अपनी प्रकृति को करीब से देखना शायद ही किसी को नापसंद हो। कितना कुछ तो है हमारे चारों ओर प्रकृति का दिया हुआ। सूर्य, चंद्रमा, तारे, नदिया, सागर, पेड़ पौधे, पक्षी ..ये सूची अंतहीन है। दिन रात का हर प्रहर इनके रूप में बदलाव लाता है। पर रोज़ की भागदौड़ में हममें से ज्यादातर अपने आसपास की इस खूबसूरती को नज़रअंदाज कर जाते हैं।
प्रकृति के इस विशाल रूप एक अहम हिस्सा है पक्षियों का संसार जो हमारे आस पास से गुजरता तो है पर जिनकी दिनचर्या पर शायद ही हमारी गहरी नज़र पड़ पाती है। कई बार जब अचानक ही कोई नया पक्षी हमें दिखता है तो सहज उत्सुकता होती है उसके बारे में जानने की। पर विशेषज्ञों के आभाव में हमारी ये इच्छा, इच्छा ही रह जाती है।
विगत कुछ वर्षों में पक्षियों की इस दुनिया के प्रति जागृति पैदा करने के लिए कई पहलें हुई हैं और इस कड़ी में एक परंपरा शुरु हुई है विभिन्न राज्यों द्वारा पक्षी महोत्सव यानि Bird Festival मनाने की। उत्तर प्रदेश जिसके कुल क्षेत्रफल का लगभग सात प्रतिशत वन आच्छादित है, इस पहल में भारत का एक अग्रणी राज्य रहा है। एक राष्ट्रीय उद्यान और पच्चीस वन्य अभ्यारण्य से परिपूर्ण इस राज्य में भारत में पाई जाने वाली पक्षियों की कुल 1300 प्रजातियों में से 550 मौज़ूद हैं। इसके उत्तर पूर्व के तराई वाले इलाके, हिमालय से बहती नदियों की जलोढ़ उपजाऊ मिट्टी की वज़ह से अपार जैव विविधता समेटे हुए हैं। मैदानी इलाकों की दलदली भूमि जाड़े में आनेवाले प्रवासी पक्षियों की पनाहगाह का काम करती रही है।
इकोटूरिज्म की इन्हीं अपार संभावनाओं को देखते हुए सबसे पहले दिसंबर 2015 में आगरा जिले के चंबल वन अभ्यारण्य में इस महोत्सव का आयोजन किया गया। ब्रिटेन में मनाए जाने वाले Rutland Bird Watching Fair की तर्ज पर इस महोत्सव में देश विदेश से पक्षी विशेषज्ञ, वन्यजीव फोटोग्राफर,पर्यारणविद को बुलाया गया। तकनीकी आख्यानों के साथ महोत्सव में चित्र प्रदर्शनी और फोटोग्राफी से जुड़े गुर और साज सामान की भी प्रदर्शनी लगाई गयी । पक्षियों के प्रति बच्चों में उत्सुकता जाग्रत करने के लिए आस पास के जिले के स्कूली बच्चों को इस कार्यक्रम के दौरान बुलाया गया। पहले पक्षी महोत्सव के दो महीने पहले मैं इस इलाके में गया था। चंबल नदी की उस यात्रा की कहानी मैं आपको यहाँ बता चुका हूँ।
पहले दो सालों में चम्बल में होने वाला ये आयोजन इस साल खिसक कर दुधवा राष्ट्रीय उद्यान में हो रहा है जो उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी जिले में स्थित है। ज़ाहिर है उत्तर प्रदेश वन विभाग चाहेगा कि पक्षियों से जुड़ी जो धरोहर पूरे राज्य में बिखरी हुयी है, वो अंतर्राष्ट्रीय आकर्षण का केंद्र बने। 9-11 फरवरी तक होने वाले इस आयोजन में एक बार फिर भारत और बाहर के देशों से आये विशेषज्ञ पक्षियों के बारे में लोगों की रूचि जागृत करने से लेकर उनके संरक्षण के उपायों पर विचार विमर्श करेंगे।
इस बार के आयोजन में विशेषज्ञों की टोली में डा. असद रहमानी, डा. सतीश पांडे, भूमेश भारती, ग्रेगरी राबर्ट हरले, डा. सतीश शर्मा, संजय कुमार, जूलियन गोनिन, अजय सक्सेना, डा. राजू कसाम्बे , डा. एबल लारेंस जैसी हस्तियाँ हिस्सा ले रही हैं। इनके द्वारा पक्षियों से जुड़े ऐसे विषय लिए जा रहे हैं जिनकी परिधि लद्दाख से लेकर अंटार्कटिका तक होगी।
इस बार के आयोजन में विशेषज्ञों की टोली में डा. असद रहमानी, डा. सतीश पांडे, भूमेश भारती, ग्रेगरी राबर्ट हरले, डा. सतीश शर्मा, संजय कुमार, जूलियन गोनिन, अजय सक्सेना, डा. राजू कसाम्बे , डा. एबल लारेंस जैसी हस्तियाँ हिस्सा ले रही हैं। इनके द्वारा पक्षियों से जुड़े ऐसे विषय लिए जा रहे हैं जिनकी परिधि लद्दाख से लेकर अंटार्कटिका तक होगी।
चित्र सौजन्य : प्रवीण राव कोली
(हाय ! इनकी नीली गर्दन की नज़ाकत क्या कहिए)
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साथ में हर दिन सुबह और शाम को परिंदों की खोज में सफारी तो होगी ही। इस सफारी में साथ होंगे देश के चुनिंदा फोटोग्राफर और यात्रा लेखक जो इस महोत्सव की झाँकियाँ आप तक पहुँचाएँगे। अब जब बात दुधवा में होगी तो तराई के इलाके में रहने वाले थारू लोगों की संस्कृति से यहाँ आने वालों को जोड़ने के लिए कार्यक्रम भी होंगे।
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