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रविवार, 15 दिसंबर 2019

साल्ज़बर्ग : मोत्ज़ार्ट की भूमि पर जब गूँजी बारिश की सरगम Scenic Lake District of Salzburg

जाड़ों की भली धूप का आनंद पिछले दो हफ्तों से उठा रहे थे कि अचानक उत्तर भारत की बर्फबारी के बाद खिसकते खिसकते बादलों का झुंड यहाँ आ ही गया। धूप तो गई ही, ठंड के साथ ही बारिश की झड़ी भी ले आई। मुझे याद आया कि ऐसे ही मौसम में मैंने कभी जर्मनी के म्यूनिख से आस्ट्रिया के शहर साल्ज़बर्ग की यात्रा की थी। साल्जबर्ग आस्ट्रिया का एक खूबसूरत शहर है। ये वही शहर है जिसमें कभी विश्व प्रसिद्ध संगीतज्ञ मोत्ज़ार्ट ने अपनी ज़िंदगी गुजारी थी और जिनकी धुनों से सलिल चौधरी से लेकर अजय अतुल जैसे संगीतकार बेहद प्रभावित रहे हैं।

ऐसे प्यारे शानदार घरों से सजा है साल्ज़बर्ग से सटा लेक डिस्ट्रिक्ट
जर्मनी की वो ट्रेन जापान की बुलेट ट्रेन सरीखी तो नहीं थी पर उसने बीच बीच में रुकते हुए भी डेढ़ सौ किमी की दूरी डेढ़ पौने दो घंटे में पूरी कर ली थी।

म्यूनिख से साल्ज़बर्ग ले जाने वाली रेल जेट :)
जर्मनी हो या आस्ट्रिया दोनों देशों में जर्मन भाषा का ही बोलबाला है। जर्मन शब्दों का उच्चारण तो फ्रेंच से भी दुष्कर लगता है पर चाहे म्यूनिख हो या साल्ज़बर्ग, दोनों ही रेलवे स्टेशनों  पर यात्री संकेत इतने स्पष्ट थे कि भाषा ना जानते हुए भी उनकी मदद से बहुत कुछ समझ आ जाता था। गाड़ी ढूँढने से लेकर अपने ठिकाने तक पहुँचना बेहद आसानी से हो गया। शायद इसमें मददगार ये बात भी थी कि मेरा होटल स्टेशन से पाँच मिनटों की दूरी पर था।

साल्ज़बर्ग में मेरा रहने का  ठिकाना Wyndham Grand
अब रहने का ठिकाना व सवारी तो मैंने चुनी थी पर मौसम पर कहाँ मेरी मर्जी चलती? शहर घूमना शुरु ही किया था कि सर्द हवाओं के बीच बारिश की लड़ियाँ यूँ बरसने लगीं कि जैसे पूरे शहर को डुबो कर ही छोड़ेंगी। साल्ज़बर्ग स्टेशन पर बड़ी बड़ी छतरियों को बिकते देखा था। उनके बड़े आकार का मर्म अब समझ आया। एक के दाम में तो हमारे यहाँ की दर्जन छतरियाँ आ जातीं। वैसे भी इतनी मँहगी छतरी को तो भारतीय माणुस इस्तेमाल करने से भी डरे। 

ये थी हमारी शहर की सवारी
घनघोर बारिश का नतीजा ये था हमारी मेटाडोर के शीशे से दिखता साल्ज़बर्ग शहर भी धुँधला सा गया था। वहाँ के चर्च, पुरानी ऐतिहासिक इमारतों और मोत्जार्ट के घर को देखने के बाद हमारे गाइड ने गाड़ी शहर को दो हिस्सों में काटती नदी सालज़च के सामने खड़ी कर दी । 

भारी बारिश के बीच दिखी वो इमारत जहाँ कभी मोत्जार्ट रहा करते थे
नदी के दूसरी यानी किले की तरफ़ शहर का सबसे पुराना इलाका है। पूरे  इलाके में दो दर्जन से अधिक चर्च हैं। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान इस इलाके को क्षति नहीं उठानी पड़ी थी इसलिए ये जैसा का तैसा रह गया। आज यूरोपीय इतिहास की इस बची धरोहर को यूनेस्को की हेरिटेज साइट्स में शामिल कर लिया गया है। 

