हिंदी का एक यात्रा चिट्ठा (An Indian Travel Blog in Hindi)
गुरुवार, 21 मई 2009
चित्र पहेली 2 : क्या आपने कभी काले ऊँटों को देखा है?
यानि क्या चित्र में दिखने वाले क्या ये सचमुच के काले ऊँट हैं या माज़रा कुछ और है ? मुझे यकीं है कि अगर आप चित्र को ध्यान से देखेंगे तो सही उत्तर के पास पहुँच जाएँगे। हमेशा की तरह आपके जवाब और टिप्पणियाँ माडरेशन में रखे जाएँगे ताकि आप बिना किसी पूर्वाग्रह के अपना मत व्यक्त कर सकें। पहेली का सही उत्तर २१ मई की सुबह इसी पोस्ट में बताया जाएगा।
21.05.09
इस चित्र के छायाकार हैं जार्ज स्टीनमेत्ज (George Steinmetz)। कॉलेज के समय ही जार्ज को फोटोग्राफी का चस्का लग गया था। विभिन्न दूर दराज़ के इलाकों से गुजरने के बाद इनके मन में एक सपना रूप लेने लगा..सुनसान बियाबान प्रदेशों का ऊपर से चित्र लेने का। कई सालों बाद उन्होंने अपना ये स्वप्न साकार किया जब उनके पास मोटर चालित पाराग्लॉइडर आ गया। तबसे वो सहारा, अंटार्कटिका और दक्षिणी अमेरिका के दूर दराज़ के भू खंडों को अपनी पारा ग्लाइडिंग फोटोग्राफी का हिस्सा बना चुके हैं।
रही इस चित्र की बात तो कविता जी का उत्तर खुद बा खुद स्थिति को पूर्णतः स्पष्ट कर देता है...
जिन्हें आप काले ऊँट कह रहे हैं, वस्तुत: ऊँटों की छाया है। और असली ऊँट वे हैं, जो काली छायाओं के पैरों के नीचे नन्हें नन्हें सफ़ेद-से चिह्न सरीखे (बाल-पशु -से) प्रतीत होते दीख रहे हैं.कोई छेड़छाड़ नहीं की गई. केवल सूर्य की अफ़्रीका में ब्रह्मांडीय स्थिति और धरातल से छूते हुए, प्रकाश का एक समकोणीय दिशा से आना इतनी दीर्घाकार छायाओं के निर्माण का कारण बनता है।.....और चित्र एकदम ऊँटों के ऊपर ९०* से सीधे लिया गया है, जिसके कारण उनका नाप कतई नहीं दिखाई दे रहा परन्तु साईड में पड़ती छाया का आकार धरती पर फैला हुआ होने के कारण विस्तीर्ण दिखाई पड़ रहा है।
आप सब में से अधिकांश पाठक सही उत्तर दे पाए हैं या उसके करीब पहुँच पाएँ हैं। सबसे पहले चित्र की वस्तुस्थिति और कारणों के साथ उत्तर बताने के लिए प्रयास और बेहतरीन ढ़ंग से विश्लेषित करने के लिए कविता जी को हार्दिक बधाई।
गुरुवार, 14 मई 2009
मेरे साथ देखिए गुरु गोविंद सिंह का जन्मस्थान तख्त श्री हरमंदिर साहब
गुरुद्वारे के सामने की सड़क तो उतनी ही संकरी है पर राहत की बात ये हे कि गुरुद्वारे के प्रांगण में गाड़ी रखने की विशाल जगह है। गुरुद्वारे के ठीक सामने रुमालों की दुकान है इसलिए अगर सर पर साफा बाँधने के लिए गर कोई कपड़ा ना भी लाएँ हों तो कोई बात नहीं।
वैसे क्या ये प्रश्न आपके दिमाग में नहीं घूम रहा कि झेलम, चेनाब, रावी, सतलज और व्यास के तटों को छोड़कर, पंजाब से इतनी दूर इस गंगा भूमि में गुरु गोविंद सिंह का जन्म कैसे हुआ? इस प्रश्न का जवाब देने के लिए इतिहास के कुछ पुराने पन्नों को उलटना होगा।
