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गुरुवार, 30 जून 2016

कोबे शहर की वो शाम.. Kobe Harbour Area, Japan

जापान जाने के पहले मुझे पता नहीं था कि मुझे कोबे जाने का भी  मौका मिलेगा। वैसे भी घूमने वालों की फेरहिस्त में सामान्यतः जापान की जो तीन जगहें आती हैं वो हैं टोक्यो, क्योटो व हिरोशिमा। सही मौसम रहा तो लोग टोक्यो और क्योटो के बीच माउंट फूजी  के दर्शन भी कर लेते हैं। हाँ, ये जरूर है कि कुछ लोग समय रहने पर ओसाका को भी अपनी यात्रा योजना में शामिल करते हैं और यदि आप ओसाका आ गए तो कोबे जाना तो बनता ही है क्यूँकि ये वहाँ से मात्र चौंतीस किमी की दूरी पर है।

A room with a view जब आपकी खिड़की ऐसे दृश्य ले कर खुले !

क्योटो से ओसाका होते हुए हमें बस से कोबे आना था। ओसाका शहर  से तो तो हम किनारे किनारे निकल लिए। पर एक बात जो मुझे दिखी वो ये कि जापान के सारे शहर एक जैसे ही लगते हैं। सारे ऊँची ऊँची गगनचुंबी इमारतों के दूर तक फैले हुए जंगल सरीखे। कहीं कोई पुरानी धरोहर  नहीं। अब इसमें जापान का दोष नहीं कि उनके पास इतिहास के नाम पर क्योटो और नारा जैसी जगहें ही  बची हैं। युद्ध व भूकंप की दोहरी मार झेले हुए इस देश में इतिहास के नाम पर BC नहीं बस AD ही चलता है।

कोबे का बंदरगाह  Kobe Harbour
मध्य जापान के होन्शू द्वीप में स्थित कोबे, जापान का छठा सबसे बड़ा नगर है। एक ओर पहाड़ी और दूसरी और समुद्र से घिरा कोबे शहर अपनी तीन खूबियों के लिए जाना जाता रहा है। पहला तो यहाँ का बंदरगाह, जो कभी जापान का सबसे बड़ा व व्यस्ततम बंदरगाह हुआ करता था । अठारहवीं शताब्दी में पश्चिमी देशों से इसी बंदरगाह के माध्यम से यहाँ व्यापार शुरु हुआ। नतीजन  यहाँ कोरिया, चीन, वियतनाम और अमेरिका से भी  लोग आकर बस गए। वक़्त के साथ कोबे शहर ने इन देशों की संस्कृति को अपने में समाहित करता गया ।

कोबे की दूसरी पहचान एक औद्योगिक शहर की है। मशीनरी व स्टील की बड़ी बड़ी कंपनियाँ यहाँ काम करती हैं और तीसरी ये कि कोबे बीफ़ अपने स्वाद के लिए विश्व भर में जाना  जाता है। अब मेरे जैसे शाकाहारियों के लिए तो ये खासियत किसी काम की नहीं थी तो उस ज़ायके से दूर ही रहे।
कोबे में हमारा ठिकाना JICA Kanshai Centre

रविवार, 28 फ़रवरी 2016

ज्वार के समय समुद्र में तैरता एक मंदिर मियाजिमा, हिरोशिमा A temple floating in the sea during high tides Miyajima, Hiroshima

समुद्र और नदियों के किनारे बने मंदिर या किले तो आपने बहुत देखे होंगे पर एक विश्व में एक पूजा स्थल ऐसा भी है जिसका मुख्य द्वार और पूरा मंदिर समुद्र में ज्वार के समय पानी पर तैरता दिखाई देता है। ये पूजा स्थल है जापान के हिरोशिमा प्रीफेक्चर (राज्य के सदृश एक जापानी इकाई) में  और इसे इत्सुकुशिमा या प्रचलित रूप से मियाजिमा के नाम से जाना जाता है। जापान के कुल बारह वर्ल्ड हेरिटेज साइट्स में मियाजिमा का भी नाम आता है और रात में ज्वार के समय यहाँ के दृश्य की गणना जापान के तीन बेहतरीन दृश्यों में होती है। कुछ साल पहले जुलाई के आख़िरी हफ्ते में हम दक्षिणी जापान के क्यूशू इलाके से बुलेट ट्रेन के ज़रिये हिरोशिमा पहुँचे थे। 

समु्द में बने मंदिर का मुख्य द्वार यानि टोरी

एक बार हिरोशिमा पहुँचने के बाद उसी स्टेशन से आप किसी भी लोकल ट्रेन को पकड़ मियाजिमा पहुँच सकते हैं। अगर कोई ट्रेन छूट भी गई तो घबड़ाने की कोई जरूरत नही क्यूँकि अगली ट्रेन दस मिनट बाद ही आ जाती है। बुलेट ट्रेन यानि शिनकानसेन में तो उद्घोषणा अंग्रेजी में होती है पर लोकल ट्रेनों में आपको ये सुविधा नहीं मिलती। ख़ैर हमारे साथ तो गाइड थे इसलिए दिक्कत नहीं हुई पर ये बता दूँ कि मियाजिमा हिरोशमा से नवाँ स्टेशन है।

मियाजिमा स्टेशन की दीवार पर बनी जापानी चित्रकला

अंग्रेजी में  मियाजिमा का अर्थ होता है Shrine Island यानि ये पूरा द्वीप ही पवित्र और पूज्य माना जाता है। ज़ाहिर सी बात है कि  द्वीप तक पहुँचने के लिए हमें फेरी लेनी थी। रेलवे स्टेशन से फेरी स्टेशन के बीच पाँच मिनट में पैदल पहुँचा जा सकता है। जुलाई का महीना उस साल हिरोशिमा का सबसे गर्म महीना था। तापमान पैंतीस डिग्री के आसपास था पर उतने ही में जापानी पानी पानी हो रहे थे। सड़क पर जहाँ देखो लोग जापानी पंखा झेलते  दिख रहे थे। तथाकथित गर्म लहर टीवी चैनलों की सुर्खियों में थी। समुद्र तट से सटे होने की वज़ह  से नमी भी थोड़ी ज्यादा थी तो पसीने पसीने तो मैं भी हो ही गया था।

शनिवार, 8 अगस्त 2015

यादें हिरोशिमा की : क्या हुआ था वहाँ सत्तर वर्ष पहले ? Hiroshima Peace Memorial

सत्तर साल पहले विश्व में पहला परमाणु बम जापान में हिरोशिमा की धरती पर गिराया गया था। इस बम ने इस फलते फूलते शहर को अपने एक वार से ही उजाड़ कर रख दिया था। सत्तर हजार लोगों  ने तुरंत और इतनी ही संख्या में घायलों ने भी छः महीनों के भीतर दम तोड़ दिया था। इनमें जापान के सामान्य नागरिकों के आलावा कोरिया और चीन से लाए गए मजदूर भी शामिल थे।

आज भी इतनी भयंकर त्रासदी के बावज़ूद परमाणु युद्ध का ख़तरा संसार से टला नहीं है। किसी का कुछ नहीं जाता ये कह कर कि यहाँ बम गिरा देंगे वहाँ तबाही मचा देंगे। कम से कम मानसिक रूप से विक्षिप्त ऐसे लोगों को हिरोशिमा के उस म्यूजियम की राह जरूर लेनी चाहिए जहाँ सत्तर साल बाद भी विध्वंस के कुछ अवशेष ज्यूँ के त्यूँ बचा के रखे गए हैं। तो चलिए आज मैं आपको ले चलता हूँ उस शहर में जहाँ की निर्दोष जनता को इस परमाणु बम की मार झेलनी पड़ी थी।


आज से तीन साल पूर्व जब मैंने हिरोशिमा की धरती पर कदम रखा था तो वो शहर मुझे किसी दूसरे जापानी शहर से भिन्न नहीं लगा था। बुलेट ट्रेन से उतरकर हम वहाँ की स्थानीय ट्रेन से पहले मियाजीमा स्थित शिंटो धर्मस्थल इत्सुकुशिमा गए थे और वहाँ से लौट कर हिरोशिमा के विख्यात पीस मेमोरियल को देखने का मौका मिला था। हिरोशिमा के मुख्य स्टेशन से पीस मेमोरियल की यात्रा करने का सबसे आसान तरीका ट्राम से सफ़र करने का है। पन्द्रह मिनट के सफ़र के बाद हम Genbaku स्टेशन से चंद कदमों के फ़ासले पर स्थित इन A Bomb dome के भग्नावशेषों के सामने थे।

