Fukuoka लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
Fukuoka लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

रविवार, 4 अगस्त 2013

जापान, जूडो और वो इंटरव्यू (Japan, Judo & that interview)

जापान जाने के पहले मेरी बड़ी इच्छा थी कि वहाँ जाकर सूमो पहलवानों को साक्षात देखूँ। पर टोक्यो और जापान के अन्य बड़े शहरों में जहाँ सूमो पहलवानों की कुश्ती होती है, वहाँ हमें ज्यादा रुकने का मौका ही नहीं मिला। यूँ तो सूमो कुश्ती जापान का राष्ट्रीय खेल है पर मार्शल आर्ट्स से जुड़े खेल भी यहाँ की प्राचीन समुराई संस्कृति से निकल कर आज तक अपने आप को चुस्त दुरुस्त रखने वाले जापानियों का पसंदीदा  शगल बने हुए हैं। इसके विविध रूपों- जूडो, कराटे और केंडो में जापानी जनता आज भी काफी रुचि लेती है।

वैसे ये जरूर है कि अमेरिकी और यूरोपीय प्रभावों की वज़ह से आज की तारीख़ में जापान में सबसे लोकप्रिय खेल बेसबाल और फुटबाल हो गए हैं। भले ही हम सूमो पहलवानों का ना देख पाए हों पर जैसा कि पिछली पोस्ट में मैंने आपको बताया कि  फुकुओका की यात्रा में हमें जापानी जूडो को करीब से देखने का मौका मिला।


कीटाक्यूशू से फुकुओका लगभग सत्तर किमी है और हम चित्र के ठीक बाँयी ओर दिखने वाली सड़क से होते हुए एक घंटे में फुकुओका पहुँचे। जूडो के इनडोर स्टेडियम के पास ही फुकुओका का बंदरगाह था।


जब हम जूडो स्टेडियम के प्रांगण में पहुँचे तो वहाँ खासी गहमागहमी थी। विभिन्न रंगों की जर्सियों में जूडोका स्टेडियम के बाहर और अंदर अलग अलग टोलियाँ बना कर घूम रहे थे। स्टेडियम के अंदर ही स्पोर्टस टी शर्ट और जर्सियों की दुकानें भारी भीड़ खींच रही थीं। स्टेडियम में घुसते ही हमारे गले में Official वाली नेम प्लेट टाँग दी गयी थी ताकि हम खिलाड़ियों के साथ बैठकर ही खेल का आनंद उठा सकें।


स्टेडियम खचाखच भरा था। सोचिए भारत में क्रिकेट, टेनिस व हॉकी छोड़ किस खेल में ऐसी भीड़ होती है? वैसे जापान ओलंपिक में अपने बीस फीसदी पदक इसी खेल से प्राप्त करता है। यूँ तो जापानी समाज सार्वजनिक स्थानों पर शांति से रहना पसंद करता है पर यहाँ माहौल दूसरा था। हर आयु वर्ग के लोग दर्शक दीर्घा में थे पर सबसे ज्यादा शोर किशोरवय के बच्चे ही मचा रहे थे। अलग अलग स्कूलों वा कॉलेजों का प्रतिनिधित्व कर रहे ये बच्चे अपनी टीम के खिलाड़ियों का भरपूर उत्साहवर्धन करते नज़र आए।

बतौर अतिथि हमें सबसे आगे बैठा तो दिया गया था पर हमारे समूह में किसी को भी जूडो के 'ज' तक का भी पता नहीं था। थोड़ी देर खेल देखने के बाद हमें बताया गया कि वहाँ के स्थानीय समाचारपत्र की एक पत्रकार हमारा साक्षात्कार लेना चाहती है। अब इस परिस्थिति का सामना करना पड़ेगा ये तो हममें से किसी ने भी नहीं सोचा था। एक अदद मुर्गे की तलाश शुरु हुई जो मार्शल आर्ट्स से जुड़े प्रश्नों के जवाब दे सके।  पता चला कि हमारे एक सहभागी ने बचपन में जूडो की तो नहीं पर ताइक्वोंडो की ट्रेनिंग ले रखी है। लिहाजा उसे ही इंटरव्यू के लिए सामने कर दिया गया।

