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रविवार, 28 फ़रवरी 2016

ज्वार के समय समुद्र में तैरता एक मंदिर मियाजिमा, हिरोशिमा A temple floating in the sea during high tides Miyajima, Hiroshima

समुद्र और नदियों के किनारे बने मंदिर या किले तो आपने बहुत देखे होंगे पर एक विश्व में एक पूजा स्थल ऐसा भी है जिसका मुख्य द्वार और पूरा मंदिर समुद्र में ज्वार के समय पानी पर तैरता दिखाई देता है। ये पूजा स्थल है जापान के हिरोशिमा प्रीफेक्चर (राज्य के सदृश एक जापानी इकाई) में  और इसे इत्सुकुशिमा या प्रचलित रूप से मियाजिमा के नाम से जाना जाता है। जापान के कुल बारह वर्ल्ड हेरिटेज साइट्स में मियाजिमा का भी नाम आता है और रात में ज्वार के समय यहाँ के दृश्य की गणना जापान के तीन बेहतरीन दृश्यों में होती है। कुछ साल पहले जुलाई के आख़िरी हफ्ते में हम दक्षिणी जापान के क्यूशू इलाके से बुलेट ट्रेन के ज़रिये हिरोशिमा पहुँचे थे। 

समु्द में बने मंदिर का मुख्य द्वार यानि टोरी

एक बार हिरोशिमा पहुँचने के बाद उसी स्टेशन से आप किसी भी लोकल ट्रेन को पकड़ मियाजिमा पहुँच सकते हैं। अगर कोई ट्रेन छूट भी गई तो घबड़ाने की कोई जरूरत नही क्यूँकि अगली ट्रेन दस मिनट बाद ही आ जाती है। बुलेट ट्रेन यानि शिनकानसेन में तो उद्घोषणा अंग्रेजी में होती है पर लोकल ट्रेनों में आपको ये सुविधा नहीं मिलती। ख़ैर हमारे साथ तो गाइड थे इसलिए दिक्कत नहीं हुई पर ये बता दूँ कि मियाजिमा हिरोशमा से नवाँ स्टेशन है।

मियाजिमा स्टेशन की दीवार पर बनी जापानी चित्रकला

अंग्रेजी में  मियाजिमा का अर्थ होता है Shrine Island यानि ये पूरा द्वीप ही पवित्र और पूज्य माना जाता है। ज़ाहिर सी बात है कि  द्वीप तक पहुँचने के लिए हमें फेरी लेनी थी। रेलवे स्टेशन से फेरी स्टेशन के बीच पाँच मिनट में पैदल पहुँचा जा सकता है। जुलाई का महीना उस साल हिरोशिमा का सबसे गर्म महीना था। तापमान पैंतीस डिग्री के आसपास था पर उतने ही में जापानी पानी पानी हो रहे थे। सड़क पर जहाँ देखो लोग जापानी पंखा झेलते  दिख रहे थे। तथाकथित गर्म लहर टीवी चैनलों की सुर्खियों में थी। समुद्र तट से सटे होने की वज़ह  से नमी भी थोड़ी ज्यादा थी तो पसीने पसीने तो मैं भी हो ही गया था।

शनिवार, 8 अगस्त 2015

यादें हिरोशिमा की : क्या हुआ था वहाँ सत्तर वर्ष पहले ? Hiroshima Peace Memorial

सत्तर साल पहले विश्व में पहला परमाणु बम जापान में हिरोशिमा की धरती पर गिराया गया था। इस बम ने इस फलते फूलते शहर को अपने एक वार से ही उजाड़ कर रख दिया था। सत्तर हजार लोगों  ने तुरंत और इतनी ही संख्या में घायलों ने भी छः महीनों के भीतर दम तोड़ दिया था। इनमें जापान के सामान्य नागरिकों के आलावा कोरिया और चीन से लाए गए मजदूर भी शामिल थे।

आज भी इतनी भयंकर त्रासदी के बावज़ूद परमाणु युद्ध का ख़तरा संसार से टला नहीं है। किसी का कुछ नहीं जाता ये कह कर कि यहाँ बम गिरा देंगे वहाँ तबाही मचा देंगे। कम से कम मानसिक रूप से विक्षिप्त ऐसे लोगों को हिरोशिमा के उस म्यूजियम की राह जरूर लेनी चाहिए जहाँ सत्तर साल बाद भी विध्वंस के कुछ अवशेष ज्यूँ के त्यूँ बचा के रखे गए हैं। तो चलिए आज मैं आपको ले चलता हूँ उस शहर में जहाँ की निर्दोष जनता को इस परमाणु बम की मार झेलनी पड़ी थी।


आज से तीन साल पूर्व जब मैंने हिरोशिमा की धरती पर कदम रखा था तो वो शहर मुझे किसी दूसरे जापानी शहर से भिन्न नहीं लगा था। बुलेट ट्रेन से उतरकर हम वहाँ की स्थानीय ट्रेन से पहले मियाजीमा स्थित शिंटो धर्मस्थल इत्सुकुशिमा गए थे और वहाँ से लौट कर हिरोशिमा के विख्यात पीस मेमोरियल को देखने का मौका मिला था। हिरोशिमा के मुख्य स्टेशन से पीस मेमोरियल की यात्रा करने का सबसे आसान तरीका ट्राम से सफ़र करने का है। पन्द्रह मिनट के सफ़र के बाद हम Genbaku स्टेशन से चंद कदमों के फ़ासले पर स्थित इन A Bomb dome के भग्नावशेषों के सामने थे।

बीसवी शताब्दी के आरंभ (1915) में एक चेक वास्तुकार द्वारा बनाई गई इस इमारत को  Hiroshima Prefectural Industrial Promotion Hall के नाम से जाना जाता था और अपने हरे गुंबद के लिए शहर में दूर से ही इस  भवन  को पहचाना जाता था । द्वितीय विश्व युद्ध के समय इसे जापानी सरकार के आंतरिक सुरक्षा विभाग ने अपने कार्य हेतु ले लिया था। सन 1945 में यु्द्ध अपने समापन दौर में था। जर्मनी आत्मसमर्पण कर चुका था पर जापानी सम्राट हिरोहितो संधि के मूड में नहीं थे। युद्ध को जल्द खत्म करने के उद्देश्य से अमेरिका ने परमाणु बम का पहला इस्तेमाल 6 अगस्त 1945 को सुबह सवा आठ बजे अपने B 29 लड़ाकू विमानों से किया।