सोमवार, 5 जून 2023

मंदासरू : ओडिशा की शांत घाटी Silent Valley of Odisha

चलिए आज मैं आपको ले चलता हूँ मंदासरू जिसे Silent Valley of Odisha के नाम से भी जाना जाता है। मंदासुरू में मंदा का अर्थ चट्टान और सरु का तात्पर्य पतले होता हुए रास्ते से है। यानी मंदासरू एक ऐसी संकरी घाटी है जिसके दोनों किनारे साथ चलने वाले पर्वत कभी कभी इतने पास आ जाते हैं मानो एक दूसरे से गले मिलना चाहते हों। मंदासरू भारत के 15 जैवविविधता के विशिष्ट क्षेत्रों में से एक है पर सदाबहार और पर्णपाती वनों की इस मिश्रित विरासत को महसूस करने के लिए आपको यहाँ के जंगलों में विचरण करना होगा। यहाँ के बदलते मौसम की थाह लेनी होगी। तभी आप ओडिशा की शांत घाटी का मर्म समझ पाएँगे।


ख़ैर अगर उतना समय आपके पास ना भी हो तो दारिंगबाड़ी से मंदासरू की ओर जाने वाला पैंतीस किमी का रास्ता आपका मन हर लेगा। राजमार्ग से हटते ही आपको ओडिशा के कंधमाल जिले में स्थित इस सुरम्य घाटी की प्राकृतिक सुंदरता के साथ साथ यहाँ के ग्राम्य जीवन की झलक मिल जाएगी।




साल के घने जंगल 

स्कूल जाते बच्चे, खेतों में जुताई करते किसान, हर घर के आँगन में बँधे मवेशी, खेतों खलिहानों के पीछे चलती पूर्वी घाट की हरी भरी पहाड़ियाँ और बीच बीच में आते साल के घने जंगल आपकी आँखों को तृप्त करते रहेंगे।
ग्रामीण इलाकों की कुछ झलकियाँ

धान के आलावा यहाँ सब्जियों की खेती भी व्यापक पैमाने पर दिखी


आँखों के सामने इन बदलते प्यारे दृश्यों को देखने में मशगूल हम सब गूगल के बताए मार्ग पर अग्रसर थे। जब मंदासरू की दूरी दस किमी से कम रह गयी तो गूगल ने दायीं ओर की पहाड़ी पर जाने का आदेश दिया। वो रास्ता नया नया बना था और सीधे चढ़ाई की ओर ले जा रहा था। गाड़ी उधर मोड़ते ही पीछे से किसी के उड़िया में बुलाने का स्वर सुनाई दिया। हम उस पुकार को अनसुना कर इस रोमांचक रास्ते के घुमावदार मोड़ों को आनंद लेने लगे। अभी आधी चढ़ाई ही चढ़े होंगे कि गूगल की बहन जी ने उद्घोषणा की कि Your destination has arrived😇

अब उस सुनसान जंगल में शांति तो बहुत थी पर कोई गहरी घाटी दूर दूर तक नज़र नहीं आ रही थी। फोन में सिग्नल आना भी बंद हो चुका था इसलिए बहनजी ने चुप्पी साध ली थी। हम लोगों ने सोचा कि जब इतने ऊपर आ गए हैं तो थोड़ा और ऊपर तक बढ़ें ताकि घाटी का कोई नज़ारा तो मिले। आगे थोड़ी दूर पर उतरे तो कुछ देर बाद सामने से आते हुए एक सज्जन ने हमें बताया कि ये रास्ता तो पहाड़ के दूसरी तरफ बसे गाँव की ओर जाता है। आप लोग मंदासरू का रास्ता तो नीचे ही छोड़ आए हैं।



लौटते वक्त मोड़ पर वही व्यक्ति फिर मिला जिसने हमें पुकार लगाई थी। उसने बताया कि गूगल यहाँ आकर हमेशा लोगों को गुमराह कर देता है इसलिए हम आगाह कर देते हैं पर आप लोग तो रुके ही नहीं। ख़ैर मंदासरू की गहरी घाटी तक पहुँचाने वाले रास्ता वहाँ से ज्यादा दूर नहीं था। पर गूगल की गलतबयानी हमें एक अनजान मगर सुंदर रास्ते से रूबरू करा गयी।


मंदासरू नेचर कैंप के अंदर प्रकृति के सामीप्य में ठहरने और खाने पीने की व्यवस्था है। नेचर कैंप के रखरखाव और चलाने की जिम्मेदारी यहाँ की स्थानीय महिलाओं को सौंपी गयी है। यहाँ से आस पास के जंगलों में आप गाइड की सहायता से ट्रेक भी कर सकते हैं। नेचर कैंप में प्रवेश लेने का एक मामूली सा टिकट है। कैंप के अंदर बने व्यू प्वाइंट से आप ओडिशा की  इस शांत घाटी का मनमोहक नज़ारा देख सकते हैं।  प्रकृति के साथ इस सुकून भरी शांति को खलल देने के लिए सिर्फ दो ही आवाज़े हैं जो इस नीरवता के बीच मन में  मधुर सा भाव भरती हैं। सुबह में चिड़ियों का कलरव या फिर संकरी घाटी में बहती जलधारा की कलकलाहट।

