जापान की हरियाली दिखाने के बाद वैसे तो मेरा इरादा आपको वहाँ के कंक्रीट जंगल दिखाने का था पर पिछले हफ्ते भिलाई के दौरे में कुछ ऐसे कमाल के दृश्य देखने को मिले कि वो कहते हैं ना कि "जी हरिया गया"। जिन दृश्यों को मैंने चलती ट्रेन से अपने मोबाइल कैमरे में क़ैद किया वो रेल से सफ़र के कुछ यादगार लमहों में से रहेंगे।
वैसे सामान्य व स्लीपर क्लॉस में यात्रा करते करते मेरा पूरा बचपन और छात्र जीवन बीता पर कार्यालय और पारिवारिक यात्राओं की वज़ह से विगत कई वर्षों से इन दर्जों में यात्रा ना के बराबर हो गई थी। पर भिलाई से राँची आते वक़्त जब किसी भी वातानुकूल दर्जे में आरक्षण नहीं मिला तो मैंने तत्काल की सुविधा को त्यागते हुए स्लीपर में आरक्षण करवा लिया। वैसे भी बचपन से खिड़की के बगल में बैठ कर चेहरे से टकराती तेज़ हवा के बीच खेत खलिहानों, नदी नालों, गाँवों कस्बों और छोटे बड़े स्टेशनों को गुजरता देखना मेरा प्रिय शगल रहता था। आज इतने दशकों बाद भी अपने इस खिड़की प्रेम से खुद को मुक्त नहीं कर पाया। भरी दोपहरी में जब हमारी ट्रेन दुर्ग स्टेशन पर पहुँची तो हल्की हल्की बूँदा बाँदी ज़ारी थी। साइड अपर बर्थ होने से खिड़की पर तब तक मेरी दावेदारी बनती थी जब तक रात ना हो जाए।
भिलाई से रायपुर होती हुई जैसे ही ट्रेन बिलासपुर की ओर बढ़ी बारिश में भीगे छत्तीसगढ़ के हरे भरे नज़ारों को देखकर सच कहूँ तो मन तृप्त हो गया। मानसून के समय चित्र लेने में सबसे ज्यादा आनंद तब आता है जब हरे भरे धान के खेतों के ऊपर काले मेघों का साया ऍसा हो कि उसके बीच से सूरज की रोशनी छन छन कर हरी भरी वनस्पति पर पड़ रही हो। यक़ीन मानिए जब ये तीनों बातें साथ होती हैं तो मानसूनी चित्र , चित्र नहीं रह जाते बल्कि मानसूनी मैजिक (Monsoon Magic) हो जाते हैं। तो चलिए जनाब आपको ले चलते हैं मानसून के इस जादुई तिलिस्मी संसार में । ज़रा देखूँ तो आप इसके जादू से सम्मोहित होने से कैसे बच पाते हैं ?
वैसे सामान्य व स्लीपर क्लॉस में यात्रा करते करते मेरा पूरा बचपन और छात्र जीवन बीता पर कार्यालय और पारिवारिक यात्राओं की वज़ह से विगत कई वर्षों से इन दर्जों में यात्रा ना के बराबर हो गई थी। पर भिलाई से राँची आते वक़्त जब किसी भी वातानुकूल दर्जे में आरक्षण नहीं मिला तो मैंने तत्काल की सुविधा को त्यागते हुए स्लीपर में आरक्षण करवा लिया। वैसे भी बचपन से खिड़की के बगल में बैठ कर चेहरे से टकराती तेज़ हवा के बीच खेत खलिहानों, नदी नालों, गाँवों कस्बों और छोटे बड़े स्टेशनों को गुजरता देखना मेरा प्रिय शगल रहता था। आज इतने दशकों बाद भी अपने इस खिड़की प्रेम से खुद को मुक्त नहीं कर पाया। भरी दोपहरी में जब हमारी ट्रेन दुर्ग स्टेशन पर पहुँची तो हल्की हल्की बूँदा बाँदी ज़ारी थी। साइड अपर बर्थ होने से खिड़की पर तब तक मेरी दावेदारी बनती थी जब तक रात ना हो जाए।
भिलाई से रायपुर होती हुई जैसे ही ट्रेन बिलासपुर की ओर बढ़ी बारिश में भीगे छत्तीसगढ़ के हरे भरे नज़ारों को देखकर सच कहूँ तो मन तृप्त हो गया। मानसून के समय चित्र लेने में सबसे ज्यादा आनंद तब आता है जब हरे भरे धान के खेतों के ऊपर काले मेघों का साया ऍसा हो कि उसके बीच से सूरज की रोशनी छन छन कर हरी भरी वनस्पति पर पड़ रही हो। यक़ीन मानिए जब ये तीनों बातें साथ होती हैं तो मानसूनी चित्र , चित्र नहीं रह जाते बल्कि मानसूनी मैजिक (Monsoon Magic) हो जाते हैं। तो चलिए जनाब आपको ले चलते हैं मानसून के इस जादुई तिलिस्मी संसार में । ज़रा देखूँ तो आप इसके जादू से सम्मोहित होने से कैसे बच पाते हैं ?