बीसवी शताब्दी के आरंभ (1915) में एक चेक वास्तुकार द्वारा बनाई गई इस इमारत को  Hiroshima Prefectural Industrial Promotion Hall के नाम से जाना जाता था और अपने हरे गुंबद के लिए शहर में दूर से ही इस  भवन  को पहचाना जाता था । द्वितीय विश्व युद्ध के समय इसे जापानी सरकार के आंतरिक सुरक्षा विभाग ने अपने कार्य हेतु ले लिया था। सन 1945 में यु्द्ध अपने समापन दौर में था। जर्मनी आत्मसमर्पण कर चुका था पर जापानी सम्राट हिरोहितो संधि के मूड में नहीं थे। युद्ध को जल्द खत्म करने के उद्देश्य से अमेरिका ने परमाणु बम का पहला इस्तेमाल 6 अगस्त 1945 को सुबह सवा आठ बजे अपने B 29 लड़ाकू विमानों से किया।

बुधवार, 27 अगस्त 2014

क्योटो के वे दस अविस्मरणीय क्षण .. 10 unforgettable moments of Kyoto !

यूँ तो क्योटो में बिताए दो दिनों में हमारा ज्यादा समय वहाँ के मंदिरों को देखने में बीता पर रात के वक़्त हम मुख्य शहर की गलियों और चौबारों में भी घूमे। हर साल जुलाई के महीने में क्योटो में जापान के सबसे बड़े पर्वों में से एक Gion Festival भी मनाया जाता है। हमारी खुशकिस्मती थी कि हम इस पर्व के बीचो बीच क्योटो पहुँचे और इस त्योहार के साथ होने वाली यात्रा जिसे आप रथ यात्रा सरीखा मान सकते हैं में शिरक़त की।

किसी शहर में जाकर कभी आप कुछ ऐसे लोगों से मिलते हैं, ऐसी चीज़े देखते हैं या ऐसे अनुभव से गुजरते हैं जो वो उस पल को यादगार बना देती हैं। वैसे तो क्योटो क्या जापान का ध्यान आने से मुझे सान जू सान गेनदो
 की याद पहले आती है पर इसके आलावा इस शहर की जिन यादो ने आज तक मेरा पीछा नहीं छोड़ा है उन्हें कुछ चित्रों के माध्यम से आप तक पहुँचा रहा हूँ। मुझे पूरा विश्वास है कि ये छवियाँ आपके दिलों के तार को इस शहर से जोड़ पाएँगी।
  • हीयान शिंतो पूजा स्थल के आहाते में बने  शुभ समझे जाने वाले धार्मिक प्रतीक चिन्ह अपनी खूबसूरती से ठिठक जाने को विवश करते हैं।

Shinto religious symbol at Heian Shrine, Kyoto


  • कियोमिजु मंदिर में स्वास्थ, प्रेम और धन की तीन गिरती जल धाराओं में एक को चुनती एक जापानी युवती। कहना ना होगा कि उसने प्रेम को चुना था :)

A Japanese girl drinking water from her favourite stream at Otawa Na Taki, Kiyomizu Temple

  • Gion Festival में जलते हुए ये खूबसूरत लैंप तरह तरह के रथों (Float) में लगाए जाते हैं और इन रथों के साथ आम जनता वैसे ही चलती है जैसे हमारे यहाँ की रथ यात्राओं में। इस रथ के ठीक सामने Selfie लेता एक जापानी युगल
A couple taking selfie in front of Yamaboko Float at Kyoto Gion Matsuri Festival

शुक्रवार, 22 अगस्त 2014

साफ पानी का मंदिर : कियोमिजू, क्योटो Clear Water Temple : Kiyomizu Dera, Kyoto

क्योटो भ्रमण में अब तक आप मेरे साथ हीयान के शिंतो पूजा स्थल, शिंतो और हिंदू सोच में समानता, सान जू सान गेन के बौद्ध मंदिर में वायु और वरूण जैसे भगवानों को अलग रूप में देख चुके हैं। क्योटो के मंदिरों से जुड़ी इस आख़िरी कड़ी में देखिए क्योटो के प्राचीनतम और बेहद पवित्र समझे जाने वाले कियोमिजू मंदिर की कुछ झलकियाँ। जापानी भाषा में कियोमिजू (Kiyomizu dera)का अर्थ होता है साफ पानी का मंदिर (Clear Water Temple)। ये मंदिर माउंट हिगाशियामा ( Mount Higashiyama ) के आँचल में अपने आप को पसारे हुए है और इसी पहाड़ी से होता हुआ झरना भी मंदिर परिसर से हो के बहता है जिसकी वज़ह से मंदिर का ये नाम पड़ा। वैसे इस मंदिर का इतिहास क्योटो शहर से भी पुराना है। जापानी सम्राट कम्मू (Kammu) द्वारा नारा से क्योटो को राजधानी बनाए जाने के छः वर्ष पूर्व ही सन 788 में इस मंदिर की नींव रखी गई। वैसे इस मंदिर के बनने की कहानी बहुत कुछ हमारे किलों और मंदिरों जैसी ही है।

इस मंदिर के बनने की कहानी सुनते हुए मुझे जोधपुर के मेहरानगढ़ की याद हो आई। किवदंती है कि नारा के एक पुजारी ने सपना देखा कि उसे किसी पहाड़ी पर साफ पानी का झरना मिलेगा और वहीं उसे एक मंदिर का निर्माण करना होगा। जब वो पुजारी इन पहाड़ियों पर पहुँचा तो उसे झरने के आलावा वहाँ एक साधू भी नज़र आया जो उसे देखते ही बोला कि मैं तुम्हारा ही इंतज़ार कर रहा हूँ। अब जबकि तुम यहाँ मंदिर की स्थापना के लिए आ गए हो मैं दूसरी जगह जाता हूँ।

साधू ने पुजारी को लकड़ी का एक टुकड़ा दिया और उस पर बोधिसत्व का रूप गढ़ने को कहा। बाद में वो पुजारी जब पहाड़ी के शिखर पर पहुंचा तो उसे संत की पादुकाएँ मिलीं। वो समझ गया कि संत के रूप में उसकी मुलाकात बोधिसत्व के ही एक रूप से हुई है। पुजारी ने वहाँ प्रतिमा तो स्थापित कर दी पर कालांतर में तत्कालीन सम्राट और उनके सेनापतियों द्वारा दान में दिए अपने महलों की लकड़ी की दीवारों से मंदिर का परिसर बना। जैसा कि जापान के अधिकांश मंदिरों के साथ होता आया है सन 1629 में यहाँ आग लगी जिसकी वज़ह से इसका पुनर्निर्माण करना पड़ा।


क्योटो के इस मंदिर परिसर के बाहर जब हमारी बस ने प्रवेश किया तो दिन के एक बज रहे थे। धूप थी पर बारिश के मौसम वाली उमस नदारद थी। मंदिर परिसर के बाहर उतरने से पता चल गया कि हम जिस मंदिर में आए हैं वो स्थानीय और बाहरी लोगों में कितना लोकप्रिय है। तोक्यो के सेंसो जी के बाद पहली बार इतनी भारी भीड़ देखने को मिली थी। मंदिर तक पहुँचने के लिए आधा पौना किमी हल्की चढ़ाई चढ़नी होती है। संकरी सी वो सड़क Ninnen Zaka और Sannen Zaka कही जाती है। क्योटो से जुड़ी पिछली पोस्ट में आपको बताया था कि जापान में एक, दो, तीन..को इचि, नी और सान कहा जाता है। यहाँ ऐसी धारणा है कि जो Ninnen Zaka पर चलते हुए लड़खड़ाया उसके दो साल बुरे गुजरेंगे वहीं Sannen Zaka पर ये दुर्भाग्य तीन साल तक चलेगा। बहरहाल हमें तो उस सड़क पर चलते हुए ये पता था नहीं सो अपने समूह के साथ तेज कदमों से भीड़ के बीच से अपने गाइड के साथ रास्ता बनाते हुए चल रहे थे।



सड़क के दोनों ओर भाँति भाँति के सोवेनियर और स्थानीय व्यंजन परोसते रेस्त्राँ थे। पर समय कम होने के कारण हम अपना ज्यादा वक़्त वहाँ नहीं दे पाए। पाँच मिनट तक तेजी से चलते हुए हम मंदिर के मुख्य द्वार Nio Mon (Gate of the Deva Kings)  पहुँचे।

मंदिर के द्वार के दोनों तरफ़ एक शेर नुमा जानवर की प्रतिमाएँ थी। चित्र में  दाँयी ओर जो सिंह दिख रहा है उसका मुँह खुला है वहीं दूसरी ओर बंद मुँह वाला शेर विराजमान है। जानते हैं क्यूँ ? बौद्ध ग्रंथों के हिसाब से ये शेर संस्कृत के 'अ' और 'ओम' का उच्चारण कर रहे हैं इसीलिए एक का मुँह खुला और दूसरे का बंद है।

सोमवार, 4 अगस्त 2014

Sanjusangen-do, Kyoto : सान जू सान गेन दो एक ऐसा बौद्ध मंदिर जहाँ भगवान बुद्ध की रक्षा करते हैं हिंदू देवी देवता !