इतिहासकार मानते हैं कि 1666 ई में सिखों के नवें धर्मगुरु गुरु तेग बहादुर धर्म के प्रचार प्रसार के लिए पूर्वी भारत की ओर निकले. 1666 ई के आरंभ में वो पटना पहुँचे और अपने अनुयायी जैतमल (Jaitmal )के यहाँ ठहरे। पास के इलाके में ही सलिस राय जौहरी की संगत (Salis Rai Johri''s Sangat) थी जिसके कर्ताधर्ता घनश्याम, गुरु का आशीर्वाद लेने के लिए उन्हें अपने परिवार सहित इस संगत में ले आए। बाद में गुरु तेग बहादुर अपनी पत्नी माता गुजरी को यहाँ छोड़ बंगाल और आसाम की ओर निकल पड़े। 23 दिसंबर 1666 को इसी सलिस राय चौधरी संगत में बालक गुरु गोविंद सिंह का जन्म हुआ।
ये गुरुद्वारा एक विशाल हिस्से मे् फैला हुआ है। मुख्य गुरुद्वारे के चारों ओर दूर से आए हुए भक्तों के रहने की व्यवस्था है। गुरुद्वारे के ठीक सामने और पिछवाड़े में खुला हिस्सा है जहाँ भक्तगण बैठ सकते हैं। गुरुद्वारे के मुख्य द्वार को पार कर हम सीधे चल पड़े। नीचे चित्र में दिख रहा है प्रागण के अंदर से मुख्य द्वार की तरफ का नज़ारा...
तेज धूप में फर्श बुरी तरह जल रही थी। चप्पल उतारते ही हम छायादार चादर के नीचे बने रास्ते की ओर भागे। संगमरमर की सीढ़ियों पर कदम रखते ही तलवों के नीचे की गर्मी गायब हो गई. बगल से स्वादिष्ट हलवे का प्रसाद ले कर हम जन्मस्थान की ओर बढ़े।
गुरुद्वारे में घुसने के पहले ही इस पीले रंग के इनक्लोसर में कुछ पात्र रखे थे और गुरुमुखी में कुछ लिखा था। इसका क्या मतलब था ये तो कोई इस लिपि को जानने वाला ही बता सकेगा।
मुख्य द्वार से दिखती हुई गुरुद्वारे की पूरी इमारत। फिलाहल इसकी गुंबद में कुछ काम चल रहा था।
और ये हैं हमारे सुपुत्र जो सामने के खुले प्रागण में कबूतरों के साथ चित्र खिंचाने के लिए जलते तलवों की परवाह किए बिना दौड़े चले आए।
तो जब भी पटना आएँ तो इस पवित्र स्थल की सैर अवश्य करें और अगर खास इसी को देखने आ रहे हों तो पटना स्टेशन पर ना उतर कर अगले स्टेशन पटना साहेब पर उतरें। वहाँ से ये मात्र एक किमी की दूरी पर है।
सोमवार, 11 मई 2009
आइए साथ हो लें गर्मी की एक दोपहर में नए पटना से पटना साहेब के सफ़र तक...
अप्रैल की तेज दोपहरी है। खाने के बाद एक घंटे के आराम के बाद हम निकल पड़े हैं पटना सिटी की ओर। कुछ ही देर में हम नए पटना के मुख्य मार्ग बेली रोड (Bailey Road) पर हैं। बेली रोड पश्चिमी पटना या नए पटना की पहचान है। चिड़ियाघर, सचिवालय, हाई कोर्ट, प्लेनेटोरियम, संग्रहालय अपने आंगुतकों के लिए सब इसी सड़क पर आश्रित हैं।
रविवार, 10 मई 2009
ये क्या जगह हैं दोस्तों : चित्र पहेली 1 - पहचाने इस झील को
पर ये तो हुई सिर्फ भौगोलिक संरचना में विविधता की बात! इसके आलावा विभिन्न सांस्कृतिक और धार्मिक विरासतों को अपने आप में समेटे ये देश थोड़ी थोड़ी दूरी पर इतनी अलग तरह की झांकियाँ प्रस्तुत करता है कि इसकी खूबसूरती को अतुल्य कहना कतई अतिश्योक्ति नहीं होगी।
मुसाफ़िर हूँ यारों पर मैं आज से शुरु करने जा रहा हूँ एक नया स्तंभ जिसमें भारत की इसी वैविध्यपूर्ण सुंदरता को चित्र पहेली के माध्यम से उभारा जाएगा। आपको बस इतना करना है कि दिए गए चित्र और संकेतों के आधार पर ये पहचानना है कि ये तसवीर किस जगह की है। सबसे पहले सही उत्तर देने वाले को उसी प्रविष्टि में लिंकित किया जाएगा।
तो इस श्रृंखला की शुरुवात इस चित्र के साथ। आपको बताना है कि इस झील का नाम क्या है और ये कहाँ अवस्थित है ?
