मंगलवार, 30 जनवरी 2018

उत्तर प्रदेश अंतर्राष्ट्रीय पक्षी महोत्सव Uttar Pradesh Bird Festival 9th-11th Feb 2018

अपनी प्रकृति को करीब से देखना शायद ही किसी को नापसंद हो। कितना कुछ तो है हमारे चारों ओर प्रकृति का दिया हुआ। सूर्य, चंद्रमा, तारे, नदिया, सागर, पेड़ पौधे, पक्षी ..ये सूची अंतहीन है। दिन रात का हर प्रहर इनके रूप में बदलाव लाता है। पर रोज़ की भागदौड़ में हममें से ज्यादातर अपने आसपास की इस खूबसूरती को नज़रअंदाज कर जाते हैं।

प्रकृति के इस विशाल रूप एक अहम हिस्सा है पक्षियों का संसार जो हमारे आस पास से गुजरता तो है पर जिनकी दिनचर्या पर शायद ही हमारी गहरी नज़र पड़ पाती है। कई बार जब अचानक ही कोई नया पक्षी हमें दिखता है तो सहज उत्सुकता होती है उसके बारे में जानने की। पर विशेषज्ञों के आभाव में हमारी ये इच्छा, इच्छा ही रह जाती है।


विगत कुछ वर्षों में पक्षियों की इस दुनिया के प्रति जागृति पैदा करने के लिए कई पहलें हुई हैं और इस कड़ी में एक परंपरा शुरु हुई है विभिन्न राज्यों द्वारा पक्षी महोत्सव यानि Bird Festival मनाने की। उत्तर प्रदेश जिसके कुल क्षेत्रफल का लगभग सात प्रतिशत वन आच्छादित है, इस पहल में भारत का एक अग्रणी राज्य रहा है। एक राष्ट्रीय उद्यान और पच्चीस वन्य अभ्यारण्य से परिपूर्ण इस राज्य में भारत में पाई जाने वाली पक्षियों की कुल 1300 प्रजातियों में से 550 मौज़ूद हैं। इसके उत्तर पूर्व के तराई वाले इलाके, हिमालय से बहती नदियों की जलोढ़ उपजाऊ मिट्टी की वज़ह से अपार जैव विविधता समेटे हुए हैं। मैदानी इलाकों की दलदली भूमि जाड़े में आनेवाले प्रवासी पक्षियों की पनाहगाह का काम करती रही है।

Babbler  tawny bellied चित्र सौजन्य : प्रवीण राव कोली
(ये चिड़िया खेत खलिहानों  में आपको झुंड में उड़ती दिख जाएँगी। उत्तर भारत में झुंड में उड़ने की इनकी इसी प्रवृति की वज़ह से इन्हें सात बहनों का नाम दिया गया है।)

इकोटूरिज्म की इन्हीं अपार संभावनाओं को देखते हुए सबसे पहले दिसंबर 2015 में आगरा जिले के चंबल वन अभ्यारण्य में इस महोत्सव का आयोजन किया गया। ब्रिटेन में मनाए जाने वाले Rutland Bird Watching Fair की तर्ज पर इस महोत्सव में देश विदेश से पक्षी विशेषज्ञ, वन्यजीव फोटोग्राफर,पर्यारणविद को बुलाया गया। तकनीकी आख्यानों के साथ महोत्सव में चित्र प्रदर्शनी और फोटोग्राफी से जुड़े गुर और साज सामान की भी प्रदर्शनी लगाई गयी । पक्षियों के प्रति बच्चों में उत्सुकता जाग्रत करने के लिए आस पास के जिले के स्कूली बच्चों को  इस कार्यक्रम के दौरान बुलाया गया। पहले पक्षी महोत्सव के दो महीने पहले मैं इस इलाके में गया था। चंबल नदी की उस यात्रा की कहानी मैं आपको यहाँ बता चुका हूँ। 