हीयान शिंटो पूजा स्थल देखने के बाद भरी दोपहर में हम क्योटो के सबसे विख्यात मंदिरों में से एक Sanjusangen-do सान जू सान गेनदो पहुँचे। Sanjusangen-do नाम तो आपको बड़ा अटपटा लग रहा होगा। वैसे बोलने में क्लिष्ट ये नाम जापानी की गिनती गिनने के तरीके से आया है जो उतना कठिन भी नहीं हैं। जापानी में 1,2 और 3 के लिए इचि, नी और सान का प्रयोग करते हैं। इसी हिसाब से अगर 'जू' मतलब 'दस' तो 'नी जू' मतलब 'बीस' और 'सान जू' मतलब 'तीस'। यानि सान जू इचि, सान जू नी और सान जू सान का मतलब 31, 32 और 33 होगा। चूंकि ये मंदिर इसमें लगे 34 खंभो द्वारा 33 भागों में बाँटा गया है इसीलिए इसका नाम Sanjusangen-do यानि तैंतीस हिस्सों में बँटा परिसर रखा गया। 


पहली बार ये मंदिर 1164 ई में सम्राट शिराकावा के निर्देश पर बनाया गया।  तब इस परिसर में एक पाँच मंजिला पैगोडा और शिंतो पूजा स्थल भी हुआ करता था। पर दुर्भाग्यवश लकड़ी से बने इस मंदिर में 1249 ई में भीषण आग लगी जिसकी वज़ह से पूरा परिसर जलकर नष्ट हो गया। 1266 में मंदिर का 120 मीटर लंबा मुख्य कक्ष फिर से बनाया गया। इसमें प्राचीन मंदिर से बचा कर लाई गई 124 मूर्तियाँ भी थीं पर बाकी 876 मूर्तियाँ बाद में लगाई गयीं। जापान में इस मंदिर को हजार कैनोन वाले मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। पर ये कैनोन अवलोकितेश्वर आख़िर हैं कौन ? दरअसल महायान बौद्ध ग्रंथों का संदर्भ लें तो उनके अनुसार अवलोकितेश्वर,  भगवान बुद्ध के वो तैंतीस रूप हैं जिसमें वे मानव या जानवर का रूप धारण कर सजीव प्राणियों को धर्म का मतलब समझा सकें। इसमें सात स्त्री रूप भी शामिल हैं। इन रूपों के हिसाब से ही इस मंदिर को तैंतीस हिस्सों में बाँटा गया है।

मंदिर का पिछला हिस्सा जहाँ धनुर्धारी आज़माते हैं अपना निशाना
जापान में मैं चालीस दिनों के लिए रहा पर वो पल मैं आज भी नहीं भूल सकता जब मैंने इस मंदिर में प्रवेश किया। आख़िर क्या था ऐसा मंदिर में ? लकड़ी के ऊपर सोने के पानी से चमकते इन अवलोकितेश्वरों (Kannon) को देखकर तो कोई भी हैरत में पड़ जाएगा। पर जिस बात  ने मुझे अचंभे में डाल दिया वो ये कैनोन नहीं बल्कि उनकी रक्षा करते आगे की पंक्ति में खड़े ये प्रहरी थे। मानव या जानवर का मुँह लिए बोधिसत्व की रक्षा का भार सँभालते ये देव प्रहरी यूँ तो जापानी नैन नक़्श के थे पर जब मैंने इनके नाम पढ़ने शुरु किए तो खुशी से मेरी आँखें नम हो गयीं।

हज़ार कैननों से घिरे भगवान बुद्ध Buddha surrounded by 1000 Kannon (Scanned image)
भारत से पाँच हजार किमी से भी ज्यादा दूरी पर स्थित एक मंदिर जहाँ बौद्ध धर्म भारत से ना आकर चीन के रास्ते आया हो वहाँ भी भारतीय  देवी देवताओं की पहुँच हो जाएगी ऐसा मैं सपने में भी नहीं सोच सकता था। हर देवी देवता के जापानी नाम के साथ वहाँ वो संस्कृत नाम भी लिखे हुए थे जिनसे उनका उद्भव हुआ। वायु, वरुण, इंद्र, गरुड़, लक्ष्मी, विष्णु, ब्रह्मा, शिव सबका वास था वहाँ पर एक अलग ही रूप में। मैं सोच रहा था कि कितनी मजबूत होगी हमारी प्राचीन संस्कृति जिसकी मान्यताएँ धर्म के बदलाव के बाद भी साथ साथ जुड़ती हजारों किमी दूर चली आयीं।

रविवार, 27 जुलाई 2014

क्या अलग होता है एक जापानी उद्यान में ? Concept of a Japanese Garden

शिंटो और बौद्ध धर्म की भिन्नताओं और हिंदू व शिंटो जीवन शैली की समानताओं के बारे में तो आपने जान लिया। आज विषय थोड़ा पलटते हैं और ले चलते हैं आपको जापान की विशेष खासियत यहाँ के जापानी गार्डन में। सहज प्रश्न उठता है कि एक आम बागीचे से जापानी गार्डन या उद्यान किन अर्थों में भिन्न है? जापानी उद्यान,  उस सांस्कृतिक परंपरा के वाहक हैं जो Edo काल से चीन से प्रेरित हो कर जापान तक पहुँची। जापान की प्रकृति यहाँ के ज्वालामुखीय पर्वतों, छोटे छोटे झरनों, चट्टानों से सटे समुद्र तटों, सदाबहार वनों और विविध प्रकार के फूलों जो यहाँ के चार मुख्य मौसमों में अपना रंग बदलते हैं, से अटी पड़ी है। एक अलग तरह के उद्यान की परिकल्पना करते समय जापानियों ने इन प्राकृतिक तत्त्वों का इस्तेमाल इस तरह से किया कि चारों ओर फैली प्रकृति  एक छोटे रूप में एक उद्यान में समाहित हो जाए।

अपनी जापान यात्रा में हमें सिर्फ दो बार इन उद्यानों को करीब से देखने का मौका मिला एक तो क्योटो के हीयान शिंटो पूजा स्थल को देखते समय तो दूसरी बार कोकुरा के विख्यात महल की यात्रा पर। इन जापानी उद्यानों का स्वरूप भले सामान हो पर ये मुख्यतः दो कार्यों के लिए काम में लाए जाते रहे। बौद्ध मंदिरों के साथ बने उद्यान चिंतन मनन के लिए प्रयुक्त होते रहे वहीं महलों के समीप बने उद्यान राजाओं और उनके परिवारों के आरामगाह की भूमिका निभाते रहे।

तो आइए सबसे पहले चलें हीयान पूजा स्थल से सटे जापानी उद्यान में। इस उद्यान की रूपरेखा Ogawa Jeihi ने तैयार की थी। उद्यान में घुसने पर एक छोटा सा तालाब आता है जिसे पार कर मुख्य झील तक पहुंचा जा सकता है जिसके केंद्र में उद्यान बनाया गया है। मजेदार बात ये है कि इस तालाब को हरे दैत्य के तालाब के नाम से जाना जाता है।

Pond of the Green Dragon..Soryu-Ike हरे दैत्य वाला बाग
इस उद्यान की खास बात है कि सालों भर ये अपनी उस मौसम की विशिष्ट रंगत लिए होता है। वसंत में चेरी के पेड़ फूलों से लद जाते हैं, गर्मी और बरसात में वाटर लिली की चादर तालाब के ऊपर बिछ जाती है, पतझड़ में मेपल वृक्ष अपनी लाल नारंगी आभा से पूरा मंज़र बदल देते हैं तो जाड़े में तालाब के आस पास की इमारते सफेद बर्फ की चादर से ढक जाती हैं।
Dragon stepping stones or Garyu Kyo leading to Seiho lake
इन चीनी जापानियों को अपने दैत्य यानि Dragon से बड़ा लगाव है जहाँ तहाँ की मिल्कियत बस उसे थमा देते हैं। अब आदमी बागीचे की फिज़ाओं का आनंद ले के लिए घुसे वो भी हरे दैत्य के तालाब में पड़े पत्थरों पर चढ़कर :)
आइए हुज़ूर स्वागत है आपका मेरे इस हरे भरे इलाके में A lone bird welcoming us in the lake.

