तारा तारिणी मंदिर से लौटते वक़्त हमारा अगला पड़ाव था चिल्का झील का दक्षिणी प्रवेश द्वार रंभा (Rambha) जो कि बरहमपुर शहर से करीब चालीस किमी उत्तर में स्थित है। राष्ट्रीय राजमार्ग पाँच पर चलते हुए रास्ते में हम गंजाम जिले के मुख्यालय छत्रपुर से होकर गुजरे। छत्रपुर से दो किमी की दूरी पर एक झील है जिसका नाम है तम्पारा ( Tampara lake) । आठ किमी लंबी ये झील किसी भी अन्य झील की ही तरह है। अक्सर लोग यहाँ नौका विहार करते हुए इसके एक से दो किमी तक चौड़े पाट को पार कर जंगल में ट्रेकिंग के लिए जाते हैं।
देखिए कैसे निकलती हैं केवड़े के तने से सहायक जड़ें ? (Prop roots of Pandanus tree) |
हमारा समूह जब यहाँ शाम को पहुँचा तो झील से भी ज्यादा उसके किनारे लगे
केवड़े कें जंगल ने हमें आकर्षित किया। चार से चौदह मीटर तक लंबे केवड़े के
पेड़ों की खासियत ये है कि इनके तने से करीब तीन चार मीटर ऊपर से इनकी सहायक
जड़ें निकलती हैं जो मुख्य जड़ को अवलंब प्रदान करती हैं। उड़ीसा के इस इलाके
में आए पिछले चक्रवातीय तूफान की वजह से ये वृक्ष टेढ़े मेढ़े हो गए थे।
तम्पारा झील के पास केवड़े के वृक्षों का खूबसूरत समूह (Bunch of Pandanus trees near Tampara) |
हम केवड़े को अब तक इसके फूलों से बनने वाली सुगंध के रूप में ही जानते थे इसलिए इन्हें इस रूप में देखना हमारे लिए एक नया अनुभव था । तम्पारा झील के किनारे हमने करीब आधे घंटे वक़्त बिताया और करीब सवा पाँच बजे वहाँ से रंभा के लिए चल पड़े। रंभा में भी हमने अपना आरक्षण पंथ निवास में कराया था। कॉटेज का आनंद हम गोपालपुर में उठा चुके थे सो हमने वहाँ जाकरNON AC और AC कमरों की उपलब्धता के बारे में पूछा। बारह सौ रुपये में एसी कमरा मिल गया। कमरा सामान्य था पर बॉलकोनी बड़ी थी और वहाँ से चिलिका झील सामने ही दिखती थी। सांझ के आगमन के साथ सुर्ख लाल सूरज झील के दूसरी ओर की पहाड़ियों की गोद में छुपने ही लगा था। थोड़ी ही देर में अँधेरा हो गया।
गपशप और भोजन के बाद हम टहलने निकले। पंथ निवास के पिछले दरवाजे से चिल्का की ओर रास्ता निकलता है। निवास की चारदीवारी तक जो रोशनी थी उससे जेटी की ओर जाने वाली एक पगडंडी दिख रही थी। हम कुछ दूर उस पगडंडी पर बढ़े पर आगे घना अंधकार होने की वज़ह से कदम वापस खींचने पड़े। वापस होने ही वाले थे कि पगडंडी की बगल की झाड़ियों से पतली टार्च जैसी रोशनी दिखाई दी। हम चुपचाप वहीं खड़े रहे कि तभी झाड़ियों में से एक साथ कई दर्जन जुगनुओं को रह रह कर एक साथ चमकते देखा। शहरों में तो इक्का दुक्का जुगनू कभी कभी दिख जाते हैं पर इतने सारे जुगनुओं को एक साथ देखना बच्चों के साथ हमारे लिए भी खुशी का सबब रहा।
सूर्योदय वेला का एक मनोहारी दृश्य |