राँची से राउरकेला तक अक्सर ट्रेन से जाना होता रहा है। ट्रेन बड़े मजे में तीन घंटे में वहाँ पहुँचा देती है। कर्रा, लोधमा, गोविंदपुर रोड, बकसपुर जैसे स्टेशनों से होते हुए बानो पहुँचिए और फिर वहाँ से झारखंड और ओड़िशा के सीमावर्ती घने जंगलों का आनंद लेते हुए नुआगाँव में प्रवेश कर जाइए। बरसात में इन पठारी इलाकों के बीच की धान की खेती और गर्मियों में सेमल और पलाश के फूलों को खिलता देखना पूरे सफ़र में आँखों को तरोताज़ा रखता है।
सकल बन फूल रही सरसों
पर इस बार मुझे मौका मिला इसी दूरी को सड़क से नापने का। अभी मौसम का हाल तो ये है कि फरवरी में भी पूरी तरह ठंड जाने का नाम नहीं ले रही इसलिए सेमल के फूलों की लाली देखने को नहीं मिली। हाँ सरसों के हरे पीले खेतों ने नज़ारा रंगीन जरूर कर दिया।