जूनागढ़ किले के अंदर बने महलों का दर्शन तो आपने पिछली बार ही कर लिया जिससे आपको उस पर मुगलकालीन स्थापत्य की झलक भी देखने को मिली। पर बीकानेर के राजाओं के रहन सहन को देखने के लिए आपको किले परिसर में मौज़ूद संग्रहालयों में विचरण करना होगा। मेहरानगढ़ किले की तरह जूनागढ़ किले का रखरखाव बढ़िया है। किले में महलों के इतिहास को समझने के लिए आपको जो गाइड दिए जाते हैं उनका अतिरिक्त शुल्क नहीं देना पड़ता। किले के सांस्कृतिक संग्रहालय का नाम 'प्राचीना' है जो सुबह नौ बजे से शाम छः बजे तक खुला रहता है। इसके आलावा किले के अंदर निचले तल्ले पर महाराज गंगा सिंह के महल को भी संग्रहालय बना दिया गया है।
इस संग्रहालय में आप बीकानेर के शाही कमरे की साज सज्जा देख सकते हैं। उस समय के बनाए हस्त शिल्प, पहने जाने वाले वस्त्र, दैनिक उपयोग की वस्तुएँ, अस्त्र शस्त्र सब बड़े करीने से यहाँ प्रदर्शित किए गए हैं। तो चलिए आपको उन की कुछ झलकें दिखा देते हैं आज के इस फोटो फीचर में...
बीकानेर की महारानियाँ देशी साज श्रंगार के साथ यूरोपीय प्रसाधनों का भी इस्तेमाल करती थीं।संग्रहालय में यूरोप से मँगाए गए ऐसे कई प्रसाधन दिखाई देते हैं। नीचे चित्र में आपको गेंडे की खाल से बनी ढाल भी दिखेगी जिस पर पीतल की जड़ाई का काम भी किया गया है।
साथ ही है सुनहरी आभा लिए राजस्थान में निर्मित कप प्लेट जिन पर उस वक़्त के यूरोपीय डिजाइन का पूरा असर था। खाली समय में मनोरंजन के लिए महल के अंदर ताश और चौपड़ जेसे खेल हुआ करते थे। रईसी का ये आलम था कि लोग बाग हाथी दाँत के बने ताश के पत्तों से खेलते थे। वैसे संग्रहालय में इनके आलावा बीकानेर की छवियों से अलंकृत ताश के पत्ते भी प्रदर्शित हैं। नीचे चित्र में देखिए चौपड़ की एक बिसात।
संग्रहालय में चंदन की लकड़ी से बने हस्त शिल्प अपने महीन काम की वज़ह से ध्यान खींचते हैं। खास तौर से नक्काशीदार तलवार और नीचे दिख रही बेहद खूबसूरत हाथ की ये पंखी।
संग्रहालय में जाकर और कहीं आप तसवीर खिंचाए ना खिचाएँ , विभिन्न कोटि के अलंकरणों और वस्त्र से सुसज्जित इस घोड़े के साथ तो फोटो खींचना बनता है।