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मंगलवार, 2 अप्रैल 2019

यादें सुहेलवा की : जब हम जा पहुँचे एक नेपाली गाँव में Birding Trip to Suhelwa, Uttar Pradesh

जंगलों में भटकना किस प्रकृति प्रेमी को अच्छा नहीं लगता? ये प्रसन्नता और भी बढ़ जाती है गर आप वन के बीच बसे हुए किसी गाँव में जा पहुँचते हैं। ऐसा ही एक वाक़या हुआ था जब मैं और मेरे कुछ साथी पिछले साल पक्षियों की खोज में घूमते हुए भारत की सीमा पार कर नेपाल के एक गाँव में जा पहुँचे थे। मौका था अंतरराष्ट्रीय पक्षी महोत्सव का जिसमें पक्षी वैज्ञानिक और चिड़िया प्रेमियों के साथ यात्रा लेखकों को भी आमंत्रण मिला था। 
सुहेलवा वन्य अभ्यारण्य से सटा एक प्यारा सा गाँव

दुधवा के जंगलों की दो दिनों  सुबह से शाम  तक  खाक छानने के बाद हम सुहेलवा की ओर बढ़ रहे थे। दुधवा से सुबह आठ बजे चलकर हम सभी कुछ देर के लिए बहराइच में रुके। 
वन विभाग के अधिकारियों के साथ पक्षीप्रेमियों की जमात


रास्ता बनने की वज़ह से बहराइच के पहले तो धूल फाँकते आए पर उसके बाद हरियाली मिली।  बहराइच से हमारी बस बाँयी ओर जब भिंगा मार्ग पर बढ़ी तो खेत खलिहान कम होते चले गए और उनकी जगह हरे भरे जंगलों ने ले ली। छः घंटों की ये यात्रा आख़िर हमने इन्हीं दरख़्तों के बीच दो दिन घुलने मिलने के लिए तो की थी। चलती बस से हरे भरे खेतों के बीच कहीं सारस जोड़े दिखाई दिए तो कही स्टार्क। जैसे जैसे हम अपने गंतव्य के पास पहुँचने लगे, बादलों के काफिले पूरे आसमान पर काबिज हो गए। कम रोशनी पक्षियों को देखने और तस्वीरें लेने में बाधा उत्पन्न करती है। यही वजह थी कि बाहर की इस फ़िज़ा को देख हम सभी का मन थोड़ा मायूस सा हो गया।

रास्ते में सरसों के हरे भरे खेत

जो लोग सुहेलदेव वन्य अभ्यारण्य से ज्यादा परिचित ना हों उन्हें बता दूँ कि भारत नेपाल सीमा के समानांतर फैले इस हरे भरे जंगलों का कुछ हिस्सा बलरामपुर तो कुछ श्रावस्ती जिले में पड़ता है। वैसे गूगल पर आज भी इस नाम से इसे खोजना आसान नहीं है।  वैसे क्या आप जानना नहीं चाहेंगे कि इस सुहेलदेव या उसका अपभ्रंश सुहेलवा के पीछे आख़िर कौन सी शख़्सियत है?

इस इलाके की प्रचलित दंत कथाओं की मानें तो सुहेलदेव श्रावस्ती पर राज करने वाले एक राजा थे। ऐसा कहा जाता है कि सुहेलदेव ने ग्यारहवीं शताब्दी में महमूद ग़ज़नवी के सेनापति सैयद सालार मसूद ग़ाज़ी को बहराइच में हुई लड़ाई में पराजित कर मार डाला था। इससे पहले सिंधु नदी पार कर सैयद सालार मसूद ने कई भारतीय राजाओं को मात दी थी पर सुहेलदेव के सामने उसकी एक ना चली। सुहेलदेव को कुछ लोग यहाँ बसने वाले थारु और पासी समुदायों से जोड़ कर देखते हैं। यही वज़ह है कि इस इलाके की कई सार्वजनिक स्थलों का नामाकरण सुहेलदेव के नाम पर किया गया है।

मेरा खूबसूरत आशियाना