ये मंदिर महानदी के उस हिस्से के पास अवस्थित हैं जहाँ महानदी की तीन धाराएँ आकर मिलती थीं। धाराओं के मेल से यहाँ ऐसे भँवर बना करते थे जो नौकाओं को अपनी चपेट में ले लेते थे। कहते हैं कि नाविकों की मदद के लिए यहाँ बड़ी बड़ी घंटियाँ लगा दी गयीं। ये घंटियाँ इस इलाके में हवा के निरंतर प्रवाह की वज़ह से आपस में टकराती थीं जिसकी आवाज़ से नाविक इस इलाके के पास आने से पहले ही सचेत हो जाया करते थे। इन घंटियों की वज़ह से इस जगह को 'बिना रोशनी का प्रकाश स्तंभ' कहा जाने लगा। जब हीराकुड बाँध बनने के साथ चिपलिमा में पनबिजली केंद्र बना तब यहाँ की जलधाराएँ शांत हो गयीं।
चिपलिमा के इस घंटेश्वरी मंदिर तक पहुँचने के लिए पहले जलप्रपात के ऊपर बनाए गए पतले रास्ते से गुजरना पड़ता है।
हरे भरे पेड़ों के बीच ये पानी जब नीचे की ओर जाता है तो पानी का तेज बहाव सामने आने वाले प्रतिरोधों से टकराकर थोड़ी थोड़ी दूर पर कई अर्धवृताकार रूप बनाता है। पानी में बने ये चाँद, सामने की हरियाली और प्रपात का दूधिया उफनता फेनिल जल ये तीनों मिलकर एक अत्यंत मोहक दृश्य पैदा करते हैं। एक ऐसा मंज़र जिसे मिनटों अपलक निहारते हुए मन यही कहता है कि काश ये वक़्त ठहर जाए।
थोड़ी दूर आगे बढ़ने पर रेलिंग के बीच का रास्ता और संकरा हो जाता है। इतना संकरा कि बमुश्किल दो आदमी साथ साथ चल पाएँ। संकरे रास्ता के खत्म होते ही नीचे की ओर की राह आपको घंटेश्वरी मंदिर तक ले जाती हैं।
मंदिर ज्यादा बड़ा नहीं है। पर मंदिर के चारों ओर जहाँ भी नज़र दौड़ाई जाए सिर्फ घंटियाँ ही घंटियाँ दिखाई देती हैं। माता का दर्शन कर और ढेर सारी घंटियाँ बजा लेने के बाद एक बार फिर मैं गिरते पानी के पास चला आया। साँझ गहरी हो रही थी। मंदिर आने वाले यात्रियों का आना अभी भी ज़ारी था। नीचे से जो दृश्य दिख रहा था वो कैमरे में क़ैद करना मुझे जरूरी लगा..
प्रकृति की इन मनमोहक छटाओं को छोड़ कर जाने की इच्छा तो नहीं हो रही थी पर अँधेरे की बढ़ती चादर ने हमें वापस जाने को मजबूर कर दिया। हीराकुड पहुँचने के लिए आप किसी भी ऍसी ट्रेन से आ सकते हैं जो संभलपुर हो कर जाती हो। वैसे हीराकुड का अपना एक अलग छोटा सा स्टेशन भी है पर वहाँ सारी गाड़ियाँ नहीं रुकती।
आज हीराकुड की इस यात्रा को एक साल बीत गया है पर इस स्थान की खूबसूरती और हरियाली के चित्र जब भी दिमाग में कौंधते हैं, मन एक गहरे सुकून से भर उठता है।
सफर हीराकुड बाँध का : इस श्रृंखला की सारी कड़ियाँ
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मुसाफ़िर हूँ यारों का इस साल का सफ़र तो यहीं समाप्त होता है। नए वर्ष में फिर एक नई राह एक नई डगर होगी। आशा है आप भी साथ होंगे। आप सब को नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ !