मुसाफ़िर हूँ यारों पर आज आपको एक ऐसी जगह ले चल रहा हूँ जहाँ आज तक मैं नहीं जा सका हूँ पर जहाँ जाने की बड़ी इच्छा है। पर क्या बिना किसी स्थान पर गए हुए उसको महसूस करना संभव हैं? जरूर है जनाब अगर आप को किताबें पढ़ने का शौक़ हो। अब तो आप समझ ही गए होगें कि आज की ये यात्रा होगी एक पुस्तक के माध्यम से जिसे लिखा है अजय जैन ने और वो इलाका है लद्दाख का। इससे पहले कि मैं आपको लद्दाख के सफ़र पर ले चलूँ कुछ बातें लेखक के बारे में।
मेकेनिकल इंजीनियरिंग, MBA व पत्रकारिता की डिग्री हासिल करने वाले अजय ने प्रबंधन से जुड़ी अपनी पहली किताब 2001 में लिखी। घुमक्कड़ी, फोटोग्राफी और यात्रा लेखन का शौक़ रखने वाले अजय एक कुशल व्यवसायी भी हैं। Postcards from Ladakh अजय की तीसरी किताब है जो 2009 में प्रकाशित हुई।
मेकेनिकल इंजीनियरिंग, MBA व पत्रकारिता की डिग्री हासिल करने वाले अजय ने प्रबंधन से जुड़ी अपनी पहली किताब 2001 में लिखी। घुमक्कड़ी, फोटोग्राफी और यात्रा लेखन का शौक़ रखने वाले अजय एक कुशल व्यवसायी भी हैं। Postcards from Ladakh अजय की तीसरी किताब है जो 2009 में प्रकाशित हुई।
अजय ने इसी साल लद्दाख के आस पास के इलाकों में अपने चौपहिया वाहन से दस हजार किमी तक की दूरी भी तय की। सच पूछिए तो Postcards from Ladakh कोई विस्तृत यात्रा वृत्तांत नहीं है। 182 पृष्ठों की इस किताब को एक यात्रा डॉयरी कहना ज्यादा उचित होगा क्यूँकि पूरी किताब अजय के छोटे छोटे उन संस्मरणों से अटी पड़ी है जिन्हें लेखक ने अपनी यात्रा के विभिन्न पड़ावों पर महसूस किया। ख़ुद अजय अपनी किताब को कुछ यूँ परिभाषित करते हैं
"मैंने इस किताब को इस तरह लिखा है जैसे मैं उस स्थान से आपको कोई पोस्टकार्ड लिख रहा हूँ। इनमें ना सिर्फ मेरी अनुपम यादें हैं बल्कि वहाँ रहकर जो मैंने जाना समझा उसका सार भी है।"