 
पत्रकार जूडो के प्रति हमारी रुचि के बारे में पूछती रही और हमारे सहयोगी भी किसी तरह घुमा फिरा कर जवाब देते रहे। भाषा की दीवार भी काम आ गई। बाद में वो इंटरव्यू जब छपा तो हमें ये समझ नहीं आया कि उसमें जापानी में क्या लिखा है। पर जिनका साक्षात्कार हुआ था वे इसी में खुश हो गए कि जापानी में ही सही अख़बार में नाम तो आया।

प्रतियोगिता में लड़कों के साथ लड़कियाँ भी बढ़ चढ़ कर हिस्सा ले रही थीं। एक साथ आठ दस मैच चल रहे थे। कुछ देर मैच देखने के बाद हम स्टेडियम के बाद हमने दोपहर के भोजन तक का समय स्टेडियम का माहौल करीब से महसूस करने के लिए दर्शक दीर्घा में घूम घूम कर बिताया। आइए आपको दिखाएँ इस खेल और खिलाड़ियों की  कुछ झलकियाँ...

इनडोर स्टेडियम की भरी हुई दर्शक दीर्घाएँ


शुरुआती दाँव की कोशिश में दो महिला खिलाड़ी ..



और लगता है इस बार दाँव लग गया....

अपनी टीम के खिलाड़ी को हारते देख कुछ गुस्सा तो आएगा ना..

और ये है Exclusive Pose खास तौर पर मुसाफ़िर हूँ यारों के पाठकों के लिए..:)

जूडो तो आपने देख लिया अगली बार बताएँगे आपको कीटाक्यूशू से जापान की राजधानी टोक्यो तक की यात्रा का हाल। बस बने रहिए इस सफ़र में मेरे साथ।अगर आपको मेरे साथ सफ़र करना पसंद है तो फेसबुक पर मुसाफ़िर हूँ यारों के ब्लॉग पेज पर अपनी उपस्थिति दर्ज़ कराना ना भूलें। मेरे यात्रा वृत्तांतों से जुड़े स्थानों से संबंधित जानकारी या सवाल आप वहाँ रख सकते हैं।

सोमवार, 29 जुलाई 2013

जापान और शाकाहार : कैसे फँसे शाकाहारी प्राणी जापान के चार सितारा होटल में?(Japan and Vegetarianism)

जापान और शाकाहार से जुड़ी पिछली दो कड़ियों में आपने सैर की जापान के सब्जी बाजार की और मेरे साथ स्वाद चखा जापानी शाकाहारी भोजन का। अपनी जापान यात्रा में खान पान से जुड़ी यादों के सिलसिले को और आगे बढ़ाते हुए आज आपको लिए चलते हैं फुकुओका प्रीफेक्चर (Fukuoka Prefecture) के मुख्यालय हकाता के चार सितारा होटल न्यू ओटानी (Hotel New Otani Hakata) में। आप भी सोच रहे होंगे कि एक ओर तो मैं भारतीय रुपये के हिसाब से जापानी मँहगाई का रोना रो रहा था तो फिर ये चार सितारा होटल की सैर कैसे संभव हुई ? 

इसके पीछे भी एक दिलचस्प कहानी है। हमारे JICA ट्रेनिंग सेंटर में हर सप्ताहांत कुछ ना कुछ गतिविधियों का आयोजन होता था और इसकी सूचना सप्ताह के शुरु में ही दे दी जाती थी। सूचना पट्ट पर एक दिन सूचना आई कि अगले रविवार को वहाँ की एक संस्था प्रशिक्षणार्थियों को पास के महानगर फुकुओका में जूडो प्रतियोगिता दिखलाने ले जाएगी। जूडो, जापान में बेहद लोकप्रिय खेल है पर हमारी दिलचस्पी जूडो देखने से ज्यादा इसी बहाने फ्यूकोका शहर देखने की थी। हमने समूह ने सोचा कि कुछ देर जूडो देखने के बाद हम अपने से शहर देखने निकल पड़ेंगे। 