सोमवार, 21 जुलाई 2014

यादें क्योटो की : क्या फर्क है एक बौद्ध मंदिर औेर शिंतो पूजास्थल में ? Heian Shrine Kyoto : The difference between a Shinto and Buddhist Temple in Japan.

भारत में अगर मंदिरों के शहर की बात की जाए तो सबसे पहले वाराणसी यानि बनारस का ध्यान आता है। बनारस के हर दूसरे गली कूचे पर छोटे बड़े मंदिर आपको मिलते रहेंगे। पर बनारस से पाँच हजार से भी ज्यादा किमी की दूरी पर स्थित जापान का क्योटो शहर एक ऐसा शहर है जहाँ हजारों की संख्या में बौद्ध मंदिर और शिंतो पूजा स्थल है। जापान की कोई भी यात्रा बिना इसके धार्मिक शहर क्योटो में जाए अधूरी है। आज से ठीक दो साल पहले इसी जुलाई के महिने में मैंने आपने साथियों के साथ क्योटो की यात्रा की थी। पर इससे पहले कि आपको क्योटो के इन मंदिरों की सैर कराऊँ जापानियों की धार्मिक आस्था से आपका परिचय कराना आवश्यक रहेगा। 

अगर एक भारतीय से जापान के मुख्य धर्म के बारे में पूछा जाए तो अधिकांश का जवाब बौद्ध धर्म ही होगा। बहुत कम लोगों को पता है कि ज्यादातर जापानी बौद्ध और शिंतो जीवन पद्धति दोनों पर आस्था रखते हैं। बौद्ध धर्म तो चीन और कोरिया के रास्ते जापान आया पर शिंतो तो जापान के अंदर ही धीरे धीरे पनपा और पहली बार लिखित रूप में ईसा पूर्व छठी (660 BC) शताब्दी में आया। शिंतो धर्म की सबसे दिलचस्प बात है कि कई बातों में ये हिंदू धर्म दर्शन से मिलता जुलता है। हम अक्सर कहते हैं कि हिंदुत्व जीवन जीने की एक शैली है। वैसे ही शिंतो भी एक ऐसी जीवन पद्धति है जो आज के जापानियों को उनके पूर्वजों के तौर तरीकों से भिन्न भिन्न रीति रिवाज़ों के माध्यम से जोड़ती है। शिंतो धर्म जापान के अलग अलग अंचलों के निवासियों की धारणाओं का एक संकलित रूप है। हर इलाके में अलग अलग भगवान यानि कामी हो सकते हैं। हर कामी किसी न किसी प्राकृतिक शक्ति का प्रतिनिधित्व करता है। इतना ही नहीं हिंदू धर्म दर्शन की तरह ये कामी व्यक्ति के आलावा ब्रह्मांड में ईश्वर द्वारा निर्मित किसी भी सजीव या निर्जीव वस्तु जैसे पेड़, पहाड़ , नदी व जानवर में विद्यमान रह सकते हैं।



जब हमारा समूह टोक्यो से शिनकानशेन यानि वहाँ की बुलेट ट्रेन से क्योटो पहुँचा तो दिन के ग्यारह बज रहे थे। क्योटो के मंदिरों को देखने के लिए हमारे पास सिर्फ आधे दिन का वक़्त था। हल्का फुल्का जलपान कर हम वहाँ आए अन्य देशों के पर्यटकों के साथ क्योटो के तीन बड़े मंदिरों की सैर पर निकल पड़े। हमारा गाइड बेहद हँसमुख स्वाभाव का था। उसने मुझसे पूछा कि आप के यहाँ अभिवादन कैसे करते हैं? मैंने कहा हाथ जोड़ के। वो मुस्कुराते हुए बोला कि कम से कम जापान में आप ऐसा ना करें तो अच्छा है। जापान में भी सम्मान में हाथ जोड़ने का प्रावधान है पर वैसे लोगों के लिए जो गुज़र चुके हों। क्योटो शहर का हमारा पहला पड़ाव था Heian Shrine जो कि एक शिंतो पूजास्थल है। शिंतो पवित्र स्थलों और बौद्ध मंदिरों के बीच में सबसे बड़ा फर्क ये है कि शिंतो पूजास्थल के सामने ऊपर के चित्र के आकार का ब्राह्य दरवाज़ा होता है जिसे तोरी (Torii) कहा जाता है। 


इसके विपरीत बौद्ध मंदिरों में बहुमंजिला शंकु का आकार लेती इमारत यानी पैगोडा को देखा जा सकता है। नाम के उच्चारण से भी आप ये पता कर सकते हैं कि कौन सा मंदिर बौद्ध है और कौन शिंतो ? सारे बौद्ध मंदिरों के अंत में 'जी' प्रत्यय लगता है जैसे सेंसो जी, तोदा जी आदि । जैसा कि आप जानते हैं कि बौद्ध मंदिरों में प्रार्थना पूरी शांति से की जाती है। पर Heian Shrine में जाकर हमें  शिंतो पवित्र स्थल में पूजा की दिलचस्प पद्धति का पता चला। भारत की तरह मंदिरों में चप्पल पहनने की इज़ाजत नहीं है। जब आप पूजा स्थल के मुख्य कक्ष के सामने जाते हैं तो दो बार हाथों को एक दूसरे के समानांतर ले जाकर ताली बजानी पड़ती है। जापानी मान्यता के अनुसार ऐसा इसलिए किया जाता है कि पूर्वजों की आत्मा जान जाएँ कि आप उन्हें अपने श्रद्धासुमन अर्पित करने आए हैं। एक बार भगवन जाग गए तो आप हाथ जोड़ उनका नमन कर सकते हैं :)।


Heian Shrine  में मुख्य दरवाजे से घुसने के बाद ही जापानी महल का हिस्सा दायीं ओर दिखता है। दरअसल ये पवित्र स्थल हीयान शासन काल में बनाए गए महल के स्वरूप में उसके मूल आकार से 5/8 भाग छोटा कर बनाया गया है। इतिहासकार मानते हैं कि जापान सम्राट Kammu  ने बौद्ध पुजारियों के राजकाज में बढ़ते दखल से परेशान होकर 794 ई में जापान की राजधानी नारा से बदल कर हीयान (Heian) कर दी। हीयान आज के क्योटो का प्राचीन नाम है। क्योटो शहर के ग्यारह सौ साल पूरे होने पर इसके प्रथम सम्राट Kammu  और आख़िरी सम्राट Komei की स्मृति में इस पूजा स्थल का निर्माण किया गया था। बाद में मेज़ी शासनकाल में ये राजधानी टोक्यो में तब्दील हो गई। हालांकि ऐसा करते समय सम्राट द्वारा कोई राजकीय फ़रमान नहीं जारी किया गया। इसीलिए आज भी कुछ लोग क्योटो को सैंद्धांतिक रूप से जापान की राजधानी मानते हैं।

शनिवार, 2 नवंबर 2013

कैसी रही मेरी जापानी बुलेट ट्रेन यानि 'शिनकानसेन' में की गई यात्रा ? (Experience of traveling in a Shinkansen !)

