नक़्की लेक, गुरुशिखर और देलवाड़ा मंदिर की सैर तो आपने पिछली प्रविष्टियों में की। आज के सफ़र की शुरुआत करते हैं माउंट आबू के विश्व प्रसिद्ध ब्रह्मकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय से। ब्रह्मकुमारी संप्रदाय के इतिहास पर नज़र डालें तो इसकी उत्पत्ति का श्रोत एक सिंधी, लेखपाल कृपलानी को दिया जाता है । दादा लेखपाल या ब्रह्मा बाबा पेशे से हीरों के व्यापारी थे जिन्होंने ने 1930 के दशक में आध्यात्मिक मार्ग पर चलने के लिए पाकिस्तान के सिंध प्रांत में ओम मंडली के नाम से एक सत्संग की शुरुआत की। देश के विभाजन के बाद 1950 में उन्होंने अपना मुख्यालय हैदराबाद, सिंध से माउंट आबू बना दिया। 1969 में बाबा के निधन के बाद विदेशों में भी इस संस्था का फैलाव तेजी से हुआ।
पर्यटकों को आकर्षित करने के लिए देलवाड़ा मंदिर से गुरुशिखर के रास्ते में ब्रह्मकुमारियों द्वारा एक शांति उद्यान यानि पीस पार्क बनाया गया है। यहाँ पर्यटकों को तीस चालिस की टोलियों में इकठ्ठा कर पहले इस समुदाय की विचारधारा के बारे में बताया जाता है। वैसे अगर आपने कभी ब्रह्मकुमारियों के मूलमंत्र को ना सुना हो तो उसे पहली बार सुनना थोड़ा अजीब जरुर लगेगा।
इस संप्रदाय का मानना है कि मानवता अपने अंतिम चरण में आ पहुँची है। कुछ ही समय बाद पूरे विश्व का विनाश हो जाएगा। और फिर सतयुग का स्वर्णिम काल पुनः लौटेगा। पर इसमें हम और आप नहीं होंगे। होंगे तो वैसे ब्रह्मकुमारी जिन्होंने अपनी आध्यत्मिक शिक्षा से अपने मन का शुद्धिकरण कर लिया है। सभ्यता का ये नया केंद्र भारतीय उपमहाद्वीप होगा जहाँ से संपूर्ण विश्व इन पवित्र आत्माओं द्वारा शासित होगा। ब्रह्मकुमारी, दुनिया में भगवान शिव को सर्वोच्च आत्मा मानते हैं।