मंगलवार, 13 मई 2014

खूबसूरती का पर्याय खुरपा ताल, नैनीताल In pictures : Khurpa Tal, Nainital !

दिल्ली से नैनीताल जाने के कई रास्ते हैं। दिल्ली गाज़ियाबाद मुरादाबाद तक तो सारे रास्ते एक से रहते हैं पर उसके बाद या तो आप रामपुर - रुद्रपुर - हलद्वानी - काठगोदाम होते हुए नैनीताल पहुँचिए या रामपुर से पहले ही बाजपुर की ओर जानेवाले दो विकल्पों में से एक को चुनते हुए कालाडूंगी से नैनीताल पहुँच जाइए। हमें जब दिल्ली से नैनीताल जाना था रुद्रपुर में दो समुदाय के बीच कुछ तनाव चल रहा था। सो एक लंबे रास्ते से होते हुए हम काशीपुर से बाजपुर पहुँचे थे। 

पर इस रास्ते की सबसे बड़ी खूबी ये है कि जब आप कालाडूंगी से नैनीताल की ऊँचाई तक बढ़ते हैं तो सीधी चढ़ाई होने की वज़ह से घुमावदार रास्तों से तो आप बचते ही हैं , साथ ही पूरे रास्ते भर नयनाभिराम दृश्य आपका मन मोहते रहते हैं। इसी रास्ते पर बढ़ते हुए जब हम नैनीताल से दस किमी पहले समुद्र तल से 1635 मीटर ऊँचाई पर स्थित खुरपा ताल पहुँचे तो इसके आस पास के दृश्यों को देखकर मेरा रोम रोम खिल उठा। आज के इस फोटो फीचर में मैं आपको दिखाऊँगा कि क्यूँ लगा मुझे छोटा सा खुरपा ताल इतना सुंदर ?

An isolated house surrounded with abundant greenery
बताइए तो एक शहरी जीव को अचानक उठाकर इस घर में रख दिया जाए तो क्या उसका जी नहीं हरिया उठेगा? :)
Pine Forests in all their glory
चीड़ के इन वृक्षों के बीच आप चाहे जितना वक़्त बिताएँ आपका मन नहीं भरेगा।:) हम जब खुरपा ताल के पास पहुँचे तो हल्की बारिश हो चुकी थी और झील के किनारे बने मकानों के पीछे की धुंध धीरे धीरे छँट रही थी।

First glimpse of Khurpa Taal

सोमवार, 5 मई 2014

भटकना बिनसर के जंगलों में और दर्शन नंदा देवी का ! Forests of Binsar and Nanda Devi !

बिनसर में भी हम वन विश्राम गृह में ही ठहरे थे। वहाँ खाने पीने की कोई व्यवस्था नहीं थी इसीलिए बिनसर पहुँचते ही हमने कुमाऊँ मंडल विकास निगम (KMVN) के गेस्ट हाउस में खाना खाया और चल पड़े अपने विश्राम गृह की दिशा में। इस रेस्ट हाउस  (Forest Rest House) में ज्यादा कमरे नहीं हैं। पर पहले तो उन्हें कमरा कहना उचित नहीं होगा। समझ लीजिए कि अंग्रेजों के ज़माने में बने बँगलों को ही दो तीन हिस्सों में बाँट दिया गया हो। बड़े बड़े ऊँची छतों वाले कमरे, विशालकाय डाइनिंग कक्ष, ढेर सारे दरवाज़े जो चारों ओर से घिरे बारामदे में खुलते हों। बारामदों से कुछ मीटर के फासले पर ही पहाड़ की ढलान जिसमें जाती दुबली पतली पगडंडियों को चारों ओर फैला जंगल मानो अपने में आत्मसात कर लेता था। 


घड़ी की सुइयाँ पौने तीन बजा रही थीं। हमें बताया गया था कि विश्राम गृह से सूर्यास्त का मंज़र देखते ही बनता है। पर उस मंज़र को देखने से पहले हमें हिमालय की चोटियों को बिनसर से देख लेने की जल्दी थी। वैसे KMVN विश्राम गृह भी हिमालय को निहारने के लिए अच्छा स्थल है पर वहाँ से दिन में कुछ भी दिखाई नहीं पड़ा था। किसी ने बताया कि पास ही में ज़ीरो प्वाइंट (Zero Point) है जिसका रास्ता जंगलों के बीच से जाता है। हमारे गेस्ट हाउस से उसकी दूरी करीब ढाई किमी की थी। करीब तीन बजे हम चहलकदमी करते हुए ज़ीरो प्वाइंट की ओर बढ़े।


इस स्थल तक पहुंचने के लिए जो रास्ता बना है वो जंगलों के ठीक बीच से जाता है। बिनसर में बने विश्राम गृह काफी ऊँचाई पर बने हैं। इसका अंदाज़ा इसी बात से हो जाता है कि जैसे ही आपकी गाड़ी बिनसर अभ्यारण्य के मुख्य द्वार से घुसती है, काफी दूर तक चीड़ के जंगल आपको साथ मिलते हैं। पर दो किमी के बाद जैसे ही चढ़ाई आरंभ होती है नज़ारा बदलने लगता है। पाँच छः किमी के बाद चीड़ की जगह ओक के पेड़ ले लेते हैं। 14 किमी चलने के बाद बिनसर के विश्रामगृह तक पहुँचते पहुँचते समुद्रतल से ये ऊँचाई करीब 2400 मीटर की हो जाती है। यही वज़ह थी कि बिनसर की इन ऊँचाइयों पर हमें भांति भांति के पेड़ दिखे जिन्हें पहचानना कम से कम मेरे लिए मुश्किल था।