जापान जाने वाले हर व्यक्ति के मन में ये इच्छा जरूर होती है कि वो वहाँ की बुलेट ट्रेन में चढ़े। हमारे समूह ने भी सोचा था कि मौका देखकर हम तोक्यो में रहते हुए अपनी इस अभिलाषा को पूरा करेंगे। ये हमारी खुशनसीबी ही थी कि हमारे मेजबान JICA ने खुद ही ऐसा कार्यक्रम तैयार किया कि तोक्यो से क्योटो और फिर क्योटो से कोकुरा की हजार किमी की यात्रा हमने जापानी बुलेट ट्रेन या वहाँ की प्रचलित भाषा में शिनकानसेन से तय की। जापान प्रवास के अंतिम चरण में कोकुरा से हिरोशिमा और फिर वापसी की यात्रा भी हमने इस तीव्र गति से भागने वाली ट्रेन से ही की। वैसे अगर ठीक ठीक अनुवाद किया जाए तो शिनकानसेन का अर्थ होता है नई रेल लाइन जो कि विशेष तौर पर तेज गति से चलने वाली गाड़ियों के लिए बनाई गई। शिनकानसेन का ये नेटवर्क वैसे तो पाँच हिस्सों में बँटा है पर हमने इसके JR Central और JR West के एक छोर से दूसरे छोर तक अपनी यात्राएँ की। चलिए आज आपको बताएँ कि जापानी बुलेट ट्रेन में हमारा ये सफ़र कैसा रहा?
 

पहली नज़र में 16 डिब्बों की शिनकानसेन, ट्रेन कम और जमीन पर दौड़ने वाले हवाई जहाज जैसी ज्यादा प्रतीत होती है। इसकी खिड़कियों की बनावट हो या इसके इंजिन की, सब एक विमान में चढ़ने का सा अहसास देते हैं। वैसे तो टेस्ट रन (Test Run) में ये बुलेट ट्रेनें पाँच सौ किमी का आँकड़ा पार कर चुकी हैं पर हमने जब तय की गई दूरी और उसमें लगने वाले समय से इसकी गति का अनुमान लगाया तो आँकड़ा 250 से 300 किमी प्रति घंटे के बीच पाया। वैसे आधिकारिक रूप से इनकी अधिकतम गति 320 किमी प्रति घंटे की है।


पूरी यात्रा के दौरान एक बार हमें हिरोशिमा में ट्रेन बदलनी पड़ी। जब हमने अपने टिकट देखे तो हम ये देख कर आवाक रह गए कि  हमारी ट्रेन के हिरोशिमा पहुँचने और हिरोशिमा से दूसरी ट्रेन के खुलने के समय में मात्र दो मिनट का अंतर था। हमारे मेजबान से बस इतना एहतियात बरता था कि दोनों गाड़ियों  के कोच इस तरह चुने थे कि वे आस पास ही रहें। पर ज़रा बताइए तेरह हजार येन के टिकट पर दो मिनटों का खतरा भला कौन भारतीय उठाने को तैयार होगा? 

सोमवार, 28 अक्टूबर 2013

कैसे करें तोक्यो में रेल की सवारी ? (Mastering train travel in Tokyo.)

ढाई दिनों के तोक्यो प्रवास में मैंने तोक्यो महानगर का जितना हिस्सा देखा वो तो आपको भी दिखा दिया। वैसे तो तोक्यो जैसे विशाल शहर को देखने के लिए महिनों और समझने के लिए वर्षों लगेंगे पर एक बात तो तोक्यो में पाँव रखने के कुछ घंटों में ही मेरे पल्ले पड़ गई कि अगर इस शहर में घूमना है तो सबसे पहले आपको इसके जबरदस्त रेल नेटवर्क को समझना होगा। वैसे तो तोक्यो आने से पहले मैं Kitakyushu के रेल नेटवर्क पर कई बार सफ़र कर चुका था पर तोक्यो आने के कुछ घंटों में पहली बार जब इस नेटवर्क की वृहदता का सामना हुआ तो पहले का सँजोया आत्मविश्वास जाता रहा । 



जैसा कि मैंने आपको पहले बताया था कि Kitakyushu से तोक्यो पहुँचते पहुँचते शाम हो गई थी। अगले दो दिनों का कार्यक्रम इतना कसा हुआ था कि अगर किसी से मिलना हो तो यहीं समय इस्तेमाल किया जा सकता था। मुनीश भाई से फोन नंबर तो लिया था पर ऐन वक़्त पर संपर्क ना हो सका। तोक्यो में एक करीबी रिश्तेदार के यहाँ जाना भी अनिवार्य था तो उन्हें आफिस से सीधे अपने हॉस्टल बुला लिया। अपने पास के स्टेशन से उनके स्टेशन तक पहुँचने के लिए हमने चार बार ट्रेनें बदलीं और वो भी बिना विराम के। यानि एक ट्रेन से उतरे, दूसरी  का टिकट लिया और लो ट्रेन आ भी गई। यात्रा कै दौरान वो मुझे समझाते रहे ताकि मैं  उसी मार्ग से अकेले वापस आ सकूँ। पर तीसरी ट्रेन बदलने के बाद मेरे चेहरे के भावों से उन्होंने समझ लिया कि ये इनके बस का नहीं है। सो कुछ घंटों के बाद जब मैं वापस लौटा तो उन्हें मेरे स्टेशन तक साथ ही आना पड़ा।

वैसे तो तोक्यो के रेल नेटवर्क में विभिन्न स्टेशनों पर अंग्रेजी जानने वाले लोगों को ध्यान में रखकर सारे चिन्ह जापानी के आलावा अंग्रेजी में भी प्रदर्शित किए गए हैं पर मुख्य मुद्दा भाषा का नहीं पर उस वृहद स्तर का है जिसको देख भारत जैसे देश से आया कोई यात्री सकपका जाता है। मिसाल के तौर पर नीचे का दिया गया मानचित्र देखिए। जापान से संबंधित हर यात्रा पुस्तक में आपको सबसे पहले इसके दर्शन होते हैं और इसकी सघनता  देख मानचित्रों में खास रुचि रखने वाले मेरे जैसे व्यक्ति के भी पसीने छूट गए थे।।

झटका तब और लगता है जब ये पता चलता है कि कुछ निजी कंपनियों के स्टेशन तो इसमें दिखाए ही नहीं गए हैं। दुर्भाग्य से मेरे हॉस्टल के पास का स्टेशन भी उसी श्रेणी में था।

भारतीय रेल की समय सारणी से माथा पच्ची के दौरान कभी ना कभी आप भी परेशान हुए होंगे। मेरे लिए पहली ताज्जुब की बात ये थी कि तोक्यो में लगभग दर्जन भर निजी कंपनियाँ अपनी अलग अलग ट्रेन चलाती हैं। और तो और अगर आप शिंजुकु और शिबूया जैसे बड़े स्टेशनों पर पहुँच गए तो आपको पता चलेगा कि एक ही जगह पर चार अलग अलग स्टेशन हैं। जापानियों ने जमीन को कितना खोदा है ये इसी से समझिए कि एक बार जिस स्टेशन पर मैं उतरा उसके दो निचले तल्लों पर दो दूसरे और एक स्टेशन उसके ऊपरी तल्लों पर था। अगर आपको कहीं जाना हो तो पहले स्टेशन पर दिए हुए चार्ट या मानचित्र से अपना रास्ता पता कीजिए। फिर ये देखिए कि आप जिस स्टेशन पर हैं उसे चलाने वाली रेल कंपनी की ट्रेन सीधे उस स्टेशन तक जाती है या नहीं और अगर नहीं तो किस स्टेशन पर उतरकर आपको दूसरी रेल कंपनी की गाड़ी पकड़नी है? तोक्यो में हम जितने दिन रहे ऊपर के प्रश्न का जवाब अपने हॉस्टल के सहायता कक्ष से ले लेते थे। एक बार आपकी ये समस्या दूर हो जाए तो समझिए पचास प्रतिशत काम हो गया।