इस आयोजन का मुख्य उद्देश्य स्थानीय लोगों और हम जैसे विदेशियों के बीच संपर्क और विचारों का आदान प्रदान बढ़ाना था। सुबह नौ बजे  हमें फ्यूकोका ले जाने के लिए बस तैयार खड़ी थी। बस में सात भारतीयों के आलावा 8-9 जापानी भी थे जिनमें ज्यादातर की उम्र पचास से ज्यादा की थी। रास्ते में छोटा मोटा परिचय हुआ। छोटा इसलिए कि जो हाल हमारा जापानी में था वो उनका अंग्रेजी में। अलबत्ता उनके समूह में दो लोग दोनों भाषाओं में प्रवीण थे। अधिकतर बातें उन्हीं के माध्यम से हो रही थीं।

कार्यक्रम के मुताबिक हमने पहले जूडो की प्रतियोगिता देखी वो भी बतौर मुख्य अतिथि और प्रेस संवाददाताओं के बीच पर वो कथा फिर कभी। हमारे कार्यक्रम में असली Twist in the tale तब आया जब हमने दो घंटे जूडो देखने के बाद अपने से आस पास की जगहों को घूमने की इच्छा ज़ाहिर की। जवाब में हमें बताया गया कि जूडो के कार्यक्रम के बाद हमें खिलाने के लिए वहाँ के एक चार सितारा होटल में ले जाया जाएगा। जुलाई का महिना था और जूडो स्टेडियम के बाहर काफी गर्मी थी। फुकुओका का बंदरगाह पास ही था पर उस गर्मी में वहाँ जाएँ कि ना जाएँ इस उधेड़बुन में हम थे ही कि ये प्रस्ताव हमारे सामने पेश कर दिया गया था। अब बंदरगाह की उष्णता के सामने चार सितारा होटल की शीतलता को भला कैसे ठुकराया जा सकता था सो हम सबने होटल जाने के लिए हामी भर दी।

सोमवार, 3 दिसंबर 2012

जापान दर्पण : फुकुओका (Fukuoka, Japan) के कंक्रीट जंगल

पिछली दो प्रविष्टियों में आपने पहले जापान की और फिर अपने छत्तीसगढ़ की हरियाली देखी। पर जैसा मैंने पहले लिखा था कि जैसे ही अंदरुनी इलाकों से आप जापान के किसी बड़े शहर के पास पहुँचते हैं कंक्रीट के घने जंगलों से आपका सामना होता है। अन्य देशों से उलट जापान में ऐतिहासिक इमारतें बिड़ले ही दिखाई पड़ती हैं। प्राकृतिक और युद्ध से जुड़ी त्रासदियाँ इसकी मुख्य वज़ह रही हैं। जापान में आने के बाद सबसे पहला महानगर जो मेरी नज़रों के सामने से गुजरा वो था फुकुओका।



फुकुओका (Fukuoka) जापान के चार प्रमुख द्वीपों में से एक क्यूशू द्वीप का सबसे बड़ा शहर है और इसके उत्तर पश्चिम में समुद्र तट के किनारे बसा हुआ है। अगर आप मानचित्र में देखें तो आप पाएँगे कि टोक्यो से कहीं ज्यादा ये दक्षिण कोरिया की राजधानी सिओल के करीब है। पुरातन काल से ये शहर चीन और कोरिया की ओर से जापान का प्रवेशद्वार कहा जाता था। तेरहवीं शताब्दी में चीन पर मंगोलों का कब्जा हो गया। चीन के बाद मंगोलों की नज़र जापान पर पड़ी। मंगोलों ने तो पहले जापानी कामकूरा शासकों को धमकी भरे पत्र लिखे। जब जापानियों पर इसका असर नहीं हुआ तो मंगोलों ने 1274 ई में क्यूशू द्वीप के इसी प्रवेशद्वार से जापान पर हमला बोल दिया।