सामने पहाड़ी पर खड़ा होहेनसाल्ज़बर्ग का किला अपनी ओर आमंत्रित कर रहा था पर भारी बारिश में बिना छतरी के ना कैमरा सँभल रहा था ना ही चलने का मन हो रहा था। उधार की छतरी से अपना सिर बचाए हुए गाइड की बातें सुनने के आलावा कोई विकल्प भी नहीं था।

बारिश में भीगा किले और शहर का पुराना इलाका
गाइड बता रहा था कि साल़्जबर्ग का शाब्दिक अर्थ है नमक का किला। मध्यकालीन युग में यहाँ नमक की खदानें हुआ करती थीं। यही व्यापार इस शहर की सम्पन्नता का आधार था। यूनेस्को ने भले शहर के इस पुराने इलाके  को विश्व धरोहर बनाकर सबके मानस पटल पर ला दिया हो पर यहाँ के बाशिंदे तो उससे भी ज्यादा अपनी संगीतिक विरासत पर गर्व महसूस करते हैं। ये  शहर अपने नायक मोत्ज़ार्ट को बेहद प्यार करता है। उनके घर को तो संग्रहालय बना ही दिया गया है। साथ ही गाइड उनके परिवार के सदस्यों से जुड़ी  हर एक बार बड़े फक्र से बताते हैं। 

बाजार ने भी शहर की इस भावना को हाथो हाथ लिया है। नतीजा ये कि मोत्ज़ार्ट चॉकलेट से लेकर उनके नाम के खिलौने और आइसक्रीम भी आपको इस शहर में बिकते मिल जाएँगे। यूरोपीय शास्त्रीय संगीत के चाहने वालों के लिए बकायदा एक अलग यात्रा कार्यक्रम होता है जिसे यहाँ साउंड आफ म्यूजिक (Sound Of Music) टूर का नाम दिया जाता है। इस कार्यक्रम में मोत्ज़ार्ट से संबंधित जगहों की सैर के साथ साथ आपको उनके संगीत का रसास्वादन करने के लिए कन्सर्ट में भी ले लाया जाता है।

मुझे संगीत में दिलचस्पी तो थी पर उपलब्ध समय में मैंने साल्ज़बर्ग के बाहरी इलाकों की सैर को प्राथमिकता दी और मेरा ये निर्णय साल्ज़बर्ग की यादों को मेरे हमेशा हमेशा के लिए मन में नक़्श करने में सफल रहा।

फुशोज़ी झील (Lake Fuschlsee)
शहर से तीस चालीस किमी दूर  ही आल्प्स की तलहटी में बसे गाँव दिखने लगते हैं। झील से सटे इन इलाकों को यहाँ लेक डिस्ट्रिक्ट के नाम से जाना जाता है ।

साल्ज़बर्ग से संत गिलगन के रास्ते में से पहले जो झील पड़ती है उसका नाम है फुशोज़ी (Fuschlsee)। जर्मन से सिर्फ अक्षरों के माध्यम से इस उच्चारण को पकड़ पाना कितना कठिन है ये समझ सकते हैं। आम दिनों में  शहर से पास होने की वज़ह से यहाँ अच्छी खासी भीड़ भाड़ होती है पर फिर भी यहाँ के लोग इस झील के पानी को सबसे साफ बताते हैं। चार घंटे में इस झील का चक्कर लगाना आँखों को वाकई तृप्त कर देता होगा। यहाँ की अधिकांश झीलों में तैरना लोगों का प्रिय शगल है।

मैं यहाँ रुका नहीं क्यूँकि मुझे फुशोज़ी से आगे साल्ज़कैमरगुट (Salzkammergut) का रुख करना था।

चांसलर हेलमट कोल का छुट्टियों का आशियाना 
रास्ते में मुझे जर्मनी के पुराने चांसलर हेलमट कोल का वो विला दिखाया गया जहाँ चांसलर जर्मनी से छुट्टियाँ मनाने आया करते थे। उनके शासन काल में एक बार बढ़ती बेरोजगारी को मुद्दा बना के विपक्ष के नेताओं ने युवकों को यहाँ पिकनिक मना कर भोजन के लिए इसी विला का घेराव करने की बात कही थी।