स्टेशन पर टिकट खरीदने की प्रक्रिया शायद विदेशों में कमोबेश एक जैसी ही है। ऍसा मुझे तोक्यो के बाद पिछले हफ्ते बैंकाक की Sky Train पर यात्रा करने के बाद महसूस हुआ। एक बार गन्तव्य स्टेशन का किराया पता लग जाए तो आप वहाँ की मुद्रा टिकट मशीन में डालिए। तोक्यो आने से पहले तक हम अधिकतर टिकट आफिस में जाकर ही टिकट खरीद लेते थे। मशीन का प्रयोग करने से कतराने का कारण भारतीय मानसिकता थी। हम लोगों के दिमाग में होता कि अगर ज्यादा पैसे डाले और बाकी के बचे पैसे बाहर नहीं आए तब क्या होगा? पर तोक्यो में वो विकल्प ही नहीं था। मशीन में पहले किराया निश्चित करना होता था और फिर एक एक कर के पैसे डालने होते थे जैसे ही किराये से डाले गए पैसे बढ़ जाते छनाक की आवाज़ के साथ बाकी पैसों के साथ टिकट निकल आता और मजाल है कि आपका पैसा कभी मशीन में फँसा रह जाए।

हाँ ये जरूर है कि मँहगी जगह होने के कारण उस वक्त तोक्यो में किसी भी स्टेशन का न्यूनतम भाड़ा चाहे वो पाँच किमी की दूरी पर ही क्यूँ ना हो सौ रुपये से कम नहीं था। बैकांक में ये दर पचास साठ रुपये के पास थी। वैसे तोक्यो में अन्य महानगरों की तरह विदेशी नागरिक हजार येन का टिकट ले कर मेट्रों से शहर के भीतर कहीं आ जा सकते हैं। एक बार टिकट लेने के बाद इंगित चिन्हों और सूचना पट्ट पर आती जानकारी से अपने प्लेटफार्म पर पहुँचना कोई मुश्किल बात नहीं थी। तोक्यो में प्लेटफार्म पर पहँचने के बाद ट्रेन के लिए कभी पाँच मिनटों से ज्यादा की प्रतीक्षा नहीं करनी पड़ी। पर हाँ प्लेटफार्म पर ये नहीं कि आप जहाँ मर्जी खड़े रहें। चाहे भीड़ हो या नहीं आपको दरवाजा खुलने की जगह पर पंक्ति बना कर खड़ा रहना है। उतरने वालों की प्रतीक्षा करनी है और फिर पंक्ति के साथ अंदर घुसना है। अगर आपको ये लग रहा हो कि जापान की मेट्रो में हमारे मुंबई महानगर में दौड़ने वाली मेट्रो से कम भीड़ होती होगी तो आप का भ्रम अभी दूर किए देते हैं। कार्यालय के समय में इन डिब्बों में तिल धरने की भी जगह नहीं होती पर फिर भी हर स्टेशन पर बिना किसी हल्ले गुल्ले के लोगों का चढ़ना उतरना ज़ारी रहता है।



तोक्यो का सरकारी पर्यटन  केंद्र शिंजुकु इलाके में हैं जहाँ से तोक्यो के विभिन्न हिस्सों के लिए टूर कराए जाते हैं। ट्रेन से पहले आपको आपके गन्तव्य स्टेशन के पास ले जाया जाता है और फिर वहाँ से एक या दो गाइड आपको उसके आस पास के इलाके पैदल घुमाते हैं। बस भी यहीं काम करती हैं पर वे अपेक्षाकृत मँहगी है। अब दो से तीन हजार रुपये का चूना लगवाने के बजाए अगर आप ट्रेन टिकट खरीदकर और फिर लोगों से पूछते हुए अपने गन्तव्य तक पहुँच जाएँ तो जेब भी हल्की नहीं होगी और अपने समय का अपनी इच्छा से उपयोग करने की भी सुविधा रहेगी। हमारे समूह ने तो यही किया । तोक्यो में बिताए साठ घंटों में अलग अलग कंपनियों की ट्रेनों में सवार होकर मैं आपको Shinjuku, Roppongi Hills, Akihabara, Asakusa, Sky Tree और Tokyo Tower जैसी जगहें दिखा सका। वैसे तोक्यो के रेल मानचित्र में ये जगहें कितनी दूर हैं वो यहाँ देखिए।


वेसे इन स्टेशनों से निकलकर बाहर सड़क पर आने के लिए कभी कभी आपको दो सौ से चार सौ मीटर दूरी तय करनी पड़ सकती है। पर घबराइए नहीं रास्ते के दोनों ओर सजी दुकानें आपको ये अहसास ही नहीं होने देंगी कि आप स्टेशन से निकल रहे हैं। तोक्यो के रेल नेटवर्क की इतनी बात हो और शिनकानसेन (Shinkansen) यानि बुलेट ट्रेन का जिक्र नहीं आए ये कैसे हो सकता है? तोक्यो से अपने अगले गन्तव्य क्योटो तक पहुँचने के लिए हमें इसकी ही मदद लेनी पड़ी और इसी वज़ह से हमें तोक्यो के मुख्य स्टेशन के दर्शन हो गए जहाँ से ये ट्रेन चलती है।




जापान की यात्रा को कुछ दिनों के लिए यहीं विराम देते हुए मैं आपको अगली कुछ प्रविष्टियों में ले चलूँगा राजस्थान के जैसलमेर और बीकानेर की यात्रा पर। अगर आपको मेरे साथ सफ़र करना पसंद है तो फेसबुक पर मुसाफ़िर हूँ यारों के ब्लॉग पेज पर अपनी उपस्थिति दर्ज़ कराना ना भूलें। मेरे यात्रा वृत्तांतों से जुड़े स्थानों से संबंधित जानकारी या सवाल आप वहाँ रख सकते हैं।

तोक्यो दर्शन (Sights of Tokyo) की सारी कड़ियाँ

सोमवार, 7 अक्टूबर 2013

तोक्यो दर्शन : देखिए तोक्यो का सबसे पुराना बौद्ध मंदिर सेंसो जी ! (Sensoji Temple, Asakusa, Tokyo)

जापान के चालीस दिन के प्रवास में उनकी जिस सास्कृतिक परंपरा में मुझे सबसे ज्यादा भारतीयता का अक़्स दिखा वो था उनका अपने धर्म के प्रति नज़रिया। ख़ैर उनके इस नज़रिए के बारे में विस्तार से बात तब होगी जब मैं आपको उनके धार्मिक शहर क्योटो (Kyoto) की यात्रा पर ले चलूँगा। पर आज मेरा इरादा आपको तोक्यो शहर के सबसे प्राचीन और लोकप्रिय मंदिर सेंसो जी (Senso Ji)  घुमाने का है। प्राचीन इसलिए कि इस मंदिर का निर्माण आज से करीब चौदह सौ वर्ष पूर्व यानि सातवीं शताब्दी में हुआ और लोकप्रिय इसलिए कि हर साल करीब तीन करोड़ लोग इस मंदिर के दर्शन करते हैं। वैसे तोक्यो का एक और प्रसिद्ध मंदिर Meiji Shrine है जो कि एक शिंटो Shinto मंदिर है। आपके मन में एक सवाल जरूर उठ रहा होगा कि बौद्ध और शिंटो की धार्मिक आस्थाओं में क्या कोई फर्क है? इस प्रश्न का जवाब आपको मैं क्योटो के शिंटो मंदिर दिखा कर ही बता पाऊँगा। 

सेंसो जी  असाकुसा (Asakusa) स्टेशन से दस पन्द्रह मिनट के पैदल रास्ते के बाद दिखने लगता है। ये मंदिर असाकुसा में जिस जगह विद्यमान है उसके पीछे एक बड़ी दिलचस्प कथा है। 628 ई में मार्च के महिने में जब दो मछुआरे सुमिदा नदी (Sumida River) में मछली पकड़ रहे थे तब उन्हें भगवान बुद्ध (Asakusa Kannon) की मूर्ति मिली। जब इस बात की ख़बर असाकुसा गाँव के मुखिया को मिली तो उन्होंने इस मूर्ति को अपने घर में स्थापित किया और सारा जीवन इसकी सेवा में बिता दिया। कालांतर में अनके शासकों और सेनापतियों द्वारा इस मंदिर के विभिन्न द्वारों और कक्षों का निर्माण हुआ। 