Black breasted weaver चित्र सौजन्य : प्रवीण राव कोली
(Weaver bird का अर्थ ही बुनने वाली चिड़िया है। पर ध्यान रहे मिट्टी और तिनके से घोंसले बनाने का काम नर पक्षी ही करता है। वैसे इनके मिलन की प्रक्रिया बड़ी दिलचस्प है। जब घोंसला बन रहा होता है तो मादाएँ घोंसले को ठोक बजा कर देखने पहुँचती हैं। इस दौरान नर अपने पंख फड़फड़ाकर, सुनहरी गर्दन झुकाकर व अपनी रागिनी सुनाकर मादा की ख़िदमत करते हैं। एक बार प्रस्ताव पारित हुआ नहीं कि घर की बची खुची बुनाई झट से पूरी कर ली जाती है। मादा अंडे देती है और इधर नर महाशय दूसरी खग बालाओं को आकर्षित करने के लिए दूसरा घोंसला बनाना शुरु कर देते हैं।)

पहले दो सालों  में चम्बल में होने वाला ये आयोजन इस साल खिसक कर दुधवा राष्ट्रीय उद्यान में हो रहा है जो  उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी जिले में स्थित है। ज़ाहिर है उत्तर प्रदेश वन विभाग चाहेगा कि पक्षियों से जुड़ी जो धरोहर पूरे राज्य में बिखरी हुयी है, वो अंतर्राष्ट्रीय आकर्षण का केंद्र बने।  9-11 फरवरी तक होने वाले इस आयोजन में एक बार फिर भारत और बाहर  के देशों से आये  विशेषज्ञ पक्षियों के बारे  में लोगों की रूचि  जागृत करने से लेकर उनके संरक्षण के उपायों पर विचार विमर्श करेंगे।

इस बार के आयोजन में विशेषज्ञों की टोली में डा. असद रहमानी, डा. सतीश पांडे, भूमेश भारती, ग्रेगरी राबर्ट हरले, डा. सतीश शर्मा, संजय कुमार, जूलियन गोनिन, अजय सक्सेना, डा. राजू कसाम्बे , डा. एबल लारेंस जैसी हस्तियाँ हिस्सा ले रही हैं। इनके द्वारा पक्षियों से जुड़े ऐसे विषय लिए जा रहे हैं जिनकी परिधि लद्दाख से लेकर अंटार्कटिका तक होगी।

चित्र सौजन्य : प्रवीण राव कोली
(हाय ! इनकी नीली गर्दन की नज़ाकत क्या कहिए)
साथ में हर दिन सुबह और शाम को परिंदों की खोज में सफारी तो होगी ही। इस सफारी में साथ होंगे देश के चुनिंदा फोटोग्राफर और यात्रा लेखक जो इस महोत्सव की झाँकियाँ आप तक पहुँचाएँगे। अब जब बात दुधवा में होगी तो तराई के इलाके में रहने वाले थारू लोगों की संस्कृति से यहाँ आने वालों को जोड़ने के लिए कार्यक्रम भी होंगे।

Crescent Buzzard  Honeyचित्र सौजन्य : प्रवीण राव कोली
जाड़े के मेहमानों में ये शिकारी पक्षी भी एक हैं

अगर आप इस दौरान दुधवा में हों तो इस आयोजन का जरूर लुत्फ उठाइए। तकनीकी सत्रों और प्रदर्शनियों में प्रवेश निशुल्क है। अगर पक्षियों से आपका प्रेम जुनून की हद तक गहरा है तो फिर आप भी इस आयोजन का हिस्सा बन सकते हैं। इसके लिए आपको वन विभाग की इस वेबसाइट से स्विस टेंट की बुकिंग करनी होगी जहाँ बाकी का विवरण भी आप देख सकते हैं। सड़क मार्ग से दुधवा की दिल्ली से दूरी करीब 430 किमी और लखनऊ से  230 किमी है। दुधवा से नजदीकी कस्बा पलिया है जो वहाँ से दस किमी की दूरी पर है। दुधवा में वन विभाग का गेस्ट हाउस है और इसके आलावा पार्क के बाहर भी बंसीनगर में कुछ लॉज और काटेज उपलब्ध हैं।