कितना प्यारा  घर है तुम्हारा 
साठ के दशक में Sound of Music  की फिल्म की शूटिंग इस इलाके में हुई थी। इससे जुड़े स्थानों को देखने की ललक यहाँ आने वाले लोगों को वैसी ही है जैसे भारतीयों को स्विटज़रलैंड जाने पर DDLJ से जुड़ी जगहों को देखने की होती है।

संत गिलगन से शुरु हुई हमारी यात्रा
पहाड़ से सटे मैदानों में छोटी बड़ी इतनी झीलों का होना आश्चर्य पैदा करता है। भूगोलविदों का मानना है कि आइस एज़ के बाद जब यहाँ के ग्लेशियर पिघले तो उन्होंने झील की शक़्लें इख्तियार कर लीं। 


एल्प्स पर्वत से जुड़ी पहाड़ियों का एक सिरा आस्ट्रिया में आकर खत्म होता है
संत गिलगन से शुरु हुई हमारी यात्रा को संत वोल्फगैंग में जाकर खत्म होना था। पूरे रास्ते में झील के किनारे किनारे छोटे बड़े गाँव बसे हुए हैं।


अब इन तथाकथित गाँवों को हमारे ज़मीर ने गाँव मानने से इनकार कर दिया। झील के किनारे पहाड़ी ढलानों पर बने इन मकानों में से ज्यादातर किसी रईस की कोठी की तरह नज़र आते हैं। शायद यहाँ रहने वाले इनमें से कुछ का इस्तेमाल देश विदेश से आने वाले सैलानियों को ठहराने के लिए करते होंगे। 

इक बँगला बने न्यारा

आ जाइए कुर्सियाँ आपका इंतज़ार कर रही हैं।

झील के किनारे बसे इन गाँवों की खूबसूरती  देखते ही बनती है। बारिश जहाँ पेड़ पौधों को हरा करती जा रही थी वहीं बादल उनमें सफेदी का रंग भर रहे थे। हरी भरी छटा के बीच ये मकान दूर से छोटे छोटे खिलौने की तरह बिछे दिखाई दे रहे थे।

हरियाली के बीच रहना इसी को कहेंगे ना?



साल्ज़बर्ग को बसाने में संत वोल्फगैंग का महती योगदान है। दसवीं शताब्दी में उन्होंने ही यहाँ पहले चर्च की स्थापना की। उनके नाम में ये वोल्फ यानी सियार का शब्द आया कैसे इसके लिए भी एक रोचक कथा यहाँ प्रचलित है। चर्च के किए जगह खोजने के लिए उन्होंने पहाड़ी से एक कुल्हाड़ी नीचे फेंकी। जिस जगह जाकर ये कुल्हाड़ी अटकी वहीं चर्च का बनना तय हुआ। इस कार्य के लिए उन्होंने बुरी शक्तियों (जिसे ईसाई धर्म में Devil के नाम से जाना जाता है) की भी मदद माँगी। बदले में ये तय हुआ कि जो पहली जीवित आत्मा चर्च में प्रवेश करेगी वो डेविल के हवाले कर दी जाएगी। हुआ यूँ कि बनने के बाद इस चर्च में सबसे पहले एक सियार ने दाखिला ले लिया और इसी वजह से वो यहाँ के संत से लेकर झील के नाम का हिस्सा बन गया। आज इस कस्बे से सटी झील लेक वोल्फगैंगसी के नाम से जानी जाती है।

संत वोल्फगैंग चर्च

संत वोल्फगैंग एक छोटा सा कस्बा है जिसका चर्च उस की पहचान है। चर्च में कुछ समय बिताने के बाद जब बाहर निकले तो बारिश थोड़ी कम हो गयी थी। शहर की गलियों में थोड़ी देर चहलकदमी करने करने के बाद आस्ट्रिया के इस खूबसूरत इलाके के दृश्यों को सँजोए हम वापस साल्ज़बर्ग लौट गए।



