पिछले हफ्ते दीपावली में पटना जाना हुआ। यूँ तो पटना में अक्सर ज्यादा वक़्त नाते रिश्तेदारों से मिलने में ही निकल जाता है पर इस बार दीपों के इस उल्लासमय पर्व को मनाने के बाद एक दिन का समय खाली मिला। पता चला कि विगत दो सालों से पटना के आकर्षण में राजधानी वाटिका और बुद्ध स्मृति उद्यान भी जुड़ गए हैं तो लगा क्यूँ ना इन तीन चार घंटों का इस्तेमाल इन्हें देखने में किया जाए।
स्ट्रैंड रोड पर पुराने सचिवालय के पास बनी राजधानी वाटिका में पहुँचने में मुझे घर से आधे घंटे का वक़्त लगा। दिन के तीन बजे के हिसाब से वहाँ अच्छी खासी चहल पहल थी। दीपावली के बाद की गुनगुनी धूप भी इसका कारण थी। वैसे भी इस चहल पहल का खासा हिस्सा भारत के अमूमन हर शहर की तरह वैसे प्रेमी युगलों का रहता है जिन्हें शहर की भीड़ भाड़ में एकांत नसीब नहीं हो पाता। वैसे तो यहाँ टिकट की दर पाँच रुपये प्रति व्यक्ति है पर कैमरा ले जाओ तो पचास रुपये की चपत लग जाती है। वैसे जब मैंने टिकट घर में कैमरे का टिकट माँगा तो अंदर से सवाल आया कि कैसे फोटो खींचिएगा शौकिया या..। अब अपने आप को प्रोफेशनल फोटोग्राफर की श्रेणी में मैंने कभी नहीं रखा पर मुझे लगा कि उसके इस प्रश्न का मतलब मोबाइल कैमराधारियों से होगा । सो मैंने टिकट ले लिया वो अलग बात थी कि कैमरे की बैटरी पार्क में घुसते ही जवाब दे गई और मुझे सारे चित्र मोबाइल से ही लेने पड़े।
दो साल पहले यानि 2011 में जब इस वाटिका का निर्माण हुआ तो उसका उद्देश्य 'पटना का फेफड़ा' कहे जाने वाले संजय गाँधी जैविक उद्यान पर पड़ रहे आंगुतकों के भारी बोझ को ध्यान में रखते हुए एक खूबसूरत विकल्प देना था। इस जगह की पहचान सिर्फ एक वाटिका की ना रहे इसलिए पार्क के साथ साथ इसके एक हिस्से में बिहार से जुड़े नामी शिल्पियों के खूबसूरत शिल्प रखे गए। वहीं इसके दूसरे भाग में वैसे पेड़ो को तरज़ीह दी गई जिनका जुड़ाव हमारे राशि चिन्हों या धार्मिक संकेतों के रूप में होता है। तो आज की इस सैर में सबसे पहले आपको लिए चलते हैं इस वाटिका के सबसे लोकप्रिय शिल्प कैक्टस स्मृति के पास।
कैक्टस जैसे दिखने वाले इस शिल्प की खास बात ये है कि इसे रोजमर्रा काम में आने वाले स्टेनलेस स्टील के बर्तनों जैसे कटोरी,चम्मच, गिलास, टिफिन आदि से जोड़ कर बनाया गया है। इसे बनाने वाले शिल्पी हैं अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त शिल्पकार सुबोध गुप्ता जिनका ताल्लुक पटना के खगौल इलाके से रहा है। 26 फीट ऊँचे और 2 टन भारी इस कैक्टस में गुप्ता बिहार के जीवट लोगों का प्रतिबिंब देखते हैं जो बिहार के काले दिनों में भी अपने अस्तित्व को बचाने में सफलतापूर्वक संघर्षरत रहे।