अगर आपको मेरे साथ सफ़र करना पसंद है तो Facebook Page Twitter handle Instagram  पर अपनी उपस्थिति दर्ज़ कराना ना भूलें। मेरे यात्रा वृत्तांतों से जुड़े स्थानों से संबंधित जानकारी या सवाल आप वहाँ रख सकते हैं।

रविवार, 14 जनवरी 2018

माउंट टिटलिस, हिंदी और DDLJ : कैसे मिले मुझे ये एक साथ ? Journey to Mount Titlis

लूसर्न से स्विट्ज़रलैंड का मेरा अगला पड़ाव था माउंट टिटलिस। इंटरलाकन में जुंगफ्राओ के शिखर तक पहुँचने के बाद मुझे लग रहा था कि आख़िर टिटलिस की चढ़ाई क्या वैसी ही नहीं होगी? डेजा वू के अहसास को मन ही मन दबाए मैं लूसर्न से इंजलबर्ग अपने काफिले के साथ निकल पड़ा।
माउंट टिटलिस के शिखर पर.. :)
जिस तरह युंगफ्राओ की चढ़ाई क्वाइन्स स्काइक नाम के स्टेशन से शुरु होती है वैसे ही टिटलिस तक पहुँचने का आरंभिक पड़ाव केंद्रीय स्विटज़रलैंड का कस्बा इंजलबर्ग है। टिटलिस (3238m) और युंगफ्राओ (3571m) की चोटियों की ऊँचाई में ज्यादा अंतर नहीं है। मुख्य फर्क सिर्फ शिखर पर पहुँचने के तरीके में है। जुंगफ्राओ का सफ़र रेल से पूरा होता है जबकि टिटलिस का केबल कार और फिर रोटोकार की बदौलत।

केंद्रीय स्विट्ज़रलैंड का कस्बा इंजलबर्ग

लूसर्न से इंजलबर्ग मात्र पैंतीस किमी दूर है। पर ये छोटा सा सफ़र भी बड़ा सुहावना है। रास्ते में दोनों ओर हरी भरी पहाड़ियाँ साथ चलती हैं। मौसम भी शानदार रहा। ऊपर नीला आसमान, चमकती धूप और नीचे हरी भरी वादियाँ। पर इंजलबर्ग जैसे जैसे बेहद करीब आने लगा दूर से ही खड़ी चट्टानों वाले स्याह नुकीले पहाड़ की  दिखाई देने लगे ।

नुकीले स्याह पर्वत शिखर

इंजलबर्ग पर यात्रियों का भारी जमावड़ा था। ज्यादातर संख्या भारतीय और चीनियों की थी। केबल कार पर प्रवेश करते ही हिदायत मिली कि आप सबका टिकट टिटलिस की चोटी तक का है। केबल कार बीच के स्टेशन पर रुकेगी। स्वचालित दरवाजे खुलेंगे पर आप सब अपनी सीट पर ही बैठे रहना।


केबल कार से दिखता नीचे का दृश्य

केबल कार जैसे ही इंजलबर्ग से बाहर आई घास के हरे भरे मैदानों को देखकर हमारी आँखें हरिया गयीं। नीचे खड़ी बसें, घर अब सब डब्बे सरीखे नज़र आने लगे। सड़कें, पगडंडियाँ और नदी स्याह, पीली और नीली लकीरों में तब्दील होनें लगीं। 

ऍसा दिखता है आकाश से इंजलबर्ग !

शनिवार, 6 जनवरी 2018

कैसे बीता इस मुसाफ़िर का पिछला साल ? Flashback 2017 Musafir Hoon Yaaron...

