जैसा कि इस श्रृंखला की पिछली कड़ी में आपको बताया था कानाताल में अपने प्रवास के तीसरे दिन हम लोग टिहरी बाँध देखने के बाद वापस कानाताल लौट आए। भोजनोपरान्त हमारा काफ़िला धनोल्टी होते हुए मसूरी की ओर चल पड़ा। ये बता दूँ कि कानाताल आने के पहले हमने आसपास की जगहों में सबसे ज्यादा धनोल्टी के बारे में सुन रखा था। अतः हमारे समूह में सबसे ज्यादा उत्साह वहीं जाने के लिए था।
दरअसल धनौल्टी (Dhanaulti) एक छोटा हिल स्टेशन है जो मसूरी के अंधाधुंध शहरीकरण की वज़ह से पर्यटकों को अब आकर्षित कर रहा है। आजकल यहाँ कई छोटे बड़े होटल खुल गए हैं और जिन लोगों को ज्यादा चलना मुश्किल हो उनके लिए शिमला के कुफरी की तरह घोड़ों की पीठ पर बैठकर जंगल भ्रमण की सुविधा यहाँ उपलब्ध है। धनौल्टी चंबा मसूरी मार्ग पर लगभग चंबा और मसूरी के लगभग मध्य में स्थित है। मसूरी से इसकी दूरी महज 24 किमी है वहीं चंबा से 29 किमी। कानाताल से निकलते निकलते सवा तीन बज चुके थे। इसलिए हमारे पास इतना समय नहीं था कि धनौल्टी से आठ किमी पहले पड़ने वाले सुरकंडा देवी मंदिर में दर्शन कर पाते। नीचे के चित्र में आप देख सकते हैं कि पहाड़ के ऊपर बने इस मंदिर में जाने के लिए बक़ायदा सीढ़ी और रेलिंग बनी हुई है। चढ़ाई में विश्राम लेने के लिए बीच बीच में शेड भी बनाए गए हैं।
देवी दर्शन के लिए इस इलाके में जो तीन मंदिर सबसे विख्यात हैं उनमें सुरकंडा देवी मंदिर के साथ साथ चंद्रबदनी और कुंजपुरी मंदिर का भी नाम आता है। वैसे यहाँ के लोग कहते हैं कि गंगा दशहरा के समय यहाँ एक मेला लगता है जिसमें भक्तों की भारी भीड़ जुटती है। अगर पहले दिन हम कानायाल सही समय पर पहुँचते तो निर्धारित कार्यक्रम के तहत सबसे पहले देवी माता के ही दर्शन करते पर अब माँ को दूर से ही सलाम कर आगे बढ़ गए।
पर सबसे बड़ी निराशा हुई धनोल्टी पहुँच कर। उत्तराखंड सरकार ने वहाँ दो इको पार्क बनाए हैं। अम्बर और धारा नाम के इन दो इको पार्क में देवदार के जंगलों को संरक्षित कर यहाँ आने वाले लोगों को प्रकृति को पास से महसूस करने का मौका दिया है। पर कानाताल के जंगलों में पिछली तीन सुबहों में विचरण करने के बाद इको पार्क की हरियाली हमें कुछ खास सम्मोहित नहीं कर सकी। पार्क में लकड़ी की बल्लियों के बीच से एक रास्ता ऊपर की ओर जा रहा था।