शुक्रवार, 27 मार्च 2015

केवड़े के जंगल व चिल्का ( चिलिका ) का वो ना भूलने वाला सूर्योदय Memorable sunrise at Rambha, Chilka (Chilika)

तारा तारिणी मंदिर से लौटते वक़्त हमारा अगला पड़ाव था चिल्का झील का दक्षिणी प्रवेश द्वार रंभा (Rambha) जो कि बरहमपुर शहर से करीब चालीस किमी उत्तर में स्थित है। राष्ट्रीय राजमार्ग पाँच पर चलते हुए रास्ते में हम गंजाम जिले के मुख्यालय छत्रपुर से होकर गुजरे। छत्रपुर से दो किमी की दूरी पर एक झील है जिसका नाम है तम्पारा ( Tampara lake) । आठ किमी लंबी ये झील किसी भी अन्य झील की ही तरह है। अक्सर लोग यहाँ नौका विहार करते हुए इसके एक से दो किमी तक चौड़े पाट को पार कर जंगल में ट्रेकिंग के लिए जाते हैं।

देखिए कैसे निकलती हैं केवड़े के तने से सहायक जड़ें ? (Prop roots of Pandanus tree)

हमारा समूह जब यहाँ शाम को पहुँचा तो झील से भी ज्यादा उसके किनारे लगे केवड़े कें जंगल ने हमें आकर्षित किया। चार से चौदह मीटर तक लंबे केवड़े के पेड़ों की खासियत ये है कि इनके तने से करीब तीन चार मीटर ऊपर से इनकी सहायक जड़ें निकलती हैं जो मुख्य जड़ को अवलंब प्रदान करती हैं। उड़ीसा के इस इलाके में आए पिछले चक्रवातीय तूफान की वजह से ये वृक्ष टेढ़े मेढ़े हो गए थे। 

तम्पारा झील के पास केवड़े के वृक्षों का खूबसूरत समूह (Bunch of Pandanus trees near Tampara)
हम केवड़े को अब तक इसके फूलों से बनने वाली सुगंध के रूप में ही जानते थे इसलिए इन्हें इस रूप में देखना हमारे लिए एक नया अनुभव था । तम्पारा झील के किनारे हमने करीब आधे घंटे  वक़्त बिताया और करीब सवा पाँच बजे वहाँ से रंभा के लिए चल पड़े। रंभा में भी हमने अपना आरक्षण पंथ निवास में कराया था। कॉटेज का आनंद हम गोपालपुर में उठा चुके थे सो हमने वहाँ जाकरNON AC और AC कमरों की उपलब्धता के बारे में पूछा। बारह सौ रुपये में एसी कमरा मिल गया। कमरा सामान्य था पर बॉलकोनी बड़ी थी और वहाँ से चिलिका झील सामने ही दिखती थी। सांझ के आगमन के साथ सुर्ख लाल सूरज झील के दूसरी ओर की पहाड़ियों की गोद में छुपने ही लगा था। थोड़ी ही देर में अँधेरा हो गया।


गपशप और भोजन के बाद हम टहलने निकले। पंथ निवास के पिछले दरवाजे से चिल्का की ओर रास्ता निकलता है। निवास की चारदीवारी तक जो रोशनी थी उससे जेटी की ओर जाने वाली एक पगडंडी दिख रही थी। हम कुछ दूर उस पगडंडी पर बढ़े पर आगे घना अंधकार होने की वज़ह से कदम वापस खींचने पड़े। वापस होने ही वाले थे कि पगडंडी की बगल की  झाड़ियों से पतली टार्च जैसी रोशनी दिखाई दी। हम चुपचाप वहीं खड़े रहे कि तभी झाड़ियों में से एक साथ कई दर्जन  जुगनुओं को रह रह कर एक साथ चमकते देखा। शहरों में तो इक्का दुक्का जुगनू कभी कभी दिख जाते हैं पर इतने सारे जुगनुओं को एक साथ देखना बच्चों के साथ हमारे लिए भी खुशी का सबब रहा।

सूर्योदय वेला का एक मनोहारी दृश्य

शनिवार, 21 मार्च 2015

तारा तारिणी मंदिर : बरहमपुर का अनजाना आदि शक्ति पीठ Tara Tarini Temple, Brahmapur