 मंदिर परिसर की शुरुआत  Kaminarimon Gate यानि तूफानी द्वार से शुरु होती है। दसवीं शताब्दी में पहली बार बने इस द्वार में मंदिर के प्रहरी के रूप में वायु और तूफान के देवताओं की प्रतिमा लगाई गई थी। इस द्वार के दो सौ मीटर आगे एक और विशाल द्वार है जिसे Hozomon द्वार कहते हैं। दसवीं शताब्दी में सेनापति तायरा ने तोक्यों और उसके आस पास के इलाकों को अपने प्रभुत्व में आने के लिए यहीं प्रार्थना की थी। इस आलीशान द्वार का निर्माण उसी मनोकामना के पूर्ण होने पर किया गया।

Hozomon Gate, Senso ji Temple

मंदिर का मुख्य कक्ष यूँ तो Edo काल की देन है पर द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान इसका एक बड़ा हिस्सा तहस नहस हो गया था। साठ के दशक में जब इसे दोबारा बनाया गया तो इसका आकार तो वही रहा पर छत लकड़ी की जगह कंक्रीट की बनी और उस पर टाइटेनियम की टाइलें लगायी गयीं।


अचरज की बात ये है कि मुख्य मंदिर में कहीं भी बोधिसत्व की मूर्ति नज़र नहीं आती है। इतिहास के पन्नों को उलटने पर पता चला कि सातवी शताब्दी में इसके निर्माण के समय बौद्ध पुजारियों को सपने में संदेश मिला कि बुद्ध की मूर्ति को लोगों की नज़रों से दूर रखना है इसलिए मूर्ति इस तरह स्थापित की गई कि उसे आगुंतक देख ना सकें। तभी से ये परंपरा चली आ रही है।
मंदिर के मुख्य कक्ष तक पहुँचने के पहले ही लोग इस विशाल पात्र में जल रहे दीपकों की आँच को अपने शरीर से लगाते हैं।


मंदिर में प्रवेश करने के पहले अपने को शुद्ध करने के लिए लोग फव्वारे से गिर रहे पानी को कलछुल जैसे पात्र से उठाते हैं और अपने हाथों को धोते है और पानी को पीते हैं। 

अगर आप ये समझते हैं कि सारे भाग्यवादियों ने सिर्फ हिंदुस्तान में डेरा डाला हुआ है तो ज़रा ठहरिए। मुख्य मंदिर के दोनों ओर जो दो अपेक्षाकृत छोटी इमारते दिख रही हैं वहाँ  रखी लकड़ी की आलमारियों की दराजें आपका भाग्य बताने के लिए तैयार हैं। थोड़ी राशि दान में खर्च कीजिए और फिर एक दराज खींचिए। उसमें से एक क़ाग़ज का टुकड़ा निकलेगा जो आपके आने वाले दिनों की भविष्यवाणी करेगा। युवा जापानियों को मैंने कई बार इसका इस्तेमाल करते हुए देखा।

मुख्य मंदिर से Hozomon द्वार के आगे जाने पर यहाँ का प्रसिद्ध बाजार Nakamise Shopping Street शुरु होता है। दो सौ मीटर लंबाई में फैला ये बाजार सेंसो जी जितना पुराना तो नहीं पर पहली बार ये इस रूप में यहाँ अठारहवीं शताब्दी में पदार्पित हुआ था। जापान से अपने नाते रिश्तेदारों के लिए कुछ लेना हो तो ये उसके लिए अच्छी जगह है। मोल भाव करने पर बीस से तीस फीसदी दाम कम भी हो जाते हैं।

मंदिर प्रागण में स्थित ये पाँच मंजिला पैगोडा मंदिर की भव्यता को बढ़ाता है। दसवीं शताब्दी में बनने के बाद आग लगने की वज़ह से कई बार ये  क्षतिग्रस्त हुआ । बुद्ध से जुड़े धर्मग्रंथ इसकी सबसे ऊपरी मंजिल पर रखे गए हैं।


करीब एक घंटे मादिर प्रांगण में बिताने के बाद जब हम बाहर निकले तो शाम हो चुकी थी और मंदिर के कपाट भी बंद हो चुके थे।


इस मंदिर यात्रा से आपको क्या ऐसा नहीं लगा कि जापानी संस्कृति का ये हिस्सा हमारे तौर तरीकों से कितना मिलता है? जब मैं शिंटो पद्धति से जीवन जीने के बारे में आपको बताऊँगा तो आपको ये समानता और स्पष्ट होगी। जब तक ये प्रविष्टि आपके सामने होगी मैं थाइलैंड के समुद्री तटों की यात्रा पर रहूँगा। लौट कर इस श्रंखला को जारी रखते हुए आपको बताऊँगा कि तोक्यो घूमने के लिए क्यूँ जरूरी है यहाँ के रेल तंत्र को समझना?

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तोक्यो दर्शन (Sights of Tokyo) की सारी कड़ियाँ

सोमवार, 30 सितंबर 2013

तोक्यो दर्शन : इलेक्ट्रिक टाउन , स्काई ट्री,शाही बाग और जापानी संसद (Akihabara Electric Town, Asakusa, Tokyo Sky Tree, Diet & Imperial Garden)

तोक्यो दर्शन में अब तक आपने शिंजुकु की गगनचुंबी इमारतें और जापान की राजधानी में रात की चकाचौंध देखी । साथ ही यहाँ की प्रसिद्ध नाइट लाइफ से जुड़े मेरे अनुभवों को पढ़ा। आज आपको लिए चलते हैं तोक्यो के दो नामी इलाकों अकिहाबारा ( Akihabara ) और असाकुसा ( Asakusa ) की सैर पर। शिंजुकु के मेट्रोपॉलिटन टॉवर से तोक्यो का विहंगम दृश्य देख लेने के बाद हमने स्टेशन से Akihabara की लोकल ट्रेन पकड़ी। Akihabara या संक्षेप में 'Akiba' कहे जाने वाले इलाके को तोक्यो में इलेक्ट्रिक टाउन के नाम से जाना जाता है। जापानी भाषा में Akihabara का अर्थ है 'Field of Autumn Leaves'. 

अब अकिहाबारा का ये नाम कैसे पड़ा ये तो मालूम नहीं पर सारे सैलानी इलेक्ट्रानिक सामानों की खरीदारी के लिए यहीं पहुँचते हैं। मैं अपने एक मित्र के साथ जब यहाँ पहुँचा तो उस वक़्त दिन के एक बज रहे थे। स्टेशन से निकलते ही बड़ी बड़ी रंग बिरंगी होर्डिंगों से सुसज्जित दुकानों की लंबी कतारें दिखीं। एक और तो बड़े बड़े ब्रांड को एक ही छत के अंदर बेचने वाले विशालकाय शोरूम थे तो दूसरी ओर किसी एक खास उत्पाद से जुड़ी छोटी छोटी दुकानें। हम कम्पयूटर हार्डवेयर से जुड़ी कुछ छोटी दुकानों में घुसे । कीमतें भारतीय कीमतों से कम कहीं नज़र नहीं आयीं। हम विंडो शॉपिंग कर ही रहे थे कि अचानक हमें एक दुकान पर दो दक्षिण भारतीय युवा दिखे। जैसा कि हमने पिछली रात किया था, उनसे परिचय लेने के बाद हमने आस पास कही भारतीय रेस्त्राँ होने की बात पूछी। उन्होंने जो रास्ता बताया हम उसी पर चल पड़े।


कुछ ही देर में हम Yadobashi के इस विशाल आठ मंजिला शो रूम के सामने थे। Yadobashi Camera के जापान में कुल 21 स्टोर हैं और ये आधुनिक इलेक्ट्रानिक उत्पादों को सही कीमत पर खरीदने के लिए जापान के अग्रणी स्टोरों में से एक माना जाता था। हमारा भारतीय  भोजनालय भी इसके सबसे ऊपरी तल्ले पे था। सो हमने सोचा कि भोजन करने के बाद इसके सारे तल्लों को एक बार घूम कर देखा जाएगा। नॉन, दाल और सब्जी का जायका लेने के बाद हमने एक घंटे से कुछ ज्यादा का समय इस स्टोर में बिताया। कंप्यूटर, कैमरे और तमाम इलेक्ट्रानिक उपकरणों का जो जख़ीरा यहाँ देखने को मिला वो मैंने तो पहले कभी नहीं देखा था। कल्पना कीजिए की एक  मोटराइज्ड टूथब्रश जो मुँह के अंदर जाते ही अपने आप ही आपके दाँतों की सफाई करे। एक कुर्सी जो आपको बैठाने के आलावा आपके अंग अंग की मालिश करे और ना जाने कितने और उत्पाद जिनके प्रयोग के बारे में हम समझ नहीं सके। ख़ैर  हमने छिटपुट खरीदारी की और वहाँ से निकल कर असाकुसा की ओर चल पड़े।


