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शुक्रवार, 6 मार्च 2015

गोपालपुर समुद्र तट का वो अद्भुत सूर्योदय और सुबह की सैर Beautiful Sunrise at Gopalpur Beach, Odisha

समुद्री तटों पर जाने का हमारा पहला उद्देश्य तो सागर की लहरों से अठखेलियाँ करना ही होता है। पर अपनी विशाल जलराशि में गोते लगाने के लिए आमंत्रण देता समुद्र साथ ही प्रकृति की दो मनोरम झाँकियों को करीब से देखने और अंदर तक महसूस करने का अवसर भी देता है। ये बेलाएँ होती हैं सूर्योदय और सूर्यास्त की। भारत के पूर्वी तटों पर सूर्योदय का मंज़र देखने लायक होता है पर शर्त ये कि बादल उस समय आँख मिचौली का खेल ना खेलें।

गोपालपुर में समुद्र की कोख से निकलते सूर्य को तो हम बादलों की वज़ह से नहीं देख सके पर उसके बाद दिवाकर की जिस छटा का मैंने अनुभव किया वो गोपालपुर की यात्रा को यादगार बना गई। तो चलिए आज की इस प्रविष्टि में दक्षिणी ओडीसा के समुद्र तट गोपालपुर के सूर्योदय के साथ समुद्र तट पर हो रही हलचलों से उस वक़्त खींची गई तसवीरों के माध्यम से आपको मैं वाकिफ़ कराता हूँ। 


जैसा की पिछले आलेख में आपको बताया था कि पंथ निवास से गोपालपुर के समुद्र तट की दूरी सौ मीटर से भी कम है। सुबह छः बजे जब मैं उठा तो बाहर अँधेरा ही था। पन्द्रह बीस मिनट में तैयार होकर अपने मित्र के साथ समुद्र तट की ओर निकला। तट पर काफी चहल पहल थी। मछुआरों का समूह अपनी अपनी नावों के किनारे जाल को व्यवस्थित करने में जुटा हुआ था। कुछ नावें पहले ही बीच समुद्र में जा चुकी थीं और किनारे से काले कागज की नाव सरीखी दिख रही  थीं।


पौने सात से दो मिनट पहले सूर्य की लाली बादलों की ओट से बाहर आना लगी। फिर तो दो मिनट के अंदर सूरज अपनी पूरी लालिमा के साथ बाहर निकल कर आ गया। सूर्य के बदलते रुपों को क़ैद करने के लिए कैमरे का सटर क्षण क्षण दबता रहा। जब सूरज की लाली पीलेपन में बदल गई तो फिर उसे अपनी मुट्ठी में क़ैद करने का ख्याल आया।


सूर्य किरणों की बढ़ती तीव्रता के साथ सागर तट का नज़ारा देखने लायक था...


शनिवार, 28 फ़रवरी 2015

उड़ीसा का कम चर्चित पर खूबसूरत समुद्र तट गोपालपुर.. Gopalpur Sea Beach, Odisha

उड़ीसा और पश्चिम बंगाल के समुद्र तट हमेशा से मेरे प्रिय रहे हैं। पिछले कुछ सालों में इस ब्लॉग पर मैं आपको दीघा, चाँदीपुर व पुरी के समुद्र तटों के चक्कर लगा चुका हूँ। चाँदीपुर और दीघा के समुद्र तट छिछले हैं। लहरें ज्यादा उठती नहीं है और आप बिना किसी डर भय के समुद्र तट में गोते लगा सकते हैं। चांदीपुर में तो आप समुद्र के अंदर सैकड़ों मीटर तक चहलकदमी करते हुए अंदर जा सकते हैं। समुद्र की तेज उठती लहरों का आनंद लेना हो तो फिर पुरी का लोकप्रिय समुद्र तट तो है ही़ पर इन सब के आलावा भी उड़ीसा के दक्षिणी सिरे पर एक और खूबसूरत समुद्र तट है जहाँ लहरों का तेज तो है पर पुरी के उलट पर्यटकों का रेलमपेल नहीं । ये समुद्रतट है गोपालपुर का जो उड़ीसा के बरहमपुर (Berhampur) शहर से मात्र सोलह किमी की दूरी पर है।