नेचर कैंप से ठीक पहले बाएँ जाते रास्ते पर कुछ दूरी पर मंदासरू जलप्रपात है जहाँ तक जाने का रास्ता भी एक छोटे मोटे ट्रैक से कम नहीं है। मतलब ये कि आगर आपके पास समय हो और आप प्रकृति प्रेमी हों तो मंदासरू में एक या दो रातें मजे से गुजार सकते हैं।



मंदासरू की Silent Valley

झरनों की कमी तो दारिंगबाड़ी में भी नहीं है। पर इनमें से ज्यादातर छोटे-छोटे झरने हैं जिन तक पहुंचने के लिए आपको रोमांचकारी छोटी-मोटी ट्रैकिंग करनी पड़ेगी। मिदुबंदा और पांगली घाटी का रेनबो झरना ऐसे ही झरनों में है। समय के आभाव में मिदुबंदा तो हम नहीं गए पर रेनबो फाल तक की रोमांचक यात्रा हमने की।
जंगलों के अंदर से गुजरती जल राशियों के पास पहुंचने के लिए आपको यहां के स्थानीय आदिवासियों से बड़ी सहजता से मदद मिल जाती है। घुमावदार ऊंचे नीचे रास्तों के बीच लताओं को काटते हुए उन्होंने एक दुबला पतला रास्ता भी बना रखा था यहां के रेनबो फॉल तक पहुंचने का।

पांगली घाटी और रेनबो फॉल 

दारिंगबाड़ी में यूं तो देखने को कई उद्यान हैं: कॉफी गार्डन, नेचर पार्क, एमू पार्क और हिल व्यू पार्क पर समय की कमी की वज़ह से हम सिर्फ हिल व्यू और कॉफी गार्डन में ही जा सके। इनमें हिल व्यू का View सबसे शानदार लगा। मुख्य शहर से मात्र दो किमी दूर ये वाटिका यहीं के प्रकृति उद्यान के बराबर बनी हुई है। इसके view point तक पहुंचने के लिए पैरों को ज्यादा मशक्कत भी नहीं करनी पड़ती।
यहां से एक ओर तो पूर्वी घाट की पहाड़ियों का सुंदर नज़ारा मिलता है तो दूसरी ओर चीड़ के जंगल एकदम से हाथ थाम लेते हैं। भारत में चीड़ के जंगल 900 से 1500 मीटर की ऊंचाई के बीच अक्सर दिख जाते हैं। वैसे तो दारिंगबाड़ी भी समुद्र तल से 915 मीटर की ऊंचाई पर है पर मुझे यहां इस तरह के जंगल दिखने की उम्मीद न थी। इससे पहले नेतरहाट जो कि छोटानागपुर के पठारों की शान है, में ऐसे ही जंगलों से मुलाकात हुई थी पर वो इससे कहीं ज्यादा ऊंचाई पर स्थित है।
दूर तक फैले हुए चीड़ के पेड़ों पर नज़र जमाई ही थी कि जंगलों में सफेद काली आकृति हिलती दिखाई दी । कैमरे से फोकस किया तो समझ आया कि ये तो काले मुंह वाले लंगूर महाशय हैं जो चीड़ की पत्तियों का स्वाद ले रहे हैं।
पहाड़ियों की शृंखला के ऊपर हल्के फुल्के बादल धूप छांव का खेल खेल रहे थे जो आंखों को तृप्त किए दे रहा था। पार्क में ज्यादा लोग नहीं थे न ही दिसंबर लायक ठंड थी। कुछ कन्याएं जरूर एक फोटोग्राफर के साथ पहुंची थीं जो तरह तरह की मुद्राओं में बारी बारी से उनकी फोटो लेते हुए ज़रा भी उकता नहीं रहा था।
वहीं की कुछ तस्वीरें


दारिंगबाड़ी में कॉफी के पौधों का एक उद्यान भी है जहाँ आप कॉफी के साथ साथ काली मिर्च की लताओं से भी उलझ सकते हैं। मुन्नार में ये सब मैं पहले ही देख चुका था पर दारिंगबाड़ी जैसी कम ऊँची जगह में इतना बड़े क्षेत्र में फैले इस बगीचे को देख आश्चर्य जरूर हुआ।


दारिंगबाड़ी का प्रचार ओडिशा के कश्मीर की तरह किया जाता है। एक  ज़माने में यहाँ बर्फबारी भी होती थी। पर हजार मीटर से कम ऊँचे इस हिल स्टेशन में कश्मीर जैसी आबो हवा समझ कर आने की भूल ना करें। दिसंबर के महीने में भी यहाँ हमें तो सामान्य सी ठंड ही महसूस हुई। कम प्रचलित होने की वज़ह से इस पहाड़ी स्थल का नैसर्गिक सौंदर्य अभी भी अछूता है। अगर आप गन्तव्य से ज्यादा रास्ते की सुंदरता पर ध्यान देते हैं तो ये जगह आपको बिल्कुल निराश नहीं करेगी। सप्ताहांत में जब भी यहाँ आए दो दिन रुकने का कार्यक्रम अवश्य बनाएँ।  

आप यहाँ ब्रह्मपुर रेलवे स्टेशन से टैक्सी या बस की यात्रा कर बड़े आराम से पहुँच सकते हैं या फिर हमारी तरह संबलपुर होते हुए सड़क के रास्ते यहाँ पहुँच सकते हैं। एक दिन मंदासरू और उसके आसपास वाले इलाके में तो दूसरा दिन दारिंगबाड़ी से पांगली घाटी होते हुए मधुवंदा तक। 

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