आगर आप आसमान से इस इलाके को देखें तो ये रमणीक जगह  कुछ ऐसी दिखेगी । :)


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शनिवार, 12 नवंबर 2016

यादें यूरोप कीः वो पहला अनुभव वियना का ! Senses of Austria

वियना में विमान से सुबह उतरते वक़्त बाहर का तापमान पन्द्रह के करीब बताया गया। हमारा समूह सशंकित था कि राँची और फिर दिल्ली में मई की गर्मी झेलने के बाद अचानक कितनी ठंड का सामना करना पड़ेगा। जो ठंड लगनी थी वो एरोब्रिज के आखिरी छोर पर पहुँचते पहुँचते खत्म हो गयी। वियना का ये एयरपोर्ट बहुत नया तो नहीं पर बेहद हरे भरे इलाके के बीच बना है। आज से करीब अस्सी साल पहले इसका निर्माण दूसरे विश्व युद्ध की तैयारियों के लिए जर्मनी द्वारा 1938 में किया गया था। समय के साथ इसमें कई बदलाव हुए और आज ये आस्ट्रिया का सबसे बड़ा हवाई अड्डा है। 

देश में घुसते या निकलते समय ऐसी दुकानें से की गई खरीद वर्षों आपकी यादों को ताज़ा रख सकती हैं। 
हमारी अगली फ्लाइट छः घंटे बाद थी। भारत की अपेक्षा जहाँ इतनी सुबह एयरपोर्ट की हालत मछली बाजार की हो जाती है, यहाँ मामला खाली खाली सा था। अगली फ्लाइट जिस  द्वार के पास  आने वाली थी,  उसी इलाके में हमने अपना कब्जा जमाया। बेल्जियम के एयरपोर्ट की तरह यहाँ भी लोग बड़े डील डौल वाले दिखे। ज्यादातर कर्मचारी काले कोट या ब्लेजर में, अपने अपने काम में मुस्तैद। हमारे साथ जो विदेशी उतरे थे वे अख़बार पढ़ने या लैपटाप में काम करने में जुट गए और हम छत्तीस घंटे के लगातार ट्रेन और विमान की यात्रा करने के बाद फ्रेश होने के जुगाड़ में। अब पहली समस्या पीने के पानी की थी। एयरपोर्ट सुरक्षा ने पानी की किसी भी बोतल को पहले ही रखवा लिया था। अपने मोबाइल पास के चार्जिंग प्वाइंट पर लगा के मैं अपने सहयात्रियों के साथ पानी की खोज़ में निकला।


पूरे अहाते का चक्कर लगाने पर दो तीन जगह ही पानी की बोतल नज़र आई। ये तो जानते थे कि यहाँ पानी मँहगा होगा पर पानी पीने के लिए बीस रुपये की जगह दो सौ रुपये देकर हमें अपनी यात्रा की शुरुआत करना गले नहीं उतर रहा था। अभी इसी उधेड़बुन में थे कि एक और भारतीय जोड़े ने बताया ये पानी नहीं सोडा वाटर है। ऐसी ठंडी जगह में लोग पानी की बजाए बीयर या अन्य कोटि की शराब से गला तर करते हैं तो ख़ालिस पानी को कौन पूछे?  

वियना और पूरा आस्ट्रिया बीयर के शौकीनों के लिए जाना जाता है। आपको जान कर ताज्जुब होगा कि आस्ट्रिया का एक बाशिंदा साल में औसतन सौ से ऊपर लीटर बीयर को हलक के अंदर कर लेता है। इस मामले में आस्ट्रिया सिर्फ चेक रिपब्लिक और जर्मनी से पीछे है। एयरपोर्ट पर अगर  तीन चार यूरो में आधा लीटर बीयर या एक लीटर पानी मिले तो फिर आख़िर आप क्या पीजिएगा :p ? बाद में जब लौटते समय वियना शहर में चहलकदमी की तो पाया कि सुपरमार्केट में आधी लीटर बीयर की बोतल एक यूरो से भी कम में आती है।

वियना में पानी से ज्यादा सुलभ बीयर है :)