Fisherman getting ready for foray into sea at Gopalpur, Odisha
जनवरी के महीने की आख़िर में मैंने गोपालपुर जाने का कार्यक्रम बनाया। राँची से गोपालपुर जाने के लिए कोई सीधी ट्रेन नहीं है। पहले शाम की ट्रेन से चलकर भुवनेश्वर पहुँचिए और फिर वहाँ से दक्षिण जाने वाली किसी भी गाड़ी गाड़ी में टिकट कटा लीजिए। हावड़ा से चेन्नई जाने वाली रेलवे लाइन पर ही बरहमपुर स्टेशन पड़ता है। आज इसका नाम बदलकर ब्रह्मपुर  ( Brahmapur ) यानि ब्रह्मा के घर में तब्दील कर दिया गया है।
Map of Gopalpur  locatedon east coast of Odisha, India

उड़ीसा के गंजाम जिले में पड़ने वाला ये शहर यहाँ बनने वाली सिल्क की साड़ियों के लिए विख्यात है। जनसंख्या की दृष्टि से ये उड़ीसा का चौथा सबसे बड़ा शहर है। राँची से चलकर भुवनेश्वर तो हम अगली सुबह पाँच बजे ही पहुँच गए थे। भुवनेश्वर से ब्रह्मपुर की 170 किमी की दूरी को तय करने में करीब तीन घंटे का वक्त लग गया। भुवनेश्वर से ब्रह्मपुर का रास्ता भारत के पूर्वी घाट के किनारे किनारे चलता है। घाट की छोटी छोटी पहाड़ियों के साथ लगे खेतों के किनारे किनारे इन ताड़ के वृक्षों की बहुतायत है। 

A typical landscape along the railway tracks on way to Brahmapur
ट्रेन कुछ देर तक चिलिका झील के भी ठीक बगल से गुजरती है। झील की अथाह जल राशि को पाँच मिनट तक बगल से गुजरते देखना इस यात्रा की यादगार झांकियों में से है। दिन के साढ़े बारह बजे हम ब्रह्मपुर पहुँचे। स्टेशन के बाहर से टैक्सी ली और चल पड़े गोपालपुर की ओर। गोपालपुर में रहने के लिए बजट होटलों में सबसे लोकप्रिय उड़ीसा पर्यटन का पंथ निवास है। यहाँ आप ढाई सौ की डॉरमेट्री से लेकर ढाई हजार के कॉटेज में रह सकते हैं। पर अगर आपने पहले से आरक्षण नहीं करवाया हो तो यहाँ कमरों का मिलना टेढ़ी खीर है। महीने भर पहले भी हमें सामान्य एसी और नॉन एसी कमरा नहीं मिल पाया। अतः कॉटेज में ही रहना पड़ा।  

Front view of Panth Niwas at Gopalpur
कॉटेज की सबसे बड़ी सुविधा ये थी कि आप बिना किसी की नज़रो में आए हुए समुद्र तक आ जा सकते थे जो वहाँ से पचास  मीटर के फासले पर था। गोपालपुर को हमेशा से चक्रवातीय तूफानों का दंश झेलना पड़ा है। यहाँ का पंथनिवास भी इसकी चपेट में आ चुका है। नतीजन निवास से समुद्र के बीच का हिस्सा जो कभी पेड़ों से गुलज़ार हुआ करता था आज बिल्कुल नग्न सा दिखता है।

Cottages at Panth Niwas, OTDC

दिन का भोजन कर के हम करीब चार बजे समुद्र की ओर निकले। पंथ निवास समुद्र के किनारे थोड़ी ऊँचाई पर बना है। थोड़ी दूर समतल ज़मीन पर चलने के बाद एकदम से बालू की ढलान आ जाती है और समुद्र की विशाल नीली जलराशि के प्रथम दर्शन होते हैं। अंग्रेजों के ज़माने में गोपालपुर बंदरगाह हुआ करता था। यहाँ से बर्मा के रंगून तक व्यापार होता था। अब वो जेट्टी टूट फूट चुकी हैं हालांकि यहाँ एक नए बंदरगाह के निर्माण की योजना है।