भारत में छोटे बड़े 51 शक्तिपीठ हैं पर इनमें से चार की गणना आदि शक्तिपीठों में होती है। गौर करने की बात है कि ये सारे पीठ भारत के पूर्वी इलाके में स्थित हैं। पुरी के जगन्नाथ मंदिर, गुवाहाटी के कामाख्या मंदिर और कोलकाता के काली मंदिर के तीन पीठों के बारे में तो आप भली भांति परिचित होंगे। पर क्या आप जानते हैं कि चौथा आदि शक्तिपीठ कहाँ है? आदि शक्तिपीठों की चौथी पीठ दक्षिणी ओडीसा के ब्रह्मपुर ( Brahmapur) या बरहमपुर ( Berhampur) शहर से तीस किमी दूर तारा तारिणी मंदिर में स्थित है। तो चलिए आज आपको लिये चलते हैं  इस शक्तिपीठ के दर्शन पर.. 

तारा तारिणी का भव्य मंदिर

पिछले लेखों में आपको बता चुका हूँ कि गोपालपुर में समुद्र के सानिध्य में बिताई शाम और सुबह कितनी रमणीक थी । गोपालपुर में एक रात ठहरने के बाद अगले दिन भोजन के उपरांत हमारा समूह तारा तारिणी मंदिर की ओर चल पड़ा। गोपालपुर से तारा तारिणी मंदिर की दूरी पैंतीस किमी के लगभग है जो तकरीबन एक घंटे में पूरी होती है। पंथ निवास से हमने एक कार की बुकिंग की थी पर ऐन वक़्त पर जब ये चमचमाती हुई महिंद्रा की मिनी वैन आकर खड़ी हुई तो लगा कि इस पर सैर करने का आनंद ही अलग होगा। जनवरी का महीना था सो दिन की धूप तेज होते हुए भी कड़ी नहीं थी। कुछ दूर तक सफ़र राष्ट्रीय राजमार्ग (NH 59) से होकर गुजरा और फिर राज्य राजमार्ग (SH 32) की दुबली पतली सड़क का दामन हमने थाम लिया।

गोपालपुर से तारा तारिणी तक जाने का मार्ग

सड़क पर ट्राफिक नगण्य था सो हम पचास मिनट में ही कुमारी पहाड़ियों के नीचे थे। पहाड़ी के नीचे से एक सड़क मंदिर तक जाती है, साथ ही अगर आपमें दम खम हो तो यहाँ की 999 सीढ़ियाँ चढ़ सकते हैं। पर जब आपके सामने इतना सुंदर उड़न खटोला हो तो बाकी के विकल्प तो बेमानी हो ही जाएँगे। रोपवे से मंदिर के प्रांगण तक की दूरी पाँच मिनट में तय होती है और इस दौरान आप आस पास बसे गाँव , खेत खलिहान और उनके ठीक बगल से बहती  ऋषिकुल्‍या नदी का मनोरम नज़ारा देख सकते हैं।

उड़न खटोला (Rope Way) , तारा तारिणी मंदिर

ऋषिकुल्‍या दक्षिणी ओडीसा की एक प्रमुख नदी है जो विंध्याचल के पूर्वी हिस्से से निकल कर काँधमाल और गंजाम जिलों से होती हुई बंगाल की खाड़ी में जा मिलती है। गंजाम के पास इस नदी का मुहाना है। इसी मुहाने पर कछुओं की प्रजाति Olive Ridley Turtle द्वारा हर साल काफी मात्रा में अंडे दिए जाते हैं। तारा तारिणी मंदिर के आहाते से सर्पीले आकार में अपना रास्ता बदलती इस नदी के पाट को आप बखूबी देख सकते हैं।

ऋषिकुल्‍या नदी का मनमोहक रूप

शुक्रवार, 13 मार्च 2015

प्रकृति व लोकरंग कलाकारों के संग ... International Friendship Art Workshop-cum-Exhibition at Shyamali, Ranchi

किसी नई जगह पर हम जाते हैं तो वहाँ की खूबसूरती को अपने क़ैमरे में क़ैद करने की कोशिश करते हैं। उस जगह के कुछ लोग , कुछ मंज़र, कुछ दिलचस्प बातें जरूर दिमाग में घर कर जाती हैं जैसे जैसे वक़्त बीतता है ये यादें धुंधली हो जाती हैं। पर जब एक कलाकार गाँवों, कस्बों, शहरों से गुजरता है, लोगों से मिलता है और उनके परिवेश को समझता है तो उसका प्रतिबिंब वो मन मस्तिष्क में बसा लेता है। फिर वही बिंब किसी कैनवस, किसी शिल्प पर यूँ उभरता है कि वो उन यादों को पुनर्जीवित कर देता है। 