असाकुसा की ये इमारत अपने विलक्षण आकार की वज़ह से तुरंत ध्यान खींचती है। दरअसल ये असाकुसा का सांस्कृतिक सूचना केंद्र  ( Asakusa Cultural Information Center) है जिसे पिछले साल यानि 2012 में बनाया गया है।


असाकुसा में टहलते हुए इस इमारत ने भी ध्यान खींचा। पहले इसके गेट को देख कर मंदिर होने का आभास हुआ। अब एक भारतीय मन दरवाजे पर गाय की प्रतिमा देख कर और क्या समझे ? पर बगल की अंग्रेजी तख्ती पर जानवरों का अस्पताल लिखा देख भ्रम की स्थिति बनी रही।


असाकुसा स्टेशन के पास से यहाँ  की Sumida नदी बहती है और वहीं पर मोटरबोट से नदी में सैर की व्यवस्था है। अमूमन पन्द्रह मिनट से लेकर पौन घंटे की सैर में नदी के दोनों ओर बनी ऊँची ऊँची इमारते ही दिखाई पड़ती हैं। ऐसी एक यात्रा आपकी जेब को पाँच सौ से आठ सौ रुपयों तक हल्का कर सकती है।

वैसे इस नौकाविहार का सबसे आकर्षक दृश्य असाकुसा के पास ही दिखाई पड़ता है। जब नवनिर्मित स्काई ट्री के साथ Asahi Beer की इमारत भी नज़र आती है। इस इमारत की ख़ासियत ये है कि इसका आकार बीयर के गिलास की तरह है जिसके ऊपर 360 टन की स्वर्णिम संरचना बीयर के हृदय की आग और उफनते फेन का परिचायक है। इसीलिए 1989 में बनी इस सुनहरी काया का इसके फ्रेंच डिजाइनर ने नाम रखा Flamme d'Or।


तोक्यो स्काई ट्री जापान का सबसे ऊँचा टॉवर है। 634 मीटर ऊँचे इस टॉवर में दो Observation Decks हैं। एक की ऊँचाई 350 मीटर और दूसरे की 450 मीटर है। स्काई ट्री का निर्मार्ण टेलीविजन संकेतों के प्रसारण के लिए किया गया। समयाभाव के कारण मैं ना तो स्काई ट्री के ऊपर वढ़ा और ना ही नदी में मोटरबोट के जरिए घूम पाया। पर सेन्सो जी मंदिर और असाकुसा की गलियों में चक्कर काटने में कोई कसर नहीं छोड़ी। अगली सुबह हम तोक्यो स्टेशन से जापान के धार्मिक शहर क्योटो की ओर कूच करने के लिए तैयार थे।

तोक्यो स्टेशन के ठीक पहले ही हमें यहाँ के सम्राट के लिए बनाए गए महल के पास वाले हिस्से से गुजरे।  महल के चारों ओर सुरक्षा के लिए बनाई गई बावड़ी है जिसके ऊपर महल के भिन्न दरवाजों तक पहुँचने के लिए इन छोटी छोटी पुलिया  की सहायता लेनी पड़ती है। 


कंक्रीट के जंगल से अलग तोक्यो का ये इलाका अपनी हरियाली से मन मोह लेता है। साढ़े आठ बजे भी भारी संख्या में लोग सुबह की सैर करते दिखाई पड़े। वैसे भी जापानी अपने स्वास्थ को लेकर काफी सजग होते हैं।


इंपीरियल गार्डन के किनारे किनारे चलते हुए हमारी बस जापान की संसद डाइट के सामने जा पहुँची। भारतीय संसद की तुलना में ये एक छोटी इमारत है और इसके शिल्प में यूरोपीय वास्तुलकला की सीधी छाप दिखाई देती है।


तोक्यो दर्शन से जुड़ी आगामी प्रविष्टियों में बाकी है बाते Senso Ji और Tokyo Railway की।
 
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शुक्रवार, 20 सितंबर 2013

तोक्यो दर्शन : कैसे जगमगाता है रात में तोक्यो टॉवर ? (Night Scenes of Tokyo Tower , Shinjuku & Roppongi)

जापान की सड़कों पर गुजरी पहली शाम का आँखों देखा हाल तो आपको अपनी इस प्रविष्टि में बताया ही था। आज देखिए रात में जगमगाते तोक्यो टॉवर और Shinjuku एवम् Roppongi के बाजारों की कुछ तसवीरें..

कुछ साल पहले तक 333 मीटर ऊँचा तोक्यो टॉवर तोक्यो शहर की पहचान माना जाता था। इसका इस्तेमाल जापान में पहले रेडिओ और फिर टीवी ब्राडकॉस्टिंग के लिए किया जाता रहा। इस टॉवर पर 150 मीटर की ऊँचाई पर एक Observation Deck है पर हम वहाँ नहीं गए क्यूँकि उसके लिए अच्छा खासा टिकट था। पिछले साल तोक्यो में तो्क्यो स्काई ट्री (Tokyo Sky Tree) बन जाने के बाद जो कि इससे भी ऊँचा टॉवर है, तोक्यो टॉवर के प्रति लोगों का आकर्षण कम हुआ है। वैसे तोक्यो में रहते हुए अगर इस टॉवर के दर्शन करने हों तो रात में ही करें। देखिए नारंगी रंग के प्रकाश में किस तरह नहाया हुआ है तोक्यो टॉवर !

तोक्यो टॉवर (Tokyo Tower)

तोक्यो टॉवर से Roppongi Hills का इलाका बेहद पास में है। यहाँ की प्रसिद्ध इमारत मोरी टॉवर है जिसे  प्रसिद्ध बिल्डर मिनोरू मोरी (Minoru Mori) के नाम पर बनाया गया है। 53 मंजिली ये इमारत 248 मीटर ऊँची है। इसके बावनवें तल्ले के Observation Deck तोक्यो शहर का मनमोहक दृश्य मिलता है। पर रात में इस टॉवर के इर्द गिर्द चक्कर काटने के बावज़ूद हम ऊपर जाने का रास्ता नहीं ढूँढ पाए। इस टॉवर के पास ही मोरी म्यूजियम है।

Roppongi चौक के पार्श्व में दिखता मोरी टॉवर (Mori Tower in background near Roppongi Square)

चीनी ड्रैगन्स तो आपने बहुत देखें होंगे, पर आज आपको दिखाते हैं इसका जापानी संस्करण..

A Huge Billboard with Japanese Dragon !

शिंजुकु स्टेशन के पास है Odakyu का ये विशाल डिपार्टमेंटल स्टोर..शिंजुकु में खरीददारी करने का एक लोकप्रिय अड्डा.

Odakyu Departmental Store, Shinjuku, Tokyo


रात की रोशनी में जगमगाते पूर्व शिंजुकु के बाजार.. (Markets @ East Shinjuku)


वैसे बैग और बेल्ट को प्रदर्शित करने का ये तरीका कैसा लगा आपको ?

तोक्यो की व्यस्त चौराहों पर जेब्रा क्रासिंग हर दिशा में बनी दिखती है।

गाड़ियों के लिए लाल बत्ती होते ही चारों तरफ से सड़क पार करने के लिए जो भीड़ उमड़ती है वो देखने लायक दृश्य होता है।

तोक्यो दर्शन की अगली कड़ी में आपको ले चलेंगे तोक्यो के इलेक्ट्रानिक बाजार के मुख्य केंद्र Akihabara में। साथ ही होगी Asakusa की सैर जहाँ Tokyo Sky Tree के आलावा शहर का लोकप्रिय शिंटो मंदिर Senso ji भी है। अगर आपको मेरे साथ सफ़र करना पसंद है तो फेसबुक पर मुसाफ़िर हूँ यारों के ब्लॉग पेज पर अपनी उपस्थिति दर्ज़ कराना ना भूलें। मेरे यात्रा वृत्तांतों से जुड़े स्थानों से संबंधित जानकारी या सवाल आप वहाँ रख सकते हैं।

तोक्यो दर्शन (Sights of Tokyo) की सारी कड़ियाँ