वैसे विदेश आने के पहले दो बातों के लिए अपने आपको मानसिक रूप से तैयार कर लेना चाहिए। पहला तो टॉयलेट पेपर का इस्तेमाल और दूसरे पीने के पानी के लिए अलग से नल लगे होने की अपेक्षा का त्याग। पानी के बारे में ये फंडा तो मुझे अपनी जापान यात्रा में मिल गया था यानि बाथरूम में आने वाले पानी को आप बड़े विश्वास से पीने के तौर पर प्रयोग कर सकते हैं। यही जवाब विदेशों में हर जगह मिलेगा जहाँ आप ऐसा प्रश्न करेंगे। 

एयरपोर्ट पर नान वेज पिज़्जा, बर्गर तो मिल ही रहे थे। शाकाहारियों के लिए तरह तरह के बन, मफिन (मीठे केक) और चीज़ टमाटर सैंडविच जैसे व्यंजन (जिसे Tomato Foccacia नाम दिया गया था) भी उपलब्ध थे। पर दिल्ली से हम खाने पीने का पूरा स्टॉक ले कर चले थे। वियना एयरपोर्ट पर पूड़ी सब्जी का मस्त भोग लगा कर हमने एयरपोर्ट पर बाकी का वक़्त विंडो शापिंग में गुजारने का निश्चय किया।

बुधवार, 24 जून 2015

लहराते खेत... उँघते जंगल : देखिए वियना का आकाशीय नज़ारा ! Aerial View : Vienna, Austria

आसमान की ऊँचाइयों से नीचे दिखते बादलों के झुंड, डिब्बानुमा शहर, हरे भरे खेत खलिहान, पल पल अपना रास्ता बदलती नदी, पतली सर्पीली सड़कें और उस पर रेंगती गाड़ियाँ देखना विमान यात्राओं में मेरा प्रिय शगल रहा है। पर ये सारी छवियाँ अक्सर मन मस्तिष्क में अंकित हो कर रह जाती हैं। उन्हें कैमरे में क़ैद करने का सिर्फ एक मौका होता है और वो तब जब विमान अपने गन्तव्य तक पहुँचने के पहले शहर के आस पास के इलाकों पर मँडरा रहा होता है।जब भी खिड़की के पास मुझे बैठने का मौका मिलता है मैं इसी मौके का बेसब्री से इंतजार करता हूँ।

विदेशो में तो ये आनंद दूना हो जाता है क्यूंकि वहाँ के खेत खलिहान और शहर ऊपर से ही इतनी रंग बिरंगी छटा प्रस्तुत करते हैं कि मन बँधा का बँधा रह जाता है। आपको याद तो होगा ना  टोक्यो के हरे भरे धान के खेतों का जाल और बेल्जियम की राजधानी ब्रसल्स का सुंदर सुव्यवस्थित शहर, जिसे मैंने ब्लॉग के इन पन्नों पर आपको पहले दिखाया था।। तो चलिए आज आपको दिखाते हैं पूर्वी यूरोपीय देश आस्ट्रिया की राजधानी वियना के आकाशीय नज़ारे


दरअसल अपनी यूरोप यात्रा के दौरान लंदन जाते वक़्त हमें वियना के हवाई अड्डे पर अपना विमान बदलना था। विमान को सुबह छः साढ़े छः बजे के लगभग पहुँचना था। सुबह एप्पल जूस का रसपान करने के बाद मेरी तंद्रा पाँच बजे ही भंग हो चुकी थी। विमान ने नीचे आना शुरु नहीं किया था पर इतना पता चल रहा था कि सूर्योदय हो चुका है। अगले आधे घंटे में ज्यों ज्यों हम नीचे आते गए खूबसूत दृश्यों का काफिला नज़रों के सामने से गुजरता गया। तो आइए उनमें से क़ैद कुछ लमहों को देखिए मेरे कैमरे की नज़र से ..


यूरोप में पवनचक्कियाँ आम हैं। हालैंड तो खैर मशहूर ही है अपनी पवनचक्कियों के लिए..पर बाकी देशों में भी इनका खासा इस्तेमाल है।