घूमने के लिहाज़ से पिछला साल बेहतरीन रहा। शुरुआत हुई  कच्छ की यात्रा से। जनवरी की ठंड ने रण उत्सव में कँपकपाया बहुत पर उन सर्द रातों में खुले आकाश के नीचे से दिखती चाँद के साथ असंख्य तारों की झिलमिलाहट मन को मुदित कर देने वाली थी। आकाशगंगा में छुपे कई जाने माने तारे और ग्रह पहली बार देखने का अवसर भी मिला। सबसे खूबसूरत मंज़र तो तब देखने को मिला जब चाँदनी रात में नमक के रेगिस्तान में जा पहुँचे। कच्छ की कहानियाँ पिछले साल तो लिख नहीं पाए पर इस साल उन्हें आपके सामने लाने का इरादा है।

कच्छ, गुजरात : मध्य रात्रि में चाँद की रोशनी से नहाया हुआ नमक का समंदर

कच्छ के बाद मु्ंबई का सफ़र अबकि बांद्रा की गलियों तक सीमित रहा। इस यात्रा के दौरान बांद्रा की वाल आर्ट के कुछ खूबसूरत नमूने देखने को मिले। ये भी समझ आया कि कला की हल्की सी छौंक किस तरह एक अनजान से मोहल्ले में जान फूँक देती है।

बांद्रा, मुंबई  जहाँ मिली मुझे अनारकली
वसंतोत्सव तो मैंने ढेर सारे फूलों के सानिध्य में राँची में मनाया पर मानसून में झारखंड की उन सड़कों पर विचरने का मन हुआ जो छोटे छोटे कस्बों और गाँवों से होते हुए नेतरहाट के बाँस और साल के जंगलों तक ले जाती थीं। धान और मकई के खेतों ने जहाँ मैदानों में दिल जीता वहीं छोटानागपुर की रानी नेतरहाट के जंगलों के सन्नाटे को हम अपनी इस यात्रा में बेहद करीब से सुन पाए।

मानसूनी रंग में रँगे नेतरहाट के जंगल

पर इस यात्रा का सबसे ज्यादा आनंद आया लोध जलप्रपात को देखने और उसमें छपाका लगाने में। झारखंड का सबसे ऊँचा जलप्रपात छत्तीसगढ़ और झारखंड की सीमा पर घने जंगलों के बीच स्थित है और कहना ना होगा कि बरसात में ये इस राज्य का सबसे सुंदर जलप्रपात बन जाता है।

घने जंगलों के बीच स्थित लोध जलप्रपात जिसकी गूँज दूर तक सुनाई देती है।

प्रकृति के इस अद्भुत रूप का दर्शन करने के बाद मन हुआ कि मराठा शासकों के बीते वैभव की एक झलक ले लें और इस ललक ने मुझे पहुँचा दिया ग्वालियर। सिंधिया  खानदान का महल देख सचमुच दिल बाग बाग हो गया। सिंधिया घराने की दाद देनी होगी कि उन्होंने अपनी विरासत को अपने इस संग्रहालय में बखूबी सँभाल कर रखा है।

सिंधिया खानदान की धरोहर समेटे है ग्वालियर का जय विलास पैलेस
ग्वालियर से आगे बढ़कर फिर मैंने बुंदेलों की राजधानी ओरछा में धूनी रमाई। इस यात्रा में बतौर मार्गदर्शक कत्थक की मशहूर नृत्यांगना और इतिहास की जानकार नवीना ज़फ़ा का भी हमें साथ मिला। नवीना ने ओरछा के इतिहास के कुछ अनछुए पहलुओं से भी हमारे समूह को रूबरू करवाया। ओरछा और ग्वालियर यात्रा से जुड़े वृत्तांत भी आने वाले दिनों में आपके सामने होंगे।

ओरछा, मध्यप्रदेश : बेतवा नदी के किनारे बनी बुंदेल शासको की छतरियाँ
इस बार की दुर्गा पूजा राँची के साथ बंगाल के तेजी से उभरते शहर दुर्गापुर में बीती। आदिवासी कला से लेकर मिश्र की प्राचीन मूर्ति कला पंडालों की दीवारों पर उभर कर मुझे मंत्रमुग्ध कर गयी।