छायाकार - दीपांकर मित्रा
संकेत १ : इस झील की सबसे खास बात ये है कि इसका नया नाम हिंदी फिल्मों के एक मशहूर कलाकार के नाम पर रखा गया है।
जी हाँ ये कलाकार हैं मशहूर अभिनेत्री माधुरी दीक्षित जिन्होंने १९९७ में यहाँ फिल्म कोयला के एक गाने की शूटिंग की थी। तब से संगेत्सर झील के नाम से जाने वाली इस झील का प्रचलित नाम माधुरी झील पड़ गया।
संकेत ३: इस झील का निर्माण भूकंप की वज़ह से हुआ है।
1950 के पहले यहाँ पहाड़ी ढलान पर एक जंगल हुआ करता था जो भूकंप से नीचे धँसता चला गया। बहुत सारे पुराने चीड़ के पेड़ नष्ट हुए पर मृत पेड़ों के तने नीले जल के बीचों बीच ठूँठ के रूप में अपनी उपस्थिति जताते रहते हैं।
चलिए अगर आपने इसे ख़ुद देखा हो तो जवाब आपके पास है पर अगर नहीं भी देखा तो अनुमान तो लगा ही सकते हैं और फिर गूगल बाबा तो हैं ही :)
तो इस पहली चित्र पहेली का सही जवाब दिया है एक ही नाम वाले दो सज्जनों यानि अभिषेक मिश्रा और अभिषेक ओझा ने। आप दोनों को हार्दिक बधाई और बाकी लोगों को भी जिन्होंने इस पहेली का उत्तर ढूँढने के लिए प्रयास किया।
सोमवार, 4 मई 2009
मेरे यात्रा चिट्ठे मुसाफ़िर हूँ यारों (Musafir Hoon Yaaron..) ने पूरा किया अपना पहला साल
आज से करीब एक साल पहले इन्हीं पंक्तियों के साथ ये सफ़र शुरु किया था और एक शाम मेरे नाम की अपनी प्रतिबद्धताओं के बावज़ूद पिछले साल 42 पोस्टस आपके सामने ला सका।
हिंदी में एक विशुद्ध ट्रैवेल ब्लॉग की संकल्पना के साथ किया गया ये सालाना सफ़र अपने उद्देश्य में कितना सफल रहा है ये तो आप ही बता पाएँगे। पर जैसा कि मैंने पहले भी कहा है कि यात्रा करना मुझे व्यक्तिगत तौर पर बेहद आनंदित करता है और अपने लेखन के माध्यम से इस आनंद को आप तक पहुँचाने की कोशिश करता हूँ।
मुसाफिर हूँ यारों पर इस साल भी मेरी कोशिश यही रहेगी कि कम से कम हफ्ते में एक बार इस चिट्ठे पर आपके सामने कुछ नया ला सकूँ। भारत की खूबसूरती को चित्रों के द्वारा आप तक पहुंचाने के लिए एक नया स्तंभ भी शुरु करने का इरादा है। पिछले साल अंग्रेजी के सामूहिक चिट्ठों पर हिंदी में लिखने का आमंत्रण भी मिला था। कुछ ही दिन पहले घुमक्कड़ पर इसकी शुरुवात की थी जिसे इस साल भी वक़्त मिलने पर जारी रखूँगा।
आशा है आप सब के सहयोग से ये सफ़र यूँ ही चलता रहेगा तो चलते चलते सुनिए मेरी आवाज़ में फिल्म परिचय का ये गीत जो मुझे हमेशा से बहुत प्यारा लगा है और जिसकी वज़ह से मुझे मैंने अपने चिट्ठे का ये नाम दिया है।
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