिक वृक्ष बनाया गया था । वृक्ष के ऊपरी हिस्से में राज्य में हो रही हिंसा व अशांति का चित्रण था जबकि नीचे शंति का संदेश देते हुए स्थानीय वाद्यों को लेकर नाचते गाते लोग दिखाए गए थे। भीड़ इतनी ज्यादा थी की चित्र लेने के लिए भी काफी मशक्कत करनी पड़ रही थी।
पंडाल की शक़्ल एक आक्टोपस सरीखी थी। पर ध्यान से देखने पर लगा कि जिसे हम आक्टोपस की भुजा समझ रहे हैं वो तुरही के समान जनजातीय वाद्य यंत्र है। पंडाल की दीवारों पर वैसे चित्र अंकित किए गए थे जैसे पुरा काल में आदिवासी कला चट्टानों पर अंकित की जाती थी।