दुर्गापुर, बंगाल के एक दुर्गापूजा पंडाल की अंदरुनी साज सज्जा

फिर बारी आयी रवींद्रनाथ टैगोर की कर्म भूमि शांतिनिकेतन की। शांतिनिकेतन का सुरम्य वातावरण और वहाँ से निकली विभूतियों के शिल्प और उनसे जुड़े प्रसंगों को सुन मन टैगौर के व्यक्तित्व से और अभिभूत हो गया।

दीपावली के बाद का समय मेरा पश्चिमी घाट की हरी भरी वादियों में बीता। इस बार पुणे के आगा खाँ पैलेस से भी हो आए। वहाँ की मंदिर परिक्रमा हुई सो अलग। पुणे और उसके आस पास की इस हफ्ते भर की यात्रा में लवासा सिटी, पंचगणी और महाबलेश्वर जाने का अवसर मिला। महाबलेश्वर मेरी आशा से भी ज्यादा खूबसूरत निकला। बादलों के साथ धूप की लुका छिपी को देख आँखें तृप्त हो गयीं।

महाबलेश्वर, महाराष्ट में ये विहंगम दृश्य दिखता है आर्थर सीट से !
साल का अंत मध्य उड़ीसा की बारह सौ किमी लंबी सड़क यात्रा से समाप्त हुआ। इस यात्रा में महानदी के किनारे एक रात गुजारने का मौका मिला। वहीं चाँदीपुर समुद्र तट पर सुबह सूर्य भी अपनी मुँह दिखाई दे गया।

अंगुल, उड़ीसा :टीकरपाड़ा के पास महानदी के पार बालू का विशाल पाट

इसके आलावा पिछले साल मैंने आपको बंगाल के बिष्णुपुर से लेकर यूरोप में हालैंड, फ्रांस और स्विट्ज़रलैंड की हसीन वादियों के दर्शन करवाए। इस साल भी यूरोप यात्रा का बचा हिस्सा आपके सामने होगा। साथ ही होंगी लद्दाख के पुराने सफ़र से जुड़ी दास्तान।

लद्दाख जहाँ के अनुभव अभी बाँटने हैं आपसे

मुसाफ़िर हूँ यारों को पिछले साल यात्रा से जुड़े कुछ मशहूर जाल पृष्ठों की बेहतरीन ब्लॉग सूची में शामिल होने का सौभाग्य मिला।  Holidify द्वारा घोषित देश के सौ बेहतरीन ब्लॉगों की सूची में ये इकलौता हिंदी ब्लॉग रहा। साथ ही ये Thrillophilia और Top Blogs द्वारा चुने बेहतरीन ब्लागों का भी हिस्सा रहा।  साल के आख़िर में देश की सबसे बड़े ब्लागर समुदाय से जुड़ी संस्था Indiblogger ने जब तीस जूरी सदस्यों की मदद से विभिन्न श्रेणी के विजेताओं की घोषणा की तो उसमें अन्य अंग्रेजी ब्लागों के बीच मुसाफ़िर हूँ यारों भी शामिल हो पाया।  इसे झारखंड के हिंदी और अंग्रेजी ब्लागों में सबसे बेहतरीन ब्लॉग घोषित किया गया।

आपका चहेता ब्लॉग Indian Blogger Awards 2017 में पुरस्कृत !


ये सब इसलिए संभव हुआ कि पाठकों का साथ हमेशा इस ब्लॉग को मिलता रहा है। आशा है कि आप सभी इस ब्लॉग और इससे जुड़े सोशल मीडिया हैंडल्स Facebook Page Twitter handle Instagram Networked Blogs के माध्यम से इस ब्लॉग पर प्रस्तुत आलेखों और फोटो फीचर्स के प्रति अपनी राय ज़ाहिर करते रहेंगे।