Painting themes varied from people, nature and local culture

फरवरी के आख़िरी सप्ताह में देश और विदेशों से कलाकारों का जमघट जब राँची के श्यामली स्थित रोज़ गार्डन में उतरा तो इन कलाकारों के मन की भावनाओं को कैनवस और तराशे जा रहे पत्थरों पर प्रत्यक्ष देखने का अवसर मिला। अक़्सर ऐसी कार्यशाला और प्रदर्शनी बड़े शहरों में लगा करती हैं पर   International Friendship Art Workshop-cum-Exhibition के तहत पहली बार आस्ट्रेलिया, ब्रिटेन, थाइलैंड, नेपाल, बाँग्लादेश और भारत के लगभग तीस कलाकारों को काम करते और अपनी कलाकृतियों को अंतिम रूप देते देखने का मौका राँची के लोगों को मिला।

Rose Garden, Shyamali, Ranchi
उद्यान के मुख्य भाग में बनी हुई पे्टिंग की प्रदर्शनी चल रही थी जब की शिल्पकार और चित्रकार बागीचे के अलग अलग भागों में बने सफेद गुलाबी कक्ष के अंदर अपने शिल्प और चित्रों को सँवार रहे थे। अपने काम में तल्लीन इन कलाकारों को चित्रों और शिल्पों को मूर्त रूप देते देखना अपने आप में एक अलग अनुभव था।

Artist at work  : Clockwise from left Manoj Sinha, Australia's Birgit Grapentin, Raghu Nath Sahu, Susant Panda & Bina Ramani

शुक्रवार, 6 मार्च 2015

गोपालपुर समुद्र तट का वो अद्भुत सूर्योदय और सुबह की सैर Beautiful Sunrise at Gopalpur Beach, Odisha

समुद्री तटों पर जाने का हमारा पहला उद्देश्य तो सागर की लहरों से अठखेलियाँ करना ही होता है। पर अपनी विशाल जलराशि में गोते लगाने के लिए आमंत्रण देता समुद्र साथ ही प्रकृति की दो मनोरम झाँकियों को करीब से देखने और अंदर तक महसूस करने का अवसर भी देता है। ये बेलाएँ होती हैं सूर्योदय और सूर्यास्त की। भारत के पूर्वी तटों पर सूर्योदय का मंज़र देखने लायक होता है पर शर्त ये कि बादल उस समय आँख मिचौली का खेल ना खेलें।

गोपालपुर में समुद्र की कोख से निकलते सूर्य को तो हम बादलों की वज़ह से नहीं देख सके पर उसके बाद दिवाकर की जिस छटा का मैंने अनुभव किया वो गोपालपुर की यात्रा को यादगार बना गई। तो चलिए आज की इस प्रविष्टि में दक्षिणी ओडीसा के समुद्र तट गोपालपुर के सूर्योदय के साथ समुद्र तट पर हो रही हलचलों से उस वक़्त खींची गई तसवीरों के माध्यम से आपको मैं वाकिफ़ कराता हूँ। 


जैसा की पिछले आलेख में आपको बताया था कि पंथ निवास से गोपालपुर के समुद्र तट की दूरी सौ मीटर से भी कम है। सुबह छः बजे जब मैं उठा तो बाहर अँधेरा ही था। पन्द्रह बीस मिनट में तैयार होकर अपने मित्र के साथ समुद्र तट की ओर निकला। तट पर काफी चहल पहल थी। मछुआरों का समूह अपनी अपनी नावों के किनारे जाल को व्यवस्थित करने में जुटा हुआ था। कुछ नावें पहले ही बीच समुद्र में जा चुकी थीं और किनारे से काले कागज की नाव सरीखी दिख रही  थीं।


पौने सात से दो मिनट पहले सूर्य की लाली बादलों की ओट से बाहर आना लगी। फिर तो दो मिनट के अंदर सूरज अपनी पूरी लालिमा के साथ बाहर निकल कर आ गया। सूर्य के बदलते रुपों को क़ैद करने के लिए कैमरे का सटर क्षण क्षण दबता रहा। जब सूरज की लाली पीलेपन में बदल गई तो फिर उसे अपनी मुट्ठी में क़ैद करने का ख्याल आया।


सूर्य किरणों की बढ़ती तीव्रता के साथ सागर तट का नज़